वास्तव में इस देश का पालन पोषण करने वाली गंगा जी ममतामयी माता तुल्य ही है। इसकी महिमा पुराणों, वेदों तथा अन्य सभी ग्रंथों में गाथा गाई गई है। गंगा जी संसार की सबसे श्रेष्ठ नदी मानी गयी है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि इसके जल में अद्भुत रोग निवारण क्षमता है। गंगा नदी हिंदुओं की परम पवित्र माता तुल्य नदी है इस देश की महानता का गौरव है। जिनकी आराधना उपासना हिंदू धर्म में श्रेष्ठतम है। गंगा जी हिमालय से निकलती है। ऐसा मानना है कि गंगा जी भगवान शिव की जटाओं में समायी थीं और महाराजा सगर की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर पृथ्वी पर अवतरित हुई। यह सब अंक ज्योतिष की ही अलौकिक उपलब्धि है।
हिमालय का अंक विज्ञान: हिमालय का मूलांक केरल प्रश्न रत्न के आधार पर 3 आता है, यह ‘तीन’ त्रिभुज का सूचक है। त्रिभुज के अंदर जादुई शक्ति होती है। भारतवर्ष में ही नहीं वरन् मिश्र आदि उन्नत देशों में भी इसे जादू का आधार माना गया है, अन्यथा पिरामिडों में करोड़ों की संपत्ति सुरक्षित कैसे रह पाती। मंदिरों के गुम्बज भी ज्यामितीय प्रणाली से वृत्ताकार आधार पर खड़ा त्रिभुज ही होता है। भारत के मानचित्र को यदि ध्यान से देखें तो यह त्रिभुजाकार भूखण्ड जैसा लगता है। संभवतः इसी कारण इसमें प्रत्येक को अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता है।
पुनः 3 के बारे में पाइथागोरस ने बताया है कि यह कला, विज्ञान और साहित्य से पूर्ण अंक है। इसमें हर प्रकार की अभिव्यक्ति संभव हो जाती है। इस अंक की विशेषता बतलाते हुए उन्होंने कहा है कि यह अंक 111 के मेल से बनता है। अतः भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में संसार का नेतृत्व करता है। इसके पास इतनी जानकारी होती है कि इस विषय में एक मत सहमत होना असंभव सा प्रतीत होता है। इसी कारणवश हिमालय को अंक विज्ञान में जादुई माना गया है जो अनेक विचित्र और अनुपम सीमायुक्त चीजों का जन्मदाता भी है। स्वर एवं व्यंजन विश्लेषण हिमालय में स्वर और व्यंजनों की कुल संख्या 8 है जो संसार के रक्षार्थ प्रयुक्त किया जाता है। अतः ‘गंगोत्री’ का मूलांक 2 माता का प्रतीकांक बनकर ‘भागीरथी’ मूलांक 4 (संयुक्तांक 13) का निर्माण करती है। इसीलिए 4 को सभी अंकों की मां कहकर पुकारा है। अब ‘भागीरथी’ की तीन धारायें बनती हैं,
जिन्हें गंगा, यमुना और सरस्वती कहते हैं। इन तीनों का मूलांक क्रमशः 8, 6 और 7 है। अतः इन तीनों मूलांकों को जोड़ देने पर 8$6$7= 21 =2$1=3 है। यही मूलांक ‘हिमालय’ का भी है। यह मूलांक ‘भगीरथी’ के संयुक्तांक 13 में भी सम्मिलित है। यह 13 का संयुक्तांक अपने आप में इतना महत्वपूर्ण है कि इसे नियंत्रित करना किसी के वश की बात नहीं। फिर भी चूंकि यह 13=1$3=4 मूलांक बनता है, जो विश्वास एवं व्यावहारिकता से परिपूर्ण अंक है। अतः यह नदी विश्वास एवं व्यावहारिकता से पूर्ण होने के कारण अपने तट पर अनेक सुंदर व भव्य नगरों की स्थापना कर रखी है। इसके किनारे ही भारत का इतिहास रचा गया है।
इसी के अस्सी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। इस नदी के द्वारा लायी गई मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि इसे पवित्रता का प्रतीक मानकर चंदन की जगह इसी को लगाने की सीख दी गई है। सचमुच भारत भूमि की महानता इसी नदी के कारण बढ़ी है। स्वर और व्यंजनों की इस अंक तालिका से संयुक्तांक व मूलांक इस प्रकार बनायें। अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः 12 21 11 18 15 22 18 32 25 19 25 0 क ख ग घ ङ च छ ज झ व ट ट 13 12 21 30 10 15 21 23 26 26 27 13 ड ढ़ ण त थ द ध न प फ ब भ 22 35 45 14 18 17 13 35 28 18 26 27 म य र ल व श ष स ह 86 16 13 12 65 26 35 35 12 यह नदी अपने मिलन स्थल (संगम) पर मूलांक 9 का निर्माण करती है। (यथा गंगा $ यमुना $ सरस्वती = 7$5$6=18=1$8=9)। अब इस 9 को तीन बराबर भागों में बांट दिया जाये तो 333 बन जाता है।
इसका तात्पर्य यह है कि यहां 3 का वर्ग है (32=9) या तीन का सम त्रिबाहु त्रिभुज होता है तो 9 को 3 त्रिभुज कह सकते हैं। यह यहां भी पूर्णतः जादूई शक्ति है। इसी प्रकार ‘गंगा जी’ अनेक तीर्थों का निर्माण करती हुई ‘हुगली’ (कर्नाटक) की ओर बढ़ती हैं। वहां पहुंचकर यह हुगली ही जाती हैं जिसका संयुक्तांक 91=9$1=10 भाग्य चक्र और फिर मूलांक 1 बन जाता है। अब अंक 4 अंक 1 का सहचर है, अतः 4 का गमन 1 की ओर हुआ है।
अब यह नदी सागर में आगे बढ़ती है और मिलकर ‘गंगासागर’ हो जाती है और इस गंगासागर का मूलांक भी 4 ही आता है अर्थात् 4 ने अनेक अंकों को जन्म दिया और माता की तरह यह गंगा सदा अमर है। अब सिर्फ ‘गंगा’ का मूलांक 7 है जो उच्चतम आध्यात्मिक ज्ञान का पोषक है। जिस कारण ‘गंगा सागर’ भी एक प्रमुख तीर्थ बन गया है।