चिकित्सा में रत्नों का योगदान
चिकित्सा में रत्नों का योगदान

चिकित्सा में रत्नों का योगदान  

व्यूस : 8401 | मई 2012
चिकित्सा में रत्नों का योगदान ओम प्रकाश दार्शनिक आकाश मंडल में गतिमान प्रमुख नवग्रहों का संबंध पंचभूत निर्मित शरीर के किन-किन तत्वों के किस रूप में कार्य करता है, यह जानना न केवल रोचक है बल्कि इन रत्नों की चिकित्सीय उपादेयता का भी पूरा लाभ लिया जा सकता है। आइये जानें, किस रोग में कौन सा रत्न धारण करें। मानव शरीर पंच महाभूतों अर्थात अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी एवं आकाश नाम के पंचमहातत्वों से मिलकर निर्मित हुआ है। इनमें न्यूनता या अधिकता आ जाने से ही उस तत्व विशेष से संबंधित विकार, रोग या कमी आ जाती है क्यों कि इन पंचतत्वों का संतुलन ही शरीर को निरोगी रखने में सहायक होता है। आयुर्वेद भी वात् (वायु), पिŸा (अग्नि) एवं कफ (जल) तत्व के समानुपात पर ही निरोगता बताता है। कालपुरुष के अनुसार जल तत्व के ग्रह चंद्रमा और शुक्र तथा राशियां कर्क, वृश्चिक एवं मीन हैं। वैसे तो शुक्र ग्रह को जल तत्व एवं पृथ्वी तत्व का मिश्रित ग्रह माना जाता है। बुध ग्रह को अग्नि, जल एवं आकाश तत्व एवं पृथ्वी तत्व का मिश्रित माना गया है जबकि कुछ विद्वान इसे आकाश तत्व एवं पृथ्वी तत्व का ही मिश्रित ग्रह मानते हैं। लेकिन अनुभव कहता है कि पृथ्वी तत्व को ग्रह बुध तथा राशियां- वृष, कन्या एवं मकर हैं। आकाश तत्व में केवल बृहस्पति ग्रह का अधिकार है तथा कोई राशि विद्यमान नहीं है। वस्तुतः बृहस्पति में वायु तत्व की अधिकता है, वैसे तो वायु तत्व का ग्रह शनि तथा राशियां मिथुन, तुला एवं कुंभ हैं तथा अग्नि तत्व के ग्रह सूर्य, मंगल तथा राशियां मेष, सिंह एवं धनु हैं। यूरेनस अर्थात हर्षल में वायु तत्व, प्लूटो में अग्नि तत्व तथा नेप्च्यून में वायु तत्व की प्रधानता मानी गयी है। इन ग्रहों तथा कालपुरुष के विभिन्न भागों व अवयवों का सीधा संबंध इस प्रकार है- सूर्य से सिर, दाहिना नेत्र, हृदय तथा हड्डी का, चंद्रमा से फेफड़े, छाती, हृदय तथा बांये नेत्र का, मंगल से, अण्डकोश, आंत, हड्डी का, आंतरिक तत्व मज्जा का तथा बुध से श्वास नलिका, आंतों, त्वचा (चमड़ी), गुर्दों, कनपटी, गर्दन व कोहनी का, बृहस्पति से चर्बी, लीवर (जिगर), पैर, नितंब का तथा शुक्र से वीर्य, नाभि, जीभ, गला तथा गुप्तेन्द्रियों का शनि से टांगों के बीच वाले भाग एवं निचले भाग, पसलियों, दांढ़ों, ठोडी आदि का संबंध है। इसी प्रकार विभिन्न राशियां भी शरीर के विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करती हैं। हमारे पूर्वजों एवं ऋषियों ने रोगों से मुक्ति के लिए रत्नों की भस्मों का तथा रत्नों के धारण करने से रोगों के निदान का विधान बताया है।इन्हीं मनीषियों ने अपने दिव्य चक्षुओं से भविष्य की जीर्ण स्थिति को जानते हुए लोकोपकार में रत्नों से न केवल रोगों को दूर करना बताया बल्कि भाग्य व दीर्घायु बढ़ाने का गुण भी बताया है। वर्तमान अनुसंधान भी रत्नों के महत्व को स्वीकारता है। जिनमें 16 प्रकार के तत्व न्यूनाधिक स्थिति में विद्यमान हैं। इन रत्नों में कार्बन, एल्युमीनियम, बेरियम, कैल्शियम, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फास्फोरस, मैग्नीज, पोटेशियम, गंधक, सोडियम, एवं जस्ता है। आकाश मण्डल में भ्रमण कर रहे ग्रह भी अपने विशेष ताप तथा रश्मियों से इन रत्नों को उपर्युक्त तत्वों की प्रमुखता देते हैं जिससे ये रत्न ग्रहों तथा रोगों को शांत करने की प्रबल क्षमता रखते हैं। इन रत्नों में हीरा, मोती, माणिक्य, पन्ना, नीलम, पुखराज, गोमेद, मूंगा तथा फिरोजा नाम के दस रत्न प्रमुख हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति में स्वस्थ एवं निरोग रहने के लिए रत्नों के प्रयोग का वर्णन आयुर्वेद में प्रचुरता से मिलता है। आयुर्वेद में रत्नों और धातुओं की भस्म बनाने की अनेक विधियां प्रचलित हैं। रत्न चिकित्सा के लिए प्रायः जिन रत्नों को धारण किया जाता है, उससे मनवांछित लाभ प्राप्त होता है। रत्नों और रोगों के विषय में यह तथ्य स्पष्ट है कि इन रत्नों को इस प्रयोजन से प्रयोग में लाते समय किसी भी प्रकार से अभिमंत्रित करने की आवश्यकता नहीं होती है। आप अपनी सुविधानुसार किसी भी दिन, किसी भी समय, कितने ही तौल का रत्न धारण करके भरपूर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। चिकित्सा में प्रयोग होने वाले रत्न तालिका में वर्णित हैं। सही रत्नों को विधिवत् धारण करने अथवा रत्नों के गुणों का सेवन निर्दिष्ट विधि से करने से रोग शमन में आशातीत सफलता भी पाई जाती है। यहां पर विशेष रूप से मात्र नौ रत्नों से संबंधित कुछ तथ्य निम्नवत् स्पष्ट हैं- माणिक्य: रक्त संबंधी विकार में माणिक की भस्म का शहद के साथ उपयोग लाभकारी है। घर में माणिक रखने मात्र से कीटाणुओं का नाश हो जाता है। नामर्दी और खूनी बवासीर में माणिक भस्म आश्चर्यजनक लाभ पहुंचाती है। संग्रहणी, अतिसार की बीमारी में माणिक विधिवत अंगूठी में धारण करने से लाभ होता है। खूनी दस्त हो तो माणिक का धोया जल पिलाने से लाभ होता है। मोती: शरीर में गर्मी अधिक हो तो विधिवत शुद्ध मोती पहनने से लाभ मिलता है। पेशाब में जलन होने पर मोती की भस्म, केवड़ा जल के साथ सेवन करने से तत्काल लाभ मिलता है। पथरी में मोती भस्म, शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है। महिलाओं के उदर विकार संबंधी कष्ट हों, तो सर्वश्रेष्ठ मोती धारण करने से लाभ होता है। मूंगा: मंदाग्नि में मूंगे की भस्म गुलाब जल के साथ लेने से लाभ होता है। निर्बलता में मंूगे की भस्म जिसे प्रवाल भस्म के नाम से भी जाना जाता है। लाभकर है। रक्तचाप में मूंगे की भस्म शहद के साथ चाटना लाभदायक है। पेट दर्द में मूंगे की भस्म मलाई के साथ खाने से लाभ मिलता है। पन्ना: पन्ना घर में रखने से सर्प-भय नहीं रहता है। पन्ने को निर्मल जल में पांच मिनट तक घुमाकर उस जल से आंख धोने से नेत्र कष्ट दूर होता है। गर्भवती स्त्री यदि कमर में पन्ना बांध ले तो शीघ्र प्रसव होता है। स्त्री या पुरुष अंगूठी में पन्ना धारण करें तो जादू-टोने का प्रभाव उन पर नहीं पड़ेगा तथा मन की उद्विग्नता समाप्त होती है। पुखराज: हड्डियों का दर्द, खांसी, बवासीर जैसे रोगों में पुखराज की भस्म लाभकारी है। गुर्दा, तिल्ली से संबंधित रोगों में पुखराज को केवड़े के जल में धोकर वह जल पीने के लिए दें तो लाभकारी सिद्ध होता है। हीरा: जिसका वीर्य न बनता हो, शीघ्र स्खलित हो जाता हो, संतान उत्पन्न करने में अक्षम हो, उसे हीरे की भस्म मलाई के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है। हीरे की भस्म शहद के साथ लेने से भूख लगती है। नीलम: नीलम धारण करने से खांसी, उल्टी, रक्त विकार आदि स्वतः नष्ट हो जाते हैं। आंखों के रोगों में यदि केवड़े के जल में नीलम धोकर आंखों में वह जल डाला जाय तो लाभकारी होगा। गोमेद: मिर्गी, दांतों के रोगों में दूध के साथ गोमेद भस्म सेवन करने से लाभ होता है। बल-बुद्धि ह्रास व प्रमेह में गोमेद भस्म मलाई के साथ लाभप्रद है। लहसुनिया: शुद्ध देशी घी के साथ लहसुनिया की भस्म का सेवन कने से वीर्य गाढ़ा होता है। इस भस्म को शहद के साथ लेने से गर्मी (सुजाक) की बीमारी में लाभ होता है। उपर्युक्त रत्नों के गुणों से लाभ तभी सुनिश्चित होगा, जब रत्नों की शुद्धता प्रमाणित हो। अतः रत्नों का विधिवत प्रमाण, परीक्षण विद्वदजनों की राय एवं चिकित्सों के सुझाव एवं परामर्शानुसार संतुष्ट होकर ही प्रयोग करें। एक विशेष बात यह है कि ग्रहयोग देखकर रत्न धारण करना ही उचित होगा। इस संबंध में विभिन्न आचार्यों के विभिन्न मत हैं। कुछ आचार्य जन कुंडली में अशुभ को शुभ तथा दुर्बल ग्रह को सबल बनाने के लिए और कुछ आचार्य शुभ ग्रह को और शुभ बनाने के लिए रत्न धारण करने का निर्देश देते हैं। श्रद्धा एवं विश्वास उसमें आत्मबल बढ़ाते हैं और इनके आधार पर मेरी राय में लग्न की राशि, उसके स्वामी, नक्षत्र के स्वामी तथा उसके उपस्वामी, पंचम भाव की राशि, पंचमेश, पंचमेश के नक्षत्र तथा नक्षत्र स्वामी, उपस्वामी तथा नवमेश आदि का विस्तृत अध्ययन करके ही विशेष कार्य के लिए विशेष रत्न धारण करना चाहिए।



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