रत्न: सकारात्मक ऊर्जा स्त्रोत
रत्न: सकारात्मक ऊर्जा स्त्रोत

रत्न: सकारात्मक ऊर्जा स्त्रोत  

व्यूस : 10034 | मई 2012
रत्न: सकारात्मक ऊर्जा स्रोत रश्मि चैधरी भारत से बाहर के देशों में जहां रत्नों का प्रयोग व्यक्ति अपनी वेश-भूषा तथा सामान्य सुंदरता को बढ़ाने के लिए करते हैं, वहीं भारत में रत्नों का विविध प्रयोग इस सिद्धांत के आधार पर किया जाता है कि ये रत्न सभी स्तरों पर सकारात्मक ऊर्जा का संवर्धन करते हैं। रत्न एवं रत्नों से निर्मित आभूषण न केवल शरीर के विभिन्न अवयवों का अलंकरण ही करते हैं वरन् उनमें आश्चर्यजनक अलौकिक दैवीय शक्ति विद्यमान रहती है जो अप्रत्यक्ष रूप से मानव शरीर में प्रवेश करके मानव जीवन को निरोगी एवं सुखमय बनाने की सामथ्र्य रखती है। ज्योतिषीय दृष्टि से सभी नौ ग्रहों का संबंध नौ रत्नों से माना गया है। ग्रहों के रत्न, न्यूनतम भार, धातु, उंगली, वार, धारण समय तालिका में देखें। रत्न धारण मंत्र सूर्य (माणिक्य) ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः चंद्र (मोती) ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः चंद्रमसे नमः मंगल (मूंगा) ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः। बुध (पन्ना) ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः। गुरु (पुखराज) ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः शुक्र (हीरा) ऊँ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः। शनि (नीलम) ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। राहु (गोमेद) ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः। केतु (लहसुनिया) ऊँ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः जिस प्रकार कुंडली में स्थित ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति के आधार पर ही किसी जातक को जीवन में सफलता या असफलता प्राप्त होती है उसी प्रकार इन नवग्रहों की शक्ति को द्विगुणित करने अथवा कम करने में इन रत्नों का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान रहता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी रत्नों का अत्यधिक महत्व है। हम सभी जानते हैं कि हमारा यह शरीर पंच महाभूतों (अग्नि, पृथ्वी, आकाश, वायु तथा जल) से निर्मित है। जब-जब हमारे शरीर में इन पंचतत्वों में से किसी एक का भी संतुलन बिगड़ जाता है अथवा किसी एक तत्व की अत्यधिक प्रधानता या न्यूनता हो जाती है तो हमारे शरीर एवं मन को अनेक प्रकार के रोगों एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसी विषम परिस्थिति में ये रत्न अपने से संबंधित ग्रहों की राशियों को नैसर्गिक रूप से हमारे शरीर में प्रविष्ट कराकर उस असंतुलित ग्रह एवं तत्व को पूर्णतया संतुलित करके उस ग्रह को शुभता प्रदान करते हैं। कुंडली में स्थित ग्रहों की पूर्ण शुभता प्राप्त करने के लिये ही रत्न-धारण विधि (अंगूठी अथवा लाॅकेट) प्रयोग में लाई जाती है। विभिन्न लग्नों के जातकों को जीवन में सकारात्मक एवं शुभता प्राप्त करने के लिये अपने लग्न से संबंधित रत्नों को अवश्य धारण करना चाहिये। लग्न जीवन रत्न कारक रत्न भाग्य रत्न मेष मूंगा माणिक पुखराज वृष हीरा पन्ना नीलम मिथुन पन्ना हीरा नीलम कर्क मोती मूंगा पुखराज सिंह माणिक पुखराज मूंगा कन्या पन्ना नीलम हीरा तुला हीरा नीलम पन्ना वृश्चिक मूंगा पुखराज मोती धनु पुखराज मूंगा माणिक मकर नीलम हीरा पन्ना कुंभ नीलम हीरा पन्ना मीन पुखराज मोती मूंगा औषधीय दृष्टि से भी रत्नों का अत्यधिक महत्व है। रत्नों में कई रोगों को दूर करने की प्राकृतिक क्षमता होती है। ज्योतिष में सूर्यादि नौ ग्रहों को विभिन्न रोगों का कारक भी माना गया है। जिस ग्रह से संबंधित रोग से व्यक्ति ग्रसित होता है यदि उस ग्रह से संबंधित रत्न को वह (अन्य औषधियों के सेवन) के साथ-साथ धारण करता है तो रोगों के उपचार में अतिशीघ्र लाभ प्राप्त होता है। ग्रह रत्न भार (न्यूनतम) धातु उंगली वार समय सूर्य माणिक्य 3( रत्ती सोना अनामिका रविवार प्रातः चंद्र मोती 3( रत्ती चांदी कनिष्ठिका सोमवार प्रातः मंगल मूंगा 6) रत्ती चांदी अनामिका मंगलवार प्रातः बुध पन्ना 4( रत्ती सोना कनिष्ठिका बुधवार प्रातः गुरुवार पुखराज 4) रत्ती सोना तर्जनी गुरुवार प्रातः शुक्र हीरा ( रत्ती चांदी कनिष्ठिका शुक्रवार प्रातः शनि नीलम 4( रत्ती पंच धातु मध्यमा शनिवार संध्या राहु गोमेद 5( रत्ती अष्ट धातु मध्यमा शनिवार सूर्यास्त केतु लहसुनिया 6( रत्ती चांदी अनामिका मंगल/गुरु सूर्यास्त रत्न बीमारियों में लाभदायक माणिक दिल के रोग, सरदर्द, नेत्र रोग रक्त विकार मोती अनिद्रा, तपेदिक, हिस्टीरिया, नेत्र रोग डिप्रेशन (मानसिक अवसाद) मूंगा बुखार, चेचक, रक्त विकार गर्भपात पन्ना जीभ, वाणी मस्तिष्क रोग, आंत एवं एलर्जी पुखराज पीलिया, गठिया, हृदय रोग, उदर, जिगर, नपुंसकता हीरा वीर्य संबंधी रोग, नपुंसकता, अंधापन नीलम मिर्गी, लकवा, पैर दर्द, नाड़ी तंत्र पुराने लाइलाज रोग गोमेद चेचक, हैजा, संक्रामक रोग, कुष्ठ रोग त्वचा रोग लहसुनिया कैंसर, अस्थमा, लकवा, मिर्गी, अचानक होने वाली बीमारियां रत्न धारण करने के कुछ विशिष्ट नियम रत्नों को अंगूठी या लाॅकेट में धारण करने के भी कुछ विशिष्ट नियम हैं जिनका ध्यान रखना अति आवश्यक है। कभी भी परस्पर विरोधी ग्रहों के रत्न धारण नहीं करने चाहिए। सभी रत्नों की एक निश्चित आयु होती है। उस निश्चित अवधि के समाप्त होते ही उस रत्न को उतार कर देना चाहिये। यदि पुनः वही रत्न धारण करना आवश्यक है तो नवीन रत्न धारण करें। रत्न की आयु और साथ में वर्जित रत्न इस प्रकार हैं- - रत्न सदैव उत्कृष्टता लिये होना चाहिए। - पुरुष दायें हाथ में तथा स्त्रियां बायें हाथ में रत्न धारण करें (ऐसी मान्यता है)। किंतु यदि स्त्रियां भी आत्मनिर्भर हैं अथवा व्यवसाय या नौकरी करती हैं तो उन्हें भी दाहिने हाथ में ही रत्न धारण करना चाहिये। - कभी भी बाधक, मारक या अशुभ ग्रह का रत्न नहीं धारण करना चाहिये। - रत्नों का चयन सदैव ग्रह की अशुभता को दूर करने के लिये तथा शुभता और सकारात्मकता को बढ़ाने के लिये ही करना चाहिये। - यदि कोई ग्रह कुंडली में अशुभ स्थिति में विद्यमान है और यदि अज्ञानतावश या त्रुटिवश उस ग्रह के रत्न को धारण कर लिया जाता है तो इसका अर्थ है कि वह धारण किया गया रत्न उस ग्रह विशेष की शक्ति को और बढ़ायेगा अर्थात् उसके अशुभत्व में वृद्धि करेगा। ऐसी स्थिति में उस ग्रह के अशुभ फल ही प्राप्त होंगे। - रत्न को सदैव निश्चित अंगुली मंे ही पहनना चाहिये। - रत्न को अंगूठी के रूप में उंगली में धारण करना, लाॅकेट के रूप में गले में धारण करने से अधिक लाभप्रद होता है। - यदि रत्न को लाॅकेट के रूप में पहनना हैं तो रत्न का वजन दुगना कर देना चाहिए। - रत्न को हमेशा उंगली की त्वचा से स्पर्श करते रहना चाहिए, क्योंकि रत्न का स्पर्श जब त्वचा से होता रहता है तो उस रत्न के द्वारा परावर्तित सकारात्मक ऊर्जा एवं रश्मियों का सीधा एवं प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे मन और मस्तिष्क पर पड़ता है जिससे हमारी सकारात्मक सोच में वृद्धि होती है तथा हम जीवन में सफलता की ओर एक कदम और अग्रसर हो जाते हैं।’’ - रत्नों को सदैव किसी रत्न विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही धारण करना चाहिये। अतः यह निश्चित है कि अपनी लग्न, राशि तथा कुंडली में ग्रहों के बलाबल एवं शुभत्व, अशुभत्व के अनुसार उचित रत्नों का चयन करके, उसे अंगूठी या लाॅकेट के रूप में धारण करके हम अपनी जीवन रूपी माला को प्रसन्नता, सफलता, सुख-समृद्धि, शांति, वैभव इत्यादि रत्नों से विभूषित कर सकते हैं, जिनकी प्रकाश रश्मियों से हमारा जीवन और अधिक आलोकित होता रहेगा तथा ग्रहों को अनुकूल बनाकर उन ग्रहों की पूर्ण कृपा एवं शुभत्व प्राप्त करने की दिशा में भी ये रत्न सदैव ही हमारे लिये ‘प्राकृतिक ऊर्जा-स्रोत का ही कार्य करेंगे। रत्न रत्न की आयु साथ में वर्जित रत्न माणिक 4 साल हीरा, नीलम, गोमेद मोती 2) साल गोमेद लहसुनिया मूंगा 3 साल हीरा, नीलम, गोमेद पन्ना 4 साल मोती पुखराज 4 साल हीरा नीलम हीरा 7 साल माणिक, मूंगा, पुखराज नीलम 5 साल माणिक, मूंगा, पुखराज गोमेद 3 साल माणिक, मोती, मूंगा लहसुनिया 3 साल मोती



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