हर प्रकार के शत्रु से छुटकारा दिलाए बगलामुखी यंत्र ! डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव शास्त्रों में नौ प्रकार के शत्रु माने गए हैं, जिनकी वजह से हमारी प्रगति सही प्रकार से नहीं हो पाती। ये नौ शत्रु इस प्रकार हैं- प्रत्यक्ष शत्रु: जिनसे हम शत्रुता का भाव रखते हैं। अप्रत्यक्ष शत्रु: जो स्पष्ट रूप से हमारे सामने तनकर तो नहीं खड़े होते परंतु उनकी सारी प्रवृत्तियां शत्रुवत होती हैं।
विश्वासघाती शत्रु: जो हमारे मित्र हैं, हमारे व्यापार में पार्टनर हैं, जिन पर हम भरोसा करते हैं, समय पड़ने पर वे ही हमें धोखा देते हैं। ऐसे शत्रु अत्यंत घातक होते हैं। ऋण शत्रु: कर्ज अपने आप में पूर्ण शत्रु है, क्योंकि जब पैसे मांगने वाला व्यक्ति किसी समय दरवाजे पर आ धमकता है तो जो वेदना होती है, वह भुक्तभोगी ही समझ सकता है। इसलिए यह शत्रु भी हमारी उन्नति में पूर्ण रूप से बाधक है। दरिद्रता शत्रु: दरिद्रता या निर्धनता हमारे जीवन का प्रबल शत्रु है।
दरिद्रता जीवन का अभिशाप है, क्योंकि जब घर में गरीबी होती है, तो हम अपने जीवन में जो उन्नति चाहते हैं, वह नहीं कर पाते और पग-पग पर हमें अपमानित होना पड़ता है। इसलिए दरिद्रता रूपी शत्रु भी जीवन की प्रगति में पूर्ण रूप से बाधक है। रोग शत्रु: जीवन में सब कुछ होते हुए भी व्यक्ति बीमार, अशक्त और कमजोर यो या बीमारियों से ग्रस्त हो, तो वह प्रगति नहीं कर सकता। ऐसे में जीने की जो उमंग होती है, वह उमंग ही समाप्त हो जाती है।
कुभार्या शत्रु: हम विवाह इसलिए करते हैं कि हमारा जीवन सुचारु रूप से चल सके। यदि जीवनसाथी कुमार्ग पर हो, बीमार हो, कदम-कदम पर अपमानित करने वाला हो, सुख न देने वाला हो, तो निश्चय ही वह शत्रु के समान होता है। हम समाज के भय से उसे कुछ कह भी नहीं सकते और हमें बराबर अपमान, निराशा, हताशा का घूंट पी कर रहना पड़ता है। संतान और परिवार के प्रति अपना दायित्व न निभाने वाला जीवनसाथी भी शत्रुवत होता है।
कुपुत्र शत्रु: यदि पुत्र परेशानी पैदा करने वाला हो, अशिक्षित हो मूर्ख हो, भ्रष्ट हो, कुमार्ग पर चलने वाला हो, आज्ञाकारी और आगे बढ़ने वाला न हो, रोगी और आलसी हो, तो वह शत्रु तुल्य होता है। भाग्यहीनता शत्रु: यदि हमारा भाग्य कमजोर हो, हम अच्छे के लिए प्रयत्न करें और सफलता न मिले, यदि हम परिश्रम करें और उसका परिणाम प्राप्त न हो, यदि हम व्यापार के लिए मेहनत करंे और लाभ न मिले, तो यह भाग्य का दोष ही है और ऐसा भाग्य भी शत्रुतुल्य ही होता है।
ऊपर वर्णित इन नौ प्रकार के शत्रुओं में से यदि व्यक्ति का एक भी शत्रु हो, तो उसकी प्रगति रुक जाती है। उसकी आकांक्षाएं, इच्छाएं सब कुछ समाप्त हो जाती हैं और वह जो कुछ करना चाहता है, नहीं कर पाता और उसका जीवन कठिनाइयों से भरा रहता है। उपनिषदों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अपने शत्रुओं को हर हालत में समाप्त करना ही चाहिए। शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना ही जीवन की पूर्णता है।
यों तो तंत्र ग्रंथों में शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के कई विधान बताए गए हैं, परंतु शत्रुओं को अपने अनुकूल बनाकर शत्रुता समाप्त करने के लिए अन्य उपायों की अपेक्षा बगलामुखी यंत्र की स्थापना कर उसकी पूजा उपासना करनी चाहिए। मुकदमे में सफलता के लिए, व्यापार में आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा और सत्ता से मिलने वाले कष्ट से बचाव के लिए, हमेशा विजयी रहने के लिए, घृणित तंत्र प्रयोग के प्रभाव को समूल नष्ट करने के लिए, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और समस्त आराधनाओं में तुरंत सफलता पाने के लिए बग बगलामुखी महायंत्र का उपयोग शुक्रवार को स्नानादि से निवृŸा होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके अपने पूजा घर में सिद्ध मुहूर्त में पीला कपड़ा बिछाकर उस पर बगलामुखी यंत्र को स्थापित करें।
यंत्र पर हल्दी का तिलक लगाएं, दीप जलाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें। यह क्रिया केवल प्रथम दिन यंत्र स्थापित करते समय ही करें, शत्रु बाधा दूर होगी। यदि भीषण मृत्यु तुल्य शत्रु बाधा हो, तो प्रतिदिन पीले आसन पर बैठकर पौराणिक स्तोत्र का एक पाठ करें। जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है उसे किसी प्रकार के शत्रु और विपŸिायां नहीं घेरती हैं।