रत्नों की विविधता-वैज्ञानिक विश्लेषण एवं चिकित्सीय उपादेयता हरिश्चंद्र प्रसाद आर्य सभी प्रकार के रत्न और उपरत्न अपनी विशिष्टता के कारण अनेक प्रकार से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करके अलौकिक चिकित्सक का कार्य करते हैं। कई बार रत्न डाॅक्टरी दवाइयों से भी अधिक चमत्कारी सिद्ध होते हैं। आइये जानें, उनकी विविध उपादेयता और वास्तविक स्वरूप के बारे में रत्न भी पत्थर की तरह एक यौगिक है। परंतु प्रकृति ने रत्नों को विशेष गुणों से संपन्न कर मूल्यवान बना दिया। अन्य पत्थर जहां कालांतर में मलिन और भग्न हो जाते हैं वहीं रत्न अपने चिरयौवन से शताब्दियों शताब्दियों तक देदीप्यमान रहते हैं। रत्नों का चिरस्थायी होना एवं अखण्ड रूप-यौवन ही उनकी सुंदरता और अमूल्यता का रहस्य है। सभी प्रकार के रत्नों को हम तीन भागों में बांट सकते हैं Û प्राणिज Û वानस्पतिक Û खनिज। प्राणिज रत्न: इस श्रेणी के रत्न की उत्पŸिा में किसी न किसी वनस्पति की क्रियाशीलता रहती है। जेड, तृणमणि, वंशलोचन ऐसे ही रत्नों की श्रेणी में आते हैं। वंशलोचन को वंशमणि या वंशमुक्ता भी कहते हैं। खनिज रत्न: खनिज रत्न ऐसे रत्न हैं जो जमीन के अंदर से प्राप्त होते हैं। खनन से प्राप्त ये रत्न अतिमोहक, प्रभावान, कठोर, प्रबल, प्रभावी और अनेक रूपों में प्राप्त होते हैं। इन विशेषताओं के कारण ही ये मूल्यवान होते हैं। पन्ना माणिक्य, पुखराज, नीलम आदि इसी श्रेणी में आते हैं। प्राचीन ग्रंथों में 84 प्रकार के रत्नों का वर्णन है। सभी प्रकार के इन रत्नों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। पारदर्शी, अपारदर्शी व अल्प पारदर्शी। पारदर्शी रत्नों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ये दो प्रकार के होते हैं। रंगीन और सादा। रंगीन रत्न यदि हल्के रंग का हो तो उसकी पारदर्शिता सुरक्षित रहती है। इस रत्न का विशिष्ट गुण् माना जाता है। गहरा रंग पारदर्शिता को समाप्त कर देता है जिससे रत्न का मूल्य कम हो जाता है। रंगीन रत्न वही अच्छा और मूल्यवान होता है जो हल्के रंग का चमकदार, स्पष्ट, स्वच्छ और पूर्णतया पारदर्शी होता है। अपारदर्शी रत्न: सादे रत्नों में केाई-कोई अपारदर्शी होता है। उसके घनत्व में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो उसकी पारदर्शिता समाप्त कर देते हैं। अपारदर्शी रत्नों में फिरोजा प्रमुख है। परंतु अधिकांश सादा रत्न पारदर्शी होते हैं। अल्प पारदर्शी रत्न: अल्पपारदर्शी रत्न श्रेष्ठता की दृष्टि से दूसरी श्रेणी में आते हैं। ये पूर्णतया पारदर्शी न होकर कुछ धुधले होते हैं। रंग के गहरे-फीके होने के आधार पर इनकी पारदर्शिता भी कम या अधिक होती है। पारदर्शी रत्न: पारदर्शी रत्नों में सर्वप्रथम स्थान हीरे का है। वैसे नीलम और पुखराज भी पारदर्शी होते है। दीर्घजीवी रत्न ही श्रेष्ठ माना जाता है। जो रत्न प्रत्येक जलवायु, ऋतु, तापमान, देश, स्थिति में सदैव एक-सा रहे और उसकी प्रभा रूपाकृति में परिवर्तन न हो, वह रत्न उŸाम माना जाता है। ऐसे रत्नों पर रासायनिक प्रयोग का प्रभाव भी नहीं होता और ये अपनी दृढ़ता के कारण टूट-फूट और खरांैच से बचा रहता है। छिद्र अथवा तंतु रहित ठोस रत्न दीर्घजीवी होते हैं। हीरा, पन्ना, पुखराज, मूंगा आदि रत्न अपनी दृढ़ता और दीर्घजीवन के लिए विख्यात है। रत्नों की उपयोगिता सर्वसिद्ध है। ज्योतिष में रत्न ही ऐसा उपाय है जो जप, दान आदि से भी अतिशीध्र प्रभाव दिखाकर जातक के जीवन को सुखी बनाने में सहायक है। हां, रत्न असली है या नकली, इसकी परख कर लेनी चाहिए। प्रमुख रत्न और उनका ओपेक्षिक घनत्व निम्नलिखित है। रत्नों के घनत्व की प्रामाणिकता उनके वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर विशेषज्ञों ने तय की है। इस घनत्व से कम या अधिक घनत्व वाले रत्न श्रेष्ठ नहीं होते हैं और अनुपयोगी होते हैं। रत्न आपेक्षिक घनत्व गोमेद 04.20 तामड़ा 04.07 कुरुन्दम 04.03 पुखराज 03.53 हीरा 03.52 पेरिडाॅट 03.40 शोभामणि 03.10 चंद्रकांत 02.87 फिरोजा 02.82 बेरुज 02.74 स्फटिक 02.66 स्पाइनल 02.60 रत्नोपल 02.15 इसके अतिरिक्त रत्नों की कठोरता का भी परीक्षण कर विशेषज्ञों ने तुलनात्मक कठोरता निश्चित की है। अधिकतम कठोरता वाला रत्न उच्च श्रेणी का होता है। कुछेक रत्नों की कठोरता इस प्रकार है। निम्नलिखित रत्नों की कठोरता का क्रम अधिकतम से निम्नतर की ओर है। हीरा नीलम पुखराज स्फटिक फैल्सर एपीटाइट स्पार कैल्साइट जिप्सम टैल्क ज्योतिष में राशियों और ग्रहों की विवेचना के बाद जातक के लिए शुभ फल प्राप्ति का सबल एवं शीघ्र उपाय रत्न है। नव ग्रहों के लिए अलग- अलग रत्न और उपरत्न निर्धारित किये गये हैं जिनके माध्यम से अनुकूल फल की प्राप्ति होती है। रत्नों एवं उनके कुछ उपरत्नों के नाम इस प्रकार है। ग्रह रत्न उपरत्न सूर्य माणिक्य लालड़ी, सूर्यमणि ताम्रमणि जर्द चंद्रमा मोती चंद्रकांत मुक्ता शक्ति, निमरु, चंद्रमणि, गोदन्ती मंगल मूंगा विदु्रम, लाल अकीक बुध पन्ना बैरुज, मरगज, जबरजंद, पन्नी गुरु पुखराज सोनेला, घीया, केरु, सोनल शुक्र हीरा दांतला, विक्रांत, कांसला, उदाऊ, सिम्मा शनि नीलम जामुनिया, नीली, कटेला, लाजवर्त राहू, गोमेद तुरसावा केतु लहसुनिया श्योनाक्ष, व्याध्राक्ष, कर्कोटक, अले- क्जेण्ड्राइट रत्नों को धारण करने के अतिरिक्त इनका उपयोग रोगोपचार में भी किया जाता है। रत्नों के द्वारा रोगों का निदान होता है। यह अब अनुभव सिद्ध होने के साथ विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरा है। कुछेक रोगों में रत्नों द्वारा उपचार के उदाहरण प्रस्तुत हैं। माणिक: माणिक भस्म पौरुष ग्रंथि को उŸोजितकर नपंुसकता का नाश करती है। भोजन के बाद माणिक- प्रक्षालित जल पीने से अजीर्ण, अपच और वायु जैसे उदर रोग में लाभ होता है। माणिक को रात में सोते समय सिरहाने रख लिया जाय तो संक्रामक रोगों से सुरक्षा मिलती है। जब चाकू, ब्लेड आदि से कोई अंग कट जाय तो माणिक का स्पर्श उस अंग को कराने से वह घाव कीटाणुओं से विवृत्त नहीं होता और घाव को सड़ने आदि का खतरा नहीं रहता है। मोती: मोती का प्रयोग आयुर्वेदिक दृष्टि से वीर्य दोष, पिŸा विकार, ज्वर, मोतीझरा, हृदय दौर्बल्य, स्मृति क्षीणता, अनिद्रा, बेचैनी, श्रिोरोग आदि में किया जाता है। अस्तु रत्नों की उपयोगिता सर्वसिद्ध है। ज्योतिष में रत्न ही ऐसा उपाय है जो जप, दान आदि से भी अतिशीध्र प्रभाव दिखाकर जातक के जीवन को सुखी बनाने में सहायक है। हां, रत्न असली है या नकली, इसकी परख कर लेनी चाहिए। रत्नों की परख के अन्य उपायों के अतिरिक्त एक उपाय यह है कि मिथायलीन आयोडाइड के घोल में असली प्राकृतिक रत्न और कृत्रिम नकली रत्न को डालने से कृत्रिम रत्न तैरने लगता है।