ज्योतिषीय योगों से तय करे - क्या रत्न पहनें, क्या न पहने
ज्योतिषीय योगों से तय करे - क्या रत्न पहनें, क्या न पहने

ज्योतिषीय योगों से तय करे - क्या रत्न पहनें, क्या न पहने  

व्यूस : 39949 | मई 2012
ज्योतिषीय योगों से तय करें- क्या रत्न पहनें, क्या न पहनें जय इन्दर मलिक रत्नों के मूल्य, उपादेयता और भिन्नता के कारण प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक रत्न न तो खरीद सकता है और न ही उससे लाभ ले सकता है। सही रत्न के निर्णय के लिए बेहतर होगा कि अच्छे कुंडली विशेषज्ञ से मार्गदर्शन प्राप्त करें अथवा निम्न ज्योतिषीय योगों पर दृष्टिपात करके निर्णय लें। जन्म कुंडली में त्रिकोण सदैव शुभ होता है इसलिए लग्नेश, पंचमेश व नवमेश का रत्न धारण किया जा सकता है। यदि इन तीनों में कोई ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो रत्न धारण नहीं करना चाहिए। यदि शुभ ग्रह अस्त या निर्बल हो तो उसका रत्न पहनें ताकि उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाकर शुभ फल दे। यदि लग्न कमजोर है या लग्नेश अस्त है तो लग्नेश का रत्न पहनें। यदि भाग्येश निर्बल या अस्त है तो भाग्येश का रत्न पहनें। लग्नेश का रत्न जीवन-रत्न, पंचमेश का कारक-रत्न और नवमेश का भाग्य-रत्न कहलाता है। त्रिकोण का स्वामी यदि नीच का है, तो वह रत्न न पहने। कभी भी मारक, बाधक, नीच या अशुभ ग्रह का रत्न न पहनें। अपनी कुंडली में प्रत्येक ग्रह के बलाबल पर विचार करें और तद्नुसार रत्न के बारे में निर्णय करें। सूर्य सिंह लग्न का स्वामी है। सूर्य की स्थिति ठीक न हो तो माणिक्य धारण करें क्योंकि सूर्य को आत्मा कहा जाता है। यह पूर्व दिशा का स्वामी और इस का रंग तांबे के समान है। कुंडली में सूर्य की स्थिति देखें और माणिक्य धारण करें। यदि लग्न में सूर्य हो तो माणिक्य पहनें क्योंकि लग्नस्थ सूर्य संतान में बाधा एवं स्त्री के लिए कष्ट दायक होता है। द्वितीय भाव में सूर्य धन प्राप्ति में बाधक होकर नौकरी में कष्ट है ऐसी स्थिति मंे माणिक्य धारण करें। यदि तृतीय भाव में सूर्य हो और उस जातक के छोटे भाई जीवित न रहते हों तो माणिक्य पहनें। चतुर्थ भाव में सूर्य की स्थिति आजीविका में बाधक हो तथा बार-बार राजभंग योग बनता हो, तो माणिक्य पहनें। यदि सूर्य भाग्येश, धनेश या राज्येश होकर छठे या आठवें स्थान में हो तो माणिक्य पहनें। यदि जन्म कुंडली में सूर्य अष्टमेश या षष्ठेश होकर पंचम अथवा नवम भाव में हो तो माणिक्य जरूर पहनें। सप्तम भाव में सूर्य स्वयं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है अतः माणिक्य पहनें। यदि सूर्य गुरु नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पू.भाद्रपद) का स्वामी हो तो हर प्रकार की उन्नति के लिए माणिक्य धारण करें। यदि सूर्य अपने नक्षत्रों (कृत्तिका, उŸारा फाल्गुनी या उŸाराषाढ़ा) को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो भी माणिक्य धारण करें। द्वितीय भाव अथवा द्वादश भाव में सूर्य हो तो नेत्र में कष्ट होता है। माणिक्य धारण करना चाहिए। एकादश भाव में सूर्य हो तो बड़े भाई तथा पुत्रों की चिंता होती है। इसलिए माणिक्य धारण करना हितकर है। यदि सूर्य अष्टम भाव में हो तो ऐसे जातक को माणिक्य शीघ्र धारण कर लेना चाहिए। चंद्रमा कर्क लग्न का स्वामी है चंद्रमा मन का कारक है यदि निम्नलिखित स्थिति चंद्रमा की जन्मकुंडली में हो तो उसे मोती अवश्य धारण करना चाहिए। यदि चंद्रमा सूर्य के साथ हो या सूर्य से अगली पांच राशियों के पहले स्थित हो तो चंद्रमा निर्बल होता है। मोती पहनें। मिथुन लग्न में कुंडली में द्वितीय भाव से छठे स्थान में चंद्रमा हो तो मोती पहनने से लाभ मिलता है। केंद्र में चंद्रमा बली नहीं हो तो जातक को मोती पहनने से लाभ मिलता है। यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा पंचमेशहोकर 12वें भाव में, सप्तमेश होकर, द्वितीय भाव में, नवमेश होकर, चतुर्थ भाव में, दशमेश होकर पंचम भाव में, एकादशेश होकर छठे भाव में बैठा हो तो मोती शीघ्र पहनें। यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा धनेश हो और वह सप्तम भाव में हो, चतुर्थेश चंद्रमा नवम भाव में, पचंमेश चंद्रमा राज्य भाव में, सप्तमेश चंद्रमा द्वादश भाव में, नवमेश द्वितीय भाव में, दशमेश चंद्रमा तृतीय भाव में और एकादशेश चंद्रमा चतुर्थ भाव में हो तो जातक को तुरंत ही मोती धारण कर लेना चाहिए। यदि चंद्रमा वृश्चिक राशि का होकर कहीं भी हो तो मोती धारण कर लेना चाहिए। यदि चंद्र 6, 8, 12वें भाव में हो तो मोती अवश्य धारण करें। यदि किसी कुंडली में चंद्रमा राहु-केतु या शनि इन तीनों में किसी भी एक ग्रह के साथ हो तो मोती धारण करें। यदि चंद्रमा अपनी राशि से छठे या आठवें में हो तो मोती धारण करने से लाभ मिलता है। यदि चंद्रमा वक्री या अस्त राहु के साथ हो या ग्रहण योग बन रहा हो तो मोती लाभ देता है। यदि चंद्रमा की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो मोती फौरन पहन लेना चाहिए। मंगल मेष और वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है यदि कुंडली में मंगल दूषित, अस्त, प्रभावहीन हो तो मंगल का रत्न मंूगा धारण करें, यदि कुंडली में निम्नलिखित ग्रह स्थिति हों तो मूंगा धारण करने से शुभ फल मिलता है। यदि जन्मकुंडली में मंगल राहु या शनि के साथ कहीं हो तो मूंगा धारण करें। लग्न में मंगल हो तो मूंगा पहनें। तीसरे भाव में मंगल हो तो बंधुओं में मतभेद बढ़ता है। यदि चैथे भाव में मंगल हो तो पत्नी को रोगिणी बनाता है इसलिए मंूगा धारण करें। सप्तम भाव या द्वादश भाव में मंगल पत्नी के जीवन के लिए शुभ नहीं है अतः ऐसे में मूंगा धारण करें। धनेश मंगल नवम भाव में, पराक्रमेश मंगल दशम में, चतुर्थेश मंगल एकादश भाव में अथवा पंचमेश मंगल द्वादश भाव में हो तो मंूगा पहनें। नवमेश मंगल चतुर्थ स्थान में, दशमेश मंगल पंचम भाव में या एकादशेश मंगल छठे स्थान में हो तो मूंगा तुरंत पहनें। मंगल कहीं बैठकर सप्तम, नवम, दशम और एकादश भाव पर दृष्टि डाले तो मंूगा जरूर पहनें। जन्मकुंडली में मंगल 6, 8, 12वें भाव में हो तो मंूगा पहनें। यदि मंगल सूर्य के साथ हो या सूर्य से देखा जाता हो तो मंूगा पहनें। चंद्रमा मंगल के साथ हो तो आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के लिए मूंगा पहनें। यदि मंगल अष्टमेश या षष्ठेश के साथ हो या इन ग्रहों से दृष्ट हो तो मंूगा धारण करें। यदि जन्मकुंडली में मंगल वक्री या अस्त हो तो मंूगा जरूर पहनें। मंगल शुभ भावों का स्वामी होकर शत्रु ग्रहों के साथ स्थित हो तो मंगल को बल देने के लिए मंूगा धारण करवाएं। यदि मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा, नक्षत्र हांे तो उस दिन सूर्योदय से 11 बजे तक मंूगा धारण करवा सकते हैं। बुध मिथुन-कन्या राशि का स्वामी बुध है और इसका रत्न पन्ना है। यदि मिथुन और कन्या लग्न हो तो पन्ना धारण करना चाहिए। यदि कुंडली में निम्न योग हों तो पन्ना शुभ फल देता है। जिस कुंडली में बुध छठवंे, आठवें भाव में हो तो उसे पन्ना शुभ फल देता है। जिस जातक की कुंडली में बुध मीन राशि में हो, उसे पन्ना धारण करना चाहिए। यदि बुध धनेश होकर नवम भाव में, तृतीयेश होकर दशम भाव में, चतुर्थेश होकर आय भाव में हो तो पन्ना पहनें। यदि बुध सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में, नवमेश होकर चैथे भाव में, आयेश होकर छठे भाव में हो तो पन्ना पहनें। यदि बुध शुभ भाव का स्वामी हो, अपने भाव से अष्टम भाव में हो तो पन्ना जरूर पहनें। यदि बुध की अंतर्दशा, महादशा चल रही हो तो पन्ना जरूर पहनें। यदि बुध शुभ भाव का स्वामी होकर अपने से छठे स्थान में हो पन्ना धारण करें। यदि बुध मंगल, शनि राहु-केतु के साथ हो तो पन्ना शुभ फल देगा। बृहस्पति धनु और मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति है इस का रत्न पुखराज है। इन लग्न वालों को पुखराज पहनना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में गुरु पाचवें, छठवें या बारहवें भाव में हो तो पुखराज पहनना चाहिए। यदि गुरु मेष, वृषभ, सिंह, वृश्चिक, तुला, कुंभ, मकर, राशियों में हो तो पुखराज अवश्य धारण करें। मकर राशि में गुरु हो तो तुरंत पुखराज धारण कर लें। यदि गुरु द्वितीयेश होकर नवम भाव में, चतुर्थेश होकर एकादश भाव में, सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में, भाग्येश होकर चतुर्थ भाव में राज्येश होकर पंचम भाव में, स्थित हो तो पुखराज धारण कर लेना चाहिए। यदि गुरु शुभ भाव का स्वामी होकर अपने भाव से छठवंे या आठवें स्थान में स्थित हो तो पुखराज धारण करें। किसी भी ग्रह की महादशा में बृहस्पति का अंतर चल रहा हो तो पुखराज धारण करें। यदि लड़की के विवाह में विलंब हो रहा हो तो शीघ्र विवाह के लिए पुखराज धारण करें। आध्यात्मिक विचारों को बल देने के लिए पुखराज धारण करने से प्रबलता आती है। शुक्र वृषभ और तुला लग्न का स्वामी शुक्र है। इस का रत्न हीरा है। इन्हें हीरा शुभ फल देता है। घर में पति-पत्नी में कलह हो तो हीरा पहनें। जंगल में घूमने वालों को हीरा पहनना चाहिए क्योंकि उन्हें विषधर जंतुओं से पाला पड़ता है और हीरा जहर से बचाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर अपने भाव से अष्टम या षष्ठम हो तो हीरा पहनें। जन्मकुंडली में शुक्र छठवंे या आठवें भाव में हो तो हीरा धारण करें। यदि कुंडली में शुक्र नीच अथवा अस्त हो या पाप ग्रहों के साथ हो तो हीरा धारण करने से लाभ मिलता है। काम-क्रीड़ा में अशक्त, या निर्बल हो तो हीरा पहनें। किसी भी ग्रह की महादशा में शुक्र का अंतर हो तो हीरा धारण करें। संतान उत्पन्न करने में सक्षम व्यक्तियों को हीरा पहनना चाहिए। फिल्मी अभिनेता, निर्माता व कला क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति हीरा धारण कर सकते है। शनि: मकर और कुंभ लग्न का स्वामी शनि है। जन्म लग्न से या चंद्रमा से शनि 12वें, जन्म का और दूसरा होता है। इस पूरे समय को साढ़ेसाती कहा जाता है। शनि एक राशि पर ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार तीन राशियों पर इसका भ्रमण साढ़ेसात वर्ष का होता है। यदि किसी की साढ़ेसाती अनिष्टकारी हो तो शनि का रत्न नीलम धारण करना चाहिए। निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखकर नीलम धारण किया जा सकता है। यदि कुंडली में शनि चैथे, पाचवें, दसवें, ग्यारहवें भाव में हो तो नीलम अवश्य पहनें। यदि शनि षष्ठेश, अष्टमेश के साथ हो तो नीलम जरूर पहनें। यदि शनि अपने स्थान से छठवंे, आठवें स्थान में हो तो नीलम जरूर पहनें। शनि मकर, कुंभ राशि का स्वामी है। यदि एक राशि शुभ भाव में तथा दूसरी अशुभ भाव में हो तो नीलम न पहनें परंतु यदि शनि की दोनों राशियां शुभ भावों में हांे तो नीलम पहनने में कोई हानि नहीं। किसी भी ग्रह की महादशा में शनि की अंतर्दशा चल रही हो तो नीलम धारण कर सकते हैं। यदि शनि सूर्य के साथ हो, सूर्य की राशि में हो या सूर्य से दृष्ट हो तो नीलम धारण करना श्रेष्ठ होता है। जन्म कुंडली में शनि मेष राशि में हो तो नीलम धारण करें। यदि जन्मकुंडली में शनि वक्री, अस्त या दुर्बल हो तो नीलम धारण करें। क्रूर कर्म करने वालों को शनि का रत्न नीलम शुभ फल देता है तथा उनका बचाव होता है। इसलिए नीलम को धारण करने से लाभ मिलता है। राहु यह छाया ग्रह है। इसका रत्न गोमेद है। इस का रंग पीला, गोमूत्र के समान होता है। यह अधिकतर चीन, बर्मा, अरब, सिंधु नदी के किनारे पाया जाता है। यह उल्लू की आखों के समान होता है। इसे पहनने से शत्रु नहीं बनते और रोग स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। जिन जातकों की राशि या लग्न मिथुन, तुला, कुंभ या वृषभ हो, उन्हें गोमेद धारण करना चाहिए। लग्न में, केंद्र स्थान (1, 4, 7, 10) या एकादश भाव में राहु हो तो गोमेद धारण करें। द्वितीय, तृतीय, नवम या एकादश भाव में राहु हो तो गोमेद पहनना चाहिए। यदि राहु अपनी राशि से छठवें या आठवें भाव में हो तो गोमेद धारण करें। शुभ भावों का अधिपति होकर राहु अपने भाव आठवें या छठवें स्थान में हो तो भी गोमेद पहनें। यदि राहु नीच राशि (धनु राशि) का हो तो गोमेद धारण करें। यदि राहु श्रेष्ठ भाव का स्वामी होकर सूर्य से दृष्ट या सूर्य के साथ हो या सिंह राशि में स्थित हो तो गोमेद पहनें। राहु मकर राशि का स्वामी है इस लग्न में गोमेद शुभ है। राहु राजनीति का प्रमुख कारक है। सफल राजनीतिज्ञ बनने के लिए गोमेद धारण करना श्रेयस्कर है। शुक्र और बुध के साथ राहु हो तो भी गोमेद पहन सकते हैं। वकालत, न्याय, राज्य, यश आदि के लिए गोमेद धारण करना बहुत शुभ है। स्वाति, शतभिषा या आद्र्रा नक्षत्र मंे इसे धारण करना चाहिए। केतु यह भी छाया ग्रह है। इसका रत्न लहसुनिया है। फारसी में इसे वैडूर तथा अंग्रेजी में ‘कैटस आई’ स्टोन’ कहते हैं। लहसुनिया जीवन में उŸाम प्रभाव पैदा करने में समर्थ होता है। संतान व लक्ष्मी वृद्धि एवं शत्रु सहांरक होता है। जिसकी जन्मकुंडली में केतु ग्रह दूषित व दुर्बल हो, उसे लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में केतु द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचंम, नवम या दशम भाव में हो तो लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में केतु, मंगल, गुरु या शुक्र के साथ हो तो लहसुनिया धारण करें। यदि केतु, सूर्य के साथ या सूर्य से दृष्ट हो तो लहसुनिया पहनें। शुभ भाव का अधिपति होकर उस भाव से केतु छठे या आठवें स्थान में हो तो लहसुनिया धारण करें। यदि केतु पंचमेश या भाग्येश के साथ हो तो इसे धारण करें। द्वितीयेश, लाभेश, दसमेश, नवमेश या चतुर्थेश का केतु के साथ युति या दृष्टि संबंध हो तो लहसुनिया पहनें। यदि केतु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो भी धारण करें। शुभ अथवा सौम्य ग्रहों के साथ केतु हो तो लहसुनिया पहनें। यदि भूत-प्रेतादि का भय हो तो लहसुनिया धारण करें। केतु से संबंधित जो कारक है या जिन पदार्थों का केतु कारक है जीवन में उन चीजों की उन्नति के लिए लहसुनिया धारण करें। मेष, मीन या धनु राशि का चंद्रमा हो या अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र हो या बुधवार अथवा शुक्रवार का दिन हो तो सायंकाल अनामिका में लहसुनिया धारण करना श्रेयस्कर तथा शुभ फलदायक होता है। इस रत्न का प्रभाव तीन वर्ष तक रहता है।



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