पितृ ऋण, मातृ ऋण आदि की व्याख्या एवं फलादेश
पितृ ऋण, मातृ ऋण आदि की व्याख्या एवं फलादेश

पितृ ऋण, मातृ ऋण आदि की व्याख्या एवं फलादेश  

आर. के. शर्मा
व्यूस : 11457 | सितम्बर 2015

लाल किताब के अनुसार जिस ग्रह के अपने घर में या कारकत्व वाले घर में शत्रु ग्रह स्थित हों वह ग्रह पीड़ित माना गया है। पीड़ित ग्रह जिन रिश्तेदारों के कारक होते हैं उन्हीं रिश्तेदारों के पाप या शाप के ऋण से ऋण पितृ-दोष माना जाता है।

कुंडली नं 1: पिता की कुंडली इस कुंडली में गुरु स्वगृही है, नवम भाव में साथ में शत्रु शुक्र भी स्थित है। अतः गुरु पीड़ित है। चतुर्थ भाव में शनि और केतु स्थित है। यह चंद्र का घर है, शनि-केतु उसका शत्रु है। वह इन दोनों से पीड़ित होकर दशम भाव में स्थित है। अतः इस कुंडली में चंद्र और गुरु पीड़ित हैं।

कुंडली नं. 2: पुत्र (पिता) की कुंडली इस कुंडली में गुरु नवम में स्वगृही है, किंतु गुरु की मीन राशि में (द्वादश) शत्रु बुध स्थित है अतः गुरु ग्रह पीड़ित है। षष्ठ भाव में चंद्र के साथ राहु है, राहु उसका शत्रु है अतः चंद्र राहु से पीड़ित है। इस कुंडली में चंद्र व गुरु पीड़ित हैं।

कुंडली नं. 3 तत्पुत्र (नाती/पौत्र) इस तीसरी कुंडली में गुरु द्वितीय घर में शत्रु राशि में शत्रु शुक्र के साथ है। चतुर्थ में राहु चंद्र के घर में बैठकर चंद्र को पीड़ित कर रहा है। यहां भी चंद्र और गुरु दोनों ही पीड़ित हैं। उदाहरण स्वरूप ये कुंडली पिता, पुत्र और पौत्र की हैं अतः इस परिवार पर तीन पीढ़ियों से पितृऋण का अभिशाप चला आ रहा है। लाल-किताब के अनुसार गुरु को पिता का कारक और चंद्र को माता का कारक माना गया है। अतः पिता पर माता-पिता का शाप चला आ रहा है। मातृ ऋण: संतान द्वारा मां को पर ेशान, द ुखी या उप ेक्षित किया जाना। चतुर्थ भाव में केतु हो तो चंद्रमा पीड़ित हो जाता है। चंद्र मां का प्रतीक है। जातक की संपूर्ण संपत्ति नष्ट होने लगती है। घर के दुधारू पशु, घोड़े आदि की मृत्यु हो जाती है। शिक्षा में अवरोध, मदद कत्र्ता का भी अनिष्ट होता है। घर में जल स्रोत सूखने लगते हैं।

जातक की शक्ति का ह्रास होने लगता है। स्त्री ऋण: प्रसूति के समय पत्नी को किसी लालच के कारण मार डालना। यदि 2-7 भावों में सूर्य, चंद्र, राहु बैठे हों तो शुक्र पीड़ित होता है। शुक्र पत्नी का प्रतीक है। घर में खुशी में गमी, अचानक लकवा मार जाना, भयंकर रोग पैदा हो जाना। एक ओर डोली, दूसरी ओर अर्थी और मातम, जातक का अंगूठा अकारण ही निष्क्रिय हो जाय। वह स्वप्न दोष और चमड़ी रोग से पीड़ित हो जाय। यही शुक्र अर्थात् स्त्री पीड़ित की पहचान है। बहन-बेटी का ऋण: किसी की या अपनी बहन-बेटी पर अत्याचार किये हों या उसकी हत्या कर दी गयी हो। तीसरे या छठे भाव में चंद्र हो तो बुध पीड़ित होता है।

बहन-बेटी के विवाह के समय या जन्म के समय अचानक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं, जातक बुरी तरह बर्बाद, कंगाल हो जाय, पुत्र जन्म के समय दुर्भाग्य की मार पड़े, जातक के शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़े, दांतों का झड़ जाना, सूंघने की शक्ति खत्म और संभोग करने की शक्ति क्षीण हो जाती है। बुध बहन-बेटी का प्रतीक है। पितृ ऋण: किसी भी कारण से कुल पुरोहित बदला गया हो। 2-5-9 या 12वें भाव में बुध, शुक्र या राहु हो तो गुरु पीड़ित हो जाता है। बालों में सफेदी आने के साथ ही दुर्भाग्य शुरू हो जाता है। रातों रात धन नष्ट, चोरी चला जाता है। शिक्षा में रूकावट, गले में माला पहनने की आदत पड़ जाती है। जातक पर निराधार आरोप, झूठे अभियोग चलें, निर्दोष होते हुये भी जेल के कष्ट सहने पड़ते हैं। गुरु पुरोहित का प्रतीक है।

निर्दयी ऋण: जीव हत्या करना या धोखा देकर किसी का मकान छीन लेना और उसका मूल्य न चुकाना। 10-11 भावों में सूर्य, चंद्र या मंगल हो तो शनि पीड़ित हो जाता है। श्ािन के कारण परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ता है। अग्निकांड, घर का ढह जाना, परिवार के सदस्य दुर्घटनाओं के शिकार, अपाहिज हो जाते हैं।

शरीर के बाल झड़ जाते हैं। विशेषकर पलकों और भौंहों के बाल झड़ते हैं। अज्ञात का ऋण: जिन अनजाने ला ेगा े ं स े वास्ता पड ़ े, उनक े साथ धोखा-धड़ी करके उनका वंश नाश कर देना, बारहवें भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल हो तो राहु पीड़ित हो जाता है। राहु अचानक अनिष्ट करता है। जैसे- अचानक दुर्भाग्य का टूट पड़ना, न्याय की जगह अन्याय मिले, चोरी, डाका, हत्या, आगजनी, बलात्कार आदि के आरोप लगते हैं। निर्दोष होते हुये भी जेल यातनाएं भोगता है।

पालतू काला कुत्ता खो जाय या मर जाए, हाथों के नाखून झड़ जायें, स्मरण शक्ति खत्म हो जाए और शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हो जाए। दैवी ऋण: बुरी नीयत से दूसरों के बेटे या कुत्ते का नाश किया हो, छठे भाव में चंद्र या मंगल हो तो केतु पीड़ित होता है। पुत्र का नाश हो, पुत्र या तो होता नहीं, हो तो जीवित नहीं रहता या लूला-लंगड़ा, अंधा-बहरा या अपाहिज हो जाता है। संबंधी ऋण: किसी मित्र या संबंधी को विष देना, किसी की पकी फसल में आग लगा देना, किसी की भैंस बच्चा देने वाली हो उसको मार देना या मरवा देना या किसी के मकान में आग लगा देना।

प्रथम या अष्टम भाव में बुध या केतु हों तो मंगल पीड़ित हो जाता है। बालिग होते ही मान-धन-संपत्ति अर्जित करता है। शत्रु नष्ट हो जाते हैं लेकिन अचानक मुसीबतों का दौर शुरू हो जाता है। संतान नहीं होती, होती है तो मर जाती है या फिर अपाहिज हो जाती है। शरीर में रक्त की कमी, जोड़ काम नहीं करते, काना हो जाता है। क्रोध अधिक आता है, लड़ाई-झगड़े करता है और पिटता है। स्वऋण दोष: नास्तिक होने के कारण जातक स्वय ं अपन े प ुरान े रीति-रिवाजा े ं, धर्मा दि का अपमान करता है तो स्व-ऋण दोष होता है। यदि पंचम भाव में शुक्र या पापी ग्रह हों तो सूर्य (स्वयं) पीड़ित हो जाता है। जातक उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है, धन-संपत्ति, मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

फिर अचानक सब कुछ नष्ट हो जाता है। ऐसा तब होता है जब जातक का पुत्र 11 महीने या वर्ष का हो। लाल गाय या भूरी भैंस खो जाती है या मर जाती है। शरीर के अंग अकड़ जाते हैं, हिलने डुलने में कठिनाई होती है। मुंह में हर समय थूक आता रहता है।



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