लाल किताब के विशेष नियम
लाल किताब के विशेष नियम

लाल किताब के विशेष नियम  

तिलक राज
व्यूस : 13759 | सितम्बर 2015

पाराशरी ज्योतिष पद्धति व लाल किताब ज्योतिष पद्धति में कुछ भिन्नता पाई जाती है। पाराशरी पद्धति में लग्न को बहुत महत्व दिया गया है। किसी व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है वह व्यक्ति की लग्न राशि कहलाती है। उस राशि का नंबर लग्न में लिख कर कुंडली बनाई जाती है। 10-10-1973 को दोपहर 12-40 पर दिल्ली में जन्मे एक व्यक्ति की कुंडली इस प्रकार हैं- अब इस कुंडली से लाल किताब की कंुडली बनाने के लिए लग्न में 9 नंबर न लिखकर 1 नंबर लिखा जाएगा जैसे कि काल पुरुष की कुंडली बनाई जाती है। अब ग्रहों को उनके भाव के हिसाब से उन्हीं भावों में ही लिख दिया जाता है। अब यह कुंडली इस तरह की बन जाएगी- पाराशरी पद्धति से कुंडली में राहु, केतु व गुरु नीच के थे जो कि लाल किताब पद्धति से कुंडली बनाने पर नीच के नहीं रहे।

लाल किताब में जो नीच व उच्च के ग्रहों की बात की गई है उन्हें भावों के हिसाब से समझा जाए। पाराशरी पद्धति के हिसाब से गुरु मकर में नीच का होगा चाहे वो किसी भी भाव में हो लेकिन लाल किताब के हिसाब से गुरु दसवें भाव में नीच का माना जाएगा। इसी प्रकार से अन्य ग्रहों का भी उच्च व नीच समझा जाए। सोया ग्रह जिस ग्रह की दृष्टि में कोई भी ग्रह न हो तो वह ग्रह खुद ही सोया हुआ माना जाएगा। यदि कोई ग्रह अपने पक्के घर में बैठा होगा तो वह सोया ग्रह नहीं माना जाएगा। सोए हुए ग्रह का मतलब है कि वह ग्रह उसी घर में कैद रहेगा और उसके शुभ या अशुभ प्रभाव उसी घर तक सीमित रहेंगे। (मंगल सातवें में है और पहला घर खाली है। तो मंगल सोया हुआ ग्रह कहलाएगा।) सोया हुआ घर जिस घर में कोई ग्रह न हो या जिस घर पर किसी भी ग्रह की सामान्य दृष्टि न पड़ रही हो तो वह घर सोया हुआ कहलाता है।

उस घर से संबंधित चीजों का फल तब तक नहीं मिलता, जब तक उस घर को जगाया न जाए। किस घर को जगाने के लिए किस ग्रह की मदद लें यह अग्रलिखित तालिका से जानें: सोया घर जगाने में सहायक ग्रह 1 मंगल का उपाय करें 2 चंद्र का उपाय करें 3 बुध का उपाय करें 4 चंद्र का उपाय कर 5 सूर्य का उपाय करें 6 राहु का उपाय करें 7 शुक्र का उपाय करें 8 चंद्र का उपाय करें 9 गुरु का उपाय करें 10 शनि का उपाय करें 11 गुरु का उपाय करें 12 केतु का उपाय करें साथी ग्रह जब कोई दो ग्रह अपने पक्के घरों को अदल-बदल कर बैठ जाएं तो वह शत्रु होने पर भी एक दूसरे का साथ ही देंगे, बुरा नहीं करेंगे। जैसे सूर्य का पक्का घर पांचवां है और शनि का पक्का घर ग्यारहवां है।

सूर्य ग्यारहवें में बैठ जाए और शनि पांचवें में बैठ जाए तो वह अपनी दुश्मनी काफी हद तक भूला देते हैं। रतांध ग्रह या अंधा टेवा लाल किताब के अनुसार रतांध ग्रह को नहोराता के ग्रह भी कहते हैं। ये ग्रह दिन में देखते हैं, परंतु यही ग्रह रात्रि में अंधे हो जाते हैं। ये ग्रह अर्द्ध-अंध कहे जाते हैं। अर्थात् चैथे खाने में सूर्य और सातवें खाने में शनि हो तो वह टेवा आधा अंधा टेवा कहलायेगा। इस प्रकर का टेवा जातक के व्यावसायिक जीवन में, मन की शांति के लिए और गृहस्थ सुख के लिए काफी हद तक अशुभ असर डालता है। सातवें खाने में बैठा शनि बहुत शक्तिशाली हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सप्तम खाने के शनि को दिग्बल प्राप्त होता है।

इस भाव का शनि अपनी दसवीं संपूर्ण दृष्टि से सुख स्थान में स्थित सूर्य को शनि प्रभावित करना है। शत्रु दृष्टि से सूर्य के शुभ फल अशुभता में परिणत हो जाएंगे। चतुर्थ स्थान से सूर्य की सप्तम् दृष्टि कर्म भाव पर पड़ कर कर्म फल को अशुभ कर देगी। कुंडली पर अशुभ प्रभाव देने वाला शनि और उसकी दृष्टि है। अतः सूर्य के उपाय की उपयोगिता नहीं। मात्र शनि की अशुभता नष्ट करने के लिए शनि का उपाय करना चाहिए। धर्मी टेवा लाल किताब के अनुसार कुछ धर्मी टेवा होते हैं। धर्मी टेवा में अशुभ ग्रहों का प्रभाव बहुत हद तक कम हो जाता है।

जिस टेवा में बृहस्पति के साथ शनि स्थित हो तो ऐसा टेवा धर्मी टेवा हो जाता है। धर्मी टेवा वाले जातक को मुश्किल या कष्ट के समय, जब उसकी सभी राहें अवरूद्ध हो जाती हंै उस समय ईश्वर अपने राशि फल के ग्रह हाथों से उसकी सहायता करते हैं। शनि ग्रह मुश्किलों का एवं हमारे भाग्य का कारक भी लाल किताब के अनुसार होता है। टेवा में बृहस्पति और शनि से संबंध बहुत से दोषों को दूर कर देता है। 6ठे, 9वें 11 वें एवं 12वें घरों में शनि बृहस्पति का संयोग होना बड़ी समस्याओं का शमन, एवं जीवन के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर देता है। इसके प्रभाव से (कुंडली) टेवा की अशुभता समाप्त और सारी विपदाओं का अंत हो जाता है। नाबालिग टेवा लाल किताब के उसूलों के अनुसार कुछ हालातों में बारह साल की आयु तक कुछ नाबालिग टेवे होते हैं। उस दशा में बारह साल तक के बालक की कुंडली का प्रभाव नहीं होता, उसके पिछले जन्म के भाग्य का असर ही प्रभावी रहता है।

नाबालिग टेवा उसको कहते हैं जब टेवा के 1, 4, 7 और 10वें खाने अर्थात् केंद्र स्थान खाली हो अथवा सिर्फ पापी ग्रह शनि, राहु और केतु हो या अकेला बुध ही हो तो वह नाबालिग ग्रहों का टेवा कहलाता है। ऐसे बालक की किस्मत का हाल 12 साल तक शक्की होता है। लाल किताब के अनुसार नाबालिग टेवा वाले जातक पर बारह वर्षों तक प्रत्येक वर्ष एक-एक ग्रह का प्रभाव निम्नरूपेण पड़ा करता है। जीवन पर पड़ने वाले दूषित प्रभाव की अनुकूलता हेतु निम्नलिखित भाव स्थित ग्रह का उपाय करना चाहिए:

1. उम्र के पहले साल में सातवें घर के ग्रह का असर पड़ता है।

2. उम्र के दूसरे साल में चैथे घर के ग्रह का असर पड़ता है।

3. उम्र के तीसरे साल में नौवें घर के ग्रह का असर पड़ता है।

4. उम्र के चैथे साल में दसवें घर के ग्रह का असर पड़ता है।

5. उम्र के पांचवें साल में ग्यारहवें घर के ग्रह का असर पड़ता है।

6. उम्र के छठे साल में तीसरे घर के ग्रह का असर पड़ता है।

7. उम्र के सातवें साल में दूसरे घर के ग्रह का असर पड़ता है।

8. उम्र के आठवें साल में पांचवंे घर के ग्रह का असर पड़ता है।

9. उम्र के नवें साल में छठे घर के ग्रह का असर पड़ता है।

10. उम्र के दसवें साल में बारहवें घर के ग्रह का असर पड़ता है।

11. उम्र के ग्यारहवें साल में पहले घर के ग्रह का असर पड़ता है।

12. उम्र के बारहवें साल में आठवें घर के ग्रह का असर पड़ता है। यदि बीमारी आदि में बच्चे के लिए उपाय करना हो तो उसकी आयु का वर्ष और घर नं. के ग्रह को ध्यान मंे रखकर ही उपाय करने चाहिए। इन बारह वर्षों में जो घर खाली हो और उस घर का उपाय करना हो तो जो खाली घरों के मालिक हैं उस ग्रह का उपाय करें। उस घर के कारक ग्रह का नहीं। उस घर का मालिक कहीं भी बैठा हो, केवल उसका ध्यान रखता है। उसी ग्रह का उपाय करने से कष्ट टलेगा। घर का मालिक नोट: जो ग्रह राशि फल के होते हैं उनका उपाय हो सकता है। परंतु जो ग्रह ग्रह फल के होते हैं। उनका कोई उपाय नहीं होता। उनके उपाय के लिए दूसरे ग्रहों का सहारा लेना पड़ता है।



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