ग्रहों की पंचायत भी लाल किताब ने चुनी है। उच्चतम पंचायत वह मानी जाती है जिसमें बुध का समावेश न हो लेकिन राहु-केतु में से एक का समावेश अवश्य हो। अगर स्त्री या पुरुष (पापी ग्रहों) की पंचायत हो तो जातक अधिकारी, भाग्य का धनी, संतान सुख से परिपूर्ण, वैवाहिक जीवन में सुखी और दीर्घायु होता है फिर चाहे जातक खुद अपना दुश्मन क्यों न हो। कुंडली के 1 से 6 घरों में पंचायत हो तो तोड़फोड़ का फल होता है बशर्ते कि इस पंचायत में बृहस्पति, सूर्य, शुक्र, बुध और शनि हों। अगर यही पंचायत 4 से 10 घरों में हो तो जातक अपनी कमाई से अमीर बनता है भले ही वह डरते-डरते दरिया पार करने वाला हो। पंचायत का प्रभाव प्रायः अच्छा ही रहता है। पंचायतवाला जातक भले ही हर बुराई युक्त हो, फिर भी वह दूसरों से अच्छा रहता है।
यदि पंचायत में कोई भी पापी ग्रह राहु, केतु, शनि साथ में न हों और जातक खुद भी पापी न हो यानी धर्मात्मा हो तो ऐसी पंचायत का कोई लाभ नहीं होता। पंचायत में कोई पापी ग्रह हो या खुद जातक पापी हो तभी पंचायत का फल अच्छा मिलता है। शरीफ से वैसे भी कोई खौफ नहीं खाता। उपाय: पापी ग्रहों की चीजें जैसे- शनि की बादाम, शराब, सिगरेट, राहु की जौ, कोयले, नारियल, केतु की केले, खटाई की चीजें मुफ्त में लोगों को बांटें। विशेष: राहु या केतु जन्मकुंडली के पहले यानी 1 से 6 घरों में हो और सभी ग्रह राहु-केतु की पकड़ में आ जाएं तो ‘कालसर्प योग’ बनता है। यह योग महाभयंकर तथा जातक को हर मोड़ पर पीछे धकेलने वाला होता है। जब राहु पहले घरों में और बाकी के ग्रह बाद के घरों में बैठे हों तो राजयोग बनता है।
पहले घर में जब राहु-केतु को छोड़कर बाकी सभी ग्रह इकट्ठे हो रहे हों तो जातक शासक या प्रशासक बनता है। तीसरे घर में जब राहु-केतु को छोड़कर और बाकी के ग्रह इकट्ठे हो रहे हों तो जातक राजा के समान सम्मानित होता है। आठवें घर में राहु-केतु को छोड़कर अन्य सभी ग्रह इकट्ठे हो रहे हों तो जातक भाग्यवान, उत्तम प्रशासक होता है परंतु केवल अपना ही स्वार्थ देखता है। नौवें घर में राहु-केतु को छोड़कर बाकी सभी ग्रह इकट्ठे हो रहे हों तो जातक अपने साथ औरों को भी आगे ले चलने वाला होता है। जातक के पैरों की पांचों उंगलियां बराबर हों तो जातक पूर्ण भाग्यवान, सुखी और संतोषी रहता है, जब उंगलियां क्रम के अनुसार बड़ी होती जाएं तो जातक पुत्र-पौत्रादि वाला होता है।