कुंडली में पितृ दोष: कारण व निवारण
कुंडली में पितृ दोष: कारण व निवारण

कुंडली में पितृ दोष: कारण व निवारण  

आर. डी. सिंह
व्यूस : 9538 | सितम्बर 2015

जो मनुष्य अपने माता-पिता, बड़े बुजुर्गों का आदर सत्कार नहीं करते, श्राद्ध तर्पण आदि संस्कार नहीं करते, उनके परिवार में रोग, दुख, कष्ट, आर्थिक परेशानी, ऋण का भार, विवाह-बाधा, वंश वृद्धि में बाधा व असफलता जैसी अनेक नकारात्मक स्थितियां जीवन भर बनी रहती हैं। कई बार हमारा कोई दोष नहीं होता फिर भी हमें गंभीर कष्टों का सामना करना पड़ता है। हमारे अपने कर्म हमारे दुःखों का कारण बनते हैं। जो लोग अपने पूर्वजों को, पितरों को तर्पण, दान आदि से प्रसन्न करते हैं और अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, धन, संपदा, संतान व सौभाग्य आदि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।’’ सूर्यादि पितृकारक ग्रहों का योग सूर्य-राहु, सूर्य-शनि, सूर्य-केतु हो तो वह पितृदोष कहलाता है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य नीच राशिगत, शत्रुक्षेत्रीय एवं राहु-केतु के साथ हो तो पितृदोष का कारण बनता है।

जन्मकुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके अनुसार ही अशुभ फल घटित होते हैं। जैसेरू- प्रथम भाव में सूर्य-राहु या सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हों तो जातक को अशांति, गुप्त चिंता, दांपत्य व स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। द्वितीय भाव में यह योग होने पर परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें पैदा होती हैं। चतुर्थ भाव में पितृ दोष के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी और कष्ट होते हैं। पंचम भाव म े ं उच्च शिक्षा म े ं विघ्न-बाधा, स ंतान स ुख म े ं कमी, सरकारी कामों में असफलता आदि मिलती है। सप्तम भाव में यह योग वैवाहिक जीवन में परेशानी व विवाह में देरी, काम रोजगार में बाधा आदि देता है। अष्टम भाव में पितृदोष होने से पैतृक सुख में कमी होती है। नवम भाव में यह योÛ होने से भाग्योन्नति में बाधाएं आती रहती हैं। बनते काम रूकने लगते हैं।

दशम भाव मे ं पितृ दोष होने से नौकरी संबंधी परेशानी उठानी पड़ती है। काफी मेहनत करने के बाद भी अच्छी नौकरी के लिये परेशान होना पड़ता है। पितृ कारक योग ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8, 12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध हो जाए तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, भूत, प्रेत बाधा, ज्वर, चक्षु रोग, तरक्की में रूकावट, बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल की प्राप्ति होती है। मातृ दोष होने की वजह चंद्र-राहु, चंद्र केतु, चंद्र-शनि आदि योग होते हैं। इनमेंयोÛों के प्रभाव स्वरूप स्वरूप भी भाव ेश की स्थिति अन ुसार ही अशुभ फल प्राप्त होते हैं। सामान्यतः च ंद्र-राहु आदि योग के प्रभाव से जातक को जीवन में एक बार मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होता है। जीवन काल में एक समय ऐसा आता है जब किसी भी अशुभ घटना से जीवन-मरण का योग बन जाता है। इसके अलावा माता अथवा पत्नी को कष्ट, स्वयं को मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियां, गुप्त रोग, अपनों से पराया व्यवहार आदि फल प्राप्त होते हैं।

यदि दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो और उसकी राहु से दृष्टि या योग का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है और यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तो पितृदोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है। पितृ दोष के लक्षणरू घातक पितृदोष होने पर जातक के समय स े प ूर्व बाल सफ ेद हा े जात े ह ै ं। सुख-समृद्धि धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है। कार्यों में अनावश्यक विलंब होते हैं। मुक्ति के विशेष उपायरू रोजाना सूर्य को नमस्कार करें एवं कभी-कभी यज्ञ करें। किसी भी कार्य को करने से पहले मुंह मीठा करें और जल पीएं। इससे विशेष लाभ होगा पितृदोष मुक्ति में। Û मातृदोष के लक्षणरू घर की संपत्ति का नष्ट होना, घर के पालतू पशुओं की मृत्यु होना, शिक्षा में बाधा व घर के सदस्यों का रोगी होना, सहायता करने वाला भी संकट में पड़ता है। प्रत्येक कार्य में विफलता का सामना करना पड़ता है। मातृदोष मुक्ति के विशेष उपायरू मातृदोष से ग्रस्त जातक चांदी लेकर बहते पानी में बहाएं तो इस ऋण से मुक्ति मिलती है। माता-पिता के प ्रतिदिन चरण स्पर्श करन े स े भी मातृदोष से मुक्ति मिलती है। पितृदोष एवं मातृदोष से मुक्ति के अनेक आसान उपाय इस प्रकार हैंरू-

1. मातृदोष से ग्रस्त जातक चांदी लेकर बहते पानी में बहाएं तो इस ऋण से मुक्ति मिलती है। माता-पिता के प्रतिदिन चरण स्पर्श करने से भी मातृदोष से मुक्ति मिलती है। - हर अमावस्या और मंगलवार के दिन सवेरे शुद्ध होकर स्टील के लोटे या कटोरे में पानी, गंगाजल और काले तिल डालकर दक्षिणुखी होकर पितरों को जल का तर्पण करें और जल देते समय 3 बार ऊँ सर्वपितृदेवाय नमः बोलें और पितरों से सुख-शांति व काम रोजगार की प्रार्थना करें।

2. हर अमावस्या खास तौर पर सोमवती, अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या और शनैश्चरी अमावस्या को सवेरे खीर-पूड़ी, आलू की सब्जी, खीर, बेसन का लड्डू, केला व दक्षिणा और सफेद वस्त्र किसी ब्राह्मण को दें और आशीर्वाद लें। इससे हमारे पितृ अत्यंत प्रसन्न होते हैं और सारे दोषों से मुक्ति दिलाते हैं।

3. पूरे श्राद्ध सवेरे पितरों को पानी, गंगाजल व काले तिल मिलाकर जल अर्पित करें।

4. सोमवार के दिन आक के 21 पुष्पों व कच्ची लस्सी, बेलपत्र के साथ शिव प ूजन करन े स े पितृदा ेष स े मुक्ति मिलती है।

5. पितृदोष होने पर किसी गरीब कन्या के विवाह में सहायता करने से दोष से राहत मिलती है।

6. रविवार की संक्रांति या रवि वासरी अमावस्या का े ब ्राह्मणा े ं का े भा ेजन, लाल वस्तुओं का दान, दक्षिणा एवं पितरों का तर्पण करने से पितृदोष की शांति होती है।

7. हर अमावस्या के दिन पितरों का ध्यान करत े ह ुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्प इत्यादि चढ़ाएं और ऊँ पितृभ्यः नमः बोलें 3 बार और पितरों से सुख संपत्ति की प्रार्थना करें। ऐसा करने से पितृ दोष शांत होता है।

इसके अतिरिक्त सर्प पूजा, ब्राह्मणों को, गोदान, कुआं खुदवाना, पीपल व बरगद के वृक्ष लगवाना, विष्णु मंत्रों का जाप करने से, श्रीमद्भागवद गीता का पाठ करने से, माता-पिता का आदर करने से पितरों (पूर्वजों) के नाम से अस्पताल मे ं दान करने से, म ंदिर बनवाने, विद्यालय व धर्मशाला बनवाने से भी पितृदोषों की शांति होती है। आशा है पितृदोष से निवारण के लिये, शांति के लिये ये उपाय करने से पितर प्रसन्न होंगे और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देंगे।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.