बेनो जन्म से ही दृष्टिहीन है। हालांकि उनके माता-पिता और बड़े भाई सभी बिल्कुल सामान्य हैं पर बेनो को प्रभु ने अपनी अंतरात्मा के नेत्रों से ही इतनी दृष्टि देकर इस दुनिया में भेजा कि उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और अपने भाग्य पर भरोसा कर इतना बड़ा मुकाम हासिल किया। बेनो के माता-पिता ने उसका नाम बहुत सोचकर रखा था। बेनो का मतलब है ईश्वर और जेफाइन का मतलब है खजाना अर्थात अपने मम्मी पापा के लिए बेनो उस वक्त भी ईश्वर का खजाना थीं और आज भी उसने उनके दिये नाम को साकार कर दिखा दिया। बेनो बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज थी। उसके स्कूल में सभी दृष्टिहीन बच्चे पढ़ते थे। लेकिन वह क्लास में सबसे अधिक बातूनी और किसी भी विषय पर बोलने में चुस्त। उसमें गजब का आत्मविश्वास था। इसीलिए लगभग हर प्रतियोगिता में चाहे स्कूल हो या स्कूल के बाहर, बेनो का अव्वल आना तय था। उनके जीवन के सफर में उनके माता-पिता ने बहुत सहयोग किया।
उनके माता-पिता उनकी दोनों आंखंे बने और वे उनके कोर्स की किताबें बार-बार जोर-जोर से पढ़कर उसे सुनाते थे। यह उनके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम कार्य था। बेनो कहती है कि उसने उन्हीं की आंखांे से शब्दों को पढ़ा। उनके पिताजी ने तो अपनी जिंदगी में बस दो ही काम तय कर लिये थे- एक अपने आॅफिस का काम करना और दूसरा बेनो के लिए किताबें ढूंढ़ना तथा यह पता लगाना कि किसकी मदद से वो अधिक आसानी से पढ़ सकती है। बेनो ने लाॅयला काॅलेज मद्रास यूनिवर्सिटी से अंगे्रजी में एम. ए. किया और सिविल सर्विस की तैयारी करती रही। दूसरे प्रयास में ही उसने सिविल सर्विसेज एग्जाम पास कर लिया और पूरे देश में उसको 343वीं रैंक प्राप्त हुई।
बेनो को स्पीच देने और डिबेट का बहुत शौक है इसका बहुत बड़ा कारण है उसकी पोजीटिव ऊर्जा। बेनो जब छोटी थी तो अपने आस-पास बहुत नेगेटिवीटी महसूस करती थी। लेकिन उसने अपने परिजनों को मनाया कि मैं जैसी हूं, मुझे वैसे ही स्वीकार करो और सहानुभूति देकर कमजोर मत करो। इसलिए उसने सदा ही अपनी पोजीटिव ऊर्जा को बढ़ाया और कभी भी नेगेटिव ऊर्जा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उसने पर्यावरण, कैंसर, जल संरक्षण जैसे गंभीर विषयों पर जानकारी पूर्ण और प्रेरक भाषण देकर अनेक एवार्ड जीते हैं। बेनो को बचपन से ही रेडियो पर खबरें सुनने की आदत थी जिससे उसे अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाने में बहुत मदद मिली।
2013 में बेनो को स्टेट बैंक आॅफ इंडिया में बतौर प्रोबेशनरी अफसर नौकरी मिली। बैंक ने उन्हें डूबे हुए कर्ज की वसूली का काम दिया। इस जिम्मेदारी को उन्होंने इतने अच्छे से निभाया कि वे ‘वसूली रानी’ के नाम से मशहूर हो गईं। उन्होंने कभी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया और ईमानदारी से अपना कार्य किया। पहले तो बेनो शिक्षक या वकील बनना चाहती थी परंतु जब एक बार उसने पड़ोस में किसी को पानी बर्बाद करने पर टोका तो सुनने को मिला ‘लो आ गई कलक्टर साहिबा’ तभी उसने यह तय कर लिया कि आई. ए. एस बनंूगी और आज अपने इरादों में कामयाब भी हो गई। हर मील के पत्थर पर लिख दो यह इबारत भी। मंजिल मिलती नहीं नाकाम इरादों से।।
यू. पी. एस. सी. की परीक्षा की तैयारी बेनो ने अपनी नौकरी के दौरान ही शुरू कर दी थी। विभिन्न विषयों की पढ़ाई के लिए किताबांे को स्कैन करवाकर कंप्यूटर पर रखा और फिर एक साॅफ्टवेयर की मदद से पढ़ने की कोशिश करती थी। जो किताबंे स्कैन नहीं हो पाती थी उन्हें मां ने उन्हें पढ़कर सुनाया। पहली कोशिश में बेनो को कामयाबी नहीं मिली पर मजबूत इरादों वाली बेनो निराश नहीं हुईं। उन्होंने दुबारा परीक्षा दी और उसमें 343 वीं रैंक से पास हुई। किसी उद्देश्य के लिए खड़े होओ तो पेड़ की तरह खड़े होओ और गिरो तो उस बीज की तरह जो वापिस उठ कर अपने उसी उद्देश्य को हासिल करने की लड़ाई में लग जाता है। बेनो के अनुसार उनकी कामयाबी उनके माता-पिता की मेहनत व आशीर्वाद का नतीजा है। राह में दिक्कतें अनेक थीं पर असंभव कुछ नहीं था। मंजिल तो मिल ही जाती है भटक कर ही सही।
गुमराह तो वे लोग हैं जो घर से निकले ही नहीं। उनके अनुसार हम सबको डेस्टिनी पर भरोसा रखना चाहिए। उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए। चाहे वह देख नहीं सकती लेकिन उसने अपने लिए एक डेस्टिनी चुन ली और अपनी चाहत की राह को कभी रोक नहीं लगाई। उसे उसके परिवार वालांे ने यही कहा कि तुम जहां तक उड़ना चाहती हो, सपने देखना चाहती हो देखो, उसने सदा पाॅजिटिवीटी को अपनाया इसीलिए बेनो की जिंदगी में सब कुछ सामान्य रूप से घटता रहा और वह अपने जीवन को सामान्य रूप से जीती रही और अपने सपनांे को साकार भी कर लिया। बेनो के अनुसार नेत्रहीनांे के लिए पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है।
सरकार को उनके लिए अधिक से अधिक कोर्स मैटीरियल उपलब्ध कराना चाहिए क्योंकि उन्हें अपनी पढ़ाई में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके माता-पिता ने उनका बहुत सहयोग किया और अपना पूरा जीवन बेनो की पढ़ाई के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन हर किसी नेत्रहीन के माता-पिता के लिए यह संभव नहीं है। इसलिए सरकार को नेत्रहीनांे के लिए पर्याप्त सुविधाएं अवश्य जुटानी चाहिये क्योंकि बेनो की तरह और भी बहुत से नेत्रहीन देश के निर्माण और विकास के लिए कुछ कर सकने की क्षमता रखते हैं और वे किसी से कम नहीं हैं। यही कारण है कि भारत सरकार ने बेनो की योग्यता और क्षमता देखते हुए उन्हें आई. एफ. एस. की पोस्ट पर नियुक्त किया है और पूरे देश को बेनो से बहुत आशाएं हैं कि वे निश्चित रूप से अपना बेस्ट देने की कोशिश करेंगी और नेत्रहीनांे के भविष्य में सुधार के लिए भी कुछ ऐसा करेंगी जो मील का पत्थर साबित हो) बेनो सभी को यही मोटिवेशन देना चाहती हैं कि नियमों और कायदों में बंधे रहने के बावजूद हर व्यक्ति अपने मोटिवेशन को बनाए रखे या फिर किसी और की मोटिवेशन को बढ़ाने में मदद करे तो हमारे समाज में यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
बेनो वास्तव में उन सब व्यक्तियों के लिए एक आदर्श हैं जो सब कुछ होते हुए भी हर छोटी चीज के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं या फिर खुद को ही कोसते रहते हैं। उन्हें भगवान का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्हें इतना सुंदर जीवन मिला है तो इसका सदुपयोग करें, जीवन में अपना उद्देश्य एवं लक्ष्य बनाएं और फिर उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जी जान से जुट जाएं तभी सफलता आपके कदम चूमेगी। पोजिटिविटी यानी सकारात्मक सोच/आत्म विश्वास रखने से ही मिलती है। बेनो इसका जीता जागता उदाहरण है जिसने नेत्रहीन होते हुए भी कभी नेगेटिविटी यानी नकारात्मकता/हीन भावना को अपने पास नहीं फटकने दिया और अपनी योग्यता और क्षमता को निरंतर बढ़ाते हुए अपनी मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया।
कुंडली विश्लेषण बेनो की जन्मकुंडली में लग्नेश चंद्रमा अपने से षष्ठ भाव में है और लग्न में केतु है। सामान्य दृष्टि से तो उसकी जन्मकुंडली में जन्मांध होने का कोई योग नहीं दिखाई पड़ता है। परंतु जातक परिजात में चंद्र से चैसठवें नवांश के स्वामी एवं लग्न से बाइसवंे द्रेष्काण के स्वामी को छिद्र ग्रह माना गया है। प्रायः ये अरिष्ट फल उत्पन्न करते हैं। इस कुंडली में चंद्र लग्नेश होकर छठे भाव में बैठे हैं अतः चंद्र से अष्टम में कर्क राशि हुई जो कि चैसठवें नवांश का स्वामी है और यहां केतु की स्थिति एवं शनि (जो 22वें द्रेष्काण का स्वामी है) की लग्न को पूर्ण दृष्टि से बेनो जन्म से नेत्रहीन है। ज्योतिकारक ग्रह सूर्य और चंद्रमा यदि दूषित ग्रहों अर्थात त्रिक भाव के स्वामी से संबंध रखते हों तो भी नेत्रों में विकार आ जाता है और यदि ऐसी स्थिति में शुक्र भी त्रिक भाव से संबंध बना ले तो नेत्रहीनता के योग बनते हैं।
बेनो की कुंडली में चंद्र छठे भाव में स्थित होकर षष्ठेश द्वादशस्थ गुरु से दृष्ट है तथा सूर्य द्वादशेश बुध से युति में है और शुक्र अष्टम भाव में शत्रु ग्रह मंगल के साथ स्थित है तथा द्वितीय भाव को दृष्टि दे रहा है। इन्हीं सब योगों के कारण बेनो का नेत्रहीन जन्म हुआ। लेकिन शुक्र और योगकारक मंगल की वाणी भाव पर दृष्टि ने उसे अत्यंत ओजस्वी वाणी तथा डिबेट करने योग्य बुद्धि और दिमाग भी दिया। ऐसा लगता है कि सौभाग्य के कारक ग्रहों चंद्र, शुक्र, गुरु व मंगल के छठे, आठवें व बारहवें भाव में स्थित होने के कारण ही उसके जीवन में अंधेरा हो गया। परंतु दशम भाव में स्थित उच्च राशिस्थ सूर्य प्रदत्त राजयोग ने इनके जीवन में उजाला भर दिया।
इसी तरह भाग्येश गुरु और लग्नेश चंद्रमा का परस्पर दृष्टि संबंध होने से बेनो में सकारात्मक सोच और अपने जीवन मूल्यों के प्रति अधिक जागरूकता, ईमानदारी और कर्तव्य परायणता के गुण आ गये। बेनो की कुंडली में शनि केंद्र में सप्तम भाव में स्वराशि में स्थित होकर शश नामक पंच महापुरूष योग बना रहे हैं। स्वराशिस्थ शनि राहु से युक्त हो जाने पर शश योग को चार गुना अधिक बली कर दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त दशम भाव में उच्च राशिस्थ सूर्य वर्गोत्तमी है। इन्हीं पर्याप्त बली ग्रहों के योग के बल पर साधारण परिवार में जन्मी नेत्रहीन बेनो इतनी बड़ी आई. एफ. एस. जैसी उच्च पद-प्रतिष्ठा वाली नौकरी प्राप्त करने में कामयाब हुई। चतुर्थेश और दशमेश मंगल व शुक्र की एक साथ अष्टम भाव में युति तथा दोनों पर भाग्येश बृहस्पति की दृष्टि होने से इन्हें अपने माता-पिता से बहुत अधिक सहयोग प्राप्त हुआ और उन्होंने अपनी योग्यता से माता-पिता का नाम देश-विदेश में रोशन किया।
भाग्येश गुरु की द्विस्वभाव राशि मिथुन में बारहवें स्थान में स्थिति तथा द्वादशेश की कर्म स्थान चर राशि मेष में स्थिति तथा लग्नेश चंद्र की द्वादश भाव पर दृष्टि होने से इनका भारतीय विदेश सेवा ‘आई. एफ. एस.’ में चयन हो पाया। माणिक चंद जैन की लिखी पुस्तक ‘कार्मिक कंट्रोल प्लैनेट’’ के अनुसार यदि कार्मिक कंट्रोल प्लैनेट (राहु एवं केतु स्थित राशि के स्वामी) सूर्य या चंद्रमा हांे और उसका षष्ठेश या दशमेश से संबंध हो तो यह योग व्यक्ति को सिविल सर्विसेज में नौकरी दिलाता है। यहां केतु स्थित राशि का स्वामी चंद छठे भाव में है और षष्ठेश गुरु को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं इसलिए यह योग लागू हो रहा है।
नवांश कुंडली का विचार करें तो शुक्र और सूर्य अपने उच्च नवांश में स्थित हंै, शनि और मंगल स्व नवांश में स्थित हंै अर्थात नवांश कुंडली में अधिकतम ग्रह शुभ तथा बलवान होने से बेनो में गजब का आत्मविश्वास तथा आशावादी सोच बनी और इसी आशावादी सोच ने उसे अपनी मंजिल तक पहुंचाया।