कस्पल ज्योतिष का आविष्कार श्री एस. पी. खुल्लर द्वारा उनके कई वर्षों के शोध और अथक प्रयासों के बाद सफल हो पाया है। खुल्लर जी ने यह प्रयास किया कि किस प्रकार वैज्ञानिक तरीके से पवित्र ज्योतिष के विषय को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाय ताकि पाठकगण और ज्ञानी ज्योतिषी एवं पंडित इसे समझकर भेद कर पायें कि कस्पल इंटरलिंक थ्योरी के माध्यम से दी गई भविष्यवाणियां सौ प्रतिशत सही उतरती हैं। कस्पल पद्धति दूसरी ज्योतिषीय प्रणालियों और पद्धतियों से अलग है। दूसरी पद्धति पर आधारित मात्र राशि चार्ट का सूक्ष्म अध्ययन भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचाता क्योंकि किसी भी भाव की संभावना या संकेत पढ़ने के लिए उस भाव पर कौन सी राशि उदय हुई है तथा उसके स्वामी के बल पर आधारित होती है। यह बल सभी जातकों के लिये समान रहता है जो उस विशिष्ट दिवस पर उन विशिष्ट दो घंटों में पैदा हुए हैं। आप सभी को विदित है कि ज्योतिष के संसार में श्रीमान कृष्णामूर्ति जी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है तथा उनके द्वारा प्रस्तुत तथा शोध की गई पद्धति को के. पी. सिस्टम के नाम से जाना जाता है।
कृष्णमूर्ति जी ने यह पाया कि वैदिक ज्योतिष के माध्यम से की गई भविष्यवाणियां हर बार खरी नहीं उतरती हैं तो उन्होंने जो कुंडली अभी तक 12 राशि, 12 भावों और 27 नक्षत्रों, 108 नवांशों में बंटी हुई थी उससे थोड़ा अलग हटकर एक नक्षत्र को नौ हिस्सों में बांटा। बांटा इस प्रकार से कि जो नियम विंशोत्तरी दशा में मिला हुआ है उसी के अनुसार एक नक्षत्र जिसका समय 130 20’ है यानि कि 800 मिनट उसको 9 हिस्सों में बांटा। जब किसी नक्षत्र के नौ हिस्से हुए और उस हिस्से को सब लाॅर्ड नाम दिया गया तथा इस प्रकार जो कुंडली अभी तक 108 हिस्से में नवांशांे में बंटी हुई थी उनको अब 249 असमान हिस्सों में बांट दिया गया यानि कि अब कुंडली का और बारीकी से अध्ययन किया जा सकता था। परंतु इस सिस्टम में भी दिक्क्त वहां और ज्यादा बढ़ गई जहां जुड़वां बच्चे पैदा हुए या एक ही जगह पर कई बच्चों के जन्म हुए। तात्पर्य वहां भी संभावना है कि सब लाॅर्ड एक ही हो तो जातक की कुंडली का विश्लेषण किस प्रकार किया जा सकता है जिस स्थान पर एक से ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ हो। जब यह समस्या पैदा हुई तो खुल्लर जी ने समस्या को समझा कि कोई भी दो जातक किसी भी रूप में समान नहीं होते हंै और किसी भी कोण से हर एक जातक अपने आप में एक ही है तथा हमको उस पोजीशन पर पहुंचना है जब सत्य में जन्म होता है यानि कि जब बच्चा पैदा होता है और जिस पल या क्षण में वह जन्म लेता है उसी पल या क्षण उस जातक का भाग्य लिख दिया जाता है।
हम कस्पल कुंडली में उस क्षण तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। खुल्लर जी ने उससे और आगे जा कर एक सब लाॅर्ड जिसकी अवधि 3 मिनट से लेकर 9 मिनट तक तकरीबन रहता है उसके भी 9 भाग आगे कर दिये तथा उसी अनुपात में जिस अनुपात में किसी विशिष्ट ग्रह को वक्त मिला हुआ है। सूर्य के सब लाॅर्ड को 40 मिनट का समय प्राप्त है तथा 40 मिनट को नौ हिस्सों में आगे बांट दिया गया उसी अनुपात में जिस अनुपात में हमने नक्षत्र को बांटा था। जब हमने हर सब लाॅर्ड यानि कि 243 सब लाॅर्ड को आगे 9 हिस्सों में बांटा तो कुल मिलाकर भचक्र के 2193 हिस्से हो गये तथा इस सब डिविजन को नाम दिया गया सब-सब-लाॅर्ड और सब-सब-लाॅर्ड का काल बहुत ही छोटा है तथा अब जुड़वां बच्चों या एक ही स्थान में विभिन्न बच्चों का जन्म होना, उनके सब-सब लाॅर्ड का अलग होना काफी हद तक संभव है तथा उस जातक की जिंदगी या जीवन काल का संकेत या प्राॅमिस पढ़ना हो तो हम एक से बारह भावों के सब-सब-लाॅर्ड का अध्ययन करेंगे। सबसे बड़ी बात कस्पल इंटरलिंक थ्योरी कि यह है कि इसमें प्राॅमिस पढ़ने के लिये लिंकेज कैसे स्थापित होती है, वह लिंकेज कैसे स्थापित होती है इसी लेख में आप को पढ़ने को मिलेगा तथा भविष्यवाणी करना बहुत ही सरल तथा सटीक है।
इस पद्धति में कोई ग्रह उच्च का, नीच का, वक्री, दृष्टि संबंध, युति इत्यादि को नहीं माना जाता है और न ही लिया जाता है। किसी प्रकार के कोई भी वैदिक योग स्थापित नहीं होते और न ही वह लिखे तथा पढ़े जाते हैं। केवल लिंकेज स्थापित होती है और वही लिंकेज सभी योग स्थापित करती है। कस्पल कुंडली/चार्ट एक ही पृष्ठ में बन जाती है। उसी पृष्ठ में बेसिक डिटेल, राशि और भाव कुंडली, ऊपर ग्रहों की स्थिति सब-सब लेवल तक और उसी के ठीक नीचे 1 से 12 भावों की कस्पल पोजीशन्स तथा दाहिने हाथ पर दशा, भुक्ति, अंतरा, सूक्ष्म और प्राणदशा की स्थिति को दर्शाया जाता है और नीचे अपने कमेंट देने के स्थान का भी प्रावधान है। कस्पल कुंडली को कैसे पढ़ा जाय कस्पल कुंडली में किसी भी भाव का प्राॅमिस पढ़ना हो तो उस भाव के सब-सब लाॅर्ड को लिया जाता है। उस सब लार्ड ग्रह को ऊपर बने ग्रहों की स्थिति वाले चार्ट में देखा जाता है कि वह विशिष्ट ग्रह किस ग्रह के नक्षत्र में, किस ग्रह के उप नक्षत्र और किस ग्रह के उप उप नक्षत्र में हैं। मान लीजिये कि ग्रह ‘ए’ ‘बी’ ग्रह के नक्षत्र में ‘सी’ ग्रह के सब लाॅर्ड में और ‘डी’ ग्रह के सब सब में है। इसे हम कस्पल इंटरलिक ज्योतिष में इस प्रकार लिखते हैं।
ए-बी-सी-डी ;च्संदमज । पे पद जीम ेजंत व िच्संदमज ठए ेनइ व िचसंदमज व िब् पद जीम ेनइ ेनइ व िचसंदमज क्द्ध नक्षत्र ज्योतिष का यह स्वर्णिम नियम है कि हर ग्रह ;च्संदमजद्ध अपने नक्षत्र ;ैजंतद्ध स्वामी का फल प्रदान करता है। अपना फल ग्रह तब प्रदान करता है जब कुंडली में उस ग्रह का पोजीशनल स्टेटस हो। नक्षत्र थ्योरी के अनुसार ग्रह का फल उसका नक्षत्र स्वामी ग्रह ;ैजंत स्वतकद्ध श्ठश् देगा और ग्रह श्ठश् जिस भाव में बैठा हो या जिन कस्पल पोजीशन्स में राशि स्वामी, नक्षत्र स्वामी, उपनक्षत्र स्वामी या सब-सब लाॅर्ड के रूप में प्रकट हो रहा होगा वह ग्रह उन भावों के फल देने में सक्षम हो जाता है। इस नक्षत्र लाॅर्ड पोजीशन को हम कस्पल ज्योतिष में इन्वोल्वमेंट कहते हैं और जिन भावों में नक्षत्र स्वामी ग्रह ‘बी’ प्रकट हो रहा है उन भावों का फल मिलेगा कि नहीं, फल पोजीटिव होगा या निगेटिव यह ग्रह ‘ए’ का सब लाॅर्ड ग्रह ‘सी’ बतलायेगा और ग्रह ‘डी’ फाइनल कन्फर्मेशन करता है। इसे और अच्छी तरह समझने का प्रयत्न करते हैं। मान लीजिये नक्षत्र स्वामी अगर 7वें भाव में प्रकट हो रहा है और उप नक्षत्र ग्रह ‘सी’ अगर 6ठे भाव में (पोजीशनल स्टेटस के साथ) या फिर छठी कस्पल पोजीशन में प्रकट हो जाय तो समझिये यह 7वें भाव की नेगेशन है मतलब नक्षत्र स्वामी की पोजीशन से उपनक्षत्र की पोजीशन 12वीं है।
यह लिंकेज विवाह नहीं देगी बल्कि तलाक के लिये बेहतर स्थिति है और यदि उपनक्षत्र कहीं 5वीं या 11वीं कस्पल पोजीशन में प्रकट हो रहा हो या 5वें या 11वें भाव में पोजीशनल स्टेटस सहित बैठा हो तो यह योग लिंकेज विवाह देने में समर्थ होगी। आईये आगे और स्पष्ट रूप से समझने का प्रयास करें। कस्पल ज्योतिष का नियम है या फिर आप यह कहिये कि नक्षत्र थ्योरी का नियम है कि फल तो नक्षत्र स्वामी का मिलना है वह रिजल्ट पोजीटिव होगा या नेगेटिव, हां होगा या न (जैसा कि हम उपर समझा चुके हैं) ग्रह ‘ए’ का उप नक्षत्र ग्रह ‘सी’ बतलाएगा। अगर स्टार लाॅर्ड की पोजीशन से सब लाॅर्ड ग्रह की पोजीशन पहली, तीसरी, पांचवीं, नवीं या ग्यारहवीं होगी तो वह भाव के सिगनिफिकेशन की बढ़ोत्तरी करेगी। अगर स्टार लाॅर्ड की पोजीशन से उपनक्षत्र की पोजीशन 4, 7, 8 या 12 है तो वह उस विशिष्ट भाव के सिगनिफिकेशन को कम करेगी या उसमें कमी लायेगी इसे नेगेटिव लिंकेज भी कहते हैं। तीसरा, अगर स्टार लाॅर्ड की पोजीशन से सब लाॅर्ड ग्रह की पोजीशन 2, 6 या 10वीं है तो यह लिंकेज न्यूट्रल होती है। इस केस में जातक को उस भाव का फल मिल जाता है थोड़ी बहुत मेहनत के बाद। मतलब पहली कंडीशन में स्टार लाॅर्ड ग्रह जिन कस्पल पोजीशन्स या भाव में प्रकट हो रहा है उससे अगर उपनक्षत्र ग्रह 1, 3, 5, 9,11वीं पोजीशन में है तो जिन भावों में स्टार लाॅर्ड प्रकट हो रहा है उन भावों की सिगनीफिकेशन में बढ़ोत्तरी हो जायेगी।
मान लीजिये अगर स्टार लाॅर्ड छठे भाव में प्रकट हो रहा है और सब लाॅर्ड 8वें भाव में है तो यह छठे भाव की बढ़ोत्तरी है। मतलब अगर छठा भाव बीमारी का लें तो बीमारी और बढ़ने वाली है क्योंकि 6ठे भाव से 8वां भाव तीसरा पड़ता है और 8वां भाव हम ैमतपवने ैपबादमेे ध् ैनतहमतल के लिये भी देखते हैं मतलब स्पष्ट है कि उस ग्रह की दशा में जातक को गंभीर बीमारी के दौर से गुजरना पड़ेगा। एक उदाहरण हम यहां और लेते हैं। अगर नक्षत्र स्वामी 5वें भाव में प्रकट हो रहा है और अगर हम यहां पांचवंे भाव को प्रेम, मोहब्बत का लें और उस ग्रह का उपनक्षत्र अगर 7वें भाव में प्रकट हो गया तो हम कह सकते हैं कि इस विशिष्ट ग्रह की दशा में जातक प्रेम विवाह कर सकता है क्योंकि 5वें भाव से 7वां तीसरा भाव है और साथ में सातवां भाव मूल रूप से विवाह का भाव है। हर इंवेट/वृत्तांत के लिये एक गु्रपिंग की जाती है। आईये इसे और अच्छी तरह समझें। उदाहरण के तौर पर मान लीजिये हम किसी जातक के विवाह की बात करते हैं। किसी भी जातक के विवाह के लिये हम कस्पल इंटरलिंक थ्योरी/ज्योतिष में लग्न के सब-सब लार्ड और 7वें भाव के सब-सब-लाॅर्ड की स्टडी करते हैं। किसी भी जातक का विवाह होगा या नहीं इसके लिये हम ऊपर लिखे दोनों भावों को पढ़ंेगे और गंभीरता से दोनों भावों की (1व 7) स्टडी करने के उपरांत हम एक निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस विशिष्ट जातक के भाग्य में ईश्वर ने विवाह होना निश्चित किया है या नहीं।
अगर विवाह होना निश्चित नहीं है तो यह किसी भी दशा काल में होना संभव नहीं होगा। विभिन्न ग्रहों की दशायें आयेंगी और चली जायेंगी परंतु विवाह नहीं होगा। दूसरा अगर आपने कुंडली में पढ़ लिया कि फलां व्यक्ति/जातक की शादी होना संभव है क्या उस जातक का विवाह शीघ्र होगा या विलंब से या उस जातक का विवाह एक सही उम्र में होगा, यह भी हम कस्पल कुंडली में पढ़ सकते हैं। विवाह की तकरीबन उम्र जानने के उपरांत आप दशा काल के ग्रहों की स्टडी करेंगे। आप यह सुनिश्चित करेंगे कि कुंडली में कौन-कौन से ग्रह 5वें, 7वें और 11वें भाव के प्रबल कारक बनते हैं। उनको छांटिए और गुरु, सूर्य, चंद्र और दशाकाल के ग्रहों के गोचर को ध्यान में रख उसके विवाह का समय निश्चित करें। तीसरा ऐसे ही अगर किसी जातक की नौकरी अथवा व्यवसाय या प्रमोशन के बारे में जानना हो तो लग्न, 2रे, छठे और 10वें भावों के सब-सब लाॅर्ड की स्टडी करें। चैथा चल/अचल संपत्ति की खरीद/फरोख्त के लिये 4, 11, 12, 9 भावों की स्टडी करें। संपत्ति को बेचने हेतु 4, 3, 12, 10 अथवा 5वें भावों को स्टडी करें इत्यादि।