समृद्धि की प्रतीक महालक्ष्मी कमला की उपासना स्थिर संपत्ति की प्राप्ति तथा नारी-पुत्रादि के सौख्य के लिए की जाती है। श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनक धारा स्तोत्र एवं श्री सूक्त का पाठ, साथ ही कमल गट्टे की माला पर ‘श्री मंत्र’ जाप, बिल्व पत्र और बिल्व फल का हवन करने से मां कमला की विशेष कृपा होती है। साधक अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी की मध्य रात्रि में श्री सूक्त की ऋचा से त्रिमधु मिश्रित बिल्व फल हवन करते हैं, जिससे श्री लक्ष्मी को कृपा करनी पड़ती है। श्री सूक्त के अनुसार संसार के जितने रमणीय वस्तु, तत्व हैं, वे सभी लक्ष्मी के सूचक हैं। समृद्धिदात्री लक्ष्मी एवं श्री गणेश की मिट्टी, या धातु की सुंदर प्रतिमा की व्यवस्था करें।
चैकी, या पट्टे पर उन्हें स्थान दें। चैकी या पट्टे पर रोली से अष्ट दल कमल बनाएं। उपरांत चैकी या पट्टे पर एक नया पीले रंग का वस्त्र बिछा दें। गणपति के दाहिने भगवती लक्ष्मी की मूर्ति रखें। यदि किसी सिद्ध व्यक्ति द्वारा निर्मित श्री यंत्र, कुबेर यंत्र अथवा बीसा यंत्र हो, तो वह भी रखें। गणपति और लक्ष्मी की मूर्ति एक सीध में न रखें। संभव हो, तो वे एक दूसरे के सामने हों। पूजा के आरंभ में हाथ न जोडे़ं। पूजा के अंत में मस्तक झुका कर प्रणाम करें। पूजा के आरंभ मंे सर्वप्रथम आचमन करें। हाथ में जल ले कर अक्षत के साथ पूजन के लिए संकल्प करें। संकल्प के बाद जल तथा अक्षत श्री गणेश जी को समर्पित करें तथा गणेश जी का पूजन करें।
गणेश जी के पूजन के बाद बायें हाथ में अक्षत ले कर दाहिने हाथ से श्री गणेश जी की प्रतिमा पर छोड़ें तथा निम्न मंत्र का उच्चारण करें। ¬ मनो जूतिर्जुषतामाज्स्य वृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमंदधातु विश्वेदेवास।। इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ। ¬ अष्यैः प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यैः प्राणाःक्षरंतु च। अस्यैः देवत्वमर्चायै मामहेति च काश्चन। कलश पूजन के पश्चात भगवती का पूजन करें। तत्पश्चात् दाहिने हाथ में पुष्प ले कर भगवती महालक्ष्मी का ध्यान करें। मंत्र पढ़ते हुए पुष्पों को भगवती की मूर्ति पर चढ़ा दें। ध्यान के बाद भगवती का आह्नान करें: सर्व लोकस्य जननी सर्व सौख्यप्रदायिनीम्।
सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम्।। आह्नान के बाद आसन के लिए कमल, या गुड़हल का पुष्प, निम्न मंत्र के साथ, भगवती को अर्पित करें: तप्पतं कांचनवर्णाम अक्रामणि विभूषिताम्। आमलं कमलं दिव्यमारान प्रतिगृहताम्।। आसन पूजन के बाद, चंदन और पुष्प ले कर, दाहिने हाथ में जल, चंदन, पुष्प अर्पित करते हुए, यह मंत्र पढें़ः गंगादितीर्थ सम्भूतं गन्ध पुष्पादिभिःप्रियताम्। पाùं ददाम्यहं गृहाणाशु नमोस्तुते। उसके बाद निम्न मंत्र से जल अर्पित करें: सर्वालोकस्य या शक्ति ब्रम्ह विष्णुवादिभिः स्तुता। ददाम्याचमन तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम्।। आचमन के बाद पंचामृत स्नान कराएं।
तत्पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराएं। भगवती को वस्त्र अर्पित करें। यदि संभव हो, तो आभूषण भी अर्पित करें। अनामिका अंगुली से चंदन लगाएं। भगवती को सिंदूर चढ़ाएं। कुमकुम अर्पित करें। सुगंधित तेल चढ़ाएं। कुमकुमयुक्त अक्षत अर्पित करें। भगवती को पुष्पों की माला चढ़ाएं। गणेश जी को 32 दूर्वा चढ़ाएं तथा रोली, अक्षत और फूलों से भगवती के सभी अंगों को मंत्र के साथ पूजें। ऊं चपलायै नमः पादौ पूजयामि। ऊं चंचलायै नमः जानुं पूजयामि। ऊं कमलायै नमः कटिं पूजयामि। ऊं कान्ययन्यै नमः नाभिः पूजयामि। ऊं जगन्मात्रे नमः जठरे पूजयामि। ऊं विश्ववल्लभायै नमः वक्षस्थ पूजयामि। ऊं कमलवासिन्यै नमः हस्तौ पूजयामि। ऊं पदमासनायै नमः मुखे पूजयामि।
ऊं कमल पत्राक्ष्यै नमः गेालत्रयं पूजयामि। ऊं श्रियै नमः शिरः पूजयामि। ऊं महालक्ष्म्यै नमः सर्वागं पूजयामि। सुंगधित अगर अर्पित करें। भगवती को दीपक दिखाएं। पुष्प छोड़ कर नैवेद्य अर्पित करें। आचमन कराएं। पुनः फल अर्पित करें। दक्षिणा अर्पित करें। उसके बाद ऊं ह्री श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहाः, इस मंत्र से गाय का घी, मधु, शक्कर मिश्रित बिल्व फल के 108 टुकड़ों से हवन करें। उसके बाद नीराजन करें। अंत में आरती करें। हाथ को पवित्र कर लंे। उसके बाद कुबेर, काली आदि का पूजन करें। कुबेर के पूजन में हल्दी, धनिया, कमल गट्टा एवं दूर्वा से युक्त चांदी के कुछ सिक्के कुबेर को अर्पित करें।
उसके बाद, यदि सुविधा हो तो, श्री सूक्त की 16 ऋचाओं का पाठ करें। यदि महादेवी में पूर्ण आस्था हो, तो लक्ष्मी चाहने वाला व्यक्ति, ‘श्री काम्या श्री सूक्तं सततं जपेत्’ कंठस्थ कर के, सभी अवस्था में, चलते-फिरते, स्थित होने पर, कहीं भी जाप कर सकता है। अंत में मंत्र पढ़ें। हाथ में अक्षत लें। ‘यान्तु देवागणाः सर्वेपूजामादाय मामकीम। इष्टकाम समृद्धयर्थ पुनरागमनायच।’