ज्योतिष की नजर में मोटापा
ज्योतिष की नजर में मोटापा

ज्योतिष की नजर में मोटापा  

राजेंद्र शर्मा ‘राजेश्वर’
व्यूस : 6164 | मई 2017

मोटापा क्या है? शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में चर्बी (मेद) का जमा अथवा इकट्ठा होना ही मोटापा है।’’ मेद (चर्बी) के बढ़ने से हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह जैसी अन्य कई घातक बीमारियां व्यक्ति को ग्रसित कर लेती है। ‘‘अथ मेदोरोगस्य ज्योतिशशास्त्राभिप्रायेण हेतुमाह। यथोक्तं जातके।।’’ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेदोरोग (चर्बी का बढ़ना) के कारण जो जातक ग्रंथों में दर्शाये गये हैं निम्नानुसार हैंः

‘‘अलसं सुखिनं स्थूलं पतितं मिष्टाशनं भृगोस्तनयः। शयनोपचारकुशलं द्वादशगः स्त्रीजितं जनमेत्।। जिस जातक की जन्मकुंडली में द्वादश भाव (व्यय भाव) में शुक्र स्थित हो तो वह जातक मधुर रस प्रधान मिष्ट पदार्थों का सेवन नित्य-प्रतिदिन करने वाला, दिन में 2 से 3 घंटे और रात्रि में 8 से 10 घंटे लगातार शयन करते रहने में अपने आपको चतुर और सुखी समझता हो, वह आलसी और मोटा (स्थूलकाय) हो जाता है। वह मानसिक एवं शारीरिक प्रवृत्तियों के उल्लास से पतित अर्थात गिर जाता है।

अर्थात किसी कार्य में उत्साह नहीं रह जाता है। वह स्त्रीजित अर्थात स्त्री से परास्त यानि स्त्री की कामवासना को तृप्त करने में असमर्थ हो जाता है। यदि स्त्री जातक है तो वह अपने पति से पराजित यानि उसे मैथुनिक संतृप्ति देने में असमर्थ हो जाती है। द्वादशस्थ शुक्र के कारण मेदाभिवृद्धि का शमन करने के लिए शुक्र ग्रह के आराधानादि का आलंबन करना चाहिए।

‘‘दधिचैर्येण पुरूशो जायते मेदसा युतः। दधिधेनुः प्रदातव्यः तेन विप्राय शुद्धये।। एवं कुच्छूं च कुर्यात।। दधि की चोरी करने से उस जातक को दूसरे जन्म में मेदोवृद्धि रोग हो जाता है। इस रोग से छुटकारा पाने के लिए दधि, धेनु (गाय) का दान तथा कृच्छ चान्द्रायण व्रत करना चाहिए। किसी भी प्रकार का ऐसा श्रम न करना जिससे शरीर में किसी भी प्रकार की थकावट आकर त्वचा से पसीना निकाल सकें, दिन में शयन तथा कफ वर्धक आहार-विहार सेवन करते रहने से, आहार में उन द्रव्यों का बहुल प्रयोग जो कि मधुर रस प्रधान होते हैं।


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


इन द्रव्यों से आहार रस भी मधुर पाकी होता है। मधुरपाकी रस कफवर्धक होता है। कफ के वर्धन होते रहने से मेदाभिवृद्धि होती रहती है। यह मेद शरीर के विभिन्न स्रोतों के मार्गों में अवरोध उत्पन्न करता है। परिणामतः शरीर को विभिन्न धातुओं का सम्पोषण नहीं मिल पाता और केवल मेदधातु का सम्पोषण होते हुए निरंतर मेद धातु बढ़ती जाती है और उसका संचय शरीर के विभिन्न प्रत्यंगों में होता जाता है। वे अंग-प्रत्यंग सक्रिय नहीं रह पाते-शिथिल या कार्य अक्षम होते जाते हैं।

व्यक्ति अपनी प्रतिदिन की गतिशीलता में अपने को अशक्त या कमजोर अनुभव करता है। आचार्य चरक ने संक्षेप में ‘‘अतिस्थूल’’ की व्याख्या इस प्रकार की है: ‘‘मेदोमांस वृद्ध त्वात् चलस्फिगुदरस्तनः। अयथोप चमोत्साहो नरोऽतिस्थूल उच्यते।।’’ अर्थात मेद और मांसधातु की अस्वाभाविक वृद्धि होते रहने के कारण जिस व्यक्ति के नितंब, उदर तथा स्तन चलते-फिरते या कोई काम करते समय हिलने लगे एवं उसका शारीरिक सौष्ठव यथार्थ रूप में न होकर गलत तरीके से भद्दे रूप में होने लगे, मानसिक प्रवृत्तियां उत्साहहीन होने लगें तो समझना चाहिए कि यह ‘अतिस्थूलता’ रोग है। चिकित्सा शास्त्र के प्रसिद्ध आधुनिक विद्वान प्राइस महोदय ने कहा है-

अत्यधिक चर्बी का संचय होना उस स्थिति का नाम है जिसमें मेदीस्विता कार्यवर्धन शील हो। इस व्याधि में न केवल कुछ अंग-प्रत्यंगों में मेद का ही संचय हो जाता है अपितु शरीर की अनेक आश्यन्तरीय निस्त्रोत ग्रंथियों की क्रियाशीलता के नियमित स्वरूप में भी अवरोध उत्पन्न होने लगता है। पीयूष-ग्रंथि, उपवृक्कग्रंथि तथा अंडग्रंथि आदि ग्रंथियों की अन्तःस्रवणप्रक्रिया में पर्याप्त विकृति आ जाती है। विशेष विकृति चुल्लिकाग्रंथि में आती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, मैथुनिक और शैक्षणिक गतिविधियों में उत्साहपूर्वक भाग लेने में असमर्थ हो जाता है।

मेदोरोग के उपचार:

1. कम से कम 3 से 4 साल पुराने चावल, हरे मूंग, कुलथी, उद्दाल (जंगल में बिना बीज बोए ही उत्पन्न होने वाले कोदों), कोद्रव (कोदों) इन पांच द्रव्यों को भोजन के रूप में लगातार 1 से 2 वर्ष तक करते रहना चाहिए। लेखनवस्ति-निरूहणवस्ति का प्रयोग एक माह में कम से कम 2 बार अवश्य करना चाहिए।

2. परिश्रम, चिंता, मैथुन, 3 से 4 घंटे प्रतिदिन घूमना, तीर्थ स्थानों की पैदल यात्रा करना, शहद का सेवन, जागरण इन छः बातों को प्रायः अधिक सेवन करने से मेदस्वी व्यक्ति स्वतः धीरे-धीरे कृशकाय होता जाता है। हाथी, घोड़ा इत्यादि की सवारी करने से भी स्थूलता दूर होती है। जौ, सांवा को भोजन में अधिक मात्रा में सेवन करते रहने से भी मेदस्विता दूर होती है।

3. प्रतिदिन लगातार कुछ मास या कुछ वर्षों तक प्रातःकाल शहद का शर्बत पीने से भी स्थौल्य रोग नष्ट होता है।

4. चव्य, सफेद जीरा, सौंठ, काली मिर्च, पीपर, हींग, काला नमक तथा चित्रक इन सभी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 4 माशा से 1 तोला की मात्रा में चूर्ण को जौ के सत्तू में दही के तोड़ के साथ घोलकर प्रतिदिन लेते रहने से भी मेदस्विता नष्ट होती है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


5. तालपत्रों का क्षारीय सत्व ज्ंगपदम को 250 ग्राम से 500 ग्राम की मात्रा में हींग 250 मिली ग्राम से 500 मिली ग्राम की मात्रा के साथ मिलाकर गरम जल में घोलकर या चावल के माड़ के साथ (आधा तोला) मिलाकर सेवन करते रहने से यह रोग समाप्त होता है।

6. तैलपर्णी, तगर, अगर, समगंधक, सफेद चंदन इन द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर महीन चूर्ण को शरीर पर मलने से या इस चूर्ण को पानी में उबालकर फिर छानकर स्नान करने से रोग समाप्त होता है। इन द्रव्यों का तैल निर्माण विधि से तैल बनाकर शरीर की मालिश भी की जा सकती है।

7. अड़से के पत्तों के रस में शंख पिष्टी का बारिक चूर्ण मिलाकर या बिल्व के पत्रों का पुटपाक विधि से रस निकालकर उसमें शंखपिष्टी मिलाकर मालिश करने से रोग समाप्त होता है।

8. हरड़, लोथ छाल, नीम के पत्तों, आम की छाल, अनार की छाल इन पांच द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर बेसन तथा तेल में मिलाकर उबटन के रूप में प्रयोग करें या काक जंघा के पंचांग का क्वाथ बनाकर उसका तैलपाक विधि से तैल बनाकर मालिश करने से (जिनको केवल आराम करते रहने के परिणामस्वरूप मोटापा आ गया है) नष्ट होता है।

9. सौंठ, काली मिर्च, पीपर, चित्रक, मोथा, हरड़ बेहड़ा, आंवला, वायबिडंग को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इन द्रव्यों के बराबर गूगल लेकर मिला लें तथा 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें। प्रतिदिन 1 गोली प्रातः 1 गोली शाम को सेवन करें और अनुपान में उष्णोदक लेते रहने से मेदस्विता, कफ संबंधी व्याधि एवं गठिया रोग नष्ट होते हैं।

10. 125 ग्राम पानी उबाल कर गुनगुना करें। उसमें कागजी नीबू का रस, 15 ग्राम तथा 15 ग्राम शहद मिलाकर प्रातः खाली पेट निरंतर 2 से 4 माह तक सेवन करें। साथ ही योगासन या कसरत क्रियाएं भी करें। भोजन हल्का और दिन में एक बार करें। चोकर की रोटी खाना लाभदायक है। भोजन के साथ जल न लें। भोजन के 1 घंटे बाद जल पीएं। चाय, काॅफी, चर्बी बढ़ाने वाले पदार्थ यथासंभव कम कर दें या दोनों समय भोजन के बाद उबलता हुआ गर्म पानी लेकर चाय की भांति छोटे-छोटे घूंट से धीरे-धीरे पीएं। दो माह तक सेवन करें।

11. एक माशा कलौंजी छः माशे शहद में मिलाकर पीस लें। इसे प्रातः, मध्याह्न व सायंकाल चाटने से मोटापा कम होगा।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.