‘‘मेधावी बनने के कुछ शास्त्रोक्त अचूक एवं प्रभावशाली प्रयोग’’ - श्वेत दूर्वा की कलम से गोरोचन से जिस बालक/बालिका की नाल भी न काटी गई हो उसकी जिह्ना पर ‘‘ऊँ’’ मंत्र लिखने पर वह जातक बहुत ही बुद्धिमान, ज्ञानी तथा विद्या का उपासक एवं स्मरण शक्ति युक्त बन जाता है।
- शिशु के जन्म के पश्चात परिवार के मुखिया या शिशु के पिता के द्वारा स्वर्ण शलाका या श्वेत दूर्वा की कलम से शिशु की जिह्ना पर गोघृत तथा शहद से ‘‘ऊँ’’ मंत्र लिखें तो शिशु आठ वर्ण की आयु तक अपूर्व मेधावी बालक बनकर, ज्ञान, स्मरण शक्ति की धनी बन जाता है। पूर्व में विद्वानों को परिवार में यह प्रयोग बहुतायत रूप में संपन्न किया जाता था।
- दूधिया बच को (आयुर्वेदिक औषधि विक्रेताओं के पास उपलब्ध) ‘‘ऊँ ऐं नमः’’ मंत्र से दस हजार जप कर व सिद्ध कर बालक के गले में बांध दें। जब बालक बारह वर्ष का हो जाये तो उस दूधिया बच को चूर्ण बनाकर गो दुग्ध या गोघृत व शहद मिश्रित कर बालक को पिलावें तो बालक अपूर्व विद्वान व स्मरण शक्ति संपन्न हो जाता है। यही चूर्ण आयुर्वेद में ‘सारस्वतचूर्ण’’ के नाम से प्रसिद्ध है। औषधि विक्रेताओं से क्रय कर गोघृत 6 माशा तथा 1 तोला शहद मिलाकर चाट कर नित्य गोदुग्ध का सेवन करने से यही लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। स्वयं लेखक तथा उसको अनेक मित्रों ने प्रयोग संपन्न किया व अपने बालकों को कराएं हैं। पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है।
- ब्राह्मी, दूधिया बच तथा बादाम की गिरी को मिलाकर, पीस कर पीली या भूरी गाय का घृत मिलाकर सेवन करने से सेवनकत्र्ता संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञाता हो जाता है। - प्रातः काल उठकर मुख-शुद्धि करने के पश्चात नित्य वागीश्वरी मंत्र के एक हजार जप करने से छः माह में निश्चित अल्पकृष्ट वाक्शक्ति प्राप्त होती है।
- ब्रह्ममुहूर्त उठकर पवित्र हो शांत स्वभाव से स्वयं तथा इच्छित ज्ञान की कल्पना (ध्यान) करें। नित्य प्रतिदिन एक वर्ष इस पद्धति से जप करने से मनुष्य सेाची गई विधाओं का स्वामी बन जाता है।
- किसी गुरु से ब्रह्मा द्वारा किये गये सप्ताक्षर या द्वादशाक्षर तारा मंत्रों को सिद्ध कर शहद युक्त खीर से हवन करने वाला मनुष्य विद्याओं का निधिपति (कोष या खजाना) हो जाता है। मंत्र किसी गुरु से ग्रहण करना ही श्रेयस्कर होता है। ‘विद्या में बाधा उत्पन्न करने वाले तत्वों को दूर करने के अचूक प्रयोग’’ - विद्या व ज्ञान वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में सिरहाना कर शयन करना चाहिए।
- किसी भी रात्रि को रात 12 बजे बालक की शिखा पर से कुछ बाल काटकर अपने पास रख लें। ऐसा लगातार पांच दिन करें। इसके पश्चात रविवार के दिन इन बालों को जला कर अपने पैरों से घर के बाहर जाकर उन्हें रगड़ दें और वापस आ जायें। बालक की सारी बाधाएं जो अध्ययन में आ रही हैं दूर हो जायेगी। पूर्ण प्रभावी प्रयोग है।
- कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन शंखपुष्पी के पौधे को निमंत्रण दे आयें उसके बाद हस्त नक्षत्र को उस पौधे की जड़ घर लाकर कूट-पीस कर गोली बनाकर रख लें, जब श्रावण मास आये उसमें जिस दिन श्रवण नक्षत्र पड़े उस दिन यह गोली जिस बालक या व्यक्ति को गो-दुग्ध को खिला दी जाये तो उस व्यक्ति के विद्या में उत्पन्न समस्त बाधाएं इस प्रकार दूर हो जाएंगी जैसे गदहे के सिर से सिंग। यह चमत्कारी प्रयोग आजमाया हुआ है।
- किसी भी मास के रोहिणी नक्षत्र के दिन से प्रारंभ कर अगले रोहिणी नक्षत्र के दिन तक 108 बार आगे दिए गये मंत्र का जाप करें या रोहिणी नक्षत्र के दिन प्रातः स्नानादि कर 41 पत्ते तुलसी के तोड़कर इसी मंत्र को 108 बार पढ़कर अभिमंत्रित कर गो दुग्ध के साथ निगल ले तो सभी बाधाएं दूर होकर बुद्धि का तीव्र विकास होता ही है।
मंत्र इस प्रकार है- ‘‘ऊँ नमो देवी कामाक्षा, त्रिशूल, रव, हस्त, पाधा, पाती, गरुड़ सर्व भरवी तु प्रीतये, समांगन तत्व चिंतामणि नरसिं चल क्षीन कोटी कात्यानी ताल व प्रसाद के ओं हीं ह्रीं क्रूं त्रिभवन चालिया चालिया स्वाहा।’’
- सूर्य या चंद्र ग्रहण के पर्व पर निम्नलिखित मंत्र का 144 बार जाप करने से विद्या में बाधा उत्पन्न करने वाले सभी कारणों का नाश हो जाता है। मंत्र इस प्रकार है- ‘ऊँ नमः श्रीं श्रीं अहं बद बद बाग्वदिनी भगवती सस्वत्यै नमः स्वाहा विद्यां देहि ममः ह्रीं सरस्वती स्वाहा।’’
- इस प्रयोग को शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ करना होगा लगातार 21 दिन तक ब्रह्मचर्य पूर्वक का पालन व एक समय भोजन करना होगा तथा अग्रलिखित मंत्र का 1000 बार जाप करना होगा मंत्र है
-‘‘ऊँ नमः भगवती सरस्वती वाग्वादिनी मम विद्या देही भगवती हंस-वाहिनी समारूढ़ा बुद्धि देहि-देहि प्रज्ञा देहि विद्यां देहि परमेश्वरी सरस्वती स्वाहा।’’ यह एक अत्यंत प्रभावशाली प्रयोग है। इसे कई जातकों से कराया गया व उचित परिणाम सामने आये उनकी विद्या अध्ययन की समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हुईं वह आज अच्छी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। कुछ लोग तो विदेश जाकर अध्ययन कर रहे हैं।
- ब्राह्मी का रस, श्वेत बच का कपिला गौ का घृत इन तीनों को मिलाकर (सम मात्रा में) कांसे की थाली में फैलाकर शरद पूर्णिमा की रात्रि में रखें तथा उसके ऊपर अष्टगंध से ‘‘ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं वाग्वादिनी स्वाहा’’ मंत्र लिखें व रातभर चंद्रमा के प्रकाश उस थाली को एक ऊंचे लकड़ी के पाटे पर रखें तत्पश्चात नित्य प्रति प्रातःकाल इसका सेवन करने से विद्या व बुद्धि का तीव्र विकास होगा।
- रविवार के पुष्य नक्षत्र में ब्राह्मी, शतावर, शंखपुष्पी, आराक्षारा (अपामार्ग), जावित्री, केसर, मालकांगनी, चित्रकमूल व मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर प्रातःकाल अदरक के रस के साथ 21 दिन तक सेवन करने से बुद्धि का विकास होता है।
- साढ़े 5 रत्ती का आॅनिक्स चांदी में दाएं हाथ की अनामिका में तथा बाएं हाथ की अनामिका में तांबे का छल्ला शुक्ल पक्ष में किसी भी दिन बालक को धारण कराने से विद्या में उत्पन्न बाधाएं दूर होंगी। - शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को हनुमान मंदिर में एक झंडा चढ़ायंे उस पर रोली, कुमकुम या लाल चंदन से बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहुं क्लेश विकार लिख दें।
हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करें तथा एक कटोरी में जल में 11 किशमिश डाल दें तथा 1 माला प्रतिदिन ‘‘ऊँ हनुमते नम’’ मंत्र का जाप करें ऐसा 20 दिन करें तत्पश्चात उस जल को पीले और किशमिश खायें। लाभ प्राप्त होगा। - क्रिस्टल के बने कछुए को बालक के सम्मुख अध्ययन की मेज पर रखें साथ ही सफेद चंदन की बनी गणेश या सरस्वती की प्रतिमा भी रखें। बच्चे को पूर्व या उत्तर-पूर्व में रखना चाहिए। सभी रूकावटें धीरे-धीरे दूर होने लगेंगी।
- सवा 5 रत्ती का मोती और सवा 6 रत्ती का मूंगा चांदी की अंगूठी में जड़वाकर क्रमशः छोटी और अनामिका उंगली में धारण करायें। - एक हरा हकीक पत्थर हाथ में लेकर ‘‘ऊँ ऐं ऐं ऊँ’’ 51 बार उच्चारण कर लाल वस्त्र में बांधकर किसी भी मजार पर चढ़ा दें। उपरोक्त सभी प्रयोग शास्त्रों में विभिन्न तंत्र ग्रंथों में वर्णित है। इनमें से अधिकतर प्रयोग हमारे द्वारा कई जातकों को संपन्न कराये गये जिनका परिणाम एकदम सही व सटीक पाया गया है।
आज भी अपने बालक या बालिका को मेधावी बनाने, अच्छी विद्या प्राप्त कराने एवं विद्या में उत्पन्न बाधाओं को दूर करने के लिए अवश्य करें ताकि आपको व देश को अच्छे होनहार पढ़े लिखे युवक-युवतियां मिलें जो देश को पुनः सोने की चिड़िया बनाने में हमारे सहायक हों।