आपका स्वास्थ्य और अंकशास्त्र
आपका स्वास्थ्य और अंकशास्त्र

आपका स्वास्थ्य और अंकशास्त्र  

राजेंद्र शर्मा ‘राजेश्वर’
व्यूस : 16083 | जुलाई 2011

अंकशास्त्र की उपयोगिता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लक्षित होती है। जातक का स्वभाव, वाहन, मकान व लॉटरी के नंबर, कंपनी का चयन, मेलापक, शेयर बाजार आदि सभी में अंकों की उपयोगिता सर्वोपरि होती है। आपके मूलांक में ही वे सभी योग्यताएं, प्रभाव और स्वास्थ्य सन्निहित है जो आपका मार्गदर्शन करते हैं। यदि आप स्वस्थ हैं तो आशा है कि आप इस संसार में कुछ कर पाएंगे और यदि सदा बीमार ही रहते हैं

तो दवाईयां खाने या पड़े-पड़े कराहते रहने के अतिरिक्त और क्या करेंगे? (एक अरबी कहावत) यहां हम सर्वप्रथम स्वास्थ्य को इसलिए ले रहे हैं कि स्वास्थ्य मनुष्य की सबसे अमूल्य व महत्वपूर्ण धरोहर है। जिंदगी की हजारों सौगातें भी स्वास्थ्य की बराबरी नहीं कर सकती। आपकी जन्म तारीख तो आपको मालूम ही है। उसी को मूल अंक में परिवर्तित करें और देखें कि आपको क्या-क्या बीमारी हो सकती है और आपको उनसे किस प्रकार बचना है। आपके मूलांक में वे सभी गुप्त योग्यताऐं प्रभाव और स्वास्थ्य सन्निहित है, जिनका यदि आप ध्यान रखेंगे तो अस्वस्थ्य होने पर भी निम्नलिखित सुझावों की सहायता से आप अपना बचाव कर सकते हैं।

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मूलांक ज्ञात करने का तरीका यह है कि जैसे आपका जन्म किसी भी माह की 1, 10, 19, 28 तारीख को हुआ है तो आपका मूलांक 1 है। 2, 11, 20, 29 तारीख का मूलांक 2 है। 3, 12, 21, 30 तारीख का मूलांक 3 है। 4, 13, 22, 31 तारीख का मूलांक 4 है। 5, 14, 23 तारीख का मूलांक 5 है। 6, 15, 24 तारीख का मूलांक 6 है। 7, 16, 25 तारीख का मूलांक 7 है। 8, 17, 26 तारीख का मूलांक 8 है। 9, 18, 27 तारीख का मूलांक 9 है।

मूलांक 1: जिन व्यक्तियों का मूलांक 1 होता है वे किसी न किसी हृदय रोग से पीड़ित रहने की प्रवृत्ति होती है।

हृदय रोग प्रायः मूत्र रोग आदि से संबंधित रोगों द्वारा उत्पन्न हो जाता है। धड़कन तेज होना, रक्त का ठीक तरह से संचार न होना और बुढापे में रक्तचाप। उनको आंख की परेशानी हो सकती है, अतः समय-समय पर नजर का परीक्षण कराते रहना चाहिए। आधुनिक हृदय रोग चिकित्सा में रोग ग्रस्त व्यक्ति को आराम करने की सलाह दी जाती है,

परंतु यह रोग अधिकांशतः उन्हीं व्यक्तियों को होता है जो आरंभ से ही श्रमहीन कार्य करते हैं और अनेक कारणों से अपने शरीर को स्थूल बना लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों को निम्न निर्देशों का पालन अवश्य करें। इनसे वे लोग हृदय रोगों से बचे रहेंगे।

व्यायाम: सूर्य नमस्कार आसनों का क्रम से एक चक्र निम्न प्रकार करें। लेकिन हृदय रोग हो चुका है तो न करें।

व्रत: इन्हें रविवार का व्रत रखना चाहिए। भोजन एक समय करना चाहिए और नमक नहीं खाना चाहिए। हृदय रोगियों के लिए नमक वैसे भी ठीक नहीं होता। यदि वे नमक का त्याग कर दें तो और भी अच्छा है।

उपासना: इन लोगों का इष्ट सूर्य है। इन्हें पूर्व दिशा में उगते हुए सूर्य के दर्शन करने चाहिए और उसी की उपासना भी करना चाहिए।

जड़ी, बूटी व खाद्य पदार्थ: केसर, लौंग, संतरा, नीबू, खजूर, अदरक, जौ, शहद आदि। इन्हें शहद का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए।

अनुकूल रंग: इनके लिए सबसे उपयुक्त और अनुकूल रंग सुनहरी पीला या पीलापन लिए हुए भूरा होता है। अनेक ज्योतिषियों रंगों का विधान तो कर दिया परंतु वे यह भूल गये कि हर व्यक्ति समाज के अनुकूल ही कपड़े पहनेगा और पहनने भी चाहिए। पीले या सुनहरे रंग के कपड़े पहनकर कोई भी व्यक्ति बाजार में घूमना पसंद नही कर सकता। आपको अपनी पोशाक या परिधान उसी प्रकार के बनाने होंगे जो समाज में भद्दे अथवा अशोभनीय न समझे जाएं। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय यह है कि आप अपने घरों की दीवारों का रंग अपने अनुरूप रखें और वस्त्रों में अपने समान को हमेशा उसी रंग का रखें। यदि आप टाई पहनते हैं

तो उसमें सुनहरी धारियां हों। इससे आपकी पोशाक का मुख्य अंग आपके अनुकूल हो जाएंगे। 1 मूलांक वाली महिलाऐं सुनहरे पल्लू वाली साड़ी पहने तो वह आपके अनुकूल रहेगी। ब्लाउज भी सुनहरी धारी वाला या भूरे पीले रंग का पहने तो अच्छा रहेगा।

रत्न व धातु: माणिक्य आपका मुख्य रत्न है। इसे अंग्रेजी में रूबी कहा जाता है। धातुओं में स्वर्ण को प्राथमिकता देनी चाहिए। अंगूठी आदि भी स्वर्ण में ही बनवाकर पहननी चाहिए। सोने की अंगूठी में रत्न इस प्रकार जड़वायें कि वह आपकी त्वचा से स्पर्श करता रहे।

महत्वपूर्ण: जीवन के 19वें, 28वें, 37वें, 55वें, 64वें वर्ष में उनके स्वास्थ्य में अच्छा या बुरा कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन आएगा। अक्तूबर, दिसंबर तथा जनवरी में उन्हें स्वास्थ्य की ओर से सावधान रहना चाहिए और अधिक परिश्रम से बचना चाहिए। परेशानी के समय निम्न यंत्रों को अपने घर की दीवार पर या कागज पर अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार स्वर्ण, चांदी, तांबे के ऊपर अंकित कराकर हमेशा अपने पास रखें। आपकी परेशानी दूर होगी। अंकित करने के पश्चात यंत्र की पंचोपचार पूजा अवश्य करें।


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मूलांक 2: जिन व्यक्तियों का मूलांक 2 होता है वह

प्रायः पेट से संबंधित रोगों से पीड़ित रहते हैं।

इन्हें प्रायः अपच, गैस, अफरा, मंदाग्नि या अतिसार इत्यादि रोग ग्रसित कर सकते हैं। इन्हें चाहिए कि वे आरंभ से ही भले ही इन्हें कोई भी रोग न हो अपने खान-पान पर नियंत्रण रखना चाहिए। नियमित भोजन करें और सदैव भूख से कम भोजन करें।

व्यायाम: इस मूलांक वाले व्यक्तियों को योगसनों में मयूरासन, सर्वांगासन, उत्तानपादासन और पवनमुक्तासन का नियमित व्यायाम करना चाहिए। भले ही दस मिनट के लिए करें। इन्हें चाहिए कि रात का खाना दिन टलने के साथ ही कर लेना चािहए, जिससे अच्छी नींद आएगी और भोजन से रस बनने में मदद मिलेगी। सूर्य नमस्कार भी अति उत्तम आसन है। रात को ऐसे पदार्थों का सेवन करें जिनसे गैस बनती हो।

व्रत: ऐसे व्यक्तियों को सोमवार का व्रत करना चाहिए। साथ ही पूर्णिमा एवं प्रदोषत व्रत भी रखें।

उपासना: आपके आराध्यदेव श्री शंकर जी है। प्रतिदिन घर में या मंदिर शिवजी का पूजन करें तथा शिव स्तोत्र, शिव चालिसा का पाठ करना चाहिए।

जड़ी बूटी व खाद्य पदार्थ: आपके लिए प्रमुख खाद्य पदार्थ है गोभी, शलजम, खीरा, खबूजा, अलसी इत्यादि।

अनुकूल रंग: हल्का हरा रंग आपके लिए उपयुक्त है। काले और अत्यधिक गहरे रंगों से बचना चाहिए तथा हल्के हरे रंग का रूमाल सदा अपनी जेब में रखना चाहिए। घर के पर्दे, सोफे, आदि हरे रंग के ही रखें। घर में चार-छह गमले भी रखें जिनमें हरे पौधे लहलहाते रहें।

रत्न व धातु: आपके लिए सर्वाधिक लाभकारी रत्न मोती है। धातु के रूप में चांदी आवश्यक है। पुरूष चांदी में मोती जड़वाकर पहनें व महिलाएं नाक में छोटे-छोटे मोती जड़वाकर पहने तो अप्रत्याशित लाभ होगा।

महत्वपूर्ण: आपके जीवन के 20,25,29,43,47,52वें तथा 65वें वर्ष में स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा। जनवरी, फरवरी तथा जुलाई में आपको रोगों तथा अधक परिश्रम से बचकर रहना चाहिए। मूलांक 1 में बताई गई विधि के अनुसार परेशानी के समय निम्न यंत्रों का उपयोग अवश्य करें।

मुलांक 3: इस अंक के व्यक्तियों को स्नायु-संस्थान निर्बल होने से हड्डियों में दर्द और थकान की शिकायत रहेगी। चर्म रोग की भी संभावना है।

व्यायाम: इन व्यक्तियों को शीर्षासन, धनुरासन एवं सूर्य नमस्कार इत्यादि योगासनों का अभ्यास करना चाहिए। यदि योगासनों से अथवा वैसे ही अधिक थकान महसूस करे तो शवासन भी करें। यदि आप शवासन या उसी प्रकार के अन्य योगासनों आदि की सही प्रक्रिया जान लेंगे तो आपको थकान की शिकायत से सदा के लिए छुटकारा प्राप्त हो जाएगा।

व्रत: आपको पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। यदि बीमार हो तो गुरुवार को भोजन न करें।

उपासना: आपको श्री विष्णु की उपासना करना चाहिए। विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का जप करें तथा श्रीसत्यनारायण जी की कथा करें या करावें।

जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः चुकंदर, चैरी बेर, स्ट्राबेरी, सेब, शहतूत, नाशपाती, जैतून, अनार, अनानास, अंगूर, केसर, लौंग, बादाम, अंजीर व गेहूं इत्यादि पदार्थ आपको अनुकूल रहेंगे।

अनुकूल रंग: आपको पीला रंग सर्वथा अनुकूल है। रत्न व धातु: पुखराज आपके लिए सर्वश्रेष्ठ रत्न है। धातु स्वर्ण है। सवर्ण मुद्रिका में पुखराज जड़वाकर तर्जनी उंगली में पहनें।

महत्वपूर्ण: 12, 21, 39, 48 तथा 57वें वर्ण स्वास्थ्य में परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगे। दिसंबर, फरवरी, जून तथा सितंबर में स्वास्थ्य के प्रति विशेष सावधान रहना चाहिए तथा अधिक परिश्रम से बचना चाहिए। वर्णित विधि के अनुसार निम्न यंत्र धारण करें व परेशानियों से छुटकारा पायें।


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मूलांक 4ः इस मूलांक के व्यक्ति

प्रायः रक्त की कमी से पीड़ित रहते हैं, जिसे अंग्रेजी में एनीमिया कहते हैं तथा रहस्यमय रोगों से ग्रस्त होने की संभावना है जिनका निदान कठिन होगा। वे न्यूनाधिक उदासीपन, रक्ताल्पता तथा सिर एवं कमर दर्द रहेंगे। इन्हें विद्युत चिकित्सा तथा सम्मेहन विद्या से लाभ होगा। थोड़ा सा ही बीमार होने पर रक्त की भी कष्ट रहेगा। इसलिए इन लोगों को भोजन में ऐसे तत्वों का समावेश रखना चाहिए जिनमें लौह तत्व प्रधान हो।

व्यायाम: यह व्यक्ति आरंभ से ही कुछ योगासन करते रहेंगे तो उन्हें रक्ताल्पता का कष्ट ही नहीं होगा। सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, सर्वांगासन तथा श्वसासन करना चाहिए। यदि कोई से भी दो आसन करने के पश्चात वे लोग शीर्षासन को सही ढंग से प्रतिदिन नियमपूर्वक पांच मिनट भी कर लेंगे तो इन्हें कभी भी रक्त की कमी अथवा उसके अशुद्ध होने की शिकायत नहीं होगी।

व्रत: इन्हें सोमवार और गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। गणेश चतुर्थी का व्रत समस्त प्रकार से शुभ रहेगा।

उपासना: इन्हें श्रीगणेश भगवान की उपासना करना चाहिए। घर में उनकी प्रतिमा या चित्र भी रख सकते हैं। श्रीगणेश जी का उपासना से धन-धान्य की कमी नहीं रहेगा। नारदपुराणोक्त संकष्टनाशक श्री गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ करें।

जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः हरी सब्जियों का प्रयोग अत्यधिक करें जैसे पालक, लौकी, तोरई मेथी, इत्यादि। नशीले पदार्थ व अत्यधिक मसालेदार पदार्थों का सेवन से बचना चाहिए।

अनुकूल रंग: चमकदार नीला रंग इनके लिए अनुकूल है। टाई भी इसी रंग की पहनें या नीले रंग का रूमाल तो अवश्य हमेशा अपने पास रखना चाहिए।

रत्न व धातु: आपके लिए सौभाग्यवर्धक रत्न नीलम है। नीलम अनुकूल न हो तो गोमेद धारण करें तो धन धान्य की कमी कभी नहीं रहेगी। नीलम या गोमेद पंच धातु की अंगूठी में मध्यमा उंगली में धारण करें।

महत्वपूर्ण: 13, 22, 31, 40, 49 और 58वां वर्ष स्वास्थ्य में परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहेंगे। जनवरी, फरवरी, जुलाई, अगस्त व सितंबर माह में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें व अत्यधिक परिश्रम से बचें। वर्णित विधि अनुसार निम्न यंत्रों का प्रयोग करें।

मूलांक 5ः इस अंक वाले व्यक्ति

प्रायः सर्दी जुकाम व फ्लू इत्यादि से पीड़ित रहते हैं। इन्हें नर्वस ब्रेक डाउन का भी भय बना रहता है। थका लेने वाली प्रवृति हेती है। वे मन से बहुत अधिक सोचतेहैं और स्नायविक रोगों तथा अनिद्रा से ग्रस्त हो जाते हैं। निद्रा, विश्राम और शांति इनके लिए सर्वोत्तम औषधियां है।

व्यायाम: इनके लिए शवासन ठीक रहेगा। यदि नजला जुकाम रहता है तो जलनेति आदि हठयोग की क्रियाऐं करनी चाहिए। नवर्स टेंशन रहता है तो शवासन करें।

व्रत: इन लोगों को पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। इसके साथ श्री सत्यनारायण कथा करें या करावें।

उपासना: इनके प्रधान देवता श्री लक्ष्मीनारायण भगवान है। इनकी पूजा करना चाहिए और उन्हीं से संबंधित श्रीयंत्र का पाठ करना चाहिए।

जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः गाजर, जौ व सूखे मेवे इत्यादि है। महत्वपूर्ण: 14, 23, 41 तथा 50वां वर्ष स्वास्थ्य परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगे। जून, सितंबर तथा दिसंबर से स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए कठिन परिश्रम से बचना चाहिए।

अनुकूल रंग: इसके लिए हरा बहुत ही अनुकूल और सौभाग्यवर्धक है। वैसे पेस्टल कलर भी अनुकूल रहेंगे।

रत्न व धातु: पन्ना धारण करना श्रेष्ठ है। पन्ना हमेशा स्वर्ण धातु में ही धारण करें।


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मूलांक 6ः इस अंक वाले को गले, नाक और फेफडे़ के ऊपरी हिस्से के रोगों से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।

साधारणतः इनका शरीर गठीला होता है। विशेषकर खुल वातावरण में या देहात के रहने वालों का। यूं तो आजकल फेफड़ों से संबंधित तपेदिक रोगों का इलाज साधारण बात हो गयी है। परंतु कुछ अन्य रोगों का संबंध भी फेफड़ों से है।

मूलतः यह कामवासना का प्रधान अंक है। इन्हें इस प्रकार के रोगों के होने का भी भय बना रहता है। े

व्यायाम: इन व्यक्तियों को प्रायः स्वच्छ एवं शुद्ध वायु में दीर्घ श्वांस लेना चाहिए। यदि यह प्रणायाम की सरल प्रक्रिया सीख लें तो इनका स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहेगा। प्राणायाम के साथ शलभासन करना भी अधिक उपयोगी रहेगा। व्रत: इन्हें शुक्रवार का व्रत करना चािहए। महिलाऐं मां संतोषी का व्रत करें।

उपासना: इनके प्रधान देवता श्री कतिवीर्याजुन हैं। अतः इन व्यक्तियों को इनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः इनके लिए सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ है दालें, मूली, खरबूजा, अनार, सेब, नाशपाती, बादाम, अंजीर व अखरोट इत्यादि है।

अनुकूल रंग: सभी प्रकार के हल्के नीले रंग इनके लिए अनुकूल है। गुलाबी रंग भी अच्छा है। परंतु गहरे रंग कभी भी नहीं पहनना चाहिए।

रत्न व धातु: इनका रत्न हीरा व धातु चांदी या प्लैटिनम में ही धारण करना चाहिए। महत्वपूर्ण: 15, 24, 42, 51 तथा 60वें वर्ष स्वास्थ्य परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। मई, अक्तूबर, नवंबर में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए कठिन परिश्रम से बचना चाहिए।

मूलांक 7ः इस अंक वाले को प्रायः फोड़े-फुन्सी या अन्य प्रकार के चर्म रोग होनेकी संभावना रहती है। इस रोग से संबंधित शिकायत बनी ही रहेगी। अन्यों के अपेक्षा यह चिंता तथा चिढ़न से अधिक शीघ्र प्रभावी होते हैं। जब तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहे वे कितना भी कार्य कर सकते हैं। किंतु परिस्थितियों की तथा व्यक्तियों की चिंताऐ उन्हें घेर लेने पर वे ऐसी-ऐसी बातें सोचने लगते हैं जो वस्तु स्थिति से कहीं बदतर है।

वे शीघ्र निराश तथा उदास हो जाते हैं। वे अपने वातावरण के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। अपने प्रशंसकों के लिए कोई भी दायित्व प्रसन्नता से अपने ऊपर ले लेते हैं। अपनी रुचि का कार्य करने में असामान्य रूप से चेतन रहते हैं किंतु वे भौतिक के बजाय मानसिक रूप से अधिक सबल होते हैं। इनका शरीर दुबला-पतला होता है और वे अपनी सामथ्र्य से कहीं अधिक कार्य करने का प्रयास करते हैं।

इनकी त्वचा विशेष कोमल होती है। जरा सी भी खरोंच इन्हें परेशान कर देती है। अथवा पसीने के संबंध में उन्हें कोई विचित्र बात हो सकती है। 

व्यायाम: चर्म रोगों से बचाव हेतु इन्हें हठ योग की शंख प्रक्षालन विधि का अभ्यास करना चाहिए और यदा-कदा इसकी प्रक्रिया करते रहने चाहिए। सूर्य नमस्कार भी इस प्रकार के रोगों से बचने की सरल प्रक्रिया है।

व्रत: इन लोगों को मंगलवार के व्रत रखना चाहिए और हनुमान जी के दर्शन करना चाहिए।

उपासना: श्रीनृसिंह भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इनकी उपासना से इस मूलांक वालों के सारे कष्ट दूर होंगे तथा धन धान्य की वृद्धि होगी।

जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः गोभी, खीरा, अलसी, मशरूम, सेब, अंगूर व फलों का रस इत्यादि इन्हें सेवन करना लाभकारी रहेगा।

अनुकूल रंग: सफेद, हल्का हरा, हल्का पीला रंग अनुकूल व शुभ है। रत्न व धातु: इन्हें लहसुनिया सौभाग्यवर्धक रहता है। जिसे स्वर्ण में जड़वाकर पहनें।

महत्वपूर्ण: 7, 16, 25, 34, 43, 52 तथा 61वें वर्ष स्वास्थ्य परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। जनवरी, फरवरी, जुलाई व अगस्त में स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें।


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मूलांक 8ः इस मूलांक के व्यक्ति जिगर से संबंधित रोग लगे रहते हैं। वित्त तथा आंतों की परेशानियों से ग्रस्त हो सकते हैं। इन्हें सिरदर्द तथा गठिया रोग की भी प्रवृत्ति होत है। लीवर खराब होने से अन्य बीमारियां भी हो सकती है। इसलिए यथासंभव इन रोगों से बचने का प्रयत्न करना चाहिए।

व्यायाम: इन्हें सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, धनुरासन, हलासन और शीर्षासन बहुत उपयुक्त हैं इन आसनों की यह विशेषता है कि इनसे जहां लीवर से संबंधित रोग दूर होंगे साथ ही शरीर भी सुदृढ होकर रोग प्रतिरोधक शक्ति से भरपूर होगा।

व्रत: शनिवार का व्रत उपयोगी रहेगा। भोजन एक समय करें व खटाई व नमक का सेवन न करें।

उपासना: श्री शनिदेव की उपासना करें। तेल कपड़ा तथा काले तिलों का दान करें।

जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः मांस व घी से बच कर रहें। यथासंभव ताजे फल साग सब्जियों का सेवन करना चाहिए।

अनुकूल रंग: काला। काले रंग की पैंट इत्यादि तो प्रायः पहनी जाती है। टाई भी काली धारियों की पहनेंगे तो अच्छा रहेगा। घर से सोफे के कुशन आदि भी काली धारी वाले हो सकते हैं।

रत्न व धातु: रत्न नीलम है। इसे लौह की अंगूठी में जड़वाकर पहनें।

महत्वपूर्ण: 17, 26, 35, 44, 53 तथा 62वें वर्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहेंगे। दिसंबर, जनवरी, फरवरी तथा जुलाई में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। मूलांक 9ः इन अंक वालों को न्यूनाधिक सभी प्रकार के ज्वर, खसरा, चेचक, चर्म रोग तथा नासारन्ध्र से संबंधित जुकाम आदि रोगों से पीड़ित हो सकते हैं। इन्हें चाहिए कि वे इन रोगों से बचाव रखने का भरपूर प्रयत्न करें।

व्यायाम: यदि जुकाम आदि नासारन्ध्र से संबंधित रोग हो तो इन्हें जलनेति आदि हठयोग की क्रियाऐं करनी चाहिए। इससे जहां इनके जुकाम की शिकायत हमेशा के लिए दूर होगी वहीं जुकाम के प्रभाव से होने वाले रोग समय से पूर्व बालों का सफेद होना या नेत्र ज्योति क्षीण होना भी नहीं होंगे। इन्हें प्राणायाम दीर्घ श्वासोच्छवास का भी अभ्यास करना चाहिए। इससे चेहरे पर आभा उत्पन्न होगी। सूर्य नमस्कार की क्रिया भी लाभदायी है।

व्रत: इन लोगों को मंगलवार का उपवास करना चाहिए व भोजन से पूर्व श्रीहनुमान जी महराज के दर्शन करना चाहिए।

उपासना: इन्हें श्री हनुमान जी को ईष्ट मानकर इनकी आराधना करने के साथ हनुमानाष्टक हनुमान चालीसा व बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।

जड़ी-बूटी व खाद्य पदार्थः गरिष्ठ भोजन तथा मदिरापान से हमेशा बच कर रहें। प्याज, लहसुन, सरसों, अदरक, मिर्च इत्यादि का सेवन उचित रहेगा।

अनुकूल रंग: लाल। लाल रंग का रूमाल हमेशा अपने पास रखें तथा इसी रग का अधिकाधिक प्रयोग करें। रत्न व धातु: मूंगा। स्वर्ण या तांबे की अंगूठी में जड़वाकर पहनें। महत्वपूर्ण: 9, 18, 27, 36, 45 तथा 63वें वर्ष स्वास्थ्य की परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अप्रैल, मई, अक्तूबर व नवंबर में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें।


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