यदि आप कुछ दशक पहले का विचार करें तो पता चलेगा कि पहले लोग कार्यों में बेहद व्यस्त रहते थे,मेहनत अधिक करते थे और यदि ऐसे में कोई मोटा हो जाता तो कहते थे कि इसके पास तो लक्ष्मी की कृपा है। यह तो सुखी है क्योंकि उस समय कुछ ही लोग मोटे होते थे लेकिन आज वर्तमान में सब विपरीत हो चुका है। आज अधिकतर कार्यों को मशीनों द्वारा कर लिया जाता है और शरीर वह मेहनत नहीं कर पाता सो मोटापे का प्रकोप बढ़ने लगता है और मोटापे के साथ-साथ अन्य बीमारियां भी साथ आने लगती हैं। ऐसा भी नहीं है कि मोटापे का कारण हमेशा शरीर का कार्य कम करना ही है, मोटापे के अन्य कारण भी हो सकते हंै।
ज्योतिष में मोटापे का संबंध देह से है यानी लग्न स्थान से, अतः देह के लिए व मोटापे के लिए लग्नेश व लग्न पर प्रभाव काफी हद तक जिम्मेदार होता है। वैसे ज्योतिष में रोगों की पहचान के लिए छठे, आठवें भाव का विचार किया जाता है लेकिन विषय लेख मोटापा है और मोटापे या शरीर का विचार लग्न व लग्न स्वामी की स्थिति अनुसार किया जाता है। लग्नाधिपो वा जीवो वा शुक्रो यदि केंद्रये। तस्य पुत्रस्य दीर्घायुः धनवान राजवल्लभः।। यानी लग्न का स्वामी, बृहस्पति या शुक्र केंद्र स्थान में, शुभ प्रभाव में हो तो ऐसे योग वाले व्यक्ति का शरीर मोटापे से रहित, स्वस्थ व सुखी होता है और लंबी आयु होती है और उसके पुत्रों की आयु भी लम्बी होती है। इसके अतिरिक्त केंद्र त्रिकोण भवनेषु न यस्या पापालग्नाधिपस्सगुरू,चतुरष्टमस्थः , भुक्तवा सुखानि विविधानि च पूण्य कर्म जीवेतु वर्ष शतमेव विमुक्तरोगः। यानी यदि केंद्र और त्रिकोण पाप रहित हो और लग्नाधिपति चतुर्थ भाव में हो और बृहस्पति अष्टम भाव में हो तो ऐसे योग वाले व्यक्ति मोटापा रहित,रोग रहित रहते हंै।
लग्नेशे चरराशिस्थे शुभग्रह निरीक्षिते। कीर्तिश्रीमान् महायोगी देहपुष्टिसमन्वितः।। यानी लग्नाधिपति चर राशि में हो, शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति खूब मोटा-ताजा, पहलवान जैसा होता है। यदा भवेत प×चघटी विलग्ने शुभं यदादेहकृशत्वमाहुः । शुष्केखगे लग्नते विलग्ने शुष्केन ेटेन निरीक्षितेः।। यानी लग्न की पांच घटी के अन्दर जन्म होने पर व्यक्ति भले ही सुखी हो परंतु अपनी देह से वे निरंतर दुखी रहते हैं। यदि चंद्रमा पापी ग्रहों के नक्षत्र में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति मध्यम आयु तक निश्चय ही मोटापे का शिकार बनता है।
यदि व्यक्ति शूद्र वर्ण में जन्मे तो आलसी स्वभाव के कारण 30 वर्ष की आयु उपरांत मोटापे का शिकार होता है। लग्न में राहु की स्थिति या लग्न पर दृष्टि व्यक्ति को मध्य आयु उपरांत मोटापे से पीड़ित करती है, उसका शरीर भी किसी न किसी पीड़ा का शिकार अवश्य होता है। यदि लग्न स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में, पाप ग्रह के प्रभाव में हो तो ऐसे योग वाला व्यक्ति 30 वर्ष की आयु के उपरांत मोटापे से युक्त हो विभिन्न रोगों से पीड़ित रहता है।
यदि लग्नेश पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक मध्यायु पश्चात मोटापे से ग्रसित हो अपने स्वास्थ्य से पीड़ित रहता है। यदि लग्नाधिपति का नवांश स्वामी पाप प्रभाव में हो तो जातक मध्यायु पश्चात मोटापे से पीड़ित, रोगों से पीड़ित रहता है। लग्नपति को प्रबल करना व शरीर द्वारा नित्य विभिन्न व्यायाम करना व अपने भोजन पर नियंत्रण करना ही मोटापे से निदान दिला सकता है। नित्य व्यायाम और भोजन नियंत्रण मोटापे से ही नहीं विभिन्न रोगों से भी बचाता है। अतः इन्हें जीवनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है, और स्वस्थ मन से ही जीवन विकास संभव है, इसलिए कहा गया है कि स्वास्थ्य ही धन है।