एक स्वस्थ मनुष्य जो साधारण शारीरिक श्रम भी करता है तो दिन में 400 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 75-100 ग्राम के लगभग प्रोटीन और इतना ही फैट लेता है। इस भोजन से लगभग ढाई-तीन हजार के लगभग कैलोरीज वह ले लेता है। परंतु यदि वही मनुष्य सदा सवारी में चलने लगे, पैदल चले ही नहीं, दूसरा कोई शारीरिक श्रम भी न करे जैसे कि प्रायः धनाढ्य व्यक्ति करते हैं तो इतना ही भोजन उनके लिए मेदोवर्धक हो जाता है।
उदाहरण के लिए यदि कोई मनुष्य 1 औंस फैट रोज ही जरूरत से ज्यादा लेता रहे तो एक वर्ष में उसका भार 20 पौंड बढ़ सकता है। मध्य आयु के बाद अधिकतर लोग कार्बोहाइड्रेट और फैट को अधिक मात्रा में लेते हैं और ये ही मेद को अधिक बढ़ाने वाले होते हैं। स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा अधिक आरामपसंद और आसनशील होती हैं अतः मेदो वृद्धि का रोग उनमें पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है।
- पुरुषों में मेदो वृद्धि धड़ में होती है और स्त्रियों में मेदो वृद्धि विशेषतः टांगों तथा धड़ के निचले भाग में होती है। इस मेदो वृद्धि की गणना शरीर भार सूचकांक ठ ड प् से की जा सकती है। BMI = Weight (Kg) __________________ (height in Metre)2 जब यह अनुपात 25 किलोग्राम/मी2 और 30 किलोग्राम/मी2 के बीच हो तो मोटापा पूर्व स्थिति में और जब यह 30 किलोग्राम /मी2 से अधिक हो तो मोटापा कहा जाता है। आयुर्वेद के मतानुसार व्यायाम न करने से, दिन में सोने से, कफवर्धक आहार लेने से व्यक्ति में मधुर अन्न रस अधिक मात्र्रा में बनता है और उस रस से मेद धातु की वृद्धि होती है और मेद के कारण मार्ग रूकने पर अन्य धातुओं का पोषण नहीं हो पाता, केवल मेद ही बढ़ता रहता है।
आधुनिक मतानुसार अधस्त्वचीय और गहरे उत्तकों में अधिक मात्रा में वसा के संचित होने को ओबैसिटी (मेदो वृद्धि) कहते हैं। भोजन द्वारा प्राप्त ऊर्जा (कैलोरी) का खर्च करने की अपेक्षा अधिक मात्रा में ग्रहण करने से यह रोग होता है। इसके कारणों को दो भागो में विभक्त किया जाता है। बाह्य कारण: अधिक कैलोरी युक्त भोजन करना, कम शारीरिक कार्य करना तथा आरामतलब जिंदगी व्यतीत करना।
2. आंतरिक कारण - इसमें अंतःस्रावी ग्रंथियों में कमी आ जाती है भले ही रोगी कम कैलोरी युक्त भोजन ले रहा हो। कुछ लोगों में बाह्य व आंतरिक दोनों के कारण उपस्थित रहते हैं और यह रोग प्रायः वंशानुगत होता है। लक्षण: स्थूल व्यक्ति सभी दैनिक क्रियाओं में असमर्थ हो जाता है। क्षुद्र श्वांस (हांफना) से पीड़ित रहता है अर्थात जरा सी मेहनत करने पर उसकी सांस फूलने लगती है। तृषा, मोह तथा अतिनिद्रा से युक्त व्यक्ति दुर्गन्धित पसीने से पीड़ित रहता है तथा अल्प शक्ति से युक्त पुरुष मैथुन कर्म में असमर्थ हो जाता है। इस प्रकार के व्यक्तियों के उदर व अस्थियों पर मेद चढ़ जाता है
जिसके कारण ऐसे व्यक्तियों का पेट बड़ा हो जाता है। मेद के बढ़ने के कारण कोष्ठ में वायु घूमती हुई जठराग्नि को बढ़ा देती है जो आहार का शीघ्र पाचन कराकर रोगी की भूख बढ़ा देती है। मेदो वृद्धि के स्वास्थ्य पर प्रभाव
1. उच्च रक्तचाप: स्थूल व्यक्तियों के वसीय उत्तकों में रक्त का आयतन एवं संचार बढ़ जाता है जिसके कारण हृदय का कार्य भार बढ़ जाता है। इससे धमनियों की दीवारों पर रक्त का दबाव बढ़ जाता है जिससे व्यक्ति का रक्त दाब या रक्त चाप बढ़ जाता है। उच्च रक्त दाब सोडियम के लेबल के बढ़ने एवं धमनियों के मोटे होने से भी बढ़ जाता है।
2. मधुमेह - मेदो वृद्धि एक बड़ा कारण है टाइप-2 मधुमेह का जो बच्चों में पायी जाती है। इसमें शरीर बढ़ी हुई रक्त शर्करा को कम करने के लिए इन्सुलिन की मात्रा को बढ़ाता है। परिणामस्वरूप इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है और रक्त का शर्करा लेवल बढ़ जाता है। इस कारण एक मध्यम मेदो वृद्धि के व्यक्ति में भी मधुमेह रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। इस रोग के होने की प्रबलता और बढ़ जाती है यदि उसके माता-पिता में से एक में भी मधुमेह का इतिहास रहा हो।
3. धमनी काठिन्य: यह रोग मोटे व्यक्तियों में अधिकांशतः पाया जाता है। इस रोग में धमनियांे में वसा का जमाव हो जाता है जिसके कारण धमनियां पतली हो जाती हैं। पतली या संकुचित धमनियों में रक्त का संचार कम हो जाता है जिसके कारण हृदय शूल और दिल का दौरा पड़ने जैसे रोग हो जाते हैं।
4. खर्राटे भरना: ़स्लीप एप्निया या खर्राटे भरना सामान्यतः स्थूल व्यक्तियों में देखी जाती है। यह थोड़े समय के लिए श्वांस को रोक देता है, जिससे व्यक्ति रात में सो नहीं पाता है और इसी कारण वह व्यक्ति तेज खर्राटे भरता है और दिन भर सोता रहता है।
5. मानसिक सामाजिक प्रभाव: मेदो वृद्धि व्यक्तियों पर अक्सर उनकी स्थिति के लिए आरोप लगाये जाते हैं कि वे सुस्त एवं कमजोर इच्छाशक्ति वाले होते हैं। सामाजिक तौर पर उनका उपहास उड़ाया जाता है जिससे उनमें अवसाद (डिप्रेशन) पैदा हो जाता है।
चिकित्सा: इस रोग की प्रतिरोधक चिकित्सा ही आसान है। इस रोग के बढ़ जाने पर इसकी चिकित्सा करना कठिन होता है। जब भी शरीर भारी होने लगे तभी उसका उपाय करना चाहिये। शरीर में ली जाने वाली कैलोरीज को कम कर देना चाहिये तथा नित्य प्रतिदिन कुछ न कुछ व्यायाम या शारीरिक श्रम करना आरंभ कर देना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को प्रोटीन तथा साग सब्जियों और फलों को मुख्यतः आहार के रूप में ग्रहण करना चाहिए। अधिक कैलोरी वाले भोजनों का जैसे खांड, मिठाई, घी, केक, चाॅकलेट, पेस्ट्री, आलू, चावल आदि का परहेज रखना चाहिए। रक्त में कोलेस्ट्राॅल की मात्रा 200 मि.लि./प्र.स. से नीचे रखना चाहिए क्योंकि 250 मिली./प्रस. से ऊपर हो जाने से हार्ट अटैक की आशंका रहती है। आहार चिकित्सा: मेदो वृद्धि रोग के बढ़ जाने पर स्वल्पाहार चिकित्सा ही इसकी प्रधान चिकित्सा है अर्थात अपने आदर्श भार के लिए जितनी कैलोरी चाहिए हो उससे कुछ कम कैलोरी ली जाए तो शरीर हल्का हो जाता है।
इससे कितना भार कम होता है इसका फाॅर्मूला यह है कि आवश्यक कैलोरी में से जितनी कैलोरी ली जा रही हो उसे घटाकर उसे 4000 से भाग दे दें, जो भागफल आए उतने पौंड दैनिक भार की कमी हो जाती है। उदाहरण के लिए आदर्श भार के अनुसार 2500 कैलोरी आवश्यक है और रोगी केवल 1500 कैलोरी रोज लेने लगे तो प्रतिदिन उसका भार कम हो जाता है अर्थात सप्ताह में लगभग 1-1) पौंड भार कम होने लगता है।
साधारणतः प्रति किलो भार के पीछे 35 कैलोरी का भोजन दिया जाता है। यदि उसके स्थान पर 20 कैलोरी का आहार ही दिया जाने लगे तो रोगी की स्थूलता कम होने लगती है। इस प्रकार यदि आदर्श भार 60 किलोग्राम रोगी का हो तो उसे 2500-3000 कैलोरी के स्थान पर प्रतिदिन 1500 कैलोरी के लगभग का आहार ही मिलना चाहिए जिसमें प्रोटीन आहार उसे अधिक भी दिया जा सकता है अर्थात प्रतिकिलो के पीछे 1 से 1) ग्राम दिया जा सकता है।
इस प्रकार उसे 70-100 ग्राम के लगभग प्रोटीन आहार रोज दिया जा सकता है। कार्बोहाइड्रेट भोजन उसे इससे कुछ ज्यादा अर्थात 125-150 ग्राम तक रोज दिया जा सकता है। फैट उसे प्रति किलो भार के बदले आधे ग्राम के लगभग अर्थात 30-35 ग्राम दैनिक दिया जा सकता है। इस प्रकार देने से उसे दैनिक 12-15 सौ कैलोरी का आहार रोज दिया जा सकता है। इससे सप्ताह में उसका 1-1) पौंड भार कम किया जा सकता है।
15 सौ कैलोरी भोजन के लिए प्रतिदिन रोगी को दिन भर में 1 पाॅइंट सपरेटा दूध, 4-5 गेहूं के साधारण खुश्क फुलके, 10 प्र.शकार्बोहइड्रेट वाली कोई सब्जी, आधा सेर तक, कोई मौसमी-संतरा आदि फल 1 पाव तक, तेल या घृत ) औंस तक दिये जा सकते हैं। चाय, काॅफी आदि भी दिये जा सकते हैं। नमक की मात्रा कम अर्थात 2-3 ग्राम तक होनी चाहिए। खांड के स्थान पर सैकरीन का प्रयोग करना चाहिए।
दिन में 2 बार भोजन के स्थान पर उसे चाहिए कि दिन भर में 5-6 बार स्वल्पाहार ले। उपवास चिकित्सा: जो रोगी उपवास रख सकता हो उसे 4-14 दिन का पूर्ण लंघन करा लिया जाए तो रोगी का 1) से 2 पौंड भार प्रतिदिन घट जाता है। रोगी को पहले दिन कुछ कष्ट होता है। बाद में रोगी की भूख स्वयं मर जाती है। उपवास के समय केवल जल या नींबू मिश्रित जल दिया जा सकता है।
उपवास के बाद भी रोगी को उपर्युक्त स्वल्पाहार पर रहना चाहिए या सप्ताह में एक दिन का पूर्ण लंघन करना चाहिए व्यायाम चिकित्सा व्यायाम या भ्रमण से अधिक कैलोरी खर्च होती है। उदाहरण के लिए 1 घंटे भ्रमण से 120-140 कैलोरी खर्च होती है। परंतु ) औंस फैट या एक छोटी रोटी से ये कैलोरी पूर्ण हो जाती है। अतः केवल व्यायाम से लाभ नहीं हो सकता। स्वल्पाहार चिकित्सा के साथ इससे लाभ हो सकता है। पर स्थूल रोगी एक तो विशेष किसी किसी व्यायाम को कर नहीं सकता। यदि वह व्यायाम कुछ करता भी है तो भूख के बढ़ जाने से उसके आहार के बढ़ जाने का भय रहता है। औषधि चिकित्सा: आयुर्वेद के अनुसार मेदो वृद्धि रोग कफ दोष के कारण होता है।
अतः कफ रोधक औषधियों का प्रयोग कर इस रोग की चिकित्सा निम्न योगों में से किसी का प्रयोग करके की जा सकती है:
1. प्रतिदिन एक गिलास गर्म पानी में नींबू अथवा शुद्ध मधु डालकर प्रातः काल पीने से एक वर्ष में सामान्य स्थूल रोग का नाश हो जाता है।
2. त्रिफला क्वाथ में मधु डालकर लंबे समय तक लेने से मोटापा दूर होता है।
3. बहुत अधिक स्थूल किंतु दुर्बल रोगियों को त्रिमूर्ति रस, निर्गुण्डी पत्र स्वरस व मधु से देने से रोग में लाभ होता है।
4. त्र्यूषणादि लौह या मेदोहर विडंगादि लौह- 125 से 250 उह मधु या गर्म पानी से सेवन करें। इसके साथ भोजनोत्तर तक्रारिष्ट यवक्षार या जम्वरिद्राव 15 से 20 उस की मात्रा में बराबर पानी मिलाकर प्रयोग करें। बाह्य परिमार्जन में हरीतकी चूर्ण का उद्वर्तन (मालिश) करें व महासुगंधित तेल का अभ्यंग करें।
5. त्र्यूषणादि लौह 250-500 उह सुबह रात भोजन से पूर्व दें। शतावरी मण्डूर या आरोग्य वर्धिनी 2 गोली भोजनोपरांत तथा सभी मेदोवर्धक पदार्थ व लवण का परित्याग करें। सप्रेटा दूध (बिना फैट वाला) का प्रयोग भी लाभप्रद है।
6. मेदोहर विडंगादि लौह 250 से 500 मि.ग्रा0 गौमूत्र के साथ देना लाभकर है।
7. Obenyl (Charak Pharma) की 2-2 गोली दिन में तीन बार गर्म पानी से लेने से लाभ होता है। 8. मेदोहर गुगुल (वैद्यनाथ) की 2-2 गोली सुबह-शाम गर्म पानी से लेने से लाभ होता है।