मोटापा आजकल संक्रामक रूप में फैल रहा है। इससे बच्चे व बड़े सभी प्रभावित हैं। इसका मुख्य कारण है फास्ट फूड और चाॅकलेट का अधिक सेवन तथा कम से कम शारीरिक श्रम करना जिससे अतिरिक्त कैलौरी धीरे-धीरे जमा होकर शरीर को मोटा करती है। आवागमन की सुविधाओं की सुलभता से हमारा पैदल चलना भी लगभग बंद हो गया है। मोटापा वैसे तो अधिक कष्टकारी नहीं होता, परंतु वजन बढ़ने से व्यक्ति आलसी हो जाता है और उसकी कार्यक्षमता घटती है।
साथ ही वह अन्य घातक रोगों जैसे - बी. पी., शूगर, हृदय रोग और घुटने व टांग में दर्द का कारण बनता है। मोटापा अधिक बढ़ने पर व्यक्ति निष्क्रिय हो जाता है। उदाहरण स्वरूप उ. प्र. के हेड कांस्टेबल, और मिश्र से स्ट्रेचर पर मुंबई ईलाज के लिए लाई गई एक महिला की खबर व उनके चित्र फरवरी, 2017 में समाचार पत्रों की सुर्खियां बने। मोटापा कम करने के लिए अस्पताल में रखकर व्यक्ति को दवा के साथ लंबे समय तक तरल पदार्थों का सेवन करवाते हैं।
कुछ मोटापा कम होने पर थोड़ा-थोड़ा कर प्रतिदिन एक घंटा चलवाते हैं। अतः अपनी दिनचर्या और खान-पान को नियंत्रित करके मोटापे से बचा जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र हमारे शरीर में होने वाले संभावित रोगों का सटीक पूर्वानुमान जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति से भली प्रकार देता है। जन्म कुंडली में लग्न राशि और उनसे षष्ठ (रोग) भाव की स्थिति और उन पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव (स्थिति व दृष्टि) व्यक्ति को बीमार बनाते हैं। मंगल, शनि, राहु व केतु पीड़ादायक रोग देते हैं, जबकि शुभ ग्रह कम कष्टकारी रोग देते हैं। पीड़ित कर्क राशि व चंद्रमा का, लग्न व षष्ठ भाव से संबंध होने से शरीर में जल तत्व का अनुपात अधिक बढ़ने से मोटापा बढ़ता है।
इसकी संभावना अधेड़ उम्र में अधिक होती है। बृहस्पति कफ प्रधान और चर्बी का कारक ग्रह है। उसके पीड़ित या निर्बल होने पर जातक अधिक भोजन करता है जिससे लिवर व पैनक्रियाज पर भार पड़ने से शरीर में शूगर और मोटापा होता है। बृहस्पति की लग्न व राशि (धनु, मीन) स्वतः ही पुष्ट और मांसल शरीर देती है। शुक्र ग्रह ग्रंथियों और हार्माेन बनने का कारक होता है। उसके पीड़ित होने पर थाॅयरायड ग्रंथि सही अनुपात में हार्माेन नहीं बनाती जिससे मोटापा बढ़ता है, जो युवतियों के लिए विशेष चिंता का कारण बन जाता है। कभी-कभी दवा के रिएक्शन से भी मोटापा बढ़ जाता है, जिसका कारण राहु ग्रह की कुंडली में अशुभ स्थिति और दुष्प्रभाव होता है।
चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र तीनों ग्रहों का कुंडली में निर्बल, पीड़ित और उनका लग्न तथा षष्ठ भाव से संबंध होने पर मोटापे के भीषण रूप धारण कर लेने पर शरीर बेडौल हो जाता है, जिसके फलस्वरूप कुछ युवक व युवतियों का विवाह भी नहीं हो पाता और वे दुःखी रहते हैं। पीड़ित या निर्बल चंद्रमा और बृहस्पति की युति या परस्पर केंद्र स्थिति, से बना दूषित ‘गजकेसरी योग’ सुख समृद्धि की बजाय मोटापा और वजन बढ़ाता है। लेखक के संज्ञान में आईं कुछ जन्मकुंडलियां पाठकों के अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं जो उपरोक्त सूत्रों को सत्यापित करती हैं: वक्री षष्ठेश बृहस्पति लग्न में राहु से पीड़ित है। चंद्रमा दशम भाव में शुक्र के साथ है तथा उन पर मंगल व केतु की अशुभ दृष्टि है। मंगल व केतु पर शनि की दृष्टि है।
जातक पेट व सिरदर्द से पीड़ित है। उसका वजन 75 किलो है। लग्नेश बुध अष्टम भाव में है। नीचस्थ चंद्रमा, वक्री बृहस्पति के साथ, तृतीय भाव (अष्टम से अष्टम) में है। तृतीय भाव पाप मध्य है। जातक का वजन 100 किलो है और वह डायबेटिक है। 15-11-2011 से साढ़ेसाती चल रही है। वक्री बृहस्पति और चंद्रमा सप्तम भाव में है। इनपर वक्री शनि व उसके साथ षष्ठेश मंगल की दृष्टि है। गजकेसरी योग दूषित है। जातक पेट, दांत और स्नायु रोग से पीड़ित है। उसका वजन 74 किलो है।
लग्नेश बुध द्वादश में राहु और सूर्य के साथ है, तथा उन पर षष्ठेश मंगल की दृष्टि है। जातिका के लग्न में नीचस्थ द्वितीयेश शुक्र, वक्री शनि की दृष्टि से पीड़ित है जिसके कारण उसे थायराॅयड ग्रंथि का रोग है। लग्नेश द्वादश भाव में सूर्य व राहु के साथ है जिससे उसके पिता का जल्दी निधन हो गया। बहुत इलाज के बाद भी स्वयं का वजन 80 किलो से नीचे नहीं आता। उसको बी.पी., शुगर और कंधों का दर्द भी काफी समय से है।
सप्तम भाव ‘पाप-मध्य’ है और सप्तमेश बृहस्पति वक्री शनि के साथ चतुर्थ भाव में है। उस पर मंगल व राहु की दृष्टि है। शनि की षष्ठ भाव स्थित केतु पर दृष्टि है जो चंद्रमा से द्वादश है। लग्न में नीचस्थ शुक्र और राहु, सूर्य और बुध (लग्नेश) की द्वादश भाव में स्थिति ने वैवाहिक सुख नहीं दिया। चंद्रमा, शुक्र और बृहस्पति की पीड़ित स्थिति ने उसका वजन भी बढ़ा दिया।