लक्ष्मी कृपा के ज्योतिषीय आधार
लक्ष्मी कृपा के ज्योतिषीय आधार

लक्ष्मी कृपा के ज्योतिषीय आधार  

राजेंद्र शर्मा ‘राजेश्वर’
व्यूस : 8653 | नवेम्बर 2013

लक्ष्मी प्राप्ति साधना, लक्ष्मी प्राप्ति प्रयोग व लक्ष्मी प्राप्ति पूजा करने के इच्छुक साधक लक्ष्मी कृपा के ज्योतिषीय आधार का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं एतदर्थ इस लेख में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। जिससे लक्ष्मी प्राप्ति साधना करने के इच्छुक साधकगण साधना के मुहूर्त के पीछे के वैज्ञानिक आधार को समझ सकेंगे व शुभ मुहूर्त का आश्रय लेकर लक्ष्मी प्राप्ति साधना के मार्ग पर निर्विघ्न अग्रसर होंगे।


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दीपावली महापर्व की परंपरा कब से प्रारंभ हुई है यह बताना व जानना प्रायः दुष्कर है इस दीपावली पर्व परंपरा का इतिहास अलग-अलग ढंग से प्राप्त होता है।

हमारी भारतीय संस्कृति वेद प्रधान है। वेदों को लेकर पौराणिक साहित्य में ब्रह्म की चर्चा हुई है। ब्रह्म का दूसरा नाम विद्या भी है। शाक्त संप्रदाय में इस ब्रह्म या विद्या की साधना के दस प्रधान मार्ग बताये गये हैं। यही दस मार्ग हैं- काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी एवं कमला। कमला को ही लौकिक जीवन में महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। पुराणों मंे समुद्र मंथन की कथा का विस्तार से उल्लेख हुआ है। महालक्ष्मी इसी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं।

ज्योतिष के अनुसार दीपावली पर्व कब मनाया जाता है? ग्रंथों में भी इसका विस्तार से विवेचन किया गया है।

माता महालक्ष्मी का प्राकट्य दिवस कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। तुला के सूर्य में चतुर्दशी या अमावस्या के दिन प्रदोष काल में मनुष्य दीप लेकर पितरों का आशीर्वाद लें, कन्या संक्रांति में पितृ श्राद्ध पक्ष होता है- तुला संक्रांति में पितृगण स्वस्थान में होते हैं। पितरों के प्रसन्न होने से देवगण प्रसन्न होते हैं और देवगणों के प्रसन्न होने पर धन का आगमन होता है।

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इस दिन सूर्य तुला राशि में और स्वाति नक्षत्र होने से चंद्र भी तुला राशि में होता है। चंद्र व सूर्य तुला राशि (एक ही राशि में) में होने से अमावस्या का योग भी बनाता है। इस अवसर पर भौतिक समृद्धि हेतु माता महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु पूजन किया जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से तुला राशि सूर्य की नीच राशि है और यह राशि शुक्र की है- काल पुरूष की कुंडली अनुसार शुक्र द्वितीय धन और सप्तम भाव का स्वामी है। हर मनुष्य की मूल प्रवृत्ति धन प्राप्ति की इच्छा है। शुक्र की राशि तुला में आत्मकारक सूर्य व मन के कारक चंद्र (चतुर्थेश व पंचमेश) की एक ही राशि में केंद्र और त्रिकोण संबंध से लक्ष्मी योग की सृष्टि होती है। नीचस्थ अपनी नीच राशि को पूर्ण दृष्टि से देखते हुए विपरीत राजयोग की रचना करते हुए स्वास्थ्य की वृद्धि करेगा। अतः दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के आगमन का विधान है। जब मां लक्ष्मी आ रही होती हैं तो उनका स्वागत व पूजन आवश्यक है।

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भारतीय ज्योतिष में मुहूर्त का विशेष महत्व है। महालक्ष्मी पूजा विधान में गोधूलि वेला, प्रदोष काल, महानिशा, स्थिर लग्न वृषभ एवं सिंह लग्न का विशेष महत्वपूर्ण मुहूर्त है। श्री एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए इस समय की गई महालक्ष्मी की पूजा-उपासना शीघ्र ही शुभ फलदायी होती है।

गोधूलि एवं प्रदोष काल में आत्म कारक सूर्य भाग्य भाव (नवम) में स्थित होता है तथा महानिशा काल में यही सूर्य विद्या-बुद्धि भाव (पंचम) में होता है। यही समय वह समय होता है जब भौतिक सुख-समृद्धि ज्ञान एवं बुद्धि के साथ होती है जो स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति में सहायक है। अब सिंह लग्न में पूजा-उपासना करना-तृतीय भाव में सूर्य-चंद्र की युति पराक्रम स्थान में होगी। राहु के नक्षत्र में तृतीय स्थान पराक्रम भाव में होने से सर्वबाधा निवारण योग की रचना करेगा क्योंकि स्वाति नक्षत्र राहु का नक्षत्र है। राहु तृतीय भाव में ऊच्च का होगा। सूर्य राहु से पीड़ित होकर विपरीत राज योग की रचना करेगा। इन्हीं ज्योतिषीय कारणों से दीपावली में सिंह लग्न को महत्ता दी जाती है। अर्ध रात्रि में जब-जब सिंह लग्न आता है उसी समय मां लक्ष्मी के आगमन का समय माना गया है। ब्रह्म पुराण के अनुसार अर्धरात्रि में लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ माना गया है। प्रदोष काल में ही दीपों की पंक्ति से घर सजाकर दीपमलिका मनाना चाहिए। शास्त्रों में दीपावली के इस भद्रा पर्व को त्रिरात्रिपर्व बताया गया है। महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती इन शक्तियों के पूजा उपासना के रूप में धन त्रयोदशी, रूपचतुर्दशी व दीपावली इन रात्रियों में अखंड दीपक जलाए जाते हैं। अपनी दरिद्रता दूर करने के लिए तीनों ही दिन मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए। जहां तक मां लक्ष्मी के पूजन का प्रश्न है, व्यापार और व्यवसाय के अनुसार ही पूजन के लग्न (मुहूर्त) का चयन करना चाहिए। सामान्य गृहस्थ, सेवाकर्मी, सौंदर्य प्रसाधन के निर्माता व विक्रेता, वस्त्र व्यवसायी, भवन निर्माण, गीत-संगीत व अभिनय से जुड़े व्यक्तियों को वृष लग्न में पूजन करना चाहिए। जो व्यवसायी कारखाने, कंप्यूटर, मेडिकल, मशीनरी इत्यादि का निर्माण व विक्रय करते हैं, संचालित करते हैं उन्हें सिंह लग्न में पूजन करना चाहिए।


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