बालक को पहले-पहल घर से बाहर भ्रमण कराने के निमित्त ले जाते समय यह संस्कार किया जाता है। साधारणतया इसका समय चैथा महीना है। इस संस्कार में सूर्य और किसी-किसी के मत में चंद्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। प्रतीत यह होता है कि बाहर अर्थात् ज्योति के सम्मुख निकालने में सावधानी बरतने की ओर ध्यान आकर्षित करना इस संस्कार का उद्देश्य है। कहीं देशांतर में ले जाने की शीघ्रता हो तो 12वें दिन ही यह संस्कार कर लेना चाहिए। शुभ मुहूर्त: ग्रंथों के आधार पर इस संस्कार के लिये सर्वोत्तम शुभ समय अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, पुनर्वसु, हस्त, अनुराधा, धनिष्ठा, श्रवण एवं रेवती नक्षत्र में से किसी नक्षत्र में एवं द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी तिथियों में से किसी तिथि को तथा रविवार, सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार में से कोई भी दिन इस संस्कार के लिये उचित रहता है।
विधि: संकल्प: संस्कार के दिन प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् बालक सहित मंगलद्रव्यों से स्नान कर शुभासन पर बैठ, आचमन-प्राणायाम कर देश-काल का कीत्र्तन करते हुए निम्न संकल्प पढ़ें:- मामास्य शिशोरायुरभिवृद्धि व्यवहारसिद्धिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं गृहान्निष्क्रमणं करिष्ये। तदङ्त्वेन गणपतिपूजनं स्वस्तिपुरायाहवाचनं, मातृपूजनं, (यथाशक्ति) नान्दीश्राद्धं च करिष्ये। सामान्य एवं सरल उपाय: जिस दिन आप निष्क्रमण संस्कार करें, उस दिन प्रातः सूर्योदयकाल में तांबे के पात्र में रोली, गुड़ व लाल पुष्प की पंखुड़ी मिश्रित कर सूर्यदेव को इस जल से अघ्र्य अर्पित कर प्रार्थना करें कि निष्क्रमण संस्कार में आमंत्रित होकर शिशु को आशीर्वाद प्रदान करें।
- संस्कार के भोजन में से सर्वप्रथम श्रीगणेशजी के लिये, फिर गाय के लिये, फिर सूर्यदेव के लिये और फिर अपने पितरों के नाम से भोजन की थाली अवश्य निकालें।
- इस दिन आप संस्कार के बाद लाल बैल को सवा किलो गेहूं तथा इतना ही गुड़ अवश्य खिलायें।
- संस्कार के बाद सूर्यास्तकाल में ढलते सूर्यदेव को प्रणाम करें तथा शिशु को आशीर्वाद प्रदान करने के लिये धन्यवाद दें।
- रात्रि में किसी भी मंदिर मंे एक तांबे के दीपक में शुद्ध घी भरकर प्रज्ज्वलित कर अर्पित करें।
- जिस भवन में आप यह संस्कार कर रहे हैं, उस भवन के पश्चिम कक्ष में रात्रि में कोई रोशनी अवश्य करें।
- यदि शिशु के दादा जीवित हों तो कोई लाल वस्त्र शिशु का हाथ लगवाकर उसके पिता को दिलवायें। फिर वह वस्त्र शिशु का पिता अपने पिता को उपहार में दे। इस उपाय से शिशु की आयु में वृद्धि होती है। यदि पिता के पिता जीवित न हों तो उसी अवस्था के किसी भी वृद्ध व्यक्ति को यह उपहार दिया जा सकता है।
- इस संस्कार के साथ ही शिशु का पिता यदि अपने पिता का पूजन कर कोई वस्त्र उपहार में दे तो भी पिता व शिशु को सूर्यदेव का स्पष्ट आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- इस संस्कार के बाद आने वाले तीन रविवार को अवश्य ही सूर्यदेव को जल से अघ्र्य देना चाहिये तथा लाल बैल को गुड़ व गेहूं खिलाना चाहिये।
- संस्कार के अगले रविवार को किसी निकट के रिश्तेदार (पिता के अतिरिक्त) से दिन के 12 बजे सवा किलो गुड़ शिशु का हाथ लगवाकर जल में प्रवाहित करने से भविष्य में शिशु व पिता के संबंध अवश्य ही मधुर रहते हैं।
-संस्कार के भोजन में यदि शिशु का पिता अपने किसी युवा क्षत्रिय मित्र को भोजन करा कर कोई उपहार देता है तो भी सूर्यदेव का स्पष्ट आशीर्वाद प्राप्त होता है।