शास्त्रों में वर्णित समस्त संस्कार व्यक्ति के आरोग्य, बल, ज्ञान, सुख-समृद्धि को बढ़ाने वाले हैं। इसलिये किसी भी संस्कार का महत्व कम नहीं है। इस दृष्टि से चूड़ाकरण संस्कार का भी विशेष महत्त्व है। चूड़ाकरण संस्कार को वपन क्रिया भी कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे मुंडन संस्कार कहा जाता है जो प्रायः समस्त हिंदू समाज में संपन्न किया जाता है। इस संस्कार के द्वारा बल, आयु तथा तेज की वृद्धि होती है। इसे प्रायः बालक के जन्म के तीसरे, पांचवें अथवा सातवें वर्ष अथवा विभिन्न संप्रदायों एवं परिवारों में अपनी कुल परंपरा के अनुसार संपन्न किया जाता है।
परिवार में मुंडन संस्कार को आवश्यक माना गया है। चूड़ाकरण संस्कार वस्तुतः हमारे लिये एक धार्मिक अनुष्ठान के समान है किंतु शारीरिक स्वास्थ्य के साथ भी इसका गहरा संबंध है। मस्तक के भीतर ऊपर की ओर जहां बालों का भंवर जैसा स्थान होता है, वहां संपूर्ण नाड़ियों तथा संधियों का मेल हुआ है। यह शरीर का सर्वाधिक मर्म स्थान माना गया है। विद्वान मनीषियों ने इसे ‘अधिपति’ मर्म स्थान कहा है। इस मर्म स्थान को सुरक्षित रखने की दृष्टि से ऋषियों ने इस स्थान पर चोटी रखने का निर्देश दिया है। इस बारे में यजुर्वेद में कहा गया है- नि वत्र्तयाम्यायुषेऽनाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय।। अर्थात् ‘हे बालक, मैं तेरी दीर्घ आयु के लिये तथा तुम्हें अन्न को ग्रहण करने में समर्थ बनाने के लिये, उत्पादन शक्ति प्राप्त करने के लिये, ऐश्वर्य वृद्धि के लिये, सुंदर संतान प्राप्त करने के लिये, बल तथा पराक्रम प्राप्ति योग्य होने के लिये तेरा चूड़ाकरण (मुंडन) संस्कार करता हूं।’
इससे स्पष्ट होता है कि यह संस्कार बल, आयु, आरोग्य तथा तेज की वृद्धि के लिये किया जाने वाला अतयंत महत्वपूर्ण संस्कार है। शरीर विज्ञान की दृष्टि से भी इस संस्कार को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस संस्कार के धार्मिक महत्व को समझने से पहले इसे शारीरिक स्वास्थ्य के संदर्भ में देखना आवश्यक है ताकि इसके विराट महत्त्व को समझा जा सके। शरीर विज्ञान के अनुसार यह समय दांतों के निकलने का होता है। इस कारण से बालक के शरीर में अनेक प्रकार के रोगों के होने की संभावना रहती है।
इस समय प्रायः सभी बालक रोते रहते हैं, स्वभाव से चिड़चिड़े हो जाते हैं, दस्त की शिकायत रहती है, शरीर निर्बल हो जाता है, बाल झड़ने लगते हैं। विद्वान महर्षियों ने इस स्थिति का विचार करके ही बालक को अस्वस्थकारक कारणों से बचाने हेतु इस संस्कार को करने का विधान किया है। इस दृष्टि से सभी के लिये चूड़ाकरण संस्कार अत्यंत महत्त्व का, अत्यंत उपयोगी तथा अत्यंत आवश्यक माना गया है।