विवाहाग्निपरिग्रह संस्कार
विवाहाग्निपरिग्रह संस्कार

विवाहाग्निपरिग्रह संस्कार  

विजय प्रकाश शास्त्री
व्यूस : 5487 | जून 2015

ववाहाग्निपरिग्रह संस्कार एक ऐसा संस्कार है, जिसका वर्तमान में महत्व बहुत कम दिखाई देता है। अधिकांश पाठक इसके बारे में जानते भी बहुत कम हैं। यह संस्कार विवाह संस्कार के साथ जुड़ा हुआ देखा जाता है। इसलिये इसका संक्षिप्त परिचय प्राप्त कर लेना पर्याप्त रहेगा। विवाह संस्कार में लाजा होम आदि क्रियायें जिस अग्नि में संपन्न की जाती हैं उसे अवस्थ्य नामक अग्नि कहा जाता है। इसे विवाहाग्नि भी कहा जाता है। आजकल विवाहाग्नि को प्रज्ज्वलित करने का कार्य विवाह कार्य संपन्न करवाने वाला पंडित ही कर लेता है किंतु पहले ऐसा नहीं होता था।

विवाहाग्नि के बारे में शास्त्रों में निर्देश दिया गया है कि किसी बहुत पशु वाले वैश्य के घर से अग्नि लाकर विवाह-स्थल की पवित्र भूमि पर मंत्रों से स्थापना करनी चाहिये। तत्पश्चात् इसी अग्नि में विवाह संबंधी लाजा होम तथा ओपासन होम करना चाहिये। जब विवाह संबंधी कार्य संपन्न हो जाये तो इस अग्नि की प्रदक्षिणा करके स्विष्टकृत होम तथा पूर्णाहुति करनी चाहिये। इस बारे में कुछ विद्वानों का विचार अलग है।

उनका कथन है कि विवाहाग्नि को कहीं बाहर से न लाकर विवाह स्थल पर ही अरणिमन्थन द्वारा उत्पन्न करनी चाहिये। विवाह के पश्चात् जब वर-वधू अपने घर आने लगते हैं तो इस स्थापित की गई अग्नि को घर पर लाकर किसी पवित्र स्थान पर सायंकाल अथवा अपनी कुल परंपरा के अनुसार हवन करना चाहिये। शास्त्रों में यह नित्य हवन विधि द्विजाति के लिये आवश्यक कही गई है। इसे व्यक्ति के नित्य किये जाने वाले कर्मों में भी गिना जाता है।

परिवार में किये जाने वाले समस्त वैश्वदेवादि स्मार्त कर्म तथ पाक यज्ञ इसी अग्नि से किये जाते हैं। इस बारे में याज्ञवल्क्य ने लिखा है- कर्म स्मार्त विवाहग्नौ कुर्वीत प्रत्यहं गृही। -याज्ञवल्क्य स्मृति इस संस्कार के बारे में कुछ विद्वानों ने अपने विचार भी व्यक्त किये हैं। उनका विचार है कि प्रारंभ से ही माता-पिता इस बात के लिये अधिक शंकित रहते थे कि विवाह के बाद उनके लड़के का दांपत्य जीवन सुख से व्यतीत हो। यह भावना उन्हें कुछ विशेष प्रकार के उपाय तथा अनुष्ठान करने को बाध्य करती थी।

इस संस्कार में यह भावना प्रायः बलवती रहती थी कि जिस अग्निदेव को साक्षी मानकर बेटे का विवाह संपन्न हुआ है, अग्निदेव की परिक्रमा लेते हुये सात फेरे लिये हैं, वह अग्निदेव उनके भावी दांपत्य जीवन को सुखों से भर दें, उनके संबंधों में अग्नि का तेज रहे अर्थात् संबंधों में ऊर्जा बनी रहे। इस भावना के कारण ही विवाहाग्नि को विवाह संपन्न हो जाने के बाद अपने घर के पवित्र स्थान पर स्थापित कर दिया जाता था ताकि अग्निदेव की कृपा बनी रहे। प्रतिदिन हवन आदि भी नवदंपत्ति के भावी जीवन में सुखों की वृद्धि की भावना को लेकर ही किये जाते थे। वर्तमान में यह संस्कार प्रकाश में नहीं है और न अधिक व्यक्ति इसके बारे में कुछ जानते हैं।

इतना अवश्य है कि तब की भांति आज भी वर-वधू के भावी जीवन के सुख के लिये अनेक प्रकार के उपाय तथा अनुष्ठान समय-समय पर किये जाते हैं। विवाह के बाद वर-वधू को किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव नहीं हो, इसके लिये उपवास अथवा हवन आदि आज भी किये जाते हैं। वर्तमान में चाहे इस संस्कार के बारे में लोगों को जानकारी कम हो किंतु पहले इस संस्कार को भी उसी विधि-विधान से संपन्न किया जाता था, जैसे कि अन्य संस्कारों को किया जाता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.