प्रश्न: गोबर से लेप क्यों? उत्तर: प्रथमतः तो गोबर शुचि (पवित्र) पदार्थ है। फिर वैज्ञानिक उसे असंक्रामक नाॅन कंडक्टर मानते हैं। गोबर में विद्युत निरोधकारणी शक्ति है। मनुष्य के प्राणवायु निकलने के दस द्वार माने गये हैं। ब्रह्मरन्ध्र (कपाल) से प्राणवायु निकले तो व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता पर यह सौभाग्य योगियों एवं नित्य प्राणायाम करने वाले इष्टबली व्यक्तियों को ही मिल पाता है। आम व्यक्ति का वीर्य (ओज) प्रायः निम्नगामी हो जाता है। मनुष्य को चित्त लिटाने से उसके मलद्वार भूमि से संसर्ग कर जाते हैं तथा भूमि की आकर्षण शक्ति प्राण् ाों को चुंबक की तरह खींचकर गुप्त द्वार से निकालती है।
इस दुर्गति से बचने के लिए मानव शरीर व पृथ्वी के बीच गोबर का लेपन किया जाता है। प्रश्न: विज्ञान ने गोबर में और कौन से तत्त्व स्वीकार किये हैं? उत्तर: गोबर में ‘फाॅस्फोरस’ नामक तत्त्व बहुतायत से पाया जाता है। यह तत्त्व नानाविध संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह पता चलता है कि गोबर से बने घरों में परमाणु बम के घातक कीटाणु भी निष्क्रिय हो जाते हैं, सर्वेक्षण से यह भी पाया गया है कि आकाश से गिरने वाली बिजली गोबर के ढेर पर गिरते ही वहीं समा जाती है। जिस प्रकार स्याही सोख, स्याही के धब्बे को सोखकर, उसे फैलने से रोकता है वैसे ही गोबर विद्युत ताड़न को सोखने (पचाने) की क्षमता रखता है। मृत शरीर में कई प्रकार के संक्रामक रोगों के कीटाणु होते हैं।
मृत्यु के समय उपस्थित कुटुंबी जनों के स्वास्थ्य संरक्षण हेतु भी गोबर का चैका होना अनिवार्य माना गया है। कुष्ठ रोग में गाय का गोबर लाभकारी है। बंदर के काटे घाव पर गाय का गरम गोबर लगाने से पीड़ा तत्काल छू-मंतर हो जाती है।े प्रश्न: गोमय का प्राशन क्यों? उत्तर: गोमय में जीवाणु और विषाणु नामक विशेष शक्ति होती है। इटली के डाॅक्टर यहां तक सलाह देते हैं कि टी. वी. सेनिटोरियम में गोमय रखा जाए, क्योंकि टी. वी. के कीटाणु इसकी गंध मात्र से मर जाते हैं। दुर्गन्ध दूर करने के मामले में उत्तम-से-उत्तम फिनाइल भी गोमय के सामने फीका पड़ जाता है। गोमय बनाया गया रंग विकिरणों का रोधक साबित हुआ। सूखी खुजली में गोमय जादू-सा असर दिखलाता है।
खून खराबी, वीर्य-दोष एवं फोड़े-फंुसी में गोमय का प्राशन शीघ्र प्रभाव देता है। प्रश्न: कुश क्यों बिछाते हैं? उत्तर: कुश शुचि (पवित्र) है तथा असंक्रामक है। कुश (दर्भ) नामक घास सर्वत्र उपलब्ध भी रहती है। प्रश्न: उत्तर दिशा को सिर क्यों? उत्तर: वैसे तो जीव को दक्षिण दिशा की ओर पांव करके एवं उत्तर दिशा को सिर करके कभी नहीं सोना चाहिये परंतु मृत्यु की अवस्था में विपरीत आचरण क्यों? मरणकालीन सभी विधियों का मूल सिद्धांत यही है कि प्राणों का उत्सर्ग दशम द्वार से हो, प्राण ऊध्र्व होता है। दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर निरंतर चलने वाला विद्युत प्रवाह कंपास यंत्र की सुई की भांति मनुष्य के निकलते हुये प्राणों को निम्नगामी बना देता है।
ध्रुवाकर्षण की इस प्रक्रिया को रोकने के लिये उत्तर को सिर और दक्षिण को पांव करने की प्रथा की व्यवस्था मरणकाल में की गई। प्रश्न: अंतिम समय में गंगाजल और तुलसी दल क्यों? उ. गंगाजल और तुलसीदल त्रिदोषघ्न महौषधि है। तुलसी में पारद व सुवर्ण तत्त्वों का समावेश है। गंगोदक में सर्वरोग कीटाणु-संहारिणी दिव्य शक्ति है। फ्रांस आदि देशों के विशिष्ट अस्पतालों में फिल्टर किया गंगोदक अनेक नामों से औषधियों की तरह प्रयोग में लाया जाता है। तुलसी व गंगाजल दोनों ही शुचि एवं मोक्षदायक वस्तुएं हैं। अंतिम समय में इनसे बढ़कर अन्य कोई कल्याण् ाकारी महौषधि नहीं हो सकती।