नामकरण संस्कार
नामकरण संस्कार

नामकरण संस्कार  

विजय प्रकाश शास्त्री
व्यूस : 6128 | आगस्त 2014

नाम व्यक्ति को उनके स्वयं के होने का बोध कराता है, इसलिये नाम का किसी भी व्यक्ति के लिये बहुत अधिक महत्त्व माना गया है। भीड़ में अपने किसी स्वजन के गुम हो जाने पर उसका नाम लेकर पुकारा जाता है। इस भीड़ में इस आवाज के प्रति वही व्यक्ति आकर्षित होगा जिसका नाम पुकारा गया है। अन्य व्यक्तियों पर इस आवाज तथा नाम का किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा। नाम के इस महत्त्व को देखते हुये ही संभवतः इसे सोलह संस्कारों में एक विशेष संस्कार माना गया है। समस्त विश्व में नाम व्यक्ति के रूप का साक्षात्कार करवाता है।

नाम के कारण ही व्यक्ति का परिचय प्राप्त होता है। प्रांरभ में व्यक्ति अपनी सुविधानुसार नाम रख लेते थे। इसके पश्चात् देवी-देवताओं के आधार पर, प्राचीनकाल के सुप्रसिद्ध ऋषि-मुनियों के नाम पर नाम रखे जाने लगे। कुछ समय बाद नदियों तथा जानवरों के नामांे का उपयोग नाम रखने में होने लगा। कालांतर में ज्योतिष के आधार पर नामकरण किये जाने लगे। इससे नाम विशेष के व्यक्ति पर किसी ग्रह विशेष का क्या प्रभाव पड़ेगा, किस प्रकार की समस्यायें आयेंगी और उनका निराकरण किस प्रकार होगा, इन सभी के बारे में ज्योतिषियों द्वारा भविष्य कथन कहे जाने लगे। इस प्रकार नाम की महिमा और महत्त्व से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नाम के महत्त्व का उल्लेख प्राप्त होता है। नाम के महत्त्व को स्वीकार करते हुये देवगुरु बृहस्पति ने नाम को विश्व में किये जाने सभी व्यवहारों के लिए केन्द्र कहा है।

नामाखिलस्य व्यवहारहेतुः शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतुः। नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्यस्ततः प्रशस्तं खलु नामकर्म।। (वीरमित्रोदय, संस्कारप्रकाश)

आयुर्वर्चोऽभिवृद्धिश्च सिद्धि व्र्यवहृतेस्तथा। नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभिः।। (स्मृतिसंग्रह)

पारस्कर के मत से नामकरण का अधिकार प्राप्त करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है। अतएव गणपति पूजन आदि की सामान्य पूजाविधि की समाप्ति कर कम से कम तीन ब्राह्मणों को भोजन करायंे। (सामान्य विधि में यह विशेष है कि नान्दीश्राद्ध यदि जातकर्म-संस्कार में न कराया हो तो नामकरण में करायंे, दोनों संस्कारों में एक ही बार नान्दी श्राद्ध होना चाहिए।) नामदेवतापूजन इसके पश्चात् देवतापूजन करें। अर्थात् कांसे की थाली में चावल फैलाकर उन पर समथ्र्यानुसार सोने की शलाका से बालक का वह नाम लिखें जो रखना हो। (यदि देवता-नाम आदि रखने हों तो क्रमशः चारों नाम लिखंे)

पश्चात् संकल्प पढ़ें:- ‘‘शिशोर्बह्नयुष्यप्राप्त्यर्थं नामदेवतापूजनं करिष्ये’’ अपने बालक की दीर्घायु के लिए नाम की अधिष्ठात्री देवता का पूजन करूंगा।’’ यह संकल्प करके। ऊँ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोतु। अरिष्टं यज्ञ ँ् समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ। नाम सुप्रतिष्ठितमस्तु। इस मंत्र से देवता की प्रतिष्ठा करंे और ऊँ श्रीश्चते लक्ष्मोश्च पत्नयावहोरात्रे पाश्र्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्न्ािषाणामुम्म इषाण सर्वलोकम्म इषाण। ‘नामदेवताभ्यो नमः आवाहयामि आसनं समर्पयामि, इत्यादि वाक्य बोलकर षोडशोपचार पूजन करें।

नामोच्चारण पश्चात् माता बालक को गोद में लेकर पिता के दायीं ओर शुभासन पर बैठे। पिता बालक के दाहिने कान के समीप मुख करके कहे:- हे कुमार त्वं ... कुलदेवताया भक्तोऽसि हे कुमार त्वं मासनाम्ना .. असि। हे कुमार त्वं नक्षत्रनाम्ना... असि हे कुमारत्वं व्यवहारनाम्ना .. असि रिक्त स्थानों पर देवता आदिके अनुसार स्थिर किया हुआ नाम बोलें। यदि एक ही नाम रखना हो तो एक बार ही वह नाम बालक को सुनायें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.