श्राद्ध कैसे करना चाहिए यह जानना तथा तदनुरूप श्राद्ध संपन्न करना आवश्यक है। यहां तर्पण तथा श्राद्ध विधि प्रस्तुत कर रहे हैं। श्राद्ध हर व्यक्ति को अवश्य करना चाहिए। इससे हर प्रकार का लाभ मिलता है। देवताओं के लिये एक अंजलि दें।
ऊँ भूर्देवाः तृप्यन्ताम्। ऊँ भुवः देवा तृप्यन्ताम्। ऊँ स्वः देवाः तृप्यन्ताम्।
ऊँ भूर्भुवः स्वः देवाः तृप्यन्ताम्। ऊँ ब्रह्मादयो देवाः तृप्यन्ताम्। इति तर्पणम्।
इसके बाद यज्ञोपवीत को कण्ठी करके ऋषि तथा गुरु तर्पण करना चाहिए और दो दो अंजलि देना चाहिए।
ऊँ भूर्यषयः तृप्यन्ताम्। ऊँ भुवः ऋषयः तृप्यन्ताम्। ऊँ स्वः ऋषयः तृप्यन्ताम्।
ऊँ भूर्भुवः स्वः ऋषयः तृप्यन्ताम्। सनकादि द्वैपायनादि ऋषयः तृप्यन्ताम्।
इसके बाद बाएं यज्ञोपतीत करंे और तीन तीन अंजलि करें।
ऊँ भूः पितरः तृप्यन्ताम्। ऊँ भुवः पितरः तृप्यन्ताम्। ऊँ स्वः पितरः तृप्यन्ताम्।
ऊँ भूर्भुवः स्वः पितरः तृप्यन्ताम्। ऊँ कव्य वाऽनलादयः पितरः तृप्यन्ताम्।
ऊँ पिता पितामहः प्रपितामहाः सपत्नीकाः तृप्यन्ताम्। ऊँ मातामहः
प्रमातामहः वृद्ध प्रमातामहाः सपत्नीकाः तृप्यन्ताम्। ऊँ भ्राता पितृव्यः मातुलादय सपत्नीकाः तृप्यन्ताम।
ऊँ समस्त पितृगण तृप्तिहेतवे इदम् जलादिकं, तेभ्यो विभज्य स्वधानमश्च।
शुद्ध वस्त्र धारण करके संकल्प करंे। श्रद्धापूर्वक करने से ही श्राद्धपूर्ण फलित होता है। बिना श्रद्धा के धर्म कर्म तामसी तथा खंडित होते हैं। संकल्प करने से पूर्व यदि यज्ञोपवीत धारण करना हो अथवा जब कभी नवीन यज्ञोपवीत धारण करना हो,
तो इस मंत्र से करें।
।। यज्ञोपवीत मंत्र ।। यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेर्यत् सहजं। पुरस्तात् ! आयुष्ममग्यं प्रतिमुत्र्च शुभं यज्ञोपवीतं- बलमस्तु तेजः।।
।। पवित्र करने का मंत्र ।। विष्णु विष्णु विष्णुः ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं से ब्रह्मांडभ्यंतरः शुचिः विष्णुः पुण्डरीकाक्षः पुनातु।।
।। आसन का मंत्र ।। पृथिवीति मंत्र स्थ मेरूपृष्ठऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः।
।। पृथ्वी का मंत्र ।। ऊँ पृथिवित्व या धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।
।। ध्यान मंत्र ।। ऊँ शान्ताकारं भुजगशयनं पùनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघ वर्णां शुभाङ्गम्।।
लक्ष्मीकान्तंकमल नयनं योगिभि ध्यनिगम्यम् वन्देविष्णुं भवभय हरं सर्वलोकैक नाथम्।।
।। पितृ प्रार्थना ।। श्राद्धकाले गयां ध्यात्वाध्यात्वा देवं गदाधरम्। स्वपितृन् मनसा ध्यात्वा ततः श्राद्धं समाचरेत्।।
सबसे पहले सफेद सरसों के दाने लेकर श्राद्ध करें:- मंत्र: नमो नमस्ते गोविन्द पुराण पुरूषोत्तम। इदं श्राद्धं हृषीकेश रक्षतां सर्वतेदिशः प्राच्यै नमः। अवाच्चै नमः। प्रतीच्यै नमः। उदीच्यै नमः। यव पुष्पः श्राद्ध भूभ्यै नमः। इतना करके बाद में संकल्प करना आरंभ करें। ।। संकल्प ।। हरिः ऊँ तत्सत् ब्रह्मणो द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे जंबू द्वीपे भारत खण्डे आर्यावर्तेकः देशान्तर्गते पुण्य वृहस्पति क्षेत्रे सूर्ये उत्तरायने (यदि दक्षिणायन में हो तो दक्षिणायने यह पद पढ़ना चाहिए) मासोत्तमे मासे आश्विने मासे कृष्ण पक्षे पुण्य तिथौ अमुक गोत्रोत्पन्न अमुक नामऽहं (अपना नाम लें) श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलावांप्ति कामः इदं पक्वान्न्ां सर्वोपस्कर समन्वितं से दक्षिणं एक ब्राह्मणा हारक्षमं श्री यज्ञ पुरूष नारायण प्रीतंये नमः। यदि इतना न करा सकें, तो छोटा संकल्प करा दें। ऊँ तत्सत् मासोत्तमे मासे अमुक पक्षे अमुक गोत्र, नामाहं इदं उपस्थितं अन्नं सर्वोपस्कर समन्वित सदक्षिणां श्री परमेश्वर प्रीतये नमः। अगर फलादि हो तो फलादिकं यह पाठ उपस्थित अन्न के स्थान पर पढ़ना चाहिए। वस्त्रादिकं, पात्रादिकं इत्यादि जो वस्तु भी यजमान या संकल्पकर्ता दान करे, तो उस वस्तु का नाम लेकर आगे श्री परमेश्वर अथवा नारायण प्रीतये नमः पढ़ देना चाहिए। ऐसे करने से किसी प्रकार का दोष नहीं होता हे। गुरु ऋषि संकल्प यज्ञोपवीत कंठ (गले) करके संकल्प करें। हरि ऊँ तत्सत् मासोत्तमे मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुकं गोत्र अमुक नामाऽहं इदं मिष्टान्नं सद् गुरुदेव प्रीतये नमः। इसके बाद तीन बार गायत्री जाप करें। ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।
इसके बाद पितृ गायत्री मंत्र तीन बार पढं़े। ऊँ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एवं य। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः। इसके बाद पितृ आवाहन करें। यज्ञोपवीत अपसव्य (बाएं) करें। ऊँ आयन्तु नः पितरः सौम्या सोऽग्निष्वाता पथिभिदैव यानैरस्मिन् यज्ञे स्वधया माद ्यन्ता ेऽधिव ्र ुवन्त ुत ेऽवन्त्वस्मान ्। इति। यह मंत्र श्राद्ध में पहले करें। तिल, गंगाजल, मधु (शहद) दूध इन चीजों का होना भी जरूरी है। मध्याह्न (दोपहर) के समय में श्राद्ध करना श्रद्धालु भक्त के लिए अत्यावश्यक है। तिल मंत्र बोलकर संकल्प करें। ।। तिल मंत्र ।। ऊँ अपहताऽसुरारक्षां सिवेदिषदः। हरिः ऊँ तत्सत् ब्राह्मणो द्वितीय परार्द्ध श्रीश्वेत वाराह कल्पे जम्बू द्वीपे भारतखंडे सूर्य दक्षिणायने आर्या वर्तेक देशान्तर्गते पुण्य वृहस्पति क्षेत्रे मासोत्तमे मासे आश्विन मासे कृष्ण पक्षे पुण्य तिथौ, अमुक गोत्रो अमुक नामोऽहं शम्र्मा वा इदं अन्नं एक ब्राह्मणा हारपरिमितं सदक्षिणां अमुक गोत्र पितर अमुक शम्मनू वा तस्मै ते स्वधा इति।
यदि स्त्री जाति के निमित्त हो तो बाकी की सब वैसे, केवल अमुक गोत्र अमुक नाम्नी देवी यह पाठ बदल देना चाहिए और तस्मै’’ के स्थान में तस्यै’’ पढ़ना चाहिए। इसी प्रकार पिता, पितामहः प्रपितामहः पितृव्य (चाचा, माता, मातमाह, प्रमाता महः इत्यादि के निमित्त करायंे)। ।। क्षमा मंत्र ।। मंत्रहीनं क्रिया हीनं विधि हीनं च यद्भवेत् तत्सर्वमच्छिद्र मस्तु।। ‘बलिदानम्’ ।। काक बलि ।। काकेभ्यो नमः। ।। श्वान बलि।। श्वभ्यां नमः।। ।। गाय बलि।। गोम्यो नमः।। ।। जल बलि ।। वरूणाय नमः ।। ।। सर्प बलि ।। सर्पेभ्यो नमः।। इति श्राद्ध में बलिदान करना जरूरी है। सबसे अंत में सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। सूर्य मंत्र से या गायत्री मंत्र से करें। इसके साथ तिलक करें। आदित्या वसतो रूद्रा विश्वेदेवा मरूद्गणाः तिलकं ते प्रपच्छन्तु कर्मऽधार्मर्थिसिद्धये। इति पितृ पक्षे संकल्पविधि संपूर्ण।।