ज्योतिष के अन्य ग्रंथों की तरह लाल किताब में भी मंगल की भूमिका की विशद व्याख्या की गई है। लाल किताब के अनुसार मंगल एक पापी एवं क्रूर ग्रह है। इसमें मंगल की दो रूप में व्याख्या की गई है - नेक और बद अर्थात शुभ और अशुभ। शुभ मंगल का देवता साक्षात श्रीराम भक्त हनुमानजी को माना गया है जिसका हर ज्योतिष शास्त्र में उल्लेख है।
मंगल अशुभ (बद) के देवता भूत-प्रेत माने गए हैं। किंतु लाल किताब में कार्तिकेय को इस ग्रह का स्वामी माना गया है जो महादेव के पुत्र एवं भगवान श्री गणेश के सहोदर के रूप मे जाने जाते हैं। इसलिए मंगल की शुभता बढ़ाने एवं अशुभ मंगल की अशुभता को कम करने के लिए लाल किताब में मंगलवार व शनिवार को हनुमान उपासना के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की पूजा आराधना को विशेष महत्व दिया गया है।
साथ ही मंगल के भूमिसुत होने के कारण धरती की पूजा पर भी बल दिया गया है। लाल किताब में उल्लिखित है कि मंगल की शुभता-अशुभता ऊंचे दर्जे की होती है, यह मध्यम ग्रह नहीं है। शुभ अर्थात नेक मंगल शुभता को चरम सीमा तक पहुंचाता है और यदि अशुभ हो तो अशुभता की कोई सीमा नहीं रह जाती। लाल किताब में कुछ विशेष स्थितियों में मंगल को शुभ माना गया है जैसे एक ही भाव में सूर्य व बुध की बुधादित्य युति हो, तो मंगल शुभ होता है।
इसके अतिरिक्त सूर्य षष्ठ भाव में हो, सूर्य, शनि या बृहस्पति 3, 4, 8 या 9 में स्थित हो, शनि व राहु या शनि व केतु की युति एक भाव में हो, बुध व केतु एक भाव में हों अर्थात दो शत्रु ग्रह की युति एक भाव में हो, चंद्र लग्न, चतुर्थ, जाया या राज्य भाव में हो, पराक्रम, सुख अथवा अष्टम भाव में चंद्र हो अथवा चंद्र मंगल हों अथवा चंद्र शुक्र हों अथवा चंद्र मंगल शुक्र हों अथवा शुक्र हो अथवा मंगल शुक्र हों तथा मंगल के परम मित्र (सूर्य, चंद्र, गुरु) उनकी सहायता कर रहे हों तो यह स्थिति शुभ होती है।
लाल किताब में अशुभ अर्थात बद मंगल को वीरभद्र की संज्ञा दी गई है और माना गया है कि मंगल जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा और वह स्वभाव से जिद्दी एवं उग्र हो सकता है। चतुर्थ भाव से सुख, संपत्ति, भूमि, भवन, वाहन एवं उपभोग में आने वाली भौतिक सामग्री का आकलन किया जाता है। चतुर्थ भाव में मंगल हो अथवा उस पर उसकी दृष्टि पड़े, तो इन फलों में कमी आएगी।
सप्तम भाव से जीवनसाथी और रतिसुख की विवेचना की जाती है और यदि मंगल सप्तम में हो या उस पर क्रूर दृष्टि डाल रहा हो, तो पारिवारिक व वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहेगा, विधुर-विधवा योग भी घटित हो सकते हैं। अष्टम भाव से आयु तथा जीवन में आने वाली बाधाओं का विचार किया जाता है।
इस भाव से मंगल दोष बने अथवा इस पर मंगल की दृष्टि पड़े, तो अनेकानेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है और अनिष्ट की संभावनाएं तथा जीवन साथी की मृत्यु की भी आशंकाएं रहती हैं। वहीं द्वादश भाव से शय्या सुख, व्यय, हानि, शासन दंड, कारावास, बदनामी आदि का विचार किया जाता है और यदि मंगल इस भाव से संबंध स्थापित करता हो या इसमें स्थित हो, तो अनावश्यक व्यय, मन में चिंता, परेशानियां, नींद का अभाव आदि होते हैं।
इस प्रकार मंगल की अलग-अलग भावों में स्थिति के फल अलग-अलग फल होते हंै किंतु यह सर्वमान्य सत्य है कि वैवाहिक सुख ऊपर वर्णित भावों से पूर्णतया संबद्ध है। वैवाहिक सुख में शरीर, मन, रति सुख एवं काम क्रीड़ा की अपनी विशेष महत्ता है। मंगल दोष वैवाहिक जीवन में सर्वाधिक बुरा प्रभाव डालता है जबकि मंगल, शनि, राहु, केतु एवं सूर्य से बनने वाले कुयोग कम प्रभावशाली होते हैं।
लाल किताब में भी यह माना गया है कि मंगल दोष अपना सर्वाध् िाक बुरा प्रभाव सप्तम व अष्टम भावों में दिखाता है जबकि व्यय भाव में इसका प्रभाव कम होता है। मूलतः यह माना जाता है कि मंगल दोष कुटुंब सुख में बाधक होता है क्योंकि अग्नि तत्व प्रधान होने के कारण मंगल साध् ाारण ग्रहों से प्रभावित नहीं हो पाता।
फलतः जातक में क्रोध, चिड़चिड़ापन, हठधमिर्त ा, कामाध्ं ाता, वचै ारिक मतभदे आदि बढ़ जाते हंै, जिससे पारिवारिक जीवन दुखद हो जाता है। लाल किताब में बताए गए दोष निवारण के उपाय एवं बद (अशुभ) ग्रहों को निष्क्रिय करने अथवा शुभत्व प्रदान करने के सुझाव अत्यंत प्रभावशाली हैं जिन्हें एक सामान्य इन्सान, आर्थिक रूप से विपन्न व्यक्ति भी, आसानी से कर के लाभान्वित हो सकता है।
मंगल दोष निवारणार्थ लाल किताब में सुझाए गए उपाय भावों एवं लग्न के अनुसार अलग-अलग हैं किंतु मंगल दोष के सामान्य उपाय सभी प्रकार की लग्न कुंडलियों के विविध भावगत मंगल दोष के लिए सर्वमान्य हैं, जिन्हें अवश्य करना चाहिए। जैसे मंगल की धातु तांबा तथा रत्न मूंगा है, शहद एवं मिठाई मंगल को विशेष प्रिय हंै।
इनकी शांति, पूजा, दानादि से लग्न को सबल, सक्रिय किया जा सकता है। मंगलवार का व्रत, हनुमानजी की आराधना, विविध पाठ, शहद, सिंदूर, मसूर की दाल का दान या उनका बहते पानी में प्रवाह, मृगचर्म पर शयन, शुद्ध चांदी का प्रयोग, भाई की सेवा आदि प्रमुख उपाय हैं। पवनसुत हनुमान जी की आराधना को लाल किताब में श्रेष्ठ, सरल एवं सस्ते उपायों की श्रेणी में रखा गया है।
वहीं भगवान कार्तिकेय तथा धरती की पूजा का भी विधान है। स्वयं मंगलदेव की आराधना और उनकी भगिनी यमुना की पूजा से भी दोष का शमन होता है। सूर्य के आज्ञाकारी पुत्र होने के कारण सूर्य की आराधना से भी मंगल प्रसन्न होता है। मंगल दोष दूर करने के लग्नानुरूप तथा भावानुरूप सुझाए गए लाल किताब के विशिष्ट उपाय अत्यंत कारगर हैं, जिन्हें अपनाकर आम जन भी मंगल के अशुभत्व को शुभत्व में बदल सकते हैं। इन उपायों से कोई हानि नहीं होती।
मंगल लग्न में होकर अशुभ हो, मंगल दोष बना रहा हो, तो जातक मुफ्त में दान ग्रहण न करे और कोई वस्तु बिना मूल्य चुकाए स्वीकार न करें। हाथी दांत की बनी वस्तुएं घर में या अपने पास न रखें। चतुर्थ भावस्थ मंगल यदि अशुभ हो, तो शहद, शक्कर और चीनी का व्यापार कदापि न करें। बंदरों, साध् ाुओं और अपनी मां की सेवा करें। बंदरों को गुड़ और चना खिलाएं। अष्टमस्थ मंगल के भी यही उपाय हैं।
इसके अतिरिक्त इस स्थिति के दोष से बचाव के लिए विधवाओं का आशीर्वाद प्राप्त करें तथा अपने पुत्र के जन्मदिन पर नमक बांटें। सप्तम (जाया) भाव में किसी भी राशि का मंगल जब अशुभ हो, तो जातक साली, मौसी, बहन, बेटी और बुआ को मिठाइयां बांटें। झूठ और झूठी गवाही से बचें। पत्नी को चांदी की चूड़ी लाल रंग करके पहनाएं।
व्यय भाव में जब मंगल अशुभता लिए हुए हो, तो जातक नित्य सुबह खाली पेट शहद का सेवन, मंदिर में बांटें और अन्य लोगों को खिलाएं। इस प्रकार उक्त भावों में मंगल की स्थिति से उत्पन्न होने वाले मंगल दोष के निवारण का उल्लेख लाल किताब में किया गया है। भाव तथा लग्न स्थिति के अनुसार उपाय अलग-अलग हैं जिसकी संक्षेप में यहां व्याख्या कर पाना संभव नहीं है।
किंतु मंगल दोष से बचने का सर्वाध् िाक सरल तरीका लाल किताब में बताया गया है। लाल किताब की इसीलिए ज्योतिष में अपनी अलग छवि और स्थान है। वहीं इसके सुझावों में मानवीय रिश्तों को भी कम महत्व नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया है कि मां, मौसी, बहन, बुआ, साली, बेटी, लड़कियों तथा विधवाओं और भाई की सेवा से मंगल की अशुभता में कमी आती है। ताऊ अर्थात पिता के बड़े भाई की सेवा को भी उपायों में शामिल किया गया है।
भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान मंगल के प्रिय आराध्य हैं और हनुमान जी सात्विकों तथा ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के दुखों को दूर करते हैं। चूंकि दाम्पत्य सुख पाने के लिए पति-पत्नी का मिलन आवश्यक है अतः ब्रह्मचर्य का पालन संभव नहीं है। ऐसे में एक दूसरे के प्रति निष्ठा आवश्यक होती है।
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