प्रश्न: विवाह न होना या देरी से होना, विवाह के पश्चात जीवन सुखी न रहना, तलाक हो जाना या बिना तलाक के अलग हो जाना, वैवाहिक जीवन नित्य प्रति क्लेशपूर्ण रहना जैसी समस्याओं हेतु क्या वैदिक, तांत्रिक, आध्यात्मिक, लाल किताब के उपाय तथा घरेलू टोटकों के द्वारा वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है? यदि हां ! तो विस्तृत जानकारी दें।
स्त्री तथा पुरूष के मध्य का आकर्षण,
प्रेम, स्नेह तथा रागात्मक संबंध
सृष्टि के आरम्भ से लेकर आज
तक विद्यमान है। इसी रागात्मक
आकर्षण को विवाह नामक संस्था
के उदय का कारण माना जाता रहा
है। स्त्री-पुरूष के मध्य संपर्क तथा
शारीरिक निकटता तो आदि काल
से ही अस्तित्व में था, परन्तु इस
संबंध को मर्यादित रखना ही विवाह
का मूल उद्देश्य है। जहां आरंभ में
विवाह हेतु कोई आयु सीमा नहीं थी,
वहीं कालान्तर में विवाह के लिए स्त्री
तथा पुरूष की आयु का निर्धारण
किया गया। यह निर्धारण राजकीय
या शासकीय न होकर सामाजिक
था। वैवाहिक आयु-सीमा का यह
सामाजिक निर्धारण आज भी देखा
जा सकता है। क्षेत्र-जाति-समूह
आदि के आधार पर इसमें विविधता
भी है। प्रत्येक माता-पिता अपने
संतति के विवाह के विषय में काफी
सजग रहते हैं। परंतु काफी प्रयास
के बाद भी जब सभी योग्यताओं से
पूर्ण पुत्र अथवा पुत्री के विवाह की
संभावना क्षीण होने लगती है, तब
उस अभिभावक तथा उनकी संतति
को होने वाली पीड़ा का अनुमान लगा
पाना भी दुष्कर होता है। जबकि कुछ
परिस्थितियों में यह देखा गया है
कि विवाह तो बड़ी शीघ्रतापूर्वक और
सहजता से हो गया, परंतु विवाह के
बाद नवविवाहित दम्पत्ति का जीवन
कष्टप्रद तथा कलहपूर्ण हो जाता है।
विवाह से जुड़ी इन समस्त समस्याओं
को हम वैवाहिक विलम्ब, विवाह
प्रतिबंध, वैवाहिक कलह, तलाक,
वैधव्य-विधुरता आदि में बांट सकते
हैं।
वैवाहिक विलंब व प्रतिबंध के
उपाय-
- अग्नि महापुराण के 18वें अध्याय में
वर्णित गौरी प्रतिष्ठा विधि का प्रयोग
करें।
- इस गंधर्वराज
मंत्र का दस हजार जप करें।
‘‘ऊँ क्लीं विश्वासुर्नाम गन्धर्वः
कन्यानामधिपतिः लभामि देवदत्तां
कन्यां सुरूपां सालंकारां तस्मै
विश्वावसवे स्वाहा’’।
- पुरूषों के शीघ्र विवाह के लिए
अधोलिखित मंत्र का 108 बार जप
करें-
‘‘पत्नीं मनोरमां देहि
मनोवृत्यानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य
कुलोद्भवाम्।।
- कनकधारा स्तोत्र का 21 पाठ 90
दिन तक करें।
- श्रीरामदरबार चित्र का पंचोपचार
पूजन के बाद निम्नलिखित दोहे का
21 बार जप करें-
‘‘तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह
साज संवारि कै।
मांडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुँअरि
लई हँकारि कै।।’’
- अधोलिखित यंत्र को भोजपत्र पर
अनार की कलम और अष्टगंध की
स्याही से लिखें-
इसके बाद हल्दी की माला से
‘‘ऊँ ”ह्रीं हं सः’’
मंत्र का 1100 जप
करें। जपकाल में तिल के तेल से
प्रज्ज्वलित दीपक जलता रहे। पाठ
के बाद शीघ्र विवाह की कामना
प्रकट करें।
इस संदर्भ में शुक्रवार को किया
जानेवाला माँ गौरी का व्रत भी
प्रशस्त माना गया है। निराहार व्रत
के बाद सायंकाल पंचमुखी दीपक
जलाएँ। पुनः अधोलिखित मंत्र का
108 बार जप करें-
‘‘बालार्कायुतसत्प्रभां करतले
लोलाम्बमालाकुलां मालां सन्दधतीं
मनोहरतनुं मन्दस्मिताधेमुखीम्।
मन्दं मन्दमुपेयुषीं वरयितुं
शम्भुं जगन्मोहिनीं, वन्दे
देवमुनीन्द्रवन्दितपदाम् इष्टार्थदां
पार्वतीम्।।’’
- वैवाहिक विलम्ब अथवा प्रतिबंध
योगों में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका
होती है। अतः ऐसी परिस्थिति में
निम्नलिखित मंत्र का प्रयोग शीघ्र ही
फल देता है-
‘‘कोणस्थः पिंगलों बभ्रुः कृष्णो
रौन्द्रोऽन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलाश्रय संस्थितः।।
एतानि शनि-नामानि जपेदश्वत्थसन्निधौ।
शनैश्चरकृता पीड़ा न कदापि भविष्यति।।’’
शनिवार को सायंकाल पीपल वृक्ष
के नीचे सरसों के तेल का दीपक
जलाएँ, और उपरोक्त मंत्र का 36
बार जप करें।
- योग्य पुरोहित के सान्निध्य में
अत्यन्त प्रभावशाली ‘शनि-पाताल
क्रिया’ का अनुष्ठान कराएँ।
यदि जन्मांग में मंगल दोष विद्यमान
हो और इस कारण से विवाह में
विलम्ब हो रहा हो तो अधोलिखित
उपाय शीघ्र ही फल प्रदान करते हैं-
मंगल चण्डिका स्तोत्र का 21 पाठ
नित्य करें-
‘‘रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेः हर्षमंगलकरिके।।
हर्षमंगलदक्षे च हर्षमंगलदायिके।
शुभे मंगलदक्षे च शुभे मंगलचण्डिके।।
मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगलमंगले।
सदा मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये।।
’’
- मंगलस्तोत्र का नित्य 21 बार जप
करें।
- सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का
पाठ करें।
- मंगल यन्त्र की विधिपूर्वक स्थापना
करें।
- योग्य पुरोहित के द्वारा कन्या का कुंभ
अथवा विष्णु विवाह अत्यन्त गोपनीय
तरीके से करवाएँ। गोपनीयता ही
इस प्रयोग के सफलता की कुंजी
होती है।
- सौन्दर्य लहरी (श्लोक 1-27) का
पाठ करें।
- सावित्री व्रत का सश्रद्धा अनुष्ठान
करें।
- सोंठ, सौंफ, मौलश्री के फूल,
सिंगरक, मालकंगनी और लाल चंदन
सम भाग लें। इसे जल में मिलाकर
मंगलवार को स्नान करें।
- बेल, जटामांसी, लाख के फूल,
हिंगलू, बल, चन्दन और मूवला
औषधियों को पानी में मिलाकर
मंगलवार को स्नान करें।
विशेष उपाय शीघ्र विवाह हेतु (अनुभूत)
शिवरात्रि के दिन जिस मंदिर में शिव
पार्वती विवाह का अनुष्ठान हुआ हो।
कन्या वहां जाय और विवाह की पूरी
विधि को देखे। इस विवाहोत्सव में
‘लाजा’ (खील) भी बिखेरे जाते हैं।
कन्या प्रातःकाल मंदिर जाए और वहां
से इन खील के 11 दाने चुन कर
खा ले। शीघ्र विवाह का योग बनेगा।
- रामचरितमानस के शिव पार्वती
विवाह प्रसंग का 11 सोमवार तक
सश्रद्धा पाठ करें।
- श्रीरामजानकी के विवाह प्रसंग का
पाठ भी आश्चर्यजनक सफलता देता
है।
- यदि कालसर्प योग के कारण
विवाह में विलंब हो रहा हो तो वैदिक
विधि से इस दोष की शांति घर में
करवाएँ। शुद्ध स्वर्ण के आठ नाग
(सवाग्राम प्रति) बनवाकर जल में
प्रवाह दें।
वैवाहिक कलहपूर्ण जीवन से
मुक्ति-
इन परिस्थितियों को उत्पन्न करने
वाले ग्रहों की पहचान योग्य ज्योतिषी
से करवाने के बाद उत्तरदायी ग्रहों
की शांति करवाएँ।
पति की अवहेलना तथा तिरस्कार
से पीड़ित कन्याएँ अधोलिखित
मंत्र का 108 बार जप नित्य करें,
आश्चर्यजनक फल शीघ्र ही प्राप्त
होंगे-
‘‘अभित्वा मनुजातेन दधामि मम वासना।
यशसो मम केवलो नान्यसा कीर्तयश्चन।।
यथा नकुलो विच्छिद्य संदधत्यहिं पुनः।
एवं कामस्य विच्छिन्नं से धेहि वो यादितिः।।
उफँ क्लीं त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पतिवेदनम्।
उर्वारूकमिव बन्ध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् क्लीं उफँ।।’’
संपूर्ण जप काल में घी का दीपक
प्रज्ज्वलित रखें।
शीघ्र फलदायक शाबर मंत्र
यदि किसी पराई स्त्री अथवा
पर-पुरूष के कारण वैवाहिक जीवन
विषाक्त हो रहा हो तो यह प्रयोग
करें-
‘‘ओम् सत्यनाम आदेश गुरु को,
लौंग-लौंग मेरा भाई, इन्हीं लौंग ने
शक्ति चलाई पहली लौंग राती मती,
दूजी लौंग जोबन मती, तीजी लौंग
अंग मरोड़े, चैथी लांैग दोऊ कर
जोड़े, चारों लौंग जो मेरी खाय....
...... के पास से ............... के पास
आ जाय, गुरु की शक्ति मेरी भक्ति,
फुरोमंत्र ईश्वरी वाचा।’’ चार साबुत
लौंग लें। उपरोक्त मन्त्र को 108
बार पढ़कर इस लौंग को खिला दें।
पहले खाली स्थान में परस्त्री या
परपुरूष का नाम हो जबकि दूसरे
खाली स्थान में उपासक अपना नाम
रखें।
रत्नधारण व रूद्राक्ष
- वैवाहिक विलंब के संदर्भ में गणेश
रूद्राक्ष धारण करना चमत्कारिक फल
देता है।
- वैवाहिक सुख हेतु बृहस्पति तथा
शुक्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जाते
हैं। जहाँ वैवाहिक जीवन के आरंभ
हेतु बृहस्पति उत्तरदायी हैं वहीं शुक्र
शय्या सुख व शारीरिक सुख प्रदान
करते हैं। इनसे संबंधित शांति उपाय
सुखद वैवाहिक जीवन की कुंजी
सिद्ध होती है।
- वैवाहिक विलंब व प्रतिबंध आदि
परिस्थिति में पीला पुखराज (निर्दोष)
साढ़े सात रत्ती का लें। स्वर्ण की
मुद्रिका में बनवाकर गुरुवार के दिन
तर्जनी अंगुली में धारण करें।
- शारीरिक अक्षमता आदि के कारण
वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहा हो तो
हीरा (न्यूनतम एक कैरेट) धारण करे।
- गौरी शंकर रूद्राक्ष विधि-पूर्वक
धारण करने से वैवाहिक जीवन की
विसंगतियों का नाश सहज ही हो
जाता है।