हर व्यक्ति धनवान बनना चाहता है परंतु कई बार पैसा होने के बाद भी वह बचा नहीं पाता या उसका सदुपयोग नहीं कर पाता। यह सब जन्म कुंडली में विद्यमान योगों के कारण होता है।
अपव्यय एवं खल ग्रह योग क्या हैं, उनका क्या प्रभाव होता है, इसकी विस्तृत जानकारी यहां दी जा रही है- जब कोई भी ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित हो तो वह उसकी खल अवस्था कहलाती है। अरुण संहिता एवं लाल किताब में उस ग्रह को खलनायक की संज्ञा दी गई है। जब जातक की कुंडली में कोई भी ग्रह अपनी नीच राषि में स्थित होता है तो उसके धन का किसी न किसी रूप में अपव्यय या नाश होता है।
अपव्यय या हानि किस विषय में या किस वस्तु की होगी यह इस पर निर्भर करता है कि वह नीच ग्रह किस भाव में स्थित है। वह जिस भाव में होगा, उससे संबंधित कारक विषयों की हानि तो करेगा ही, उसके साथ-साथ जिन भावों पर उसकी दृष्टि होगी उन्हें भी प्रभावित करेगा।
ऐसी परिस्थिति में इन नीच ग्रहों के कुप्रभाव से बचने का उपाय करना जातक के लिए अति आवष्यक हो जाता है। यहां कुंडली में ग्रहों की उन स्थितियों का विश्लेषण प्रस्तुत है जिनसे अपव्यय या खल ग्रह योग बनता है। यदि कुंडली में बुध, शुक्र, गुरु इन तीनों शुभ ग्रहों में से एक भी ग्रह केंद्र भाव 1, 4, 7 या 10 में न हो, तो अपव्यय योग बनता है।
इस योग के जातक को खर्च करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए तथा अपने जीवन साथी से परामर्श करना चाहिए अन्यथा खर्च आमदनी से अधिक होगा और बचत नहीं होगी। यहां तक कि जातक जीवन भर ऋणी रहता है। यही स्थिति कुछ हद तक तब होगी यदि केंद्र भावों पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो। जिस भाव में शनि स्थित हो वहां से चंद्र भाव 3, 7 या 10 में हो अर्थात चंद्र पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक के पास धन नहीं बच पाता।
उसे जीवन यापन के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। यदि जन्म कुंडली में चंद्र की शनि, सूर्य या राहु के साथ युति हो, तो अपव्यय योग बनता है। ऐसी स्थिति में जातक का खर्च अधिक होता है परंतु जरूरत के समय धन अवश्य मिल जाता है जो प्रायः खर्च हो जाता है।
फलस्वरूप वह जीवन भर ऋण के बोझ तले दबा रहता है तथा सारी कमाई ब्याज व मूल के भुगतान में जीवन बीत जाता है। जिस जातक की जन्म कुंडली में केंद्र भाव 1, 4, 7 या 10 रिक्त हो अर्थात उसमें कोई भी ग्रह स्थित न हो, उसके पास धन नहीं टिकता चाहे वह कितना भी कमा ले। वह न चाहते हुए भी अपव्यय कर बैठता है।
जन्म कुंडली में सूर्य तुला राशि में, चंद्र वृश्चिक में, मंगल कर्क में, बुध मीन में, गुरु मकर में, शुक्र कन्या में, शनि मेष में, राहु धनु में तथा केतु मिथुन राशि में नीच का होता है। अतः वे नीचस्थ होकर खल अवस्था में होते हैं। यदि कुंडली में कोई भी तीन ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित हों, चाहे वे किसी भी भाव में क्यों न हों, तो उसे जीवन में कई बार ऋण लेना पड़ता है- विशेषकर उन ग्रहों के दशाकाल में।
कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि ऐसे जातक या तो अपना दिवालिया निकालने पर विवश हो जाते हंै या उन पर ऋण न लौटाने के मुकदमे बने रहते हैं और जीवन भर वकीलों के चक्कर में फंसे रहते हंै। वे बहुत से लोगों का धन मार लेते हंै और लौटाते नहीं।
ऐसे जातकों की कुंडली में यदि मंगल व सूर्य भी अशुभ स्थिति में हों या निर्बल हों, तो वे या तो अपना निवास स्थान छोड़ कर लापता हो जाते हैं या फकीर का चोला पहन कर अपने ऋण से मुक्त होते हैं या फिर आत्महत्या करने पर विवश हो जाते हंै।
यदि कुंडली में एक या दो ग्रह नीच के हों परंतु उन पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो अपव्यय तो होगा किंतु समय पर पैसा आता रहेगा। कुंडली में स्थित गुरु और शुक्र उसकी नाव डूबने से बचाते रहते हैं। कुंडली में जिस भाव में चंद्र स्थित हो, उससे पहले और अगले भाव में यदि कोई ग्रह न हो अर्थात वह रिक्त हो, तो जातक के पास धन नहीं टिकता।
वह अपनी कमाई को फिजूल की यात्राओं में, फिजूल का सामान खरीदने में, फिजूल के लेन देन में या फिर खाने पीने में गंवा देता है तथा जीवन भर धन संचित न कर पाने के कारण वृद्धावस्था किसी वृद्ध ाश्रम में बिताने को विवश होता है। जिस जातक की कुंडली में केंद्र भावों में किसी भी राशि में शनि, मंगल व सूर्य स्थित हों, अर्थात इनकी युति हो या वे अलग-अलग तीन केंद्र भावों में स्थित हों, उसके धन में बरकत नहीं होती, चाहे वह कितना भी क्यों न कमाता हो।
वह न चाहते हुए भी अपव्यय कर बैठता है और बाद में पछताता है। जिस जातक की जन्म कुंडली में सभी नौ ग्रह चर राशियों मेष, कर्क, तुला व मकर में स्थित हों और 2, 3, 4, 5, 6, 7 या 8 ग्रहों का जोड़ बनता हो तथा स्थिर और द्विस्वभाव राशियां रिक्त हों, तो अपव्यय योग बनता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीवन भर ऋणी रहता है। तथा अनेक लोगों से उधार लेकर गुजारा करता है।
उसकी आर्थिक स्थिति जीवन भर दयनीय रहती है। जिस जातक की जन्म कुंडली में जिस भाव में चंद्र स्थित हो यदि उस पर मंगल की दृष्टि 4, 7 या 8 पड़ती हो, तो वह धन संचित नहीं कर पाता। उसकी आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव रहता है।
जिस जातक की जन्म कुंडली में धन भाव में अकेला शनि हो या शुक्र से युत हो या उस पर उसकी सप्तम दृष्टि हो, वह जीवन भर धन जमा नहीं कर पाता, और ऋणी रहता है। जिस जातक की कुंडली में 7वें, 8वें, नौवें और 10वें भावों में राहु व केतु के अतिरिक्त सात ग्रह स्थित हों, वह जीवन भर दरिद्र ही रहता है तथा उसे कोई उधार भी नहीं देता।
वह ठगी कर गुजारा करता है। उसके पास यदि कुछ पैतृक धन संपत्ति हो भी, तो उसे या तो गिरवी रख कर या बेचकर नष्ट कर देता है और पैसे पैसे के लिए मोहताज रहता है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में लग्न में मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक या मकर राशि हो, उसे खर्च करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। इन लग्नों के लोग फिजूलखर्ची होते हैं। वे प्रायः कर्ज लेने या किश्तों पर सामान खरीदने के आदी होते हैं परंतु कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं होते।
वे धन संचय नहीं कर पाते तथा वृद्ध ावस्था में उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। और स्वजन भी उनसे मुंह मोड़ लेते हैं। इन योगों से मुक्त जातक अपनी कमाई में से कुछ धन जरूर बचा लेता है अर्थात वह अपनी चादर के अनुसार ही पैर पसारता है तथा चल व अचल संपत्ति संचित कर अपना जीवन सुखमय बनाता है और किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता।
अपव्यय, ऋण और खल ग्रह योग के विश्लेषण हेतु निम्नलिखित बातें अवश्य देख लेनी चाहिए। क्या कुंडली में शुभ ग्रह गुरु, शुक्र बुध केंद्र में स्थित हैं ? चंद्र पर शनि की दृष्टि तो नहीं है ? कुंडली में शनि व चंद्र, सूर्य व चंद्र या राहु व चंद्र की युति तो नहीं है ? कुंडली में केंद्र भाव रिक्त तो नहीं है? कुंडली में नौ ग्रहों में से कोई भी तीन ग्रह अपनी नीच राशि में तो नहीं हैं ? चंद्र राशि से पहले व अगले भाव रिक्त तो नहीं हैं ? मंगल, शनि, सूर्य तीनों केंद्र भाव में तो स्थित नहीं है ?
कुंडली में चर राशियों मेष, कर्क, तुला व मकर में स्थित ग्रहों का योग 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 तो नहीं बनता? चंद्र राशि पर मंगल की दृष्टि तो नहीं? भाव 2 में अकेला शनि तो स्थित नहीं? और यदि है, तो उस पर मंगल की दृष्टि तो नहीं ? भाव 7, 8, 9, 10 में राहु केतु के अतिरिक्त अन्य सात ग्रह तो स्थित नहीं ? क्या जातक का लग्न मेष, कर्क, कन्या, वृश्चिक या मकर है ? इन लग्ना ंे क े जातका ंे म ंे उपर्युक्त अपव्यय योग अवश्य देख लेना चाहिए।
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