रक्तचाप धीरे-धीरे पनपने वाला रोग है, जिसकी मुख्य वजह अव्यवस्थित दिनचर्या है। अशांत मन, दूषित खानपान और व्यायाम न करने से यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। योग के जरिए इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
भागदौड़ भरी दिनचर्या से जीवन में चिंता, तनाव, क्रोध और चिड़चिड़ापन तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिससे मन अशांत होता जाता है। मन अशांत होने के कारण अनेक तरह के रोग जन्म ले रहे हैं, जिसमें से एक मुख्य रोग उच्च रक्तचाप है।
यह रोग एकदम नहीं होता। यह धीरे-धीरे शरीर में पनपता रहता है। इस रोग के लिए मुख्य तौर से जिम्मेदार होते हैं तनाव, दूषित खानपान और व्यायाम का अभाव। अधिक तले हुए वसायुक्त पदार्थों का सेवन, अधिक मिर्च-मसाले, ज्यादा नमक, चाय, काॅफी, शराब, मीठे पदार्थों का सेवन, टहलना और योगाभ्यास न करना, भय, घबराहट, बेचैनी होना, नींद पूरी न लेना आदि कारणों से धमनियां संकरी हो जाती हैं और उनका लचीलापन कम होता जाता है।
इस वजह से धीरे-धीरे काॅलेस्ट्राॅल बढ़ने लगता है, जिससे यह रोग जन्म ले लेता है। मोटापा, मधुमेह, किडनी का रोग, जोड़ों का दर्द, पाचन तंत्र की गड़बड़ी आदि भी शरीर में रक्तचाप बढ़ाने में जिम्मेदार होते हैं। महिलाएं अगर लगातार गर्भ निरोधक गोलियां लेती रहें, तब भी यह रोग हो सकता है।
उच्च रक्तचाप की शिकायत होने पर यौगिक अभ्यास के साथ-साथ कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें। नमक, मिर्च, मसालेदार भोजन, वसायुक्त भोजन, चाय, काॅफी, धूम्रपान और शराब का सेवन न करें। इस रोग में प्याज, लहसुन, दही, केला, संतरा, गाजर और टमाटर का सेवन लाभकारी होता है। भोजन को खूब चबाकर खाएं और भूख से थोड़ा कम खाएं। लौकी का सूप पीएं।
प्याज के एक चम्मच रस में शहद मिलाकर दिन में एक बार लें। इस रोग से निजात पाने के कुछ अभ्यास यहां दिए जा रहे हैं, जिन्हें करने से उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है। ये अभ्यास सुबह खाली पेट शौचादि के बाद करें। सीत्कारी प्राणायाम किसी भी आसन में आराम से सीधे बैठकर नाक से सारी सांस धीरे-धीरे बाहर निकालें। अब दोनों दांतों के जबड़ों को आपस में मिलाकर होंठों को खोलकर जीभ को दांतों के पीछे सटाकर लगा दें। अब मुंह से सांस को अंदर खींचे।
हवा दांतों से होती हुई जीभ को छूकर सीसी की आवाज के साथ अंदर जाएगी। अधिक से अधिक सांस भरें व बिना रोके धीरे-धीरे नाक से बाहर निकाल दें। यह सीत्कारी प्राणायाम कहलाता है। 10-12 बार इसका अभ्यास कर लें। यह उच्च रक्तचाप में बहुत फायदेमंद व्यायाम है।
सावधानी यह अभ्यास शरीर में शीतलता बढ़ाता है, इसलिए नजला-जुकाम, अस्थमा, कफ या सर्दी हो, तो इसका अभ्यास न करें। भ्रामरी प्राणायाम सीत्कारी के बाद कमर सीधी रखकर धीरे से सांस नाक से बाहर निकाल दें। फिर धीरे-धीरे सांस भरें।
अधिक से अधिक सांस भरने के बाद सांस निकालते समय नासिकामूल से मुंह बंद रखते हुए भंवरे जैसी गुंजार करें। इस गूंज के साथ सांस को निकालते रहें। इस गूंज को मधुर बनाने का प्रयास करें। बाहर की कोई आवाज कानों में न जाए, इसके लिए दोनों हाथों के अंगूठों से कानों को बंद कर लें। उंगलियों को आंखों के ऊपर रखकर इस आवाज को सुनते हुए, इस पर अपने मन को एकाग्र करें।
बार-बार सांस भरकर यह गूंज करते रहें। पांच मिनट तक यह अभ्यास कर लें। इससे मन पूरी तरह शांत हो जाएगा। ओउम् जप अ, उ, म् इन तीन अक्षरों से मिलकर बनता है- ‘ओउम्’। मन को अंतर्मुखी बनाने व सोई हुई शक्तियों को जगाने में इसका जप महत्वपूर्ण होता है।
पूरी सांस भरकर पहले मुख खोलकर ‘अ’ बोलें, फिर मुंह बंद करते हुए ‘उ’ की आवाज होने लगती है और अंत में मुंह बंद हो जाने पर ‘म्’ की आवाज आती है। इस प्रकार आंखें बंद कर ‘ओउम्’ का जप करें।
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