मानव इतिहास गवाह है कि ब्रह्मांड का कोई भी ग्रह मानव को इतना आकर्षित नहीं कर पाया जितना कि मंगल ग्रह ने किया है। इस लाल रंग के आकर्षक ग्रह के बारे में जानने के लिए वैज्ञानिक हमेशा से उत्सुक रहे हैं, यह उन्हें अचंभित कर रोमांच से भरता रहा है।
आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि मंगल ग्रह और पृथ्वी के बीच कोई समानता है। यह भी माना जा रहा है कि कभी बहुत पहले मंगल ग्रह पृथ्वी का ही एक हिस्सा रहा होगा और कालांतर में पृथ्वी से अलग हो गया होगा। पुराणों के अनुसार भी मंगल ग्रह को भौम या भूमि पुत्र अर्थात भूमि का अंश कहा गया है।इससे यह भी सिद्ध होता है कि पुराणों के लेखक, हमारे महान ऋषि-मुनि आधुनिक वैज्ञानिकों से दूरदृष्टि में बहुत आगे थे।
नामावली: मंगल ग्रह को हमारे पुराण् ाों ने कई नाम दिए हैं जो मंगल की विशेषताओं को ही बताते हैं, जमससे अंगारक - अग्नि से पैदा हुआ भौम - भूमि का पुत्र कुज - भूमि का पुत्र मंगला - मंगलकारक लोहिता - लाल अग्निभुवः - अग्नि से उत्पन्न महीसुत - पृथ्वी का पुत्र भू-सुत - भूमि का पुत्र धराज - धरा अर्थात पृथ्वी पुत्र क्रूरनेत्र - क्रूर आंखों वाला मिर्रीख, लोहितांग , अवनिज, क्षितिनंदन
स्वरूप व विशेषताएं: मंगल ग्रह आग है, इसमें गर्मी है, तेज है क्योंकि यह अग्निपुत्र है। बृहत्पराशर होराशास्त्र के अनुसार - क्रूरो रक्तेक्षणो भौमश्चपलादारमूर्तिकः पित्तप्रकृतिकः क्रोधी कृशमध्यतनुद्र्विज अर्थात मंगल क्रूर, रक्त नेत्र, चंचल, पित्तप्रकृति, क्रोधी, कृश और मध्यम देह का स्वामी है।
नारदीय पुराण के अनुसार - क्रूरदृक्तरूणो भौमः पैत्तिकश्चपलस्तथा अर्थात मंगल क्रूर दिखता है। यह युवा है, चपल है और साहसी भी है। गरुड़ पुराणानुसार एक विशाल रथ पर सवारी करने वाले भूमिपुत्र के रथ का रंग सुनहरा है और यह आठ घोड़ों द्वारा खींचा जाता है जिनमें आग सी चपलता है। इस कारण मंगल साहसी, निडर व तेज है।
जातकतत्वम् के अनुसार - दुष्टदृक् तरुणः कृशमध्यो रक्तसितांगः पैत्तिकश्चलधीरूदारप्रताप्यारः अर्थात आंखों में कांइयांपन, जवान शरीर, पतली कमर, हल्का रक्त वर्ण, पित्त प्रधान प्रकृति, चंचल बुद्धि, उदारता व प्रतापी ये मंगल की विशेषताएं हैं।
वातावरण: मंगल ग्रह के वातावरण को लोहिता अर्थात लाल कहा जाता है। यह नौ रश्मियों युक्त और जलीय स्थल वाला है। लोहितो नवरश्मिस्तु स्थानमाप्यं तु तस्य वै
जन्म: मत्स्य पुराण के अनुसार सभी ग्रह सूर्य की रश्मियों से पैदा हुए हैं। संवर्धनस्तु यो रश्मिः स योनिर्लोहितस्य च। लोहिता अर्थात मंगल भी सूर्य की उन रश्मियों की पैदावार है जिसे संवर्धना कहते हैं।
भगवान शिव से संबंध: स्कंद पुराण के अनुसार जब भगवान शिव को सती के मरने का दुख हुआ तो उन्होंने कैलाश पर्वत पर तांडव किया जिससे उनके शरीर में अतिरिक्त ऊष्मा उत्पन्न हुई और माथे से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी। इस बूंद से एक बालक उत्पन्न हुआ जिसके शरीर का रंग लाल था, उसकी चार भुजाएं थीं, तन से एक विशेष प्रकार की गंध आ रही थी और उसने रोना शुरू कर दिया था। धरती माता ने उस बालक को गोद में लिया और दूध पिलाकर शांत किया। इस बात से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर धरती अर्थात भूमि को वरदान दिया कि यह बालक अब उसके नाम से जाना जाएगा। क्योंकि बालक का पालन पोषण भूमि ने किया था, अतः वह भूमि पुत्र, भौम और कुज (भूमि-कु) कहलाया। भगवान शिव के पसीने से मंगल की उत्पत्ति अवंति (उज्जैन) के पास हुई थी। आज भी वहां शिप्रा नदी के तट पर मंगल (मंगलान्था) का मंदिर है।
भगवान विष्णु से संबंध: देवी भागवत में बताया गया है कि वराह के रूप में अवतार लेने वाले महाविष्णु की पत्नी भूमि देवी अर्थात पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है।
अग्नि से संबंध: एक अन्य पुराण के अनुसार कुमार अर्थात मंगल अग्नि और स्वाहा (अगिन की पत्नी) की संतान है। कुमार कई नामों से जाना जाता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं - भौम, गुहा, महासेना, शक्तिधारा, श्रभु, सेनापति।
मंगल के कारकत्व: उत्तर कालामृत के अनुसार मंगल से निम्न विषयों का विचार करना चाहिए: शूरता, भूमि, राज्य, चोर, विरोध, शत्रु, पशु, राजा, क्रोध, विदेशगमन, अग्नि, पित्त, घाव, छोटा कद, रोग, शस्त्र, कड़वा, ग्रीष्म ऋतु, शील, तांबा, दक्षिण दिशा, सेनाधीश, वृक्ष, भ्राता, दंडाधिकारी, सांप, तर्कशक्ति, गृह आदि। विभिन्न भावों में मंगल के फल: मानसागरी के अनुसार मंगल के विभिन्न भावों में स्थित होने से निम्न फल मिलते हैं: प्रथम - शरीर में रोग, चंचलता, द्वि तीय - तेजी और चटोरापन, तृतीय - विद्या, साहस, चतुर्थ-कष्ट, दुख, पंचम-धन व संतान की कमी, षष्ठ - शक्ति, शत्रु विजय, सप्तम - पत्नी से तिरस्कार, अष्टम - अच्छा स्वास्थ्य व सुख, नवम - चोट, भाग्यहीनता, दशम - विद्या व साहस, एकादश - धन व सम्मान और द्वादश - निर्धनता व बीमारी।
मंगल के व्यवसाय: उत्तर कालामृत के अनुसार मंगल ग्रह से संबधित व्यवसाय इस प्रकार हैं: अग्नि, बिजली, रेडियो, भट्ठी आदि के सभी कार्य, बारूद, बंदूक, तोप, तलवार आदि शस्त्रों के कार्य, सेना से संबंधित कार्य।
मंगल की पूजा: मंगलवार को मंगल की पूजा अत्यंत शुभ होती है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यदि मंगलवार हो, तो इसे भी पूजा के लिए शुभ माना जाता है। इसे अंगारक चतुर्थी भी कहते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार षष्ठी तिथि भी मंगल की पूजा के लिए शुभ होती है क्योंकि इसी दिन मंगल को सेनापति बनाया गया था।
इस दिन मंगल की पूजा करने से धन व पुत्र लाभ मिलता है। अपुत्रो लभते पुत्रमधनोऽपि धनं लभेत मंगल ग्रह की प्रार्थनाएं: स्कंद पुराण के अनुसार मंगल की एक प्रार्थना इस प्रकार है:
अंगारक शक्तिधरो लोहितांगो धरासुतः।
कुमारो मंगलो भौमो महाकायो धनप्रदः।।
ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशनः।
विद्युत्प्रभो व्रणकर कामदो धनहत् कुजः।।
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