वर और कन्या दोनों की कुंडलियों में समान मंगल दोष होने पर भी प्रायः पति अथवा पत्नी की मृत्यु नहीं होती है, परंतु सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए स्त्री की कुंडली में पतिकारक बृहस्पति तथा पुरुष की कुंडली में पत्नीकारक शुक्र का बलवान होना और सप्तम (विवाह/दाम्पत्य सुख) भाव तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव (युति अथवा दृष्टि) होना आवश्यक होता है।
मंगल दोष के परिहार के बारे में महर्षि पराशर कहते हैं: स्त्री हन्ता परिणीता चेत् पति हन्ती कुमारिका। तदा वैधव्य योगस्य भंगो भवति निश्चयात्।। अर्थात यदि वैधव्य योग वाली कन्या का विधुर योग वाले युवक से विवाह किया जाए तो निश्चय ही विधवा योग भंग होता है। अर्थात पति या पत्नी किसी की भी अकाल मृत्यु नहीं होगी।
यहां यह समझना आवश्यक है कि दोनों कुंडलियों में समान मंगल दोष हो तो भी पति अथवा पत्नी की मृत्यु नहीं होगी। परंतु सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए स्त्री की कुंडली में पतिकारक बृहस्पति तथा पुरुष की कुंडली में पत्नीकारक शुक्र का बलवान होना और सप्तम (विवाह/ दाम्पत्य सुख) भाव तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव (युति अथवा दृष्टि) होना आवश्यक होता है।
दोनों कुंडलियों में मंगल एक से भाव में होने पर भी राशि भेद के कारण यह दोष पूर्णरूप से निष्क्रिय नहीं हो पाता। परंतु लगभग दोष साम्य होने और सप्तम भाव और भावेश पर शुभ प्रभाव होने पर विवाह सफल होता है। यद्यपि महर्षि पराशर ने केवल एक ही स्थिति में योग भंग की बात कही है, परंतु बाद के कुछ मुहूर्त ग्रंथों में अन्य परिहार भी बताए हैं जो अनुभव में खरे नहीं उतरते।
उनके अनुसार विवाहित दम्पतियों को जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कुछ परिहार इस प्रकार हैं:
1. मंगल के साथ बृहस्पति अथवा चंद्र होने पर, अथवा उनकी दृष्टि होने पर, मंगल दोष नष्ट हो जाता है।
2. मंगल अपनी राशि (मेष, वृश्चिक) अथवा उच्च राशि (मकर) में चतुर्थ अथवा सप्तम भाव में हो, तो मंगल दोष नहीं होता।
3. कर्क और सिंह लग्न के लिए योगकारक होने से मंगल अनिष्टकारी नहीं होता।
4. कुंडलियों में राशि मित्रता, गण मित्रता तथा गुणों की बहुलता होने पर मंगल ग्रह दोष निष्प्रभावी हो जाता है।
5. एक कुंडली में जिस स्थान पर मंगल हो उसी स्थान पर दूसरी कुंडली में शनि, राहु या केतु हो, तो मंगल दोष नष्ट हो जाता है।
6. मंगल के साथ शनि अथवा राहु होने से मंगल दोष नष्ट होता है।
7. मंगल ग्रह दोष 28 वें वर्ष में तथा मंगल दशा में विशेषकर प्रभावी होता है।
समीक्षा परिहार संख्या 1 कोई नई बात नहीं कहता। महर्षि पराशर ने स्वयं बताया है कि मंगल पर शुभ प्रभाव होने (और कोई अशुभ प्रभाव नहीं होने) पर पति/पत्नी की मृत्यु नहीं होती। परिहार संख्या 2 या 3 के संदर्भ में भगवान श्री राम की कुंडली उद्धृत है, जिनके जीवन में दाम्पत्य सुख का अभाव सर्वविदित है। उनकी कर्क लग्न की कुंडली में मंगल उच्चस्थ सप्तम भाव में है अतः उच्च कुलीन पत्नी प्राप्त हुई।
यद्यपि उच्च बृहस्पति और स्वक्षेत्री चंद्र की मंगल पर शुभ दृष्टि है परंतु वे दोनों स्वयं सप्तमेश और अष्टमेश शनि तथा नवम भाव स्थित केतु से पीड़ित हैं। साथ ही राहु की सप्तम भाव पर दृष्टि है तथा पत्नी कारक शुक्र राहु/केतु से पीड़ित है।
इस प्रकार पहले वनवास में दाम्पत्य सुख नहीं मिला और अयोध्या वापस आने पर असामान्य परिस्थिति में पत्नी का परित्याग करना पड़ा। उच्चस्थ मंगल ने सप्तम भव में अपना अशुभ प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में दिखाया। अतः यह परिहार प्रभावी नहीं है। परिहार सं. 4 के संदर्भ में स्पष्ट कर देना है कि सबसे पहले गुण मिलान आवश्यक है, उसके बाद मंगल दोष का विचार किया जाता है। दोनों सर्वथा भिन्न क्षेत्र में प्रभावी हैं। अतः यह परिहार भी भ्रामक है। निम्न कुंडलियां इसका उदाहरण हैं।
अधिक गुण मिलान परंतु मंगल दोष के कारण विवाह विफल राशि व लग्न स्वामी दोनों मित्र हैं। गुण मिलान 26.5/36 है। पति की कुंडली में पत्नीकारक शुक्र अस्त है तथा सप्तम भाव पर केतु व शनि की दृष्टि है। चंद्र से मंगल उच्चस्थ होकर बृहस्पति के साथ चतुर्थ में स्थित है, अतः मंगल का दुष्प्रभाव निष्क्रिय हुआ। पत्नी की कुंडली में सप्तमेश शुक्र षष्ठेश बुध के साथ लग्न में स्थित है उनकी सप्तम पर दृष्टि है। बृहस्पति की भी सप्तम भाव पर दृष्टि है। परंतु लग्नेश मंगल कर्क राशि में नीच का है और चतुर्थ स्थित होकर मंगल ग्रह दोष का निर्माण कर रहा है।
मंगल की सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि है। शनि की भी सप्तम भाव पर दृष्टि है। जातका लग्न, चंद्र और शुक्र तीनों से मंगल ग्रह दोष से पीड़ित है जबकि जातक का दोष भंग है। अतः दोनों कुंडलियों में मंगल दोष साम्य नहीं हुआ। दोनों का नवंबर, 2002 में विवाह हुआ परंतु जातका जनवरी, 2003 के बाद ससुराल वापस नहीं गई।
उनका जुलाई, 2006 में तलाक हो गया। इस प्रकार परिहार संख्या 4 भी निष्फल व भ्रामक है। परिहार संख्या 5 भी भ्रामक है। मंगल ग्रह का स्वभाव व प्रभाव शनि और राहु से अधिक उग्र है। अतः एक कुंडली में मंगल और दूसरी कुंडली में उसी भाव में शनि अथवा राहु मंगल का अनिष्टकारी प्रभाव नष्ट करने में कैसे सक्षम हो सकता है। परिहार सं. 6 के संदर्भ में निम्नलिखित कुंडली देखें। जातका का लग्न कर्क है। शनि ग्रह सप्तमेश होकर दशम भाव में नीचस्थ है।
तृतीयेश तथा द्वादशेश बुध सप्तम भाव में है और उस पर शनि की दृष्टि है। योगकारक मंगल अष्टम भाव में मंगल दोष बना रहा है। उसके साथ राहु इस दोष को और प्रचंड बना रहा है। जातका का विवाह सितंबर 1996 में हुआ और फिर वह कुछ माह बाद ससरु ाल नही ं गइर्। अतं तः जनवरी 2005 में तलाक हो गया।
मंगल की योगकारक होकर कुंभ राशि में स्थिति और साथ में राहु की स्थिति, ने बुरा ही फल दिया, मंगल दोष को कम नहीं किया। अतः परिहार संख्या 6 भी भ्रामक है। अब परिहार संख्या 7 को देखें। मंगल ग्रह दोष 28वें वर्ष तथा मंगल दशा में विशेष प्रभावी होता है। इस संदर्भ में निम्न कुंडली का अवलोकन करें।
यह कुंडली ब्रिटिश राजकुमार चाल्र्स की है। चंद्र से अष्टम भाव में मंगल स्वक्षेत्री वृश्चिक राशि में है जिससे मंगल ग्रह दोष का निर्माण हुआ। उनका विवाह जुलाई, 1985 में हुआ और अगस्त, 1996 में विवाह विच्छेद हो गया। उनकी मंगल दशा अप्रैल 1987 से अप्रैल 1994 तक रही परंतु इस बीच विवाह विच्छेद नहीं हुआ। तलाक उसके बाद राहु-राहु में हुआ।
यह कुंडली भी दर्शाती है कि मंगल ग्रह दोष मंगल दशा में घटित होना आवश्यक नहीं है। अब कुछ वैसी कुंडलियां प्रस्तुत हैं जिनमें मंगल दोष साम्य होने से अष्टकूट मिलान में कुछ कमी रहते हुए भी दाम्पत्य जीवन में विघटन की उदाहरण 1 की कुंडली गुण मिलान 22/36 है। कुंडलियों में चंद्र 6/8 होने से भकूट दोष है जो मतभेद दर्शाता है।
पति की कुंडली में मंगल वृश्चिक राशि का स्वक्षेत्री सप्तम भाव तथा पत्नी की कुंडली में अपनी मूल त्रिकोण मेष राशि में अष्टम भाव में है। सप्तम तथा अष्टम भाव स्थित मंगल प्रबल अनिष्टकारी होने से मंगल दोष साम्य हो जाता है। बृहस्पति के दोनों के पंचम भाव में होने से बुद्धि ठीक रहती है और दोनों मतभेद को शांतिपूर्वक निपटा लेते हैं।
उन्हें जनवरी 2005 में पुत्र लाभ हुआ और अब दूसरी संतान होने वाली है। यह मंगल दोष परिहार तथा कुंडली मिलान का श्रेष्ठ उदाहरण है। अब मंगल ग्रह दोष साम्य से सफल कुंडलियों का अष्टकूट गुण मिलान 24.5/36 है। चंद्र के 2/12 होने की वजह से भकूट दोष है जो विचार मतभेद दर्शाता है।
दोनों का लग्नेश एक ही (शनि) है तथा चंद्र राशीश (मंगल और बृहस्पति) मित्र हैं। दोनों कुंडलियों में मंगल अष्टम भाव में है अतः मंगल ग्रह दोष साम्य है। इस स्थिति में मतभेद तीव्र नहीं हाते ा।
दम्पति दा े बच्चा ंे क े साथ सख्ु ाी वा स्मृद्ध जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस विवेचन तथा उदाहरण कुंडलियों से यह निष्कर्ष निकलता है कि महर्षि पराशर द्वारा प्रतिपादित मंगल दोष परिहार ही अनुकरणीय है। थोड़े प्रयत्न से मंगल ग्रह दोष वाली कन्या या वर ढूंढ कर सही प्रकार कुंडली मिलान करें, वैवाहिक जीवन सुखी व सम्पन्न रहेगा।
If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi