विवाह बाधा एवं मंगल दोष निवारण
विवाह बाधा एवं मंगल दोष निवारण

विवाह बाधा एवं मंगल दोष निवारण  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 41832 | आगस्त 2007

विवाह क े सदं र्भ म ंे वर एवं कन्या के माता-पिता मंगल दोष के भय से सदैव आक्रांत रहते हैं। जन-मानस में मंगल दोष का भय इतना अधिक व्याप्त है कि मंगली कन्या के माता-पिता कन्या हेतु मंगली वर खोजते हैं। इस कारण भी कन्या के विवाह में विलंब होता है।

मंगल दोष के कुप्रभाव को मनीषियों व ज्योतिर्विदों ने इतना महिमा मंडित किया है कि इस दोष के कारण बहुत सी कन्याओं को आजन्म कुंआरी ही रहना पड़ जाता है। अविभावकों के लिए तो यह स्थिति भयानक समस्या सिद्ध होती है। सामान्य जन नहीं जानता कि भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में मंगल दोष का परिहार जन्म कुंडली में स्वयमेव हो जाता है। अगर नहीं हो तो फिर मंगल दोष को कैसे दूर करें? और कौन सा उपाय करते रहने से मंगल का कुप्रभाव क्षीण होगा ?

मंगल दोष मानव का सुखी जीवन उसके सुखी दाम्पत्य जीवन पर निर्भर करता है। दाम्पत्य जीवन में अच्छा स्वास्थ्य, भोग सामग्री, पूर्ण रति सुख, दीर्घ आयु यदि न हो, तो जीवन कष्टमय रहता है। यही कारण है कि विवाह पूर्व वर कन्या की कुंडलियां मिलाने की प्रथा वैदिक युग से आज तक बनी हुई है।

कुंडली मिलान करते समय मंगल दोष को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जन्मांग में मंगल के लग्नस्थ, द्वितीयस्थ, चतुर्थस्थ, सप्तमस्थ, अष्टमस्थ एवं द्वादशस्थ होने पर मंगल दोष होता है।

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।

कन्या भर्तृविनाशायभर्ता कन्या, विनाशकः।।

केरल की भावदीपिका के अनुसार: 

धने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।

स्त्रीणां भर्तृविनाशः स्यात, भर्ता च स्त्री विनाशाय।।

विद्वानों का मत है कि लग्न शरीर का, चंद्र मन का और शुक्र रति सुख का, प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिए लग्न से, चंद्र लग्न से व शुक्र लग्न से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश में मंगल स्थित होने से मंगल दोष होता है।

जन्म पत्रिका में जिन पांच स्थानों से मंगल दोष बनता है उनमें से किसी में भी यदि कोई एक क्रूर या पापी ग्रह मंगल के साथ या अलग स्थित हो, तो दोगुना, तीन हांे, तो तिगुना, चार हों, तो चैगुना और यदि इन में पांचों पापी ग्रह एक साथ या अलग-अलग स्थित हों, तो जन्मकुंडली पांच गुना मंगल दोष से ग्रस्त होती है।

लग्नस्थ मंगल दोष लग्नस्थ मंगल व्यक्ति को क्रोधी, हठी बनाता है क्योंकि यह उग्र एवं आक्रामक ग्रह है। लग्नस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि सुख स्थान पर हो, तो गृहस्थ सुख को बिगाड़ती है। सप्तम दृष्टि पति के स्थान पर होने से दाम्पत्य सुख को खत्म करती है।

अष्टम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि पति-पत्नी दोनों के लिए मारक होती है क्योंकि अष्टम भाव सप्तम से द्वि तीय होता है। द्वितीयस्थ मंगल केरल की भावदीपिका में ग्रंथकार ने द्वितीयस्थ मंगल को दोषपूण्र् ा माना है। यह कुटुंब व धन का स्थान है।

इस भाव में बैठा मंगल जातक जातका को परिवार विहीन करता है। द्वितीयस्थ मंगल की दृष्टि क्रमशः पंचम, अष्टम व नवम भाव पर पड़ती है। अतः मंगल की द्वितीय भाव में स्थिति जातक-जातका को पुत्र से वंचित करती है व उनके लिए, मारक व दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध होती है। पापाक्रांत द्वितीय भावस्थ मंगल परिवार में विकट स्थिति उत्पन्न कर संबंधों को बिगाड़ता है।

चतुर्थ भावस्थ मंगल चतुर्थ भावस्थ मंगल जातक-जातका के सुख स्थान पर स्थित होता है। इस स्थिति में वह अचल संपत्ति तो देता है किंतु सुख शांति छीन लेता है। मंगल की अशुभ दृष्टि पति के स्थान पर होने से पति से संबंध मधुर नहीं रहता। दोनों के बीच वैचारिक मतभेद बना रहता है। चतुर्थ भावस्थ मंगल जीवन साथी को सुख आनंद देने में असमर्थ करता है।

मंगल का दोष, क्षीण मंगल दोष माना गया है। मंगल की दृष्टि सप्तम, दशम व एकादश भाव पर रहती है। ऐसा मंगल पति-पत्नी को पृथक करता है, किंतु यदि पापाक्रांत न हो तो अपनी मारक दृष्टि का संधान नहीं करता। सप्तम भावस्थ मंगल सप्तम स्थान पति-पत्नी का स्थान माना गया है। सप्तम स्थान का वैवाहिक दृष्टकोण से अत्यधिक महत्व है।

इस भाव से दाम्पत्य सुख, विचारों में सामंजस्य, जीवन साथी की आकृति-प्रकृति, रूप-गुण आदि का विचार किया जाता है। जिस व्यक्ति के सप्तम भाव में मंगल होता है उसके दाम्पत्य सुख में बाधा आती है, जीवन साथी के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव व स्वभाव में उग्रता रहती है। सप्तम भावस्थ मंगल लग्न स्थान, धन स्थान व कर्म स्थान पर पूर्ण दृष्टि डालता है, जिससे धन हानि, विकृत संतान, दुर्घटना, चारित्रिक पतन तथा व्यवसाय में अवरोध होता है। मंगल की यह स्थिति दाम्पत्य जीवन में कटुता उत्पन्न कर पति-पत्नी को अलग-अलग रहने को बाध्य करती है।

मेष, सिंह, वृश्चिक का मंगल जातक को दुराग्रही व दंभी बनाता है। शोध से पता चला है कि किसी भी राशि का सप्तम भावस्थ मंगल अपना कुप्रभाव देता ही है। अतः मंगल दोष का परिहार कर लेना चाहिए। सप्तम भावस्थ मंगल जातक जातका को प्रबल मंगली बनाता है। ऐसे मंगल को कांतघाती नाम भी दिया गया है।

ऐसा मंगल मृत्यु तुल्य कष्ट देता है या तलाक की स्थिति उत्पन्न कर पति पत्नी को अलग कर देता है। अष्टम भावस्थ मंगल अष्टम भावस्थ मंगल मंगलदोष की पराकाष्ठा है। अष्टम भाव से हमें जातक के जीवन के विघ्न, बाधा, अनिष्ट, आयु, विषाद, मृत्यु, मृत्यु का कारण एवं मृत्यु का स्थान ज्ञात होता है।

स्त्री की जन्म कुंडली में यह स्थान सौभाग्य सूचक माना जाता है। अष्टम भावस्थ मंगल संपूर्ण वैवाहिक सुख का नाश करता है । श् ा ा र ी . रिक सौंदर्य का बिगड़ना, जीवन सहचर क ी म ृ त् य ु , अपयश आदि म ं ग ल क ी इस स्थिति के परिणाम हैं। असहनीय म ा न िस क संताप झेलता हुआ जातक मर्मांतक कष्ट प ा त ा ह ै । म ं ग ल क ी दृष्टि धन स्थान पर होने से ऋषि पराशर के अनुसार मृतै धननाशं पराभव अर्थात धननाश एवं पराजय होती है।

सभी ऋषि-मुनियों व ज्योर्तिविदों ने एक मत से मंगल की इस स्थिति को अत्यंत अशुभ बताया है। इस स्थिति के फलस्वरूप जातक जातका सदैव रोगग्रस्त रहते हैं। फलतः दाम्पत्य सुख का नाश होता है और वे अल्पायु एवं दरिद्र होते हैं।

शास्त्रकारों का मत है शुभास्तस्व किं खेचरा कुर्यन्ये विधाने पिचेदष्टमे भूमिसुनूः अर्थात मंगल अष्टम भावस्थ हो, तो जातक की कुंडली में शुभ स्थान में बैठे शुभ ग्रह भी शुभ फल नहीं देते। दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है। ऐसे मंगल दोष का परिहार होना बहुत आवश्यक है। अष्टम भावस्थ मंगल वृष, कन्या, मकर का हो, तो कुछ शुभ होता है, मकर का मंगल संतानहीन बनाता है।

मंगल यदि कर्क, वृश्चिक, मीन का हो, तो जातक की जल में डूबकर मृत्यु का डर रहता है। उसे परिवार का तिरस्कार सहना पड़ता है। द्वादश भावस्थ मंगल द्वादश भाव से भोग, त्याग, शय्या सुख, निद्रा, यात्रा, व्यय, क्रय शक्ति और मोक्ष का विचार किया जाता है। मंगल द्वादश भावस्थ हो, तो जातक-जातका मंगल दोष से ग्रस्त होते हैं। फलतः पति-पत्नी में आपस में सामंजस्य नहीं रहता। जीवन टूट कर बिखर जाता है।

जातक क्रोधी, कामुक, और दुष्कर्मी हो जाता है। उसे धन का अभाव हो जाता है, उसकी दुर्घटना होती है, वह रक्त विकृति, गुप्त रोग आदि व्याधियों से पीड़ित होता है। वह पत्नी की हत्या भी कर सकता है। द्वादश मंगल की पूर्ण दृष्टि तृतीय, षष्ठ व सप्तम स्थान पर हो, तो जातक की बंधुओं से शत्रुता होती है और वह रोग से ग्रस्त होता है।

मंगल दोष परिहार सर्वमान्य नियम यह है कि मंगल दोष से ग्रस्त कन्या का विवाह मंगल दोष से ग्रस्त वर से किया जाए, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। कन्या की कुंडली में मंगल दोष हो और वर की कुंडली में उसी स्थान पर शनि हो, तो मंगल दोष का परिहार स्वयमेव हो जाता है।

यदि जन्मांक में मंगल दोष हो किंतु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे, तो मंगल दोष का परिहार होता है। मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो, तो मंगल दोष नहीं होता। मंगली पत्रिका में कर्क व सिंह लग्न में लग्नस्थ मंगल केंद्र व त्रिकोण का अधिपति हा,े ता े राजयागे हाते ा ह ै आरै मंगल दोष निरस्त होता है। लग्न में बुध व शुक्र हो, तो मंगल दोष नहीं होता है।

मंगल अनिष्ट स्थान में हो और उसका अधिपति कदंे ्र व त्रिकाण्े ा म ंे हा,े तो मंगल दोष प्रभावी नहीं होता है। माना जाता है कि आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है पर अनुभव में आया है कि मंगल अपना कुप्रभाव हर हाल में डालता है। आचार्यों के अनुसार मंगल व राहु की युति होने पर भी मंगल दोष का परिहार हो जाता है। कुछ ज्योतिर्विद कहते हैं कि मंगल गुरु से युत या दृष्ट हो, तो दोष प्रभावहीन होता है।

किंतु अध्ययन व शोध के आधार पर ज्ञात हुआ है कि गुरु की राशि में स्थित मंगल अत्यंत कष्टकारक होता है और पापाक्रांत मंगल अपना कुप्रभाव डालता ही है। मंगल दोष से दूषित जातकों का जन्मपत्री मिलान करके व मंगल दोष का यथासंभव परिहार करके विवाह करें, तो दाम्पत्य जीवन सुखद होगा है। वृश्चिक राशि में न्यून किंतु मेष राशि में मंगल प्रबल घातक होता है।

कन्या के माता-पिता को घबराना नहीं चाहिए। हमारे धर्म शास्त्रों में व्रतानुष्ठान, मंत्र जप आदि के द्वारा मंगल दोष को शांत करने के उपाय बताए गए हैं। मंगल दोष परिहार के कुछ अन्य नियम इस प्रकार है। यदि मंगल चतुर्थ अथवा सप्तम भावस्थ हो किंतु किसी क्रूर ग्रह से युत या दृष्ट न हो और इन भावों में मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।

किंतु भगवान श्री राम की जन्म कुंडली में सप्तम भावस्थ उच्च के मंगल ने राजयोग तो दिया किंतु उनका सीता से वियोग भी हुआ जबकि मंगल पर गुरु की दृष्टि थी। कुंडली मिलान में मंगल यदि प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्व ादश भाव में हो व द्वितीय जन्मांग में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष नहीं होता है। चतुर्थ भाव का मंगल वृष व तुला का हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो।

वर की कुंडली में मंगल दोष हो व कन्या की कुंडली में मंगल स्थानों पर सूर्य, शनि व राहु हों, तो मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है। मंगल दोष निवारण भारतीय धर्म ग्रंथों में देवतादि की प्रसन्नता वांछित फल की प्राप्ति हेतु भिन्न-भिन्न अभिप्राय से संबंधित व्रत अनुष्ठानादि का विधान वर्णित है। इसके लिए तिथि, मास, पर्व आदि निर्धारित हैं।

विवाह विलंब व मंगल दोष को दूर करने के व्रत का विधान भी शास्त्रों उल्लिखित है। मृत्यु लोक के प्राणी ही नहीं, स्वर्ग लोक के देवी देवताओं ने भी अपनी सुख-समृद्धि, सिद्धि व श्रीवृद्धि हेतु व्रतानुष्ठान से लाभ उठाया है। पर्वत राज हिमालय पार्वती का विवाह श्री विष्णु से करना चाहते थे।

किंतु अनुकूल और प्रिय जीवन साथी प्राप्त करने हेतु पार्वती ने व्रतानुष्ठान किया और सदाशिव को प्राप्त किया। विष्ण् ाु पुराण में वर्णित है कि अमृत कलश व लक्ष्मी को प्राप्त करने हेतु श्री विष्ण् ाु ने समुद्र मंथन कराया और अमृत के साथ-साथ पत्नी के रूप में श्री लक्ष्मी को प्राप्त किया।

आशय यह कि व्रतानुष्ठान से अशुभ फल को शुभ फल में बदला जा सकता है। व्रत का चयन जन्मांग के अनुरूप किया जा सकता है। वट सावित्री व्रतानुष्ठान यह व्रत मंगल दोष से ग्रस्त कन्याओं के जीवन में दाम्पत्य सुख हेतु वरदान है। यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस को किया जाता है। इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है।

सुख सौभाग्य, धन-धान्य प्रदाता इस व्रत को पूर्ण किए बिना स्त्रियां जल भी ग्रहण नहीं करतीं। सावित्री द्वारा यमराज के पाश से सत्यवान के प्राण मुक्त कराने की कथा बड़ी मर्मस्पर्शी है। इस व्रत से सौभाग्य की रक्षा होती है। वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, तने में विष्णु व ऊपरी भाग में शिव का और सर्वांग में सावित्री का वास होता है।

इस व्रत में सोलह शृंगार सामग्री व वट वृक्ष के फल के आकार की आटे की मीठी गोलियां बनाकर, घी में सेंक कर, उनकी माला बनाई जाती है। पूजन की संपूर्ण सामग्री के साथ वट वृक्ष की पूजा करें। घी का दीपक जलाकर कथा श्रवण करें। फिर वृक्ष की सात परिक्रमा करते हुए हल्दी से रंगे कच्चे सूत को वट में लपेट दें। फिर आरती कर जल ग्रहण करें। इस दिन फलाहार लें।

यदि जन्मांग में भीषण मंगल दोष हो तो घट विवाह कर और पीपल अथवा विष्णु की प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा के फेरे लेकर वर से विवाह करना चाहिए, इससे मंगल दोष खत्म होता है। यह कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से किया जाए। कन्या स्वयं कुंभ, पीपल या विष्णु प्रतिमा का वरण करे। माता-पिता मात्र दर्शक रहें। कन्या नित्य घी का दीपक जलाकर 21 बार मंगल चंडिका स्तोत्र का पाठ करें।

रक्ष, रक्ष जगन्मातर्देवी मंगल चण्डिके।

हारिके विपदा राशे हर्ष मंगल कारिके।।

हर्ष मंगलदक्षे च हर्ष मंगल दायिके।

शुभे मंगलदक्षे च शुभे मंगल चण्डिके।

मंगले मंगलार्हे च सर्वे मंगलमंगले।

सदा मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये।।

मंगला गौरी व्रतानुष्ठान मंगली कन्या का विवाह यदि अनजाने में मंगल दोष रहित वर से कर दिया गया हो, तो मंगल के कुप्रभाव को क्षीण करता है।

अखंड सौभाग्य कामना की पूर्ति हेतु सब व्रतों में उत्तम मंगला गौरी व्रत है जिसके अनुष्ठान से सुहाग की रक्षा हाते ी ह।ै यह व्रत विवाह के पश्चात पांच वर्ष तक करना चाहिए। यह व्रत सब पापों का नाश करता है। यह व्रत विवाह के बाद पहले श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के मंगलवार से आरंभ करें।

गणेश पूजा कलश पूजन गौरी का ध्यान करें और आवाहन, आसन, अघ्र्य आचमन, पंचगव्य स्नान, गंधादि से पंचोपचार पूजा कर वस्त्र आभूषण चढ़ाएं। धूप, दीप, नैवेद्य, पान-सुपारी, दक्षिणा अर्पित कर कथा श्रवण कर आरती करें। सात सुहागिनों को भोजन कराएं। पद्म एवं मत्स्य पुराण के अनुसार मंगलवार को स्वाति नक्षत्र के योग में मंगल यंत्र की नित्य षोडशोपचार पूजा अर्चना निम्न मंत्र से करें ।

रक्तमाल्याम्बरधरः शक्ति शूल गदाधरः।

चतुर्भुजो मेषगमो वरदः स्यादधरासुतः।।

पूजा कर मंगल के निम्नलिखित 21 नामों का उच्चारण करते हुए यंत्र पर लाल पुष्प अर्पित करें।

ॐ भूमि पुत्राय नमः

ॐ अंगारकाय नमः,

ॐ भौमाय नमः,

ॐ मंगलाय नमः,

ॐ भूसुताय नमः,

ॐ क्षितिनंदनाय नमः,

ॐ लोहितांगाय नमः,

ॐ महीसुत नमः,

ॐ क्रूरदृक् नमः,

ॐ कुजः,

ॐ अवनि,

ॐ लोहित,

ॐ महिज,

ॐ क्रूरनेत्र,

ॐ धराज,

ॐ रुधिर,

ॐ कुपुत्र,

ॐ आबनय,

ॐ क्षितिज,

ॐ भूतनय,

ॐ भूसुत।

ॐ यमाय नमः। 

हरिवंश पुराण के अनुसार मंगल दोष से ग्रस्त जातक को महारुद्र यज्ञ करना चाहिए। मंगल अत्यधिक पाप प्रभाव में हो, तो महामृत्युंजय मंत्र का जप करा कर शांति कराएं। मंगल दोष निवारण हेतु मंगलवार का व्रत करें।

9 मीठे पुए बनाकर, 2 किसी कन्या को 2 लाल गाय को खिलाएं व दो पुओं का भोग श्री हनुमान को लगाएं। घी का दीपक जलाकर मंगल स्तोत्र का पाठ करें। कार्तिकेय स्तोत्र का पाठ नित्य करें, क्योंकि पुराणों में मंगल ग्रह को युद्ध के देवता कार्तिकेय का ही स्वरूप माना जाता है। शिव ने अपना तेज अग्नि में डाला इन्हें अंगारक कहा गया।

गंगा ने स्वीकारा व छः कृत्तिकाओं ने इन्हंे पाला। बम््र हववै र्त परु ाण क े अनसु ार भगवान ने वाराहावतार लिया व हिरण्याक्ष द्वारा चुराई गई पृथ्वी का उद्धार हिरण्याक्ष को मार कर किया। पृथ्वी देवी ने प्रसन्नतापूर्वक भगवान को पति के रूप में वरण किया। भगवान विष्णु पृथ्वी के साथ एक वर्ष तक एकांत में रहे।

इस संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। लाल कपड़े, मसूर, लाल चंदन, लाल पुष्प, द्रव्य, मीठा आदि सात बार उतार कर नदी में बहाएं, इससे मंगल दोष प्रभावहीन होता है।

मूंगा जड़ित मंगल यंत्र की पूजा अर्चना कर हनुमान जी के चरणों में अर्पित करें। मंगल नीच व अत्यधिक अशुभ हो, तो उससे संबंधित वस्तुओं का दान किसी से न लें। लाल चंदन, लाल पुष्प, बेल की छाल, जटामांसी, मौलश्री, मालकांगुनी, सिंगरक आदि में से जो उपलब्ध हो उन्हें मिश्रित कर जल में डालें व स्नान करें।

यह स्नान 28 मंगलवार तक निरंतर करते रहने से मंगल दोष का शमन होता है। लाल अक्षर सुंदर कांड, हनुमान चालीसा व बजरगं बाण का पाठ कर।ंे मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर का लेप करें, स्वयं टीका लगाएं व दीपदान करें। लाल वस्त्र, लाल पुष्प, गुड़, लाल चंदन, घी, केसर, कस्तूरी, गेहूं, मिठाई, रेवड़ी, बताशे, लाल बछड़े आदि का दान करने से मंगल के शुभत्व में वृद्धि होती है।

रामायण बाल कांड की चैपाई 234 से 236 तक का पाठ निम्न संपुट लगाकर करें। शकर हो संकट के नाशन। विघ्न विनाशन मंगल कारण। वैदिक या पौराणिक मंत्र से हवन पूजन कराकर कुपित मंगल की शांति कराएं। ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः मंत्र का 10 हजार अथवा

धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्।

कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगल प्रणमाम्यहम्।।

का 40 हजार अथवा मंगल गायत्री मंत्र: ॐ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् का नित्य 108 बार जप करें।

दीप अनुष्ठान: मंगल दोष के परिहार हेतु दीप अनुष्ठान भी करना चाहिए। सामग्री: मसूर दाल, चना दाल, गुलाबी कागज की 21 प्लेटें, आटे का लाल दीपक, गुलाब का फूल, रक्त चंदन, सवा रुपया, घी।

विधान: यह अनुष्ठान मंगलवार से शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करें व 21 मंगलवार तक करें। मंगलवार का व्रत रखें, मंगल यंत्र की षोडशोपचार पूजा कर मंगल स्तोत्र का पाठ करें।

उसके पश्चात कागज की गुलाबी प्लेट में सवा रुपया रखें, रक्त चंदन से एक टीका अपने नाम व एक टीका अपने अनाम वर के नाम से सिक्के पर लगाएं। फिर मसूर दाल, चना दाल से सिक्के को ढक दें। रखे गए अनाज के ऊपर आटे का लाल रंग का दीपक और एक लाल गुलाब रखें।

हनुमान जी के मंदिर में संध्या समय जाकर उक्त सामग्री हनुमान जी के चरणों में रखें व बाएं पैर पर खड़े होकर मंगल स्तोत्र का पाठ करें, ध्यान रहे, इस क्रिया के समय घी का दीपक जलता रहे। दूसरे मंगलवार को दो दीपक व दो गुलाब, तीसरे मंगलवार को तीन दीपक व तीन गुलाब इसी क्रम से 21 मंगलवार तक हर मंगलवार को एक दीपक और एक गुलाब अधिक करने हंै।

इस अनुष्ठान से विवाह तय हो जाता है। विवाह के पश्चात इस अनुष्ठान को उल्टे क्रम से पूरा करें। अक्षय तृतीया के दिन किया गया कार्य अक्षुण्ण होता है अतः मंगल दोष निवारण हेतु जातक-जातका घी का दीपक जला कर मंगल चंडिका का पाठ 108 बार करें व हवन पूजन करें। यह पर्व वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया को पार्वती मंगल स्तोत्र का पाठ भी मंगल दोष के प्रभाव को क्षीण करता है। 

बृहस्पतिवार व्रतानुष्ठान: यदि मंगल दोष युक्त जन्मांग पर गुरु की दृष्टि भी पड़ रही हो, तो कन्या बृहस्पतिवार का व्रत भी करे। कन्या के विवाह के लिए गुरु ग्रह की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है। गुरु यदि निर्बल हो, तो कन्या दाएं हाथ की तर्जनी में पुखराज पहने। यह रत्न तभी पहनें जब गुरु शुभ हो।

अशुभ होने की स्थिति में बृहस्पतिवार का व्रतानुष्ठान करें। इस दिन एक समय पीला भोजन करें। पीले पुष्प, पीले अक्षत, चंदन, केसर से बृहस्पति देव का पूजन करें, और कथा श्रवण करें। 

गणगौर व्रतानुष्ठान: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां व्रत रखती हैं। इस दिन पार्वती ने भगवान शंकर से सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त किया था और माता पार्वती ने अन्य स्त्रियों को वरदान दिया था।

पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर और सिंदूर चढ़ाने का विशेष विधान है। चंदन, अक्षत, धूप-बत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन कर भोग लगाया जाता है। विवाहिताएं गौर पर चढ़ाए सिंदूर को अपनी मांग में लगाती हैं।

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