दांपत्य सुख में मंगल ही नहीं अन्य ग्रह भी प्रभावी
दांपत्य सुख में मंगल ही नहीं अन्य ग्रह भी प्रभावी

दांपत्य सुख में मंगल ही नहीं अन्य ग्रह भी प्रभावी  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 9424 | आगस्त 2007

मंगल दोष जितना और जिस रूप में प्रचारित है, उतना है नहीं। मंगल दोष वाली अनेकानेक कुंडलियों के जातक सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। सवाल उठता है यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्व ादश में केवल मंगल की उपस्थिति ही वैवाहिक सुख के विनाश का कारण बनती है, तो क्या कुंडली के अन्य योग कोई महत्व नहीं रखते?

लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम आदि में मंगल स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि, उच्च राशि का, शुभ दृष्टियोग में, शुभ नवांश में, शुभ वर्गों में हो, तो भी क्या अनिष्टकारक फल देगा ? गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने से पहले अधिकांश जातक मंगल दोष से परिचित हो जाते हैं। विवाह में विलंब जीवनसाथी से अनावश्यक कलह, दुर्घटना, तलाक या कुछ समय के लिए जीवनसाथी से अलगाव होने पर मंगल को ही दोषी माना जाता है।

कुंडली में लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल की स्थित हो तो मंगल दोष निर्मित होता है। मंगल दुष्ट दृष्टि वाला, अधिक पित्त वाला, नेता, रक्त वर्ण वाला, लाल आंखों वाला, तमोगुण् ाी, क्रूर, उग्र बुद्धिवाला, हिंसक, शूर, साहसी एवं आलस्यहीन है। कुंडली में मंगल दोष होने पर पति-पत्नी में कलह, तलाक, दुर्घटना एवं विशेष परिस्थितियों में आकस्मिक मृत्यु भी करवा देता है।

कई बार मंगल दोष की आड़ में अन्य ग्रह अधिक हानिकारक हो सकते हैं। वैवाहिक सुख को छिन्न भिन्न करने की पूरी जिम्मेदारी मंगल पर थोपना उचित नहीं है। मंगल के साथ जन्म कुंडली में स्थित अन्य ग्रहों के प्रभाव का विश्लेषण भी आवश्यक है। कहा गया है

अजे लग्ने व्यये चापाताले वृश्चिके कुजे।

द्यूने मृगे कर्किचाष्टौ मंगल दोषो न विद्यते।।

अर्थात जातक/जातका की कुंडली में लग्न में मेष राशि का मंगल, चतुर्थ में वृश्चिक राशि का, सप्तम में मकर का, अष्टम में कर्क का तथा द्वादश स्थान में धनु राशि का मंगल हो, तो मंगल दोष नहीं होता है। अजे लग्ने कुजे से तात्पर्य है कि मंगल यहां पंचमहापुरुष का एक रुचक योग बना रहा है। यहां मंगल अष्टमेश होकर भी लग्न म ंे रहन े स े शभ्ु ा आरै दीघार्य कु ारी बताया गया है।

मंगल इस भाव से चतुर्थ, सप्तम तथा अष्टम में स्वराशि को देखता है। ज्योतिष का एक सिद्ध ांत यह भी है कि जो ग्रह जिस भाव में अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, उस भाव को बलवान बनाता है। चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि का मंगल होने से मंगल दोष का परिहार हो जाता है क्योंकि रुचक योग बनने के साथ-साथ मंगल यहां केंद्र और त्रिकोण का स्वामी होकर अति शुभ हो जाता है।

सप्तम भाव में मकर राशि का मंगल उच्च का होकर रुचक योग बनाने के साथ-साथ कंेंद्र व त्रिकोण संबंध का एकमात्र स्वामी है। जाया भाव में उच्च का मंगल वैवाहिक सुख में वृद्धि करता है। अष्टम भाव में कर्क राशि का मंगल, मंगल दोष नाशक बताया गया है। मंगल कर्क राशि में नीच का होता है। जो ग्रह जिस भाव में नीच का होता है, उस भाव को कमजोर कर देता है।

पराशर एवं जातक तत्व ग्रंथों में अष्टम भाव का बलवान होना दाम्पत्य सुखनाशक बताया गया है। अष्टमेशोऽष्टम स्थाने भार्यापट्टता (बृहत्पराशर) जातक तत्व के अनुसार अष्टमेशोऽष्टमे जारिणी स्त्री। इसी प्रकार द्वादश स्थान में धनु राशि के मंगल से मंगल दोष के परिहार की बात कही गई है। मंगल तुल्यो मंगलः पायोवा तादृश्यो भवेत तथा कुजदोषवती देया कुज दोष वते किल। नास्ति दोषो न चानिष्टं दाम्पत्योः सुखवर्धनम्।।

अर्थात मंगल दोष वाली किसी कन्या की कुंडली में जिस भाव में मंगल या कोई अन्य पापी ग्रह हो मंगल दोष वाले किसी वर की कुंडली में भी उसी भाव में कोई पापी ग्रह हो, तो दोनों का विवाह कर देने से मंगल दोष नहीं लगता और दाम्पत्य सुख में वृद्धि होती है। निम्नलिखित उदाहरण कुंडलियों पर विचार करें जहां मंगल दोष या अन्य दोष वैवाहिक सुख में बाधक बने।

उदाहरण कुंडली 1 के जातक की विवाह के एक महीने के अंदर मृत्यु हो गई, जबकि वह स्वयं मंगली है। अष्टम का मंगल पत्नी के लिए घातक होना चाहिए था, लेकिन वह वर के लिए ही घातक हुआ। जिस भाव का कारक तथा स्वामी बलवान हो उस भाव का सौख्य प्राप्त होता है। यहां उसकी पत्नी की कुंडली में कारक व स्वामी दोनों दुर्बल हंै। कहा गया है कि गुण बाहुल्ये न दोषे मंगली भवेत।

अर्थात वर वधू के नक्षत्र मेलापक में अधिक गुण मिल जाने से मंगल दोष प्रभावी नहीं होता है। लेकिन 36 में से कितने गुणों को उनका बाहुल्य माना जाए यह अस्पष्ट है। कोई 18 को पर्याप्त मानता है तो कोई 22 को, कोई 25 को और कोई 31 को।

लग्ने चेत्तदा राहु हिबुके चाष्टमेपिवा।

यामित्रे द्वादशे चेव मंगल दोष विनाशकः।।

अर्थात वर या कन्या की कुंडली में केंद्र स्थान में राहु हो अथवा मंगल ग्रह की राहु ग्रह के साथ युति हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। यदि ऐसा होता है, तो उदाहरण कुंडलियों में मंगल दोष का कोई स्थान नहीं है क्योंकि दोनों में राहु की स्थिति अनिष्टकारक है। का विश्लेषण करें।

उदाहरण 3 की कुंडली सिद्धांत के अनुसार मंगल दोषयुक्त है, लेकिन दाम्पत्य जीवन सुखमय है। पति-पत्नी दोनों सरकारी सेवा में हैं।

उदाहरण 4 की कुंडलियां जाने माने राजनैतिक परिवार के सदस्यों की हंै जो भारतीय राजनीति में सर्वाधिक ाचर्चित परिवार है। पत्नी की कुंडली में मंगल अष्टम में वक्री होकर स्थित है। मंगल कुंभ राशि में एवं बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि में है। इनके पति संजय गांधी की मृत्यु विवाह के कुछ वर्षों के भीतर ही हवाई दुर्घटना में हो गई। पति के लिए मंगल चतुर्थेश होकर तटस्थ हो गया है।

फिर दाम्पत्य सुख में कमी नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन पंचम में स्थित शनि की सप्तम पर निज भाव दृष्टि ने आग में घी का काम किया। किसी पाप ग्रह की निज भाव पर दृष्टि जीव कारक का नाश करती है। अजीव कारक हेतु शुभ है। इसी प्रकार पति की कुंडली में भी मंगल द्वादश भाव में है। मंगल मित्र राशि में चतुर्थेश होकर तटस्थ है। लाभेश होकर कुछ पाप प्रभाव जरूर है।

संजय गांधी की कुंडली में भी शनि सप्तम में होकर लग्न पर अपनी राशि मकर पर दृष्टि डाल रहा है। शनि वक्री भी है। दोनो कुंडलियों में शनि संजय गांधी का आत्मा नाशक बन रहा है अर्थात दुर्घटना देकर मृत्यु दे रहा है। यहां केवल मंगल को ही दोष देना उपयुक्त नहीं है। विशेष प्रभाव शनि का ही कहा जा सकता है।

इससे स्पष्ट है कि वैवाहिक सुख में बाधा के लिए केवल मंगल को ही दोषी मानना उचित नहीं है। गुण बाहुल्य वैवाहिक सुख का मात्र एक कारक हो सकता है, निर्णायक नहीं। जन्म कुंडली लड़के की हो या लड़की की, यदि उसका सातवां स्थान, जो दाम्पत्य का स्थान है, दोषी नहीं है अर्थात सातवें स्थान का स्वामी कोई भी ग्रह हो वह लग्न से छठे, आठवें, बारहवें या दूसरे किसी स्थान में नहीं बैठा है और सातवें स्थान का स्वामी किसी भी नीच राशि में नहीं बैठा है।

किसी भी अन्य स्थान का स्वामी नीच होकर सातवें स्थान में नहीं बैठा है। सातवें स्थान में राहु या केतु कोई नहीं बैठा है तथा सातवें स्थान का स्वामी सूर्य से अस्त नहीं है या शून्य अंश नहीं है या छठे, आठवें, या बारहवें घर का स्वामी सातवें स्थान में नहीं बैठा है या किसी भी ग्रह की सातवें स्थान पर नीच दृष्टि नहीं है तो ऐसी स्थिति में लड़के व लड़की की कुंडलियों में 36 में से एक भी गुण न मिले, तो भी वैवाहिक जीवन सुखमय होगा। यदि कुंडली में ग्रहों की यह स्थिति न हो, तो वैवाहिक जीवन 36 गुण मिलने पर भी दुखमय होगा।

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