प्रेम विवाह: ज्योतिषीय समीक्षा
प्रेम विवाह: ज्योतिषीय समीक्षा

प्रेम विवाह: ज्योतिषीय समीक्षा  

सीताराम सिंह
व्यूस : 7859 | नवेम्बर 2016

ज्योतिष शास्त्र प्रथम दृष्टि में व्यक्तियों के स्वभाव व व्यक्तित्व का सटीक दिग्दर्शन करता है। राशि चक्र की बारह राशियां क्रमशः अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल तत्व दर्शाती हैं। ‘अग्नि तत्व’ (मेष, सिंह और धनु राशि) वाले उत्साही, स्वतंत्र विचार और ऊर्जावान होते हैं। ‘पृथ्वी तत्व’ के व्यक्ति स्थिर विचारवान होते हैं। ‘वायु तत्व’ (मिथुन, तुला और कुंभ राशि) वाले सौम्य, मिलनसार और भावुक होते हैं। ‘जल तत्व’ ( कर्क, वृश्चिक और मीन राशि) वाले कोमल हृदय, विचार बदलने वाले, रसिक स्वभाव और सात्विक होते हैं।

एक सी राशियों वाले, पृथ्वी और जल तत्व वाले तथा अग्नि और वायु तत्व वाले व्यक्तियों के सोच विचार मिलने के कारण उनकी मित्रता और वैवाहिक जीवन स्थिर व सुखी होता है। कुंडली मेलापक में अष्टकूट के ‘गण’ और ‘भकूट’ द्वारा वर-वधू के परस्पर स्वभाव व व्यक्तित्व मिलान का आकलन किया जाता है। हिंदू शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों- ब्रह्म विवाह, देव विवाह, आर्ष विवाह, प्रजापति विवाह, गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह और पिशाच विवाह - का विवरण मिलता है।

वर्तमान में प्रचलित ‘प्रेम विवाह’ गंधर्व विवाह के अंतर्गत आता है। ‘मनुस्मृति’ ग्रंथ के अनुसार:- इच्छायाऽन्योडन्य संयोगः कन्यायाश्च वरस्य च। गांधर्वस्यु तु विज्ञेयो मैथुन्य काम संभवः।। अर्थात्, ‘जब कोई युवक व युवती अपनी मर्जी से पति-पत्नी का संबंध बनाते हैं उसे ‘गंधर्व विवाह’ कहते हैं। जन्मकुंडली का लग्न भाव व्यक्ति के जीवन में सुख, दुख व स्वास्थ्य, चतुर्थ भाव उसके मन व मानसिक संतुष्टि, पंचम भाव उसकी भावना, प्रेम और विपरीत लिंगी जातक के प्रति आकर्षण दर्शाता है।

सप्तम भाव विवाह और पति-पत्नी का शारीरिक संबंध दर्शाता है। नवम् भाव से व्यक्ति के धार्मिक और पारिवारिक संस्कार तथा देवकृपा प्राप्ति का ज्ञान होता है। अतः लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम व नवम भाव व भावेश पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को पारिवारिक संस्कारों के विरूद्ध और अधार्मिक आचरण की ओर प्रेरित करता है। वैवाहिक सुख प्राप्ति के लिए पति कारक बृहस्पति और पत्नी कारक शुक्र दोष रहित होना चाहिए।

‘फलदीपिका’ ग्रंथ (अ. 10.1) के अनुसार: शुभाधिपयुतेक्षिते सुतकलत्रभे लग्नतो। विधोरपि तयोः शुभं त्वितरथा न सिद्धि स्तयोः।। अर्थात्, ‘जब लग्न अथवा चंद्र से पंचम व सप्तम भाव और उनके भावेश, नवमेश तथा शुभ ग्रहों (बृहस्पति, शुक्र, बली चंद्र व बुध) से युक्त या दृष्ट हों तो इन दोनों भावों का शुभ फल मिलता है, अन्यथा नहीं।’ प्रेम प्रसंग की ओर प्रेरित करने वाले ग्रह शुक्र व चंद्र (भावुकता वश) तथा मंगल व शुक्र (कामुकता वश) हैं।


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जब चंद्रमा वृष या तुला (शुक्र की राशि) में स्थित हो और शुक्र कर्क (चंद्रमा की) राशि में हो तो जातक भावुक होता है, और उसकी विपरीत लिंगी मित्रता शीघ्र प्रेम प्रसंग में परिणत होती है। उच्चस्थ शुक्र की लग्न, द्वितीय, पंचम, सप्तम, एकादश और द्वादश भाव में स्थिति भी प्रेम प्रसंग की ओर प्रेषित करती है। मंगल यदि शुक्र से युति करे या शुक्र पर दृष्टिपात करे या वे एक दूसरे की राशि में हों या लग्न कुंडली अथवा नवांश कुंडली के पंचम या सप्तम भाव से संबंध व शुक्र का सप्तम भाव से संबंध होना विशेषकर जातक की कामुकता बढ़ाता है।

‘सर्वार्थचिंतामणि’ ग्रंथ (अ. 6.2,3) ‘कुजे बहुस्त्री पुरतः’ से संबोधित किया है। ‘लग्न चंद्रिका’ ग्रंथ में (चतुर्थ परिच्छेद, श्लोक-14) इस स्थिति को परदारतो मान्या शुक्र मंगल संगमे।’ कहा है। अर्थात्, ‘शुक्र और मंगल के संगम से व्यक्ति पराई स्त्री (पुरूष) में रत परंतु मान्य होता है। पुनश्च, युवक की कुंडली में निर्बल सप्तमेश और शुक्र पीड़ित हो तथा युवती की कुंडली में सप्तमेश व मंगल इस स्थिति में हो, तो विवाह पूर्व प्रेम संबंध बनता है, और यदि उन पर शुभ बृहस्पति की दृष्टि न हो तो कुछ समय बाद वह विच्छेद हो जाता है।

इन ग्रहों की विवाह संबंधी भावों में स्थिति अधिक अशुभ फलदायी होती है। उन पर राहु, शनि या दोनों का प्रभाव होने पर जातक विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बना लेता है। जब चंद्रमा और शुक्र की युति मिथुन या धनु राशि में हो तो व्यक्ति अपने भावुक स्वभाव के कारण एकतरफा प्यार करता है। जब ये दोनों ग्रह तुला राशि में युक्त हों तो व्यक्ति को सही प्यार मिलता है।

इसके विपरीत यदि लग्नेश व सप्तमेश की कुंडली के अष्टम या द्वादश भाव में युति हो और वह पंचम भाव में स्थित पापी ग्रहों से दृष्ट हों, तो प्रेम प्रसंग का दुःखदायी अंत होता है। प्रेम विवाह के ग्रह योग

1. यदि पंचमेश (प्रेम) और सप्तमेश (विवाह) का राशि विनिमय हो तो जातक प्रेम विवाह करता है। यदि इनकी केंद्र भाव या त्रिकोण भाव में युति पर बलवान शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो प्रेम विवाह सफल रहता है।

2. पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश का संबंध प्रेम विवाह करवाता है।

3. लग्नेश, पंचमेश और नवमेश का संबंध प्रेम विवाह करवाता है।

4. पंचमेश, सप्तमेश और एकादशेश की युति, परस्पर दृष्टि, और इनका राशि विनिमय भी प्रेम विवाह करवाता है।

5. युवती की कुंडली में मंगल, और युवक की कुंडली में शुक्र एक सी राशि में हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो प्रेम विवाह सफल रहता है।

प्रेम विवाह टूटने के ग्रह योग

1. पंचमेश व सप्तमेश शनि अथवा मंगल की एकादश भाव में युति प्रेम विवाह देती है, परंतु उन पर राहु या केतु की दृष्टि विवाह विच्छेद करवाती है।

2. यदि पंचमेश व सप्तमेश शनि अथवा मंगल के साथ षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हों तो प्रेम विवाह टूट जाता है।

3. लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में अष्टम (मांगल्य) भाव व अष्टमेश पर राहु, केतु, मंगल व शनि का प्रभाव हो तो व्यक्ति बेमेल प्रेम विवाह करता है जो थोड़े समय बाद टूट जाता है।

4. मंगल और शुक्र षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में पाप दृष्ट हो तो प्रेम विवाह विच्छेद होता है।

5. जब सप्तम व द्वितीय भाव, शुक्र और सप्तमेश, शनि, राहु, मंगल व केतु से दृष्ट या युत हों तो प्रेम प्रसंग विवाह में परिणत नहीं होता।


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अतः प्रेम प्रसंग मंे बढ़ने से पहले युगल को अपनी कुंडलियों का ज्योतिषीय आकलन करवा कर वैवाहिक जीवन के भविष्य को जान लेना हितकारी रहेगा। शुक्र दोष रहित होना चाहिए। ‘फलदीपिका’ ग्रंथ (अ. 10.1) के अनुसार: शुभाधिपयुतेक्षिते सुतकलत्रभे लग्नतो।

विधोरपि तयोः शुभं त्वितरथा न सिद्धि स्तयोः।। अर्थात्, ‘जब लग्न अथवा चंद्र से पंचम व सप्तम भाव और उनके भावेश, नवमेश तथा शुभ ग्रहों (बृहस्पति, शुक्र, बली चंद्र व बुध) से युक्त या दृष्ट हों तो इन दोनों भावों का शुभ फल मिलता है, अन्यथा नहीं।’ प्रेम प्रसंग की ओर प्रेरित करने वाले ग्रह शुक्र व चंद्र (भावुकता वश) तथा मंगल व शुक्र (कामुकता वश) हैं।

जब चंद्रमा वृष या तुला (शुक्र की राशि) में स्थित हो और शुक्र कर्क (चंद्रमा की) राशि में हो तो जातक भावुक होता है, और उसकी विपरीत लिंगी मित्रता शीघ्र प्रेम प्रसंग में परिणत होती है। उच्चस्थ शुक्र की लग्न, द्वितीय, पंचम, सप्तम, एकादश और द्वादश भाव में स्थिति भी प्रेम प्रसंग की ओर प्रेषित करती है।

मंगल यदि शुक्र से युति करे या शुक्र पर दृष्टिपात करे या वे एक दूसरे की राशि में हों या लग्न कुंडली अथवा नवांश कुंडली के पंचम या सप्तम भाव से संबंध व शुक्र का सप्तम भाव से संबंध होना विशेषकर जातक की कामुकता बढ़ाता है। ‘सर्वार्थचिंतामणि’ ग्रंथ (अ. 6.2,3) ‘कुजे बहुस्त्री पुरतः’ से संबोधित किया है। ‘लग्न चंद्रिका’ ग्रंथ में (चतुर्थ परिच्छेद, श्लोक-14) इस स्थिति को परदारतो मान्या शुक्र मंगल संगमे।’ कहा है।

अर्थात्, ‘शुक्र और मंगल के संगम से व्यक्ति पराई स्त्री (पुरूष) में रत परंतु मान्य होता है। पुनश्च, युवक की कुंडली में निर्बल सप्तमेश और शुक्र पीड़ित हो तथा युवती की कुंडली में सप्तमेश व मंगल इस स्थिति में हो, तो विवाह पूर्व प्रेम संबंध बनता है, और यदि उन पर शुभ बृहस्पति की दृष्टि न हो तो कुछ समय बाद वह विच्छेद हो जाता है। इन ग्रहों की विवाह संबंधी भावों में स्थिति अधिक अशुभ फलदायी होती है। उन पर राहु, शनि या दोनों का प्रभाव होने पर जातक विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बना लेता है।

जब चंद्रमा और शुक्र की युति मिथुन या धनु राशि में हो तो व्यक्ति अपने भावुक स्वभाव के कारण एकतरफा प्यार करता है। जब ये दोनों ग्रह तुला राशि में युक्त हों तो व्यक्ति को सही प्यार मिलता है। इसके विपरीत यदि लग्नेश व सप्तमेश की कुंडली के अष्टम या द्वादश भाव में युति हो और वह पंचम भाव में स्थित पापी ग्रहों से दृष्ट हों, तो प्रेम प्रसंग का दुःखदायी अंत होता है।

प्रेम विवाह के ग्रह योग

1. यदि पंचमेश (प्रेम) और सप्तमेश (विवाह) का राशि विनिमय हो तो जातक प्रेम विवाह करता है। यदि इनकी केंद्र भाव या त्रिकोण भाव में युति पर बलवान शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो प्रेम विवाह सफल रहता है।

2. पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश का संबंध प्रेम विवाह करवाता है।

3. लग्नेश, पंचमेश और नवमेश का संबंध प्रेम विवाह करवाता है।


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4. पंचमेश, सप्तमेश और एकादशेश की युति, परस्पर दृष्टि, और इनका राशि विनिमय भी प्रेम विवाह करवाता है।

5. युवती की कुंडली में मंगल, और युवक की कुंडली में शुक्र एक सी राशि में हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो प्रेम विवाह सफल रहता है।

प्रेम विवाह टूटने के ग्रह योग

1. पंचमेश व सप्तमेश शनि अथवा मंगल की एकादश भाव में युति प्रेम विवाह देती है, परंतु उन पर राहु या केतु की दृष्टि विवाह विच्छेद करवाती है।

2. यदि पंचमेश व सप्तमेश शनि अथवा मंगल के साथ षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हों तो प्रेम विवाह टूट जाता है।

3. लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में अष्टम (मांगल्य) भाव व अष्टमेश पर राहु, केतु, मंगल व शनि का प्रभाव हो तो व्यक्ति बेमेल प्रेम विवाह करता है जो थोड़े समय बाद टूट जाता है।

4. मंगल और शुक्र षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में पाप दृष्ट हो तो प्रेम विवाह विच्छेद होता है।

5. जब सप्तम व द्वितीय भाव, शुक्र और सप्तमेश, शनि, राहु, मंगल व केतु से दृष्ट या युत हों तो प्रेम प्रसंग विवाह में परिणत नहीं होता। अतः प्रेम प्रसंग मंे बढ़ने से पहले युगल को अपनी कुंडलियों का ज्योतिषीय आकलन करवा कर वैवाहिक जीवन के भविष्य को जान लेना हितकारी रहेगा। कुछ निष्फल और सफल प्रेम विवाह दर्शाती कुंडलियां प्रस्तुत हैं: 

कुंडली 1 के तीनों केंद्रों में चार अशुभ ग्रहों की स्थिति जीवन को संघर्षपूर्ण बनाती है। जातिका लग्न से मंगली है।

मंगल व शनि की लग्न में युति सप्तम भाव को पीड़ित कर रही है। नीचस्थ चंद्रमा तृतीय भाव में है और उस पर शनि उदाहरण-1 1. स्त्री: 15-2-1982, 20ः20 बजे, दिल्ली की दृष्टि है। पंचम भाव में लग्नेश व द्वितीयेश शुक्र की युति के कारण जातिका ने भावुकतावश बिना कुंडली मिलाये प्रेम विवाह किया जो एक वर्ष में टूट गया।

उदाहरण कुंडली 2 में पंचमेश मंगल और एकादशेश शुक्र की लग्न में युति है। शनि की पंचम भाव स्थित केतु पर दृष्टि है और केतु लग्न सिथत मंगल-शुक्र को दूषित कर रहा है। शनि की पतिकारक बृहस्पति, नवमेश सूर्य और सप्तमेश बुध पर द्वादश भाव में दृष्टि है। चंद्रमा चतुर्थ भाव में पापकत्र्तरी योग में है। जातिका ने एक वर्ष पूर्व बुध-शुक्र में प्रेम विवाह किया और कुछ माह पश्चात् से मां के घर रह रही है।

उदाहरण-2 2. स्त्री: 1-12-1995, 8ः45 बजे, दिल्ली उदाहरण कुंडली 3 के जातक ने 25 वर्ष की आयु में सजातीय युवती से प्रेम विवाह किया। सप्तम भाव में विच्छेदकारी सूर्य, मंगल व राहु, उदाहरण-3 3. पुरूष: 3-5-1949, 19ः13 बजे, भंडारा (एम. पी.) शुक्र के साथ स्थित है जिससे विवाह उपरांत कठिनाई आयी। परंतु नवमांश कुंडली में लग्नेश, बुध व सप्तमेश बृहस्पति दशम केंद्र (मीन राशि) में युक्त है। स्वगृही बृहस्पति की शुक्र पर दृष्टि है जिससे वैवाहिक जीवन चलता रहा। दंपत्ति अब नाती-पोते वाले हैं।

उदाहरण कुंडली 4 के जातक की कुंडली में पंचमेश बृहस्पति और सप्तमेश शुक्र की लग्न में युति है, उन पर उच्च नवमेश चंद्रमा की सप्तम भाव से दृष्टि है। मंगल व शुक्र का राशि विनिमय है। दशमेश सूर्य व एकादशेश बुध द्वितीय भाव में है।

उदाहरण-4 4. पुरूष: 8-1-1971, 5ः05 बजे, चंडीगढ सप्तम भाव में उच्च का चंद्रमा बृहस्पति व शुक्र से दृष्ट है। इन ग्रह योगों के फलस्वरूप जातक ने प्रेम विवाह किया। मंगल दोष व मंगल-शनि की परस्पर दृष्टि के बावजूद प्रेम विवाह संबंधी प्रबल ग्रह योगों के कारण उसका वैवाहिक जीवन सफल है।



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