ज्योतिषशास्त्र के सहस्राधिक ग्रन्थों में विवाह तथा उससे जुड़ी हुई समस्याओं पर शताब्दियों से चर्चा होती रही है। वैवाहिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी ग्रहयोगों के विषय में दैवज्ञों के साथ-साथ सामान्य मनुष्यों तक को प्रमुख आधारभूत सूचनाएँ ज्ञात हैं। परन्तु इन ज्योतिषीय ग्रहयोगों के ज्ञान के साथ-साथ यदि उनके निवारण के सम्बन्ध में ज्ञान न हो तो इसे उचित स्थिति नहीं कहा जा सकता है।
अतः वैदिक, पौराणिक उपायों के साथ-साथ लोकप्रसिद्ध लाल किताब में वर्णित उन उपायों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है जिनको प्रयोग में लाने से वैवाहिक जीवन से जुड़ी समस्याओं से सहज ही मुक्ति पाई जा सकती है। किसी भी समस्या से मुक्ति के लिए यह आवश्यक है कि समस्या के मूल कारण को समझा जाय और फिर उसे दूर करने के उपाय किए जाएं। इस सन्दर्भ में भी हमें इसी प्रक्रिया का आश्रय लेना होगा। विवाह से जुड़ी अलग-अलग समस्याओं के लिए विभिन्न ग्रहस्थितियां या ग्रहयोग उत्तरदायी होते हैं।
अतः आवश्यक यह है कि पहले इन समस्याओं के कारणों का अन्वेषण किया जाय और फिर उनसे मुक्ति के उपायों पर दृष्टिपात किया जाय। इन वैवाहिक समस्याओं के लिए मुख्य रूप से विभिन्न ग्रह ही उत्तरदायी हैं। अतः इन ग्रहों की शान्ति हेतु विविध मंत्रों का प्रयोग तालिका के अनुसार किया जा सकता है
लाल किताब प्रोक्त वैवाहिक विघटनकारक शनि के उपाय
- सफेदे का पत्ता अपनी जेब में रखें।
- ताँबे, स्टील या लोहे के पात्र में रखा जल पीएं।
- आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं।
- काले उड़द (400 ग्राम) जल में प्रवाहित कर दें।
- भोजन का पहला ग्रास गाय को दें।
- शनिवार सायंकाल में उड़द दाल की खिचड़ी अवश्य खाएं।
वैवाहिक विलम्ब व प्रतिबन्ध के उपाय
- अग्नि महापुराण के 18वें अध्याय में वर्णित गौरी प्रतिष्ठा विधि का प्रयोग करें। ‘‘ऊँ क्लीं विश्वासुर्नाम गन्धर्वः कन्यानामधिपतिः लभामि देवदत्तां कन्यां सुरूपां सालंकारां तस्मै विश्वावसवे स्वाहा’’। इस गन्धर्वराज मंत्र का दस हजार जप करें।
पुरुषों के शीघ्र विवाह के लिए अधोलिखित मंत्र का 108 बार जप करें-
‘‘पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्यानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।। कनकधारा स्तोत्र का 21 पाठ 90 दिन तक करें।
श्रीरामदरबार चित्र का पंचोपचार पूजन के बाद निम्नलिखित दोहे का 21 बार जप करें-
‘‘तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साज संवारि कै। मांडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुँअरि लई हँकारि कै।।’’
अधोलिखित यंत्र को भोजपत्र पर अनार की कलम और अष्टगन्ध की स्याही से लिखें- इसके बाद हल्दी की माला से ‘‘ऊँ हृीं हं सः’’ मंत्र का 1100 जप करें। जपकाल में तिल के तेल से प्रज्ज्वलित दीपक जलता रहे। पाठ के बाद शीघ्र विवाह की कामना 8 15 2 7 6 3 12 11 14 9 8 1 4 5 10 13 प्रकट करें। इस सन्दर्भ में शुक्रवार को किया जानेवाला माँ गौरी का व्रत भी प्रशस्त माना गया है।
निराहार व्रत के बाद सायंकाल पंचमुखी दीपक जलाएं। पुनः अधोलिखित मंत्र का 108 बार जप करें- ‘‘बालार्कायुतसत्प्रभां करतले लोलाम्बमालाकुलां मालां सन्दधतीं मनोहरतनुं मन्दस्मिताधोमुखीम्। मन्दं मन्दमुपेयुषीं वरयितुं शम्भुं जगन्मोहिनीं, वन्दे देवमुनीन्द्रवन्दितपदाम् इष्टार्थदां पार्वतीम्।।’’ वैवाहिक विलम्ब अथवा प्रतिबन्ध योगों में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः ऐसी परिस्थिति में निम्नलिखित मंत्र का प्रयोग शीघ्र ही फल देता है-
‘‘कोणस्थः पिंगलों बभ्रुः कृष्णो रौन्द्रोन्तको यमः। सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलाश्रय संस्थितः।। एतानि शनि-नामानि जपेदश्वत्थसन्निधौ। शनैश्चरकृता पीड़ा न कदापि भविष्यति।।’’ शनिवार को सायंकाल पीपल वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं, और उपरोक्त मंत्र का 36 बार जप करें। योग्य पुरोहित के सान्निध्य में अत्यन्त प्रभावशाली ‘शनि-पाताल क्रिया’ का अनुष्ठान कराएं। यदि जन्मांग में मंगल दोष विद्यमान हो और इस कारण से विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो अधोलिखित उपाय शीघ्र ही फल प्रदान करते हैं
- मंगल चण्डिका स्तोत्र का 21 पाठ नित्य करें- ‘‘रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेः हर्षमंगलकरिके।। हर्षमंगलदक्षे च हर्षमंगलदायिके। शुभे मंगलदक्षे च शुभे मंगलचण्डिके।। मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगलमंगले। सदा मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये।।’’ मंगलस्तोत्र का नित्य 21 बार जप करें। सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करें। मंगल यंत्र की विधिपूर्वक स्थापना करें। योग्य पुरोहित के द्वारा कन्या का कुंभ अथवा विष्णु विवाह अत्यन्त गोपनीय तरीके से करवाएं। गोपनीयता ही इस प्रयोग के सफलता की कुंजी होती है।
सौन्दर्य लहरी (श्लोक 1-27) का पाठ करें। सावित्री व्रत का सश्रद्धा अनुष्ठान करें। सोंठ, सौंफ, मौलसिरी के फूल, सिंगरक, मालकंगनी और लाल चन्दन समभाग लें। इसे जल में मिलाकर मंगलवार को स्नान करें। बेल, जटामांसी, लाख के फूल, हिंगलू, बल, चन्दन और मूवला औषधियों को पानी में मिलाकर मंगलवार को स्नान करें।
मंगल दोष शान्ति हेतु लाल किताब के उपाय -
- म्ंागलवार को रेवड़ियाँ या बताशे बहते हुए जल में प्रवाहित करें।
- तुलसी के पत्ते व काली मिर्च का सेवन करें।
- म्ंागलवार को गुड़ व मसूर की दाल अवश्य खाएं। - गाय को गुड़ या चीनी मिली रोटियाँ खिलाएं।
- तन्दूर की मीठी रोटियों का दान करें।
- बन्दरों को जलेबी, शकरपारे आदि खिलाएं।
वैवाहिक विघटन से बचाव हेतु लाल किताब उपाय
- यदि कन्या के जन्मांग में वैवाहिक विघटन, वैधव्य, पार्थक्य आदि के योग बन रहे हों तो अधोलिखित उपचार करें। विवाहोत्सव में कन्यादान के समय यह प्रयोग करना श्रेयस्कर होता है।
जन्माङ्ग में जो ग्रह वैवाहिक कष्ट के लिए उत्तरदायी हो उस ग्रह से संबन्धित रत्न अथवा धातु के बराबर वजन वाले दो टुकड़े लें। कन्यादान का संकल्प लेते समय ये दोनों टुकड़े कन्या के दाहिने हाथ में रखें। कन्यादान तथा विवाह समाप्ति के बाद इनमें से एक टुकड़ा बहते हुए जल में प्रवाहित करें, जबकि दूसरा टुकड़ा अथवा वस्तु कन्या अपने पास आजीवन संभालकर रखे। यह वस्तु जब तक कन्या के पास रहेगी वह तथा उसका वैवाहिक जीवन सुरक्षित रहेगा। ग्रह तथा उनसे सम्बन्धित सामग्री की सूची नीचे तालिका में दर्शायी गयी है
- Û बुध खाना नं 12 में हो कर कष्ट उत्पन्न कर रहा हो तो विवाह के ग्रह सूर्य चन्द्र म्ंागल बुध गुरू शुक्र शनि राहु केतु सामग्री ताँबा माणिक्य चाँदी मोती मंूगा हीरा, पन्ना लाल फिटकरी स्वर्ण, केसर, हल्दी सीप, मोती नीलम, सुरमा, स्टील चाँदी की ईंट लहसुनिया समय स्टील के बने बिना जोड़वाले दो छल्ले लें। एक जातक को पहनाएं तथा दूसरा जल प्रवाह दें।
-शुक्र खाना नं. 4 में रहकर कष्टकारक हो तो स्त्री से चार महीने के अन्दर दुबारा विवाह करें।
- कन्यादान के समय कन्या को चाँदी की ईंट दें।
- बृहस्पति कृत अशुभ प्रभाव से बचने के लिए कन्या को शुद्ध सोने का सिक्का दें।
- वैवाहिक विघटन से बचने के लिए विवाह के समय ताँबे के बरतन में साबुत हरी मंूग भरें। ढक्कन बंद करें और संकल्पपूर्वक कन्या का भाई अथवा पिता इसे जल प्रवाह दे।
व्रत - सोलह सोमवार के व्रत निष्ठापूर्वक करें। संतोषी माता का व्रत भी इस दृष्टि से आश्चर्यजनक फल देने वाला है। वट सावित्री का व्रत करें। मंगलागौरी व्रत व पूजन का अनुष्ठान करें।
विशेष उपाय शीघ्र विवाह हेतु (अनुभूत) - काफी उपाय करने के बाद भी यदि कन्या का विवाह न हो रहा हो तो इस प्रयोग को अवश्य करें। किसी भी मंगलवार के दिन कन्या निराहार व्रत करे। पीपल के 108 पत्ते प्रातःकाल तोड़ लाएँ। किसी सिद्ध हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी के विग्रह के समक्ष बैठ जाएँ। वहीं केसर की स्याही बनाएँ तथा लाल चन्दन की कलम से पीपल के पत्तों पर ‘राम’ लिखें। कन्या मौली ले और इन पत्तों की माला बना लें।
फिर हनुमान जी के सामने हाथ जोड़कर कहें- ‘‘मेरा विवाह आप शीघ्र करा दें, अन्यथा आज से 108 वें दिन आकर यही वरमाला आपको पहना दूंगी।’’ इसके बाद कन्या वापस मंदिर से चली जाए और वापस मुड़कर न देखे। इस प्रयोग के बाद कन्या का विवाह अतिशीघ्र हो जाता है। शिवरात्रि के दिन जिस मंदिर में शिव पार्वती विवाह का अनुष्ठान हुआ हो कन्या वहां जाए और विवाह की पूरी विधि को देखे। इस विवाहोत्सव में ‘लाजा’ (खील) भी बिखेरे जाते हैं।
कन्या प्रातःकाल मंदिर जाए और वहां से इन खील के 11 दाने चुन कर खा लें। इस उपाय से शीघ्र विवाह का योग बनेगा। रामचरितमानस के शिव पार्वती विवाह प्रसंग का 11 सोमवार तक सश्रद्धा पाठ करें। श्रीरामजानकी के विवाह प्रसंग का पाठ भी आश्चर्यजनक सफलता देता है। यदि कालसर्पयोग के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो वैदिक विधि से इस दोष की शान्ति घर में करवाएँ।
शुद्ध स्वर्ण के आठ नाग (सवाग्राम प्रति) बनवाकर जल में प्रवाहित कर दें। वैवाहिक समस्याओं को दूर करने के लिए ग्रहों के मंत्र, जप संख्या एवं रत्न ग्रह पौराणिक मन्त्र जप संख्या रत्न सूर्य जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्। तमोरिंसर्वपापध्नं प्रणतोस्मिदिवाकरम्।। 7000 माणिक्य चंद्र दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुट भूषणम्।। 11000 मोती मंगल धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्।। 10,000 मूंगा बुध प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।। 9,000 पन्ना गुरु देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।। 19,000 पुखराज शुक्र हिमकुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।। 16,000 हीरा शनि ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।। 23,000 नीलम राहु ऊँ अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।। 18,000 गोमेद केतु ऊँ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।। 17,000 लहसुनिया