कुंडली मिलान कैसे करें?
कुंडली मिलान कैसे करें?

कुंडली मिलान कैसे करें?  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 24725 | नवेम्बर 2016

विवाह दो जीवों का ऐसा मिलन है जिसमें दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते व समझते हैं। यदि जानते भी हैं तो भी यह नहीं जानते कि विवाह के बाद क्या ये ऐसे ही रहने वाले हैं। अक्सर देखा गया है कि विवाह पश्चात् जो लड़का या लड़की बहुत अच्छे इंसान थे, वे पूरी तरह से बदल जाते हैं। विवाह में दो जीवों का ही मिलन नहीं वरन् दो परिवारों का भी मिलन होता है। वे परिवार भी अनेक बार बिल्कुल अलग प्रकार से व्यवहार करने लग जाते हैं और वर-कन्या में झगड़ा कराने में अहम् रोल अदा करते हैं। परिवार कैसे रहेंगे, लड़का-लड़की आपस में कैसे रहेंगे, इन सबको जानने के लिए व्यक्ति तिनके का सहारा ढूंढ़ता है। ज्योतिष को छोड़कर ऐसी कोई विद्या नहीं है। जिससे यह जाना जा सके। अतः कुंडली मिलान का ही एक सहारा रह जाता है।

कुंडली मिलान में दो चीजें प्रमुख हैं गुण मिलान व मंगलीक मिलान। प्रथम से मुख्यतः वर एवं कन्या के आपस की समझदारी का पता चलता है एवं दूसरे से भावी अनिष्ट का पता चलता है। अतः कई बार गुण मिलान अच्छा भी हो तो भी मंगलीक मिलान को प्राथमिकता दी जाती है एवं थोड़ा भी संदेह होने पर अनिष्ट को दूर रखने के कारण मंगलीक दोष होने पर मेलापक ठीक नहीं माना जाता है।

गुण मिलान क्या है?

गुण मिलान में हम वर व कन्या की राशि व नक्षत्र को आधार बनाकर विभिन्न आठ पहलुओं को अंक प्रदान करते हैं। इसी कारण इसे अष्टकूट मिलान भी कहते हैं। ये आठ कूट हैं वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट एवं नाड़ी। इससे हर कूट को क्रमशः 1 से लेकर 8 तक पाॅइंट दिये जाते हैं जिनका योग 36 हो जाता है। यदि युग्म को 18 से अधिक अंक मिल जाते हैं तो उसे ठीक मेलापक की संज्ञा दे दी जाती है।

माना जाता है कि राशि नक्षत्रानुसार ही मनुष्य की प्रकृति तय होती है और वह अपनी प्रदŸा प्रकृति के अनुसार ही कार्य करता है। ज्योतिष में मनुष्य की प्रकृति को विभिन्न कूटों में विभिन्न संज्ञा देकर बखूबी बताया गया है। यदि वर कन्या की प्रकृति मिलती है तो दोनों में संबंध अच्छे रहते हैं अन्यथा नहीं।

लेकिन यहां पर केवल एक ग्रह चंद्रमा को इतना अधिक महत्व मिल जाता है कि हम बाकी सभी ग्रहों, लग्न व दशा विचार आदि को नकार देते हैं, जबकि कम से कम लग्न तो चंद्रमा से भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। लग्न के कारण ही भाव बनते हैं एवं ग्रहों के भाव फलानुसार ही ज्योतिष में भविष्य कथन होता है। अतः अष्टकूट मिलान पद्धति में एक विशेष कमी है जो कि त्रुटिजनक मिलान से सिद्ध होती है।


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मंगलीक मिलान क्या है?

यदि मंगल 1, 4, 7, 8 एवं 12वें भाव में स्थापित हो तो कुंडली मंगलीक मानी जाती है। यदि वर एवं कन्या दोनों मंगलीक हों या न हों तो मंगलीक मिलान ठीक माना जाता है। एक मंगलीक हो व दूसरा न हो तो मंगलीक मिलान अनिष्टकारी माना जाता है।

मंगलीक मिलान में आजकल एक और शब्द भी जुड़ गया है - आंशिक मंगलीक। यह शब्द ज्योतिष के ग्रंथों में तो नहीं है लेकिन यह बखूबी ऐसी कुंडलियों को दर्शाता है जो मंगलीक तो हैं लेकिन किसी न किसी कारण से मंगलीक दोष कम हो रहा हो, जैसे मंगल उच्च या स्वगृही हो या गुरु से दृष्ट हो आदि। आंशिक मंगलीक का विवाह मंगलीक से तो कर ही सकते हैं क्योंकि वह भी मंगलीक तो है ही, लेकिन उसका सादा कुंडली से भी मिलान सही मान सकते हैं क्योंकि उसमें मंगलीक दोष का निवारण हो रहा है। ज्योतिषानुसार भी यह सही है क्योंकि मंगल दोष के अनेकों परिहार हैं एवं मंगलीक दोष केवल कुछ विशेष कुंडलियों में ही अनिष्टकारी होता है।

मिलान में अन्य विशेष

ज्योतिष समाज में यह एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है कि कुंडली मिलान कैसे किया जाए एवं गुण मिलान व मंगलीक दोष को कितना महत्व दिया जाए। आम व्यक्ति का एक और प्रश्न रहता है कि कम्प्यूटर द्वारा दर्शित कुंडली मिलान को मानें या न मानें। आज तक सटीक तौर पर कुंडली मिलान की ऐसी कोई एक पद्धति पर सहमति नहीं हो पाई है जिसके द्वारा मिलान किया जा सके। कम्प्यूटर द्वारा मिलान केवल प्राचीन प्रमाणित पद्धति द्वारा ही किया जाता है एवं प्राचीन पद्धति में उपरोक्त कमियां हैं अतः कम्प्यूटर के निष्कर्ष को केवल संकेत मात्र ही मान सकते हैं। उसे सुखी वैवाहिक जीवन का प्रमाण नहीं मान सकते हैं।


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गुण मिलान व मंगलीक दोष के साथ-साथ कुछ अन्य पहलू भी हैं जिनको अवश्य देखना चाहिए -

  1. सर्वप्रथम वर कन्या की राशि व लग्न दोनों का विचार करें। बारह राशियों को दो भागों में बांट सकते हैं एक देव व दूसरी राक्षस। गुरु, मंगल, चंद्र व सूर्य की राशियां मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन का दैव ग्रुप में मान लें व अन्य 6 राशियां शुक्र, शनि व बुध की राशियों को राक्षस ग्रुप में मान लें। यदि कन्या की लग्न व राशि दोनों दैव ग्रुप की हों और वर की भी ऐसे ही हों तो मान सकते हैं कि दोनों की प्रवृŸिा एक समान होगी एवं दोनों में अंतद्र्वंद्व कम होंगे। इसी प्रकार दोनों की राशि व लग्न दैव व राक्षस दोनों ग्रुप से हों तो भी अच्छा तालमेल रहेगा। लेकिन यदि वर एक ग्रुप का हो एवं कन्या दूसरे ग्रुप की हो तो विचारों में भिन्न्ता सदैव रहेगी।
  2. गुण मिलान को केवल अंक प्राप्ति तक ही देखें। यदि गुण मिलान में 36 में से 15 गुण भी मिल जाएं तो भी उसे ठीक ही समझें। उसमें आगे विस्तार में जाकर यह न देखें कि गुण नहीं मिले या भकूट नहीं मिला या नाड़ी नहीं मिली क्योंकि कोई न कोई कारण तो होगा ही कि 36 गुण प्राप्त नहीं हुए। गुण मेलापक जातक की मानसिकता का एक द्योतक है - खुशहाल वैवाहिक जीवन का नहीं।
  3. नाड़ी दोष को संतान का या स्वास्थ्य का द्योतक न मानकर केवल गुण मेलापक का एक पाॅइंट मानकर और टोटल गुण को ही आधार मानकर निर्णय लें। ब्राह्मण वर्ण के लिए नाड़ी दोष जरूरी है, इसका सांख्यिकीय विश्लेषण में कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
  4. यदि ग्रह मैत्री हो तो भकूट दोष नगण्य हो जाता है और इस प्रकार 5 पाॅइंट ग्रह मैत्री के एवं 7 पाॅइंट भकूट को मिलाकर 12 पाॅइंट हो जाते हैं। अतः केवल ग्रह मैत्री अच्छी हो तो भी गुण मेलापक को ठीक माना जा सकता है क्योंकि कुछ भी यदि मिलेगा तो 15 गुण से अधिक तो हो ही जाएंगे।
  5. मंगल का प्रभाव केवल सप्तम भाव में अनिष्ट होने के प्रमाण मिलते हैं। यदि मंगल स्वगृही हो या मित्र के साथ हो तो उतना अनिष्ट नहीं रहता। उच्चता एवं नीचता दोनों ही अनिष्टता को बढ़ाती है। यदि एक की कुंडली में मंगल सप्तम में हो तो दूसरी कुंडली में मंगल सप्तम में नहीं होना चाहिए, अन्यथा अनिष्ट होकर ही रहेगा। दूसरी कुंडली में मंगल 12, 1, 4 या 8वें भाव में 7वें मंगल के दोष को काटता है।
  6. मंगल यदि 12, 1, 4 या 8 वें स्थान में बैठा हो तो उसे आंशिक मंगलीक मान लेना चाहिए। ऐसे जातक का विवाह मंगलीक, सादा व आंशिक मंगलीक किसी से भी किया जा सकता है।
  7. शुभ वैवाहिक जीवन में शनि का महत्वपूर्ण रोल है। यदि शनि 7वें हो तो दो शादी के योग बनाता है। ऐसे में शादी 30 वर्ष से पूर्व हो जाए तो जब 30 वर्ष की उम्र में शनि के ऊपर गोचर करता है तो संबंध विच्छेद करा देता है। अतः ऐसे में शादी 30 वर्ष की उम्र के बाद करने से विवाह में स्थायित्व रहता है। कभी-कभी 7वें घर में शनि होने से अकारण विवाह में विलंब या टीका होने के बाद संबंध विच्छेदन भी देखने में आता है।
  8. 7वें भाव पर शनि की दृष्टि 10वें भाव से, लग्न से व पंचम से भी कष्टकारक रहती है। इससे विवाह तो विलंब से होता ही है कभी-कभी नहीं भी होता है। पंचम शनि की स्थिति 7वें घर में शत्रु राशि होने पर अनिष्टकारी होती है।
  9. मंगल या गुरु का 7वें भाव से संबंध हो तो किसी भी भाव में गुरु मंगल की युति विवाह में विलंब करती है।
  10. सप्तम भाव में केवल चंद्रमा को छोड़कर सभी ग्रह विवाह में विलंब कराते हैं। इसी भाव में सौम्य ग्रहों को छोड़कर अन्य ग्रह वैवाहिक जीवन में कलह कारक होते हैं। शनि व मंगल अतिकष्टकारी होते हैं।
  11. शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या विवाह तो करा सकती है लेकिन यदि ये शादी के तुरंत बाद आ जाए तो वैवाहिक खुशहाली को कम करती है। कभी-कभी विवाह विच्छेद भी करा देती है।

कैसे करे कुंडली मिलान?

केवल गुण मिलान या मंगलीक मिलान से न तो वैवाहिक जीवन के सुख का निश्चय होता है और न ही ये पूर्ण समाधान हैं। शनि का महत्व मंगल से अधिक है एवं लग्न का महत्व चंद्र से अधिक है। अतः कम से कम इन दोनों का विचार मेलापक में उपरोक्त विवरण अनुसार अवश्य कर लें। यदि 15 गुण मिल जाएं और लग्न राशि के गुणों मंे तालमेल बैठ जाए तो सामंजस्य में पेरशानी नहीं आती।

मंगलीक मिलान में यदि वर व वधू की कुंडली में मंगल सातवें भाव में न बैठा हो तो इस पर कोई ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। केवल सातवें मंगल पर शांति कराएं व दूसरी कुंडली भी मंगलीक चुनें, लेकिन उसके सातवें में मंगल न हो। सातवें भाव में शनि हो तो विवाह 30 वर्ष की उम्र के बाद करें। दूसरे साथी की पत्री में शनि सातवें भाव में कदापि नहीं होना चाहिए। यदि शनि की सातवें भाव पर दृष्टि हो तो शादी के तुरंत बाद शनि के ऊपर शनि का गोचर नहीं होना चाहिए अर्थात शादी 30 वर्ष के पश्चात हो तो दोष नहीं रहता।

उपरोक्त विचार कर कुछ हद तक वैवाहिक जीवन को निश्चय ही सुखमय बनाया जा सकता है।


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