विवाह आयु-खंड निर्धारण
विवाह आयु-खंड निर्धारण

विवाह आयु-खंड निर्धारण  

सुशील अग्रवाल
व्यूस : 5626 | नवेम्बर 2016

दो परस्पर विरुद्ध स्वभाव की मौलिक शक्तियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित होना ही विवाह है। जहाँ प्राचीन युग में कुटुंब को देखकर विवाह निश्चित किया जाता था, वहीं आधुनिक युग में जातक के आर्थिक स्तर को अधिक महत्व दिया जा रहा है। आजकल के प्रतिस्पर्धात्मक युग में जातक को अपना आर्थिक स्तर मजबूत करने में समय लगता है जो साधारणतया एक सुदृढ़ शैक्षणिक योग्यता के पश्चात् ही संभव हो पाता है। परिणामस्वरुप, विवाह की सामान्य आयु सीमा बढ़ती जा रही है।

विवाह समय निर्धारण में सप्तम-सप्तमेश सम्बंधित सामान्य नियमों के अतिरिक्त ज्योतिषीय योगों की उपस्थिति को देखना भी आवश्यक है। ज्योतिषीय शास्त्रों में पाँच वर्ष से तैंतीस वर्ष तक के विवाह योगों का उल्लेख है इसीलिए आधुनिक युग में इनका प्रयोग केवल देश-काल-पात्र और उहा-पोह से किया जाना आवश्यक है। सामान्यतः विवाह समय निर्धारण के लिए निम्न तीन सूत्रीय नियमों का प्रयोग किया जाता है

1. विवाह आयु खंड का निर्धारण

2. आयु खंड में उपयुक्त दशा का चयन

3. दशा में उपयुक्त गोचर का चयन इस लेख में केवल प्रथम सूत्र पर ही चर्चा की जाएगी क्योंकि यही बाकी दोनों सूत्रों का आधार है।

अगर आयु-खंड ही गलत निकल गया तो दशा और गोचर से विवाह समय निर्धारण करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता। विवाह-हीनता इस लेख के दायरे से बाहर है। आयु खंड का निर्धारण भारत जैसे विशाल देश में हर 100-150 किलोमीटर पर सामाजिक मान्यता और परिपाटी बदल जाती है। उदाहरणतः दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में अगर पुरुष की 28 वर्ष की आयु को सामान्य विवाह योग्य आयु मानते हैं, तो इसको वहां से कुछ दूर छोटे शहर के गाँव में विलम्ब माना जाता है।

इसीलिए ज्योतिषी को जातक (पात्र) की शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि समझकर ही उसकी सामान्य विवाह योग्य आयु-खंड का निर्धारण करना चाहिए। विवाह आयु-खंड को निम्न तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

1. शीघ्र विवाह

2. सामान्य विवाह-आयु

3. विलम्ब से विवाह सर्वप्रथम, देश-काल-पात्र के अनुसार सामान्य विवाह आयु खंड निर्धारित कर लें।

जैसे, दिल्ली/मुंबई में रहने वाले एक मध्यम वर्गीय परिवार की सामान्य शिक्षित कन्या की सामान्य विवाह-आयु 23-25 वर्ष होगी। एक अन्य मध्यम वर्गीय परिवार की उच्च शिक्षित बेटी जो विदेश में कार्यरत है उसकी सामान्य विवाह-आयु 26-28 मानी जानी चाहिए।

राजस्थान के गांव में रहने वाले गरीब परिवार की अशिक्षित कन्या की सामान्य विवाह-आयु 18-20 वर्ष मानी जा सकती है। शीघ्र विवाह के नियम एवं योग इस आयु-खंड में विवाह सामान्य विवाह आयु से पहले होता है। कुंडली में मुख्यतः निम्न सामान्य नियमों के होने से शीघ्र विवाह होने की संभावना बनती है:

1. लग्न और सप्तम भावों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो। इसकी पुष्टि नवांश से भी होनी चाहिए।

2. सप्तमेश अशुभ स्थित या पीड़ित न हो।

3. लग्नेश और सप्तमेश का राशि परिवर्तन हो और दोनों पर अशुभ प्रभाव न हो। कुंडली में मुख्यतः निम्न शास्त्रीय योगों के होने से शीघ्र विवाह होने की सम्भावना बनती है:-

1. सप्तम भाव में शुभ राशि हो, वह शुभ ग्रह से युत और शुभ ग्रह दृष्ट हो तो शीघ्र विवाह होता है (जातकाभरणम)।

2. शुक्र स्वराशिस्थ या उच्च राशिस्थ हो और सप्तमेश शुभ ग्रह की राशि में हों। (वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

3. शुक्र एवं सप्तमेश की युति हो और सूर्य सप्तम में हो।(वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

उदाहरण कुंडली 1 की जातिका एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी सामान्य शिक्षित महिला है। सप्तम भाव पर दो शुभ ग्रहों का प्रभाव है जिनमें से एक सप्तमेश गुरु भी है। नवांश में सप्तमेश शनि सप्तम में ही होकर भाव को बली कर रहे हैं।

हालांकि नवांश में राहु भी सप्तमस्थ हैं परन्तु दोनों कुंडलियों में राहु केंद्र में राशीश से युत होकर भाव वृद्धिकारक हैं। जातिका का सामान्य आयु खंड 22-24 वर्ष माना जा सकता है। जातिका का विवाह 21 वर्ष की आयु में नवम्बर 2003 में उदाहरण-1 जन्मकुंडली जन्म 20-1-1983, समय: 23ः25 स्थान: कानपुर हुआ था। सामान्य विवाह आयु के नियम एवं योग इस आयु खंड में विवाह सामान्य विवाह योग्य आयु में होता है।

इस आयु खंड में शीघ्र विवाह वाले नियम ही लागू होते हैं परन्तु कुछ घटकों पर पीड़ा पायी जाती है परन्तु पीड़ा की अपेक्षा शुभता की मात्रा स्पष्ट रूप से अधिक होती है। कुंडली में मुख्यतः निम्न शास्त्रीय योगों के होने से शीघ्र विवाह होने की सम्भावना बनती है:

1. शनि एवं चन्द्र की युति हो और यह युति शुक्र से सप्तम भाव में हांे। (बृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

2. शुक्र द्वितीय भाव में हों और सप्तमेश एकादश भाव में हों। (वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

3. लग्नेश दशम में हों और द्वितीयेश एकादश भाव में हों। (बृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

4. द्वितीयेश और एकादशेश का राशि परिवर्तन हो। (बृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

5. शुक्र केंद्र में हों और शनि उनसे सप्तम भाव में हों, अर्थात दोनों केंद्र में सम-सप्तक हों। (बृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

6. शुक्र केंद्र में हों और लग्नेश मकर या कुम्भ राशि में हों। (बृहत् पाराशर होरा शास्त्र) उदाहरण कुंडली 2 की जातिका दिल्ली के मध्यम-वर्गीय शिक्षित परिवार की शिक्षित कन्या है। लग्न और सप्तम भाव पर तीन शुभ ग्रहों का प्रभाव है और लग्नेश एवं सप्तमेश की सप्तम में युति है।

नवांश में भी सप्तम भाव पर शुभ प्रभाव उदाहरण-2 जन्मकुंडली जन्म: 29-8-1969, समय: 20ः00, स्थान: नई दिल्ली अधिक है। सप्तमेश जन्मकुंडली में स्वराशिस्थ होकर बली हैं परन्तु मीन नवांश में हैं जो लग्न राशि तो है परन्तु सप्तमेश की नीच स्थिति भी है अर्थात, कुछ पीड़ा है। विवाह के लिए जातिका का सामान्य आयु-खंड 24-26 वर्ष माना जा सकता है। जातिका का विवाह 24 वर्ष की उम्र सामान्य विवाह-खंड में हुआ।

विलम्ब से विवाह होने के नियम एवं योग:- इस आयु खंड में विवाह सामान्य विवाह आयु खंड के बाद होता है। कुंडली में मुख्यतः अग्रलिखित नियमों के होने से विवाह विलम्ब से होने की सम्भावना होती है:

1. सप्तम भाव पीड़ित हो और सप्तमेश पीड़ित हों या सप्तमेश अस्त/नीच होकर निर्बल हों। इस सन्दर्भ में अगर सूर्य या राहु/केतु की स्थिति सप्तम में हो और उन पर अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी हो, तभी अधिक पीड़ा मानें, अन्यथा सामान्य पीड़ा ही मानें।

2. विवाह भावों (प्ए प्प्ए प्टए टप्प्ए टप्प्प्ए ग्प्प्) में शुभ ग्रह वक्री हों।

3. शुक्र अस्त/नीच हों या पीड़ित हों और अशुभ नवांश में हों (स्त्रियों की कुंडली में गुरु का आकलन भी आवश्यक है)।

4. यदि सूर्य (आत्मा), चन्द्र (मन) और शुक्र (विवाह कारक) में से कम से कम दो शनि से पीड़ित हों।

5. स्त्रियों की कुंडली में अष्टम भाव (मांगलिक स्थान) का पीड़ित होना भी विलम्ब करा सकता है।

6. सप्तमेश बुध हों या सप्तम भाव में बुध हों और वह षष्ठेश और द्वादशेश से युति करें। बुध को विवाह के दृष्टिकोण से एक नपुंसक ग्रह माना जाता है और द्वादशेश शयन सुख से सम्बंधित है और षष्ठेश की युति दोनों भावों के फलों को कम कर देती है।

7. शनि और बुध सप्तम में हो और उन पर पाप प्रभाव हो क्योंकि शनि को भी विवाह के दृष्टिकोण से एक नपुंसक ग्रह माना जाता है। कुंडली में मुख्यतः निम्न शास्त्रीय योगों के होने से सामान्य विवाह-आयु के बाद ही विवाह होने की सम्भावना बनती है:

उदाहरण-3: जन्मकुंडली जन्म: 02-10-1968, समय: 19ः30 स्थान: पठानकोट

1. शुक्र और अष्टमेश मंगल की द्वितीय भाव में युति हो जो मेष और कन्या लग्न में ही संभव है। (वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

2. अष्टमेश सप्तम भाव में हों और शुक्र लग्न के नवांश में हों। (वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

3. पंचम भाव में शुक्र एवं राहु की युति हो या पंचम में शुक्र हों और नवम भाव में राहु हों। (वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

4. तृतीय भाव में शुक्र हों और नवम में सप्तमेश हों। (वृहद् पराशर होरा शास्त्र)

5. लग्नेश यदि सप्तमेश के नवांश में हो और सप्तमेश द्वादश भाव में स्थित हों। (वृहत् पाराशर होरा शास्त्र)

6. सप्तम भाव में बुध और शुक्र हो तो पुरुष स्त्रीहीन होता है। यदि शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो अति विलम्ब से विवाह होता है। (जातकाभरणम)

उदाहरण कुंडली 3 का जातक एक शिक्षित मध्यम-वर्गीय शिक्षित परिवार से है। केवल नियमों को देखें तो सामान्य आयु-खंड के अंत में विवाह लगता है क्योंकि सप्तम भाव और सप्तमेश शुभ प्रभावित हैं और सप्तमेश स्वराशिस्थ हैं परन्तु नवांश में सप्तम भाव पर अधिक पीड़ा है हालांकि भाव भावेश द्वारा दृष्ट भी है। जातक का सामान्य विवाह आयु-खंड 26-28 वर्ष माना जा सकता है परन्तु भरपूर कोशिशों के वावजूद 48 वर्ष की आयु तक भी विवाह नहीं हुआ है क्योंकि इस कुंडली पर जातकाभरणम का बुध-शुक्र का सप्तमस्थ होने वाला शास्त्रीय योग पूर्ण रूप से लग रहा है।

निष्कर्षतः बदलती सामाजिक परिपाटी के कारण सर्वप्रथम विवाह योग्य आयु-खण्डों का देश-काल-पात्र के अनुसार निर्धारण करें। उसके पश्चात् सामान्य नियमों और शास्त्रीय योगों के आकलन से यह निश्चित करें कि विवाह किस आयु-खंड में होने की संभावना है। अंत में उपयुक्त दशा एवं गोचर का प्रयोग करते हुए विवाह समय निर्धारित किया जाना चाहिए।



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