महिलाओं की प्रसन्नता, सहयोग और समर्पण से ही पुरुष धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने में सफल होता है। मार्कण्डेय पुराण में घर की स्त्री को लक्ष्मी जी का सोलहवां अंश माना गया है। हमारे समाज में स्त्री को लक्ष्मी मानकर पूजा जाता है। इतना ही नहीं घर की स्त्री को अन्नपूर्णा का दर्जा भी दिया जाता है। लक्ष्मी पूजा शायद इसी स्त्री की पूजा है। स्त्री ही कठिन परिश्रम के द्वारा तिनका-तिनका जोड़कर अपना घर बनाती है। वह घर की साफ-सफाई से लेकर परिवार के खान-पान, स्वास्थ्य और खुशी का ध्यान रखती है। घर में धन-धान्य आने का प्रतीक वहां की गृहलक्ष्मी ही है। गृहस्थ जीवन जी रहे लोगों के यहां मौजूद गृहलक्ष्मी, पत्नी या पुत्रवधू ही वास्तव में श्रीलक्ष्मी है। लक्ष्मी जी के विविध स्वरुप श्री लक्ष्मी विविध रूपिणी हैं। लक्ष्मीजी के अनेक नाम हैं। वह कैलाश में रहने वाली पार्वती, क्षीरसागर की सिन्धुकन्या, स्वर्ग की महालक्ष्मी, भूलोक में रहने वाली लक्ष्मी, ब्रह्मलोक की सावित्री, गोलोक की राधिका, वृन्दावन में रहने वाली राजेश्वरी, चन्दन वन की चंद्रा, चम्पक वन की विरजा, पद्मवन की पद्मावती, मालती वन की मालती, केतकी वन की सुशीला, कन्दब वन की कन्दब माला, राजगृह में रहने वाली राजलक्ष्मी एवं गृहलक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध है।
जगत की लक्ष्मी है श्रीलक्ष्मी हिन्दू धर्म शास्त्रों में लक्ष्मी जी की व्याख्या कुछ इस प्रकार की गई है- अहम राष्ट्र संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथम यज्ञियानाम तां मा देवा व्यदधुः पुरूत्रा मुरिस्थात्रां भुर्यावेशयन्तीम् अर्थात श्रीलक्ष्मी कहती हैं - मैं ही जगत की लक्ष्मी और धन ऐश्वर्य की देवी हूँ। समस्त जगत में श्रीलक्ष्मी का राज है। रूद्र, वसु, वरुण, इंद्र, अग्नि आदि रूपों में श्रीलक्ष्मी शोभायमान होती हैं। वे सभी भूतों में लक्ष्मी के रूप में विराजमान रहती हैं। आदि काल से लेकर वर्तमान काल तक लक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत व्यापक रहा है। ऋग्वेद की ऋचाओं में ‘श्री का वर्णन समृद्धि एवं सौंदर्य के रूप में हुआ है। विष्णु पुराण में लक्ष्मी की अभिव्यक्ति दो रूपों में की गई है- श्री रूप और लक्ष्मी रूप। श्रीदेवी को कहीं-कहीं भू देवी भी कहते हैं। इसी तरह लक्ष्मी के दो स्वरूप हैं। सच्चिदानंदमयी लक्ष्मी श्री नारायण के हृदय में वास करती हैं। दूसरा रूप है भौतिक या प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी का। यही श्रीदेवी या भूदेवी हैं। सब संपत्तियों की अधिष्ठात्री श्री ही हैं। इनके महिलाओं की प्रसन्नता, सहयोग और समर्पण से ही पुरुष धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने में सफल होता है। मार्कण्डेय पुराण में घर की स्त्री को लक्ष्मी जी का सोलहवां अंश माना गया है।
हमारे समाज में स्त्री को लक्ष्मी मानकर पूजा जाता है। इतना ही नहीं घर की स्त्री को अन्नपूर्णा का दर्जा भी दिया जाता है। लक्ष्मी पूजा शायद इसी स्त्री की पूजा है। स्त्री ही कठिन परिश्रम के द्वारा तिनका-तिनका जोड़कर अपना घर बनाती है। वह घर की साफ-सफाई से लेकर परिवार के खान-पान, स्वास्थ्य और खुशी का ध्यान रखती है। घर में धन-धान्य आने का प्रतीक वहां की गृहलक्ष्मी ही है। गृहस्थ जीवन जी रहे लोगों के यहां मौजूद गृहलक्ष्मी, पत्नी या पुत्रवधू ही वास्तव में श्रीलक्ष्मी है। लक्ष्मी जी के विविध स्वरुप श्री लक्ष्मी विविध रूपिणी हैं। लक्ष्मीजी के अनेक नाम हैं। वह कैलाश में रहने वाली पार्वती, क्षीरसागर की सिन्धुकन्या, स्वर्ग की महालक्ष्मी, भूलोक में रहने वाली लक्ष्मी, ब्रह्मलोक की सावित्री, गोलोक की राधिका, वृन्दावन में रहने वाली राजेश्वरी, चन्दन वन की चंद्रा, चम्पक वन की विरजा, पद्मवन की पद्मावती, मालती वन की मालती, केतकी वन की सुशीला, कन्दब वन की कन्दब माला, राजगृह में रहने वाली राजलक्ष्मी एवं गृहलक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध है।
जगत की लक्ष्मी है श्रीलक्ष्मी हिन्दू धर्म शास्त्रों में लक्ष्मी जी की व्याख्या कुछ इस प्रकार की गई है- अहम राष्ट्र संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथम यज्ञियानाम तां मा देवा व्यदधुः पुरूत्रा मुरिस्थात्रां भुर्यावेशयन्तीम् अर्थात श्रीलक्ष्मी कहती हैं - मैं ही जगत की लक्ष्मी और धन ऐश्वर्य की देवी हूँ। समस्त जगत में श्रीलक्ष्मी का राज है। रूद्र, वसु, वरुण, इंद्र, अग्नि आदि रूपों में श्रीलक्ष्मी शोभायमान होती हैं। वे सभी भूतों में लक्ष्मी के रूप में विराजमान रहती हैं। आदि काल से लेकर वर्तमान काल तक लक्ष्मी का स्वरूप अत्यंत व्यापक रहा है। ऋग्वेद की ऋचाओं में ‘श्री का वर्णन समृद्धि एवं सौंदर्य के रूप में हुआ है। विष्णु पुराण में लक्ष्मी की अभिव्यक्ति दो रूपों में की गई है- श्री रूप और लक्ष्मी रूप। श्रीदेवी को कहीं-कहीं भू देवी भी कहते हैं। इसी तरह लक्ष्मी के दो स्वरूप हैं। सच्चिदानंदमयी लक्ष्मी श्री नारायण के हृदय में वास करती हैं। दूसरा रूप है भौतिक या प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी का। यही श्रीदेवी या भूदेवी हैं। सब संपत्तियों की अधिष्ठात्री श्री ही हैं। इनके पास लोभ, मोह, काम, क्रोध और अहंकार आदि दोषों का प्रवेश नहीं है। यह स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी, राजाओं के पास राजलक्ष्मी, मनुष्यों के गृह में गृहलक्ष्मी, व्यापारियों के पास वाणिज्यलक्ष्मी और युद्ध विजेताओं के पास विजयलक्ष्मी के रूप में रहती हैं।
नारी शक्ति महान - शास्त्रीय व्याख्या यद् गृहे रमते नारी लक्ष्मीस्तद गृहवासिनी। देवता कोटिशो वत्स न त्यज्यंति ग्रहहितता।। अर्थात् जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुखपूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते। नारी में त्याग एवं उदारता है, इसलिए वह देवी है। परिवार के लिए तपस्या करती है इसलिए उसमें तापसी है। उसमें ममता है इसलिए माँ है। क्षमता है, इसलिए शक्ति है। किसी को किसी प्रकार की कमी नहीं होने देती इसलिए अन्नपूर्णा है। नारी महान् है। वह एक शक्ति है। भारतीय समाज में वह देवी है।
मनुस्मृति में लिखा है कि- प्रजनार्थ महाभागाः पूजार्हा गृहदीप्तयः। स्त्रियः श्रियश्य गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन।। (मनुस्मृति,9/26) अर्थात् परम सौभाग्यशालिनी स्त्रियाँ सन्तानोत्पादन के लिए हैं। वह सर्वथा सम्मान के योग्य और घर की शोभा हैं। घर की स्त्री और लक्ष्मी में कोई भेद नहीं है। शास्त्रों में बताया गया है कि देवी लक्ष्मी के कई रुपों में एक रूप है गृह लक्ष्मी का। इस रूप में देवी हर घर में निवास करती हैं।
महाभारत में श्री विदुर जी ने कहा है: पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः। स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्माद रक्ष्या विशेषतः।। (महाभारत, 38/11) अर्थात् घर को उज्ज्वल करने वाली और पवित्र आचरण वाली महाभाग्यवती स्त्रियाँ पूजा (सत्कार) करने योग्य हैं, क्योंकि वे घर की लक्ष्मी कही गई हैं, अतः उनकी विशेष रूप से रक्षा करें।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवतः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। (मनुस्मृति,3/56) अर्थात् जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं। जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी निवास करते हैं। इस परम्परा का पालन करते हुए स्त्रियों को केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व जगत के अन्य देशों में भी देवी लक्ष्मी का रुप मानकर स्वीकार किया गया है। गृहलक्ष्मी कैसे हों प्रसन्न जिस घर में गृहलक्ष्मी प्रसन्न और खुशहाल रहती हैं उस घर में देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और इसके लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं बस यह चार चीजें अपनी गृहलक्ष्मी को समय-समय पर देनी चाहिए।
- ज्योतिषशास्त्र के अलावा मनुस्मृति और पुराणों में भी बताया गया है कि जिस घर में गृहलक्ष्मी प्रसन्न रहती है उस घर में देवी लक्ष्मी सदैव धन-धान्य बनाए रखती है और जहां इनका मन दुखी होता है वहां धन की परेशानी और कठिनाइयां आती हैं। इसलिए बुधवार या शुक्रवार के दिन गृहलक्ष्मी को वस्त्र भेंट करना चाहिए। गृहलक्ष्मी के अलावा बहन, माता या अन्य सुहागिन स्त्री को भी वस्त्र देना शुभ फलदायी होता है।
- शास्त्रों में बताया गया है कि आभूषण के बिना देवी की पूजा संपन्न नहीं होती है इसलिए देवी की पूजा में आभूषण जरुर चढ़ाया जाता है। आभूषण गृहलक्ष्मी को भी खूब भाता है इसलिए समय-समय पर छोटा-मोटा ही सही आभूषण उपहार में देना चाहिए। वैसे भी आभूषण से सजी संवरी गृहलक्ष्मी घर की संपन्नता को दर्शाती है इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि गृह लक्ष्मी को सुंदर वस्त्र और आभूषण से पूर्ण होना चाहिए।
- सुहाग सामग्री जैसे सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां उपहार में देने से सौभाग्य बढ़ता है। इससे देवी अति प्रसन्न होती हैं इसलिए समय-समय पर इन्हें भी उपहार स्वरूप देना चाहिए।
- गृहलक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए इन उपहारों के अलावा एक खास उपहार है जिसमें कोई पैसा खर्च नहीं करना होता है वह जरुर दें। यह उपहार है सम्मान और मीठे बोल। अगर आप यह चार उपहार दें तो मनुस्मृति के अनुसार घर में प्रेम और आनंद भरपूर रहेगा। आईये इस दीपावली पर्व में अपने घर की लक्ष्मियों का आदरभाव से सम्मान करें। यही वास्तव में लक्ष्मी प्राप्ति की सही पूजा है। आपकी दीपावली मंगलमय हो !