शक्ति पीठों में प्रमुख आदि शक्ति मां शारदा पं. मोहनलाल द्विवेदी मां शारदा का यह मंदिर अलौकिक ऊर्जा का केंद्र तो है ही उसके आस-पास के परिवेश में ही अन्यअनेक पर्यटन तथा धार्मिक स्थल विराजमान हैं, मां शारदा के के मंदिर की छवि को तो आप यहांके चित्रों से हृदयंगम कर सकते हैं लेकिन प्राकृतिक सुषमा के आनंद के लिए तो वहीं जाना होगा। एतिहासिक दस्तावेजों में इस तथ्यका प्रमाण प्राप्त होता है कि सन्539 (522 ई. पू.) चैत्र कृष्ण पक्ष कीचतुर्दशी को नृपलदेव ने सामवेदी देवीकी स्थापना की थी। मां शारदा कीप्रतिमा के ठीक नीचे स्थित शिलालेखअपने अंदर मां की महिमा तथा इतिहासकी अनेक पहेलियों का रहस्य समेटेहुये है। मां शारदा मंदिर प्रांगण में श्रीकालभैरव, श्री नरसिंह भगवान, श्रीहनुमान जी, श्री कालीमाता, श्रीगौरीशंकर श्री दुर्गा माता, श्री मरहीमाता,श्री शेषनाग, श्री फूलमती माता, श्रीब्रह्मदेव एवं श्री जालपा देवी की प्रतिमाएंस्थापित है।मां के दर्शनार्थ इस स्थान पर पधारेश्रद्धालुजनों की विद्या, धन, संतान संबंधीइच्छाओं की पूर्ति तो होती है परंतु इसस्थान का उपयोग किसी अनिष्ट संकल्पके लिये नहीं किया जा सकता।
मांशारदा मंदिर पिरामिड के आकार कीपहाड़ी पर स्थित है जहां पहुंचने केलिये 1052 पक्की सीढ़ियां निर्मित है।पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 557 फीटहै। मां शारदा मंदिर मार्ग पूरी तरह सेवनाच्छादित है तथा सीढ़ियां शेड सेढकी हैं। अनेक स्थानों पर श्रद्धालुओंकी सुविधा हेतु पेयजल आदि कीसुविधाएं भी उपलब्ध हैं।श्रद्धालुजन की सुविधा हेतु मां शारदामंदिर प्रबंध समिति के अधीन मंदिरआदि शक्ति मां शारदापं. मोहनलाल द्विवेदीक्षेत्र में दो यात्री निवास ( प्रत्येक में 12कमरे तथा 8 हाल ), एक अमानतीसामान गृह तथा चार सुलभ शौचालयसंचालित किये जा रहे हैं। मां शारदामंदिर के ठीक समीप स्थित लिलजीबांध में यात्रियों की सुविधा हेतु स्नानघाट का निर्माण जल संसाधन विभागद्वारा किया गया है। क्षेत्र में दो यात्री निवास ( प्रत्येक में 12कमरे तथा 8 हाल ), एक अमानतीसामान गृह तथा चार सुलभ शौचालयसंचालित किये जा रहे हैं। मां शारदामंदिर के ठीक समीप स्थित लिलजीबांध में यात्रियों की सुविधा हेतु स्नानघाट का निर्माण जल संसाधन विभागद्वारा किया गया है।राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक - 07 परस्थित यह नगर खुजराहो से एवं प्रसिद्धबांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान से मात्र 80किमी. की दूरी पर है तथा इन स्थानोंपर जा रहे पर्यटकों के लिए रूकने काएक आदर्श स्थल है। इसी मार्ग परपन्ना राष्ट्रीय उद्यान तथा हीरे की खदाने भी स्थित हैं। विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थलचित्रकूट की दूरी मैहर से मात्र 110किमी. है।
अलौकिक ऊर्जा का यंत्र है- मांका मंदिर एवं पहाड़ीमां शारदा देवी मंदिर में मनौती पूरीहोने का रहस्य पिरामिड एवं यंत्र है।मां शारदा देवी मंदिर एवं पहाड़ी कीआकृति त्रिभुजाकार है। श्रीयंत्र, कालीयंत्र, मंगल यंत्र, कनकधारा यंत्र,कुबेरादि यंत्र अधिकांश यंत्रों में त्रिकोणका प्रयोग होता है। विशेषकर मंगलकार्योंमें त्रिकोण का प्रयोग अवश्य होता हैप्रायः किसी भी पूजा के समय कलशस्थापित करते समय त्रिकोण बनाकर उसकी पूजा की जाती है। वैदिकज्यामिति के अनुसार त्रिकोण स्थिरतासूचक होता है एवं मंदिर कीआकाशगामी नुकीली शिखर रचनाप्रगति दर्शक होती है। चार त्रिकोणों सेमिलकर पिरामिड बनता है जिससेस्थिरता एवं प्रगतिशीलता चौगुनी होजाती है। कोई भी आकृति दबाव सेआकार बदल देती है जैसे गोलाकारवस्तु दबाव से अंडाकार हो जाती हैलेकिन त्रिकोण किसी भी स्थिति मेंत्रिकोण ही रहेगा इसलिए त्रिकोण कोस्थिरता सूचक माना गया है। पिरामिडअनंत ऊर्जा का भंडार है। यह ऊर्जापिरामिड को उसकी विशेष संरचना सेप्राप्त होती है।माता की पहाड़ी एवं मंदिरपिरामिडाकार निर्मित होने से यहअलौकिक ऊर्जा का यंत्र है। ध्वनि सेअक्षर, अक्षर से शब्द एवं शब्दों सेसंयोजित यंत्र निर्मित होते हैं। जिसप्रकार मंत्रशक्ति कार्य करती है उसीप्रकार यंत्र शक्ति भी कार्य करती है।मंत्र और यंत्र के सहयोग से बनी ऊर्जाशक्ति को तंत्र कहा गया है। पिरामिडदो शब्दों के सहयोग से बना है पिराऔर मिड, पिरा का अर्थ अग्नि औरमिड का अर्थ है मध्य में। अग्नि जीवनऊर्जा है वह मध्य में रहकर कार्य करतीहै। पिरामिड रूपी मंदिर के भीतर सेअलौकिक ऊर्जा निकलती है। उसब्रह्माण्डीय ऊर्जा और मंदिर रूपीपिरामिड के आकार से चुंबकीयवातावरण बनता है। उस वातावरण मेंमन को एकाग्र करके मांगी गई मनौतीअवश्य पूरी होती है क्योंकि पिरामिड,मानव की अंतर्निहित ऊर्जा को विद्युतीयऊर्जा द्वारा प्रभावित करता है। पिरामिडसे सूक्ष्म विद्युत तरंगें निरंतर प्रवाहितहोती रहती है।
पिरामिड की शक्ति एवंरहस्य भौतिकता तो है ही, इसका संबंधआत्मा व मन के साथ भी है। पिरामिडआत्मा व मन को सीधे प्रभावित करता है।हमारे देश की पवित्र भूमि पर कई ऐसेपानी के पवित्र कुंड भी पिरामिडाकारहै जिनमें स्नान कर लेने मात्र से समस्तप्रकार के चर्म रोग दूर हो जाते हैं। इनकुंडों के पीछे भी यही सिद्धांत कार्यकरता है।बडा अखाड़ा में स्थित श्री रामेश्वरमंदिरमां शारदा मंदिर से लगभग 01 किमी.की दूरी पर स्थित बड़ा अखाड़ा कोभगवान श्री राम-जानकी की अत्यंतप्राचीन दुर्लभ मूर्तियों की वजह से जानाजाता है।हनुमान मंदिर (भदनपुर पहाड़) मेंतांडव मुद्रा में हनुमान जीमैहर नगर से लगभग 12 किमी. दूरबांधवगढ़ मार्ग पर स्थित इस मंदिर मेंतांडव नृत्य मुद्रा में स्थित भगवान हनुमानजी की अति प्राचीन मूर्ति स्थानीयश्रद्धालुओं की श्रद्धा का अत्यंत प्रमुखस्थान है।
रामपुर मंदिर है स्वामी नीलकंठकी तपोस्थलीमां शारदा देवी मंदिर पहाड़ी कीपश्चिम-दक्षिण दिशा में लगभग 12कि. मी दूरी पर रामपुर स्थित है। यहस्थान स्वामी नीलकंठ महाराज कीतपस्थली के रूप में प्रतिष्ठित है।आल्हा को अमरता का वर दिया मांशारदा नेमां शारदा के अनन्य भक्त महोबा केमहापराक्रमी सेनापति आल्हा काअखाड़ा भी मां शारदा मंदिर पहाड़ी केसमीप स्थित है।ओइला मंदिर में अष्टधातु निर्मितमूर्ति है मां दुर्गा कीमैहर - सतना मार्ग पर नगर से लगभग42 कि.मी. की दूरी पर स्थित इसआश्रम की स्थापना स्वामी नीलकंठ महाराज के परम शिष्य देलाराम जीद्वारा वर्ष 1964 में की गई थी।
स्वामीजी के भक्तों द्वारा इस आश्रम कानिर्माण एक मंदिर के रूप में करायागया।लिलजी नदी का उद्गम है पन्नीखोहमां शारदा देवी पहाड़ी के पश्चिम-दक्षिणदिशा से लगभग 5 कि. मी. की दूरी पररामपुर पहाड़ के नीचे लिलजी नदी काउद्गम स्थल पन्नी खोह एक प्राकृतिकसौंदर्य से परिपूर्ण दर्शनीय स्थल है।कला का बेजोड़ नमूना है- किलामैहरब्रिटिश स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूनामैहर स्थित बृजविलास पैलेस मैहररियासत के राजघराने का निवास स्थानहै।गोलामठ मंदिर में विराजमान हैं -देवाधिदेव महादेवचंदेल राजपूत वंश द्वारा 950 ई. पूर्व केमध्य निर्मित भगवान शंकर का गोलामठमंदिर बरबस अपनी स्थापत्य कला कीवजह से श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों केआकर्षण का केंद्र रहा है।ठहरने के स्थान : नगर मैहर मेंयात्रियों के ठहरने हेतु अनेक निजीलॉज/होटल यथा सत्कार, सरगम,साक्षी, कादंबरी, गुलाब, स्टार, आकृति,पिं्रस तथा कई सार्वजनिक धर्मशालाएंहै। मां शारदा मंदिर क्षेत्र में म. प्र.पर्यटन विभाग का होटल भी संचालितहै।रेल सेवाएं : मैहर रेलवे स्टेशनमुंबई-हावड़ा मुखय रेल मार्ग पर स्थितहै। मध्य रेलवे के अधीन कटनी 65किमी. तथा जबलपुर 167 किमी. कीदूरी पर स्थित प्रमुख रेलवे स्टेशन है। ब्रह्म स्थान का दोष ब्रह्मा जी का प्रकोप (स्वास्थ्य, वंश व आर्थिक हानि) पं. गोपाल शर्मा (बी.ई.) कुछ दिन पूर्व पंडित जी महरौली के निवासी श्री मनोजअग्रवाल जी के यहां वास्तु निरीक्षण के लिये गये। उनसेमिलने पर पता लगा कि वह इस घर में पिछले पच्चीससाल से रह रहे हैं एवं उन्होंने अपने पुराने घर को तोड़करयह नया घर बनाया है। यह भी बताया गया कि जब सेयह नया घर बना है तभी से उनके जीवन में एक के बादएक समस्या बनी रहती है।
उन्होंने अपने तीन पुत्रों कोएक-एक करके खोया है। उनकी माताजी काफी समय सेबीमार हैं और पिछले एक साल से कैंसर से पीडित हैं।परिवार में लगभग सभी को कोई न कोई बीमारी है।इलाज एवं दवाई पर खर्चों की वजह से वह आर्थिकसमस्याओं से घिरते जा रहे थे। उन्होंने बताया कि उनकेरिश्तेदारों एवं पड़ोसियों से भी उनके संबंध अच्छे नहीं हैजिससे घर में मानसिक तनाव बना रहता है।वास्तु परीक्षण करने पर पाए गए वास्तु दोष- ब्रह्म स्थान पर सीढियां बनी थी जो कि एक गंभीर वास्तुदोष है जिससे आर्थिक एवं स्वास्थ्य हानि होती है। परिवारबढ़ता नहीं है। ब्रह्मस्थान में ही सीढ़ियों के नीचे भूमिगत जल स्रोत थाजिससे घर में गंभीर स्वास्थ्य परेशानियां होती हैं, विशेषतःपेट संबंधी (आप्रेशन तक हो सकते हैं), घर में अनचाहे खर्चेहोते रहते हैं अथवा दिवालियापन तक भी हो सकता है।केन्द्र में बनी सीढ़ियोंके नीचे शौचालय भीबना था जो किपारिवारिक उन्नति मेंबाधक होता है एवंघर की महिलाएंविशेषतः बहन, बुआतथा बेटी के जीवनमें समस्याएं उत्पन्नहोने का कारण होसकता है। घर आयताकारनहीं था, दक्षिण-पूर्व,उत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम का कोना कटा हुआ था।
दक्षिण पूर्व काकटना घर की महिलाओं के स्वास्थ्य की हानि, नीरसताएवं उदासी का कारण होता है। उत्तर पश्चिम का कटनादुश्मनी (अपने भी पराए हो जाते हैं) व मानसिक तनाव काकारण होता है। दक्षिण-पश्चिम स्थिर लक्ष्मी का स्थानहोता है, इस कोने के कटने से घर में दरिद्रता, अनचाहेखर्चे तथा कलह बना रहता है। घर के मालिक को आर्थिकएवं स्वास्थ्य हानि होती है। घर के दक्षिण-पश्चिम मेंशौचालय था जिससे पैसा पानी की तरह बहता है। सुझाव : सीढियों को दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में बनानेकी सलाह दी गई। भूमिगत जल स्रोत को तुरन्त बंद करके गडढे को अच्छेसे भरने की सलाह दी गई।
अन्डरग्राउन्ड टैंक उत्तर-पूर्व,पूर्व या उत्तर में बनाने को कहा गया। सीढियों के नीचे बने शौचालय को बंद करके, सीढ़ियों केनीचे के हिस्से को हमेशा खुला रखने की सलाह दी गई। कटे हुए कोनों को परगोला बना कर ठीक करने को कहागया जिससे उनका घर आयताकार हो सके। दक्षिण-पश्चिम में बने शौचालय को बंद करके उसे स्टोरबनाने की सलाह दी गई। उनसे कहा गया कि उत्तर-पूर्व,दक्षिण -पश्चिम तथाब्रह्मस्थान को छोड़करकहीं भी सुविधानुसारशौचालय बनाया जासकता है।पंडित जी ने उन्हेंआश्वासन देते हुएकहा कि उनके बताएसभी सुझावों कोकार्यान्वित करने केपश्चात उन्हें अवश्यही लाभ होगा तथाउनके जीवन में सुख शांति आएगी।