देवास -(परम जाग्रत शक्ति तीर्थ) नवीन राहुजा 51 शक्तिपीठों का वर्णन हमारे धर्मशास्त्रों में है परंतु प्राचीन मान्यताओं के आधार पर ऐसा प्रमाण मिलता है कि माता सती के अंगों से जो रक्त निकला उसकी कुछ बूंद इसी देवास पर्वत पर गिरी उसी रक्त से मां चामुण्डा एवं मां तुलजा भवानी का प्राकट्य माना जाता है। दोनों माताओं का रक्तवर्ण होना ही इस कथा की सत्यता को प्रमाणित करता है। मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक पौराणिक ऋषि-मुनियों एवं योगियों की तपस्थली नगर देवास है जो मां चामुण्डा की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। एक एैसा दैविक नगर जहां पर मां चामुंण्डा साक्षात रूप में विराजमान है और जैसा नाम से ही विदित होता है देवास अर्थात् देवी का वास, जिसका उच्चारण ही देवी के साक्षात रूप में निवास होने का बोध कराता है। मालवा की महकती हुई माटी के इस देवास नगर में मां चामुण्डा अपनी बहन मां तुलजा भवानी के साथ विराजमान है।
यह न्यायवादी विरांगना देवी अहिल्या की भव्य विशालतम नगरी इंदौर एवं महाकाल एवं मां हरसिद्धि की नगरी उज्जैन से लगभग 35 किमी. की दूरी पर आगरा मुंबई राजमार्ग पर स्थित है। समुद्र तल से 620 मी. की ऊंचाई पर स्थित यह नगर मां निवास की पर्वतीय सुंदरता को अपने आंचल में समेटी हुई अनुपम सुंदरता का प्रतीक है। ऐसी करूणामयी पुनीत नगरी को हमारा कोटी-कोटी नमन्। जैसा कि सर्व विदित है कि मां चामुण्डा अजन्मा है। मां चामुण्डा ही राजराजेश्वरी भगवती दुर्गा का रूप है। शास्त्रों में जो भी देवी शक्तियों के नामों का उल्लेख है वे सभी नाम एक ही पराशक्ति भगवती के विभिन्न रूपों का नाम हैं। एक ही महाशक्ति भिन्न-भिन्न रूपों में अनेक स्थानों पर विराजमान है। कहीं मां का पूर्ण रूप है तो कहीं अंग विशेष, जगदंबा कहीं चतुर्भुज रूप में विराजमान है तो कहीं अष्टभुजा रूप में। कहीं मां दुर्गा के नाम से जानी जाती हैं तो कहीं काली और ज्वाला के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
कश्मीर में वैष्णों देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं तो मेहर में शारदा के नाम से पूजी जाती हैं। उज्जैन में मां हरसिद्धि के नाम से पहचानी जाती हैं तो मुंबई में मुम्बा देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर कामाखया नाम से प्रसिद्ध तो बांसवाड़ा (राजस्थान) में त्रिपुरसुंदरी के रूप में पूजी जाती हैं। मां के अनन्त रूप एवं नाम हैं। शास्त्रों के अनुसार मां भगवती के 51 शक्ति पीठ माने गये हैं। सैकड़ों ऐसे भी स्थान हैं जिनकी महिमा शक्तिपीठ से कम नहीं है। मां चामुंडा की अपार महिमा का वर्णन हमारे धर्म शास्त्रों में मिलता है। परंतु मां चामुण्डा देवास पर्वत पर क्यों और कैसे विराजमान हैं। यह सभी के लिये जिज्ञासा भरा प्रश्न है। भक्तों की इस मनोजिज्ञासा का समाधान हो जाये इसका स्पष्ट प्रमाण धर्म शास्त्रों में नहीं है। परंतु प्राचीन मान्यताओं के आधार पर मां के प्रागट्य की कथा मिलती है जो बड़ी रोचक एवं अनोखी है। जब माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपना एवं अपने स्वामी भगवान भोलेनाथ का अपमान देखा तो क्रोध के आवेश में आकर यज्ञ कुंड में कूद पड़ी और अपने प्राणों की आहुती दे दी।
यह दुखद एवं हृदय विदारक समाचार सुनकर भगवान भोलेनाथ ने अपने यक्षों से कहा कि दक्ष के यज्ञ को ध्वंस कर डालो और स्वयं ही सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर उठाकर क्रोध से कांपते हुए विकट नृत्य करने लगे। भगवान शंकर का यह विनाशकारी तांडव देखकर त्रिलोकी कांप उठी। देवताओं को यह आभास हुआ कि ब्रह्म की सृष्टि का अंत होने वाला है। क्योंकि भगवान शंकर की क्रोधाग्नि को शांत करने का उपाय दिखाई नहीं दे रहा था। सभी देवताओं को भयभीत देखकर जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने भगवान शिव का क्रोध कम करने के लिये अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। मां सती के अंग जहां-जहां गिरे वह स्थान सिद्ध शक्तिपीठ बन गये। 51 शक्तिपीठों का वर्णन हमारे धर्मशास्त्रों में है परंतु प्राचीन मान्यताओं के आधार पर ऐसा प्रमाण मिलता है कि माता सती के अंगों से जो रक्त निकला उसकी कुछ बूंद इसी देवास पर्वत पर गिरी उसी रक्त से मां चामुण्डा एवं मां तुलजा भवानी का प्राकट्य माना जाता है।
दोनों माताओं का रक्तवर्ण होना ही इस कथा की सत्यता को प्रमाणित करता है। सर्व प्रथम इस पर्वत पर महाकाल की नगरी उज्जैन के महाराज सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भ्राता अपनी पत्नी पिंगला के कुकर्म के कारण गृहस्थ आश्रम का त्याग कर नाथ संप्रदाय में दीक्षा लेकर मां भगवती की आराधना करने के लिये इस एकांत पर्वत पर आये। वे दिन-रात मां की आराधना करते और जब उन्हें नींद आती तो कुछ समय के लिये शिला पर ही सिर रखकर विश्राम कर लिया करते थे। कभी-कभी उन्हें अपनी पत्नी पिंगला के कुकर्मों की याद आती तो वे गुस्से से लाल हो जाते थे। बाद में उनका हृदय परिवर्तित हो गया और वे मन ही मन अपनी पत्नी पिंगला को धन्यवाद देने लगे कि हे ! पिंगला तू धन्य है यदि तू मेरे साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं करती तो मैं कैसे आध्यात्मिक सुख को प्राप्त कर पाता। मैं तो तेरे साथ केवल भोग-विलास में ही लिप्त रहता। अतः तू कोटि-कोटि धन्यवाद की पात्र है।
बहुत समय तक उन्होंने मां की आराधना की, मां ने उन्हें साक्षात् दर्शन देकर अनुग्रहीत किया। उसके कुछ समय पश्चात् ही नागनाथ बाबा का आगमन हुआ जो राजस्थान के राजघराने के राजकुमार थे। उन्होंने नाथ संप्रदाय में दीक्षा लेकर साधना हेतु इस पवित्रतम स्थान को चुना। वे अपने शिष्यों के साथ इस पर्वत पर आये थे। वे बहुत बड़े साधक थे। उनकी साधना इतनी प्रखर हो गई थी कि मां पराशक्ति (चामुण्डा) ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिये थे। इसके पश्चात् महाराजा पृथ्वीराज चौहान के राज घराने के प्रसिद्ध कवि चंद बरदाई अपने महाराजा एवं सैनिक दल के साथ जब रास्ते से निकल रहे थे तो इस पर्वत के समीप जाकर उन्होंने इस पवित्रतम स्थान को विश्राम हेतु चुना। रात को सभी विश्राम कर रहे थे परंतु चंदरबरदाई का तो मां से जन्मों-जन्मों का नाता था। मां की प्रेरणा से वे टेकरी पर चढ़ गये और मां के समीप जाकर उन्होंने मां की आराधना की, मां चामुंण्डा ने भी प्रसन्न होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिये।
मां के दर्शन पाकर उनकी आंखों से अश्रु निकल पड़े और वे रो-रो कर मां का बदन करने लगे। मां ने उन्हें अपनी भक्ति देने का आश्वासन दिया। अंत में इस पवित्र एवं अनुपम स्थान में नाथ संप्रदाय के महायोगी श्री शीलनाथ बाबा का आगमन हुआ। वे लंबे कद के व्यक्ति थे और अपने शरीर पर बहुत कम वस्त्र धारण किये हुए रहते थे। वे दिन-रात धूनी लगाकर मां की आराधना में लीन रहते थे। उन्होंने मां चामुण्डा की बहुत समय तक आराधना की, तब मां ने प्रसन्नवदन होकर उन्हें दर्शन दिये ओर उनके जीवन को सार्थक किया। उक्त कथाएं महायोगी एवं शक्तिपाताृचार्य श्री श्री 1008 स्वामी विष्णुतीर्थ महाराज ने अपने शिष्य श्री श्री 1008 स्वामी शिवोम तीर्थ महाराज से कही थी। साधना शिविर साहित्य अनुसार ऐसा बताया जाता है कि स्वयं मां चामुण्डा ने दर्शन देकर उक्त कथाओं का वर्णन स्वामीजी के समक्ष किया था। धन्य-धन्य देवास है, धन्य धन्य नर नार। मां चामुण्डा चरण में, पाते निशदिन प्यार॥