शक्ति पीठ-श्री नैना देवी मंदिर
शक्ति पीठ-श्री नैना देवी मंदिर

शक्ति पीठ-श्री नैना देवी मंदिर  

नवीन राहुजा
व्यूस : 8839 | जुलाई 2011

शक्ति पीठ-श्री नैना देवी मंदिर नवीन राहूजा जब भगवती सती कनखल में सती हुई, तब भगवान शिव दक्ष पुत्री के विरह में विक्षिप्त हो गये और सती के मृत शरीर को उठाकर तीनों लोकों में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के टुकड़े कर गिरा दिये। जिन स्थानों पर माता सतीजी के अंग गिरे उन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाने लगा। जिस स्थान पर सती के नैन गिरे वही स्थान, शक्ति पीठ श्री नैना देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आईये, जानें इस लेख के द्वारा इस सिद्ध पीठ की महिमा। माता श्री नैना देवी मंदिर शक्ति पीठों में एक बहुत ही प्रसिद्ध पीठ है। पंजाब राज्य में सरहिंद-नंगलडैम रेलवे सेक्शन पर सिक्ख धर्म का पवित्र तीर्थ स्थान, आनंदपुर साहिब गुरुओं की नगरी के नाम से प्रसिद्ध है जिसे सिखों के अंतिम गुरु श्री गोविंद सिंह जी द्वारा बसाया गया था।

आनंदपुर साहिब से उत्तर की ओर शिवालिक पर्वत की चोटी पर एक पीपल के वृक्ष पर मां का पवित्र मंदिर है। इस पर्वत की चढ़ाई 12 मील है। इस समय यहां जाने के लिए बस के रास्ते दो तरफ से हैं। एक रास्ता आनंदपुर साहिब के साथ स्टेशन कीरतपुर साहिब से व दूसरा नंगल डैम से है। इन दोनों जगहों से माता के दरबार तक सीधी बसें जाती हैं। आनंदपुर साहिब से पैदल जाने का रास्ता बहुत कम है। यह रास्ता कच्चा है। मेले के दिनों में आनंदपुर साहिब से कौला का टीबा तक बसें चलती हैं। कौला के टीबे से चढ़ाई शुरू होती है। आनंदपुर साहिब के रास्ते सुबह चलकर शाम को वापिस लौटा जा सकता है। शारदीय नवरात्रों में यहां श्री नैना देवी का बहुत भारी मेला लगता है जो अष्टमी तक चलता है। जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं वे दण्डवत प्रणाम करके पैदल माता के दरबार में हाजिर होते हैं।

इन यात्रियों को 'दण्डी' के नाम से पुकारा जाता है। श्री नैना देवी के लिए मुखयतः दो कथाएं अधिक प्रचलित हैं। सर्वप्रथम प्रसिद्ध कथा तो यही है कि दक्ष-यज्ञ विध्वंस के पश्चात् उन्मत्त शिव जब सती की पार्थिव देह को उठाकर हिमराज की पर्वत श्रृंखलाओं को पार करते हुए तीव्र गति से चले तो भगवान विष्णु ने जगत कल्याण के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सतीजी के मृत शरीर के टुकड़े कर गिरा दिये। जिन-जिन स्थानों पर माता सती के जो अंग गिरे उन स्थानों को उसी नाम से शक्ति पीठ के रूप में खयाति मिली। दक्ष-क्षेत्र कनखल (हरिद्वार) की संपूर्ण गाथा इस प्रकार है। राजा दक्ष ने देवी माता का घोर तप किया। लगभग 3000 वर्षों के तप के बाद माताजी ने महाराज दक्ष को दर्शन दिये। तब राजा दक्ष ने माताजी से पूछा 'भगवान ने रुद्र नाम के ब्राह्मण के पुत्र रूप में अवतार लिया है और माता आपका अवतार अभी तक नहीं हुआ तो भगवान शिवजी की पत्नी कौन होगी?' उस समय माताजी ने महाराज दक्ष को वर दिया कि मैं ही तुम्हारी स्त्री से पुत्री रूप में पैदा होकर घोर तप बल से भगवान शंकर की पत्नी बनूंगी। वक्त गुजर जाने पर माताजी ने महाराज दक्ष के घर पुत्री रूप में जन्म लिया और सती नाम से विखयात हुई।

जब सती बड़ी हुई तो उसने भगवान शिव जी की प्राप्ति के लिए माता-पिता से आज्ञा मांगी। जब सती आज्ञा लेकर घर से निकल पड़ी तो उसका नाम उमा पड़ गया। तप की संपूर्णता होने पर भगवान शिवजी ने उन्हें दर्शन दिये और उमा के कहने के अनुसार भगवान शिव ने उमा के पिता के घर जाकर विधिवत विवाह कर लिया। बाद में एक समय देवताओं की भरी सभा में महाराज दक्ष जी के कहने पर शिव खड़े नहीं हुए तो महाराज दक्ष ने कहा- ''इसने मेरे पुत्र समान होते हुए भी मुझे प्रणाम नहीं किया, मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। मैं इसे देवताओं की सभा से ही बहिष्कृत करता हूं।'' उसी समय महाराज दक्ष शिव के विरुद्ध हो गये। एक बार दक्ष महाराज जी ने हरिद्वार के पास कनखल में एक बहुत बड़े यज्ञ की शुरुआत की। उस यज्ञ में प्रवेश पाने के लिए महाराजा दक्ष ने सभी बड़े देवी-देवताओं को संदेश भेजे, पर शिवजी से द्वेष के कारण भगवान शिव और माता सती को संदेश नहीं भेजा।

देवी देवताओं को दिव्य विमानों में बैठकर अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने के लिए जाते देखकर माता सतीजी ने भगवान शिव से भी जाने का आग्रह किया। भगवान शिव ने बिना संदेश के वहां जाना उचित नहीं समझा। माता सती के दूसरी बार कहने पर भगवान शिव जी ने कहा- शिष्य को गुरु के और बेटी को माता-पिता के घर जाने के लिए किसी के संदेश की जरूरत नहीं है। अतः माता सतीजी को भगवान शिव ने यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी। यज्ञ में सती जी का कोई आदर सत्कार नहीं हुआ तथा सिवाय शिव के सभी देवताओं की उपस्थिति सती को बहुत अखरी। अपने पति का अपमान सहन न करके सती ने उस यज्ञशाला में अपने शरीर को त्याग दिया। यज्ञ कुण्ड में सती के गिरने से यज्ञशाला में घबराहट फैल गई।

इस बात की खबर भगवान शिव को उनके दूतों ने पहुंचा दी। शिव ने अपने दूतों से कहा- 'यज्ञ को तहस-नहस कर दो।' तब महाराजा दक्ष का सिर काटकर उसी यज्ञशाला में डाल दिया गया जिस कुंड में सती ने आत्माहुति दी थी। इसे देखकर देवताओं ने भगवान शिव से क्षमा दान मांगा। शिव की स्तुति करके शिव को प्रसन्न कर लिया गया और दक्ष महाराजा के धड़ के ऊपर बकरे का सिर लगा दिया गया। उन्हें बकरे की आवाज में बम्म-बम्म शब्द का उच्चारण करके भगवान शिव की स्तुति करते देखकर शिवजी खुश हुए और वर दिया कि तेरी भी पूजा होगी। इसी यज्ञ से जब शिव पार्वती के शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूमने लगे तो विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से मां के शरीर के अगों के टुकड़े-टुकड़े करके गिरा दिये। नैना देवी स्थान पर मां के नैन गिरे, इसलिए इस शक्ति पीठ का नाम नैना देवी पड़ा।

दूसरी गाथा कुछ अजीब है। किसी वक्त इस शिवालिक पर्वत शृंखला के पास कुछ गूजरों की आबादी थी। उसमें एक नैना नाम का गूजर देवी माता का परम भक्त था। वह अपनी गाय, भैंसे चराने के लिए लाया करता था। इस जगह जो पीपल का वृक्ष अभी तक है। उसके नीचे एक बिना ब्याही गाय आकर खड़ी हो जाती थी तब उसका दूध बहने लगता था। जब वह उस जगह से हट जाती, तब उसका दूध बहना बंद हो जाता था। अंततः एक दिन उसने उस पीपल के वृक्ष के नीचे से जगह साफ की जहां उस गाय का दूध रोजाना गिरता था। जब उसने जगह साफ की तो उसे वहां पर देवी माता की प्रतिमा प्राप्त हुई। उसी रात माता ने भी उसे स्वप्न में दर्शन दिये और कहा कि मैं आदि शक्ति माता रूप हूं। हे नैना गूजर, तू इसी पीपल वृक्ष के नीचे मेरा छोटा-सा मंदिर का निर्माण शुरु कर दो। मंदिर कुछ दिनों में बहुत सुंदर बन गया। उसकी महिमा चारों ओर फैल गयी। मंदिर से डेढ़ फर्लांग की दूरी पर एक गुफा है जो माता नैना देवी के नाम से प्रसिद्ध है। उत्तर भारत में यह एक महत्वपूर्ण शक्ति पीठ है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.