लग्नानुसार कालसर्प योग का फलादेश पं. एम. सी. भट्ट कालसर्प योग प्रत्येक लग्न में अलग-अलग प्रकार का फल देता है तथा काल सर्प योग में विशिष्ट ग्रह स्थिति के मिश्रित फल प्राप्त होते हैं। इन स्थितियों में विभिन्न व्यक्तियों को क्या विशिष्ट उपलब्धियां होती हैं अथवा व्यक्ति किन विषम परिस्थितियों में फंसकर रह जाता है, इसका विवचेन लग्नानुसार किया गया है। विभिन्न लग्नों में काल सर्प योग होने पर किस प्रकार के फल मिलते हैं, उसका विवरण निम्न प्रकार से है :-
मेष-वृश्चिक लग्न : मेष-वृश्चिक दोनों लग्नों का लग्नेश मंगल है। इन लग्नों की कुंडलियों में कालसर्प योग बनता हो तो जातक को न तो नौकरी में संतुष्टि मिलती है और न व्यापार में सफलता। नौकरी और व्यापार में भीषण चढ़ाव-उतार देखने पड़ते हैं। उत्तरोत्तर संघर्षों के कारण इनका आत्मविश्वास टूट जाता है। जीवन भर की दाल-रोटी की कमाई का ठोस मार्ग नहीं मिलता। असंतोष और बेचैनी बढ़ाने वाले कई कारण स्वयं ही पैदा होते रहते हैं। कुल मिलाकर जीवन अशांत एवं निराशापूर्ण रहता है।
वृषभ- तुला लग्न : वृषभ और तुला लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो जातक अपने रोजगार के विषय में प्रायः चिंतित रहता है। उसे डर रहता है कि जो रोजगार का साधन उसके हाथ में है, वह न जाने कब हाथ से निकल जायेगा। इस भयग्रस्त विचार के कारण उसकी जीवन नौका लड़खड़ाती हुई कब डूब जायेगी, यही विचार उसे भयभीत बनाता है।
जातक को विश्वास नहीं होता कि वह अपनी मंजिल तक पहुंच चुका है और अब उसे केवल दो-चार कदम ही और आगे बढ़ना है। आत्मविश्वास कम होता है और वह अशांत एवं बेचैन होकर घबराकर उसी स्थान पर लौट आता है, जहां से वह चला था।
इसका परिणाम यह होता है कि जहां पहले उन्होंने अपने पैर जमाये थे वह जमीन ही पैरों के नीचे से खिसक जाती है और वह जमीन दलदल में परिवर्तित हो जाती है। इस तरह की आत्मघात करने वाली घटनाओं का वह शिकार बनता है। वृषभ और तुला लग्न का लग्नेश शुक्र है।
मिथुन - कन्या लग्न : मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो जातक नौकरी में उच्च पद पाने के स्वप्न जरूर देखते हैं, पर उन्हें कामयाबी हासिल नहीं होती। स्टील फर्नीचर का व्यापार या कोई अन्य कल-कारखाना लगायें तो उसमें बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
गुजारे भर की आमदनी भी मुश्किल से हो पाती है। खरीद-बिक्री, कमीशन एजेंसी, दलाली का कार्य करें तो दस बार में कमाया मुनाफा एक ही बार के घाटे में साफ हो जाता है। कागज, कपड़ा, अनाज, किराना, जनरल मर्चेंट, गृहोपयोगी सामग्री, होटल-मोटल, रेस्टोरेंट आदि के व्यापार में ऐसे जातकों को सफल होते देखा गया है। लेकिन श्रेष्ठजनों को इनके बर्ताव से बार-बार दुख उठाना पड़ता है। और फलस्वरूप श्रेष्ठजनों के शाप से इनकी क्षति भी होती है। मिथुन और कन्या लग्न का लग्नेश बुध है।
कर्क लग्न : कर्क लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक न सफलतापूर्वक नौकरी कर सकते हैं और न ही कोई व्यवसाय। डाक्टर, वकील, ज्योतिषी, ट्यूटर, कलाकार आदि स्वतंत्र कार्यों में विशेषज्ञ बनकर काफी धन कमाते हैं, फिर भी वे शरीर से अस्वस्थ एवं परिवार से असंतुष्ट रहते हैं। चतुराई, चालाकी और मौकापरस्ती से वे हमेशा अपना रंग-ढ़ंग बदलते हुए कार्य करते रहते हैं। चारों तरफ उन्हें प्रतिष्ठा मिलती है। इनके हाथ में धन तभी रह पायेगा जब वे थोड़ा-बहुत ही क्यों न हो, दान-पुण्य अवश्य करें। कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा है।
सिंह लग्न : सिंह लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक अपनी आजीविका और परिवार के लिये सदैव चिंतित रहते हैं। अपने व्यवसाय में बार-बार तेजी का लाभ इन्हें मिलता है, लेकिन ऐसे भी प्रसंग आते हैं कि एक ही झटके की गहरी मंदी कमरतोड़ नुकसान पहुंचाती है। इनकी पूंजी धीरे-धीरे बढ़ती नजर आती है लेकिन एक ही झटके में वह साफ भी हो जाती है।
ऐसे जातक नौकरी करना पसंद नहीं करते। परंतु परिस्थितिवश मजबूर होकर थोड़े समय के लिये ही क्यों न हो, पराधीनता स्वीकारनी ही पड़ती है। पारिवारिक एकता बनाये रखना इनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। वे दृढ़प्रतिज्ञ, कठोर और जिद्दी भी होते हैं। सिंह लग्न का लग्नेश सूर्य है।
धनु-मीन लग्न : धनु एवं मीन लग्न की कुंडली में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक पराधीन कार्य में या नौकरी में सफल नहीं होते। बाहरी स्त्रियों के सहयोग से स्वतंत्र कार्यक्षेत्र में अपनी जड़ मजबूत बनाते हैं। परंतु घर की किसी स्त्री के षड्यंत्र का शिकार होकर असफल भी होते हैं। दलाली, कमीशन, एजेंसी या कन्सलटेंसी एवं राजनीति में ऐसे जातक यश एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं।
समाज में भी बहुचर्चित बने रहते हैं, परंतु अपने संकोचशील स्वभाव के कारण धन का अभाव बना रहता है। कमाया धन भी खोना पड़ता है। पारिवारिक जीवन बहुत ही संघर्षमय होता है। सीने में दुखदर्द एवं चेहरे पर मुस्कान लिये घूमते हैं। दूसरों का उपकार करने के लिये बेचैन रहते हैं। परोपकारी होते हैं, लेकिन परोपकार से अपयश ही मिलता है।धनु एवं मीन लग्न का लग्नेश गुरु है।
मकर-कुंभ लग्न : मकर एवं कुंभ लग्न में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक को विदेश में रहने का अवसर प्राप्त होता है। अवसर मिलने पर देश से अधिक परदेश में कामयाबी हासिल करते हैं। पत्नी एवं बच्चों की ओर से अशांत तथा अतृप्त रहते हैं। पैतृक संपत्ति का उचित लाभ इन्हें नहीं मिलता। स्वयं संपत्ति जुटाते हैं, परंतु उससे न स्वयं और नही अपने परिवार को संतुष्ट कर पाते हैं।
खनिज, पेट्रोलियम, ऐसिड, कोयला, दवाइयों या केमिकल लाइन में नौकरी अथवा व्यापार करके अच्छी सफलता प्राप्त करते हैं पर जीवन में ऐसा झटका लगता है कि सारी कमाई डूब जाती है। शेयर, सट्टा, मटका-लाटरी में अच्छा धन प्राप्त होता है।
मकर एवं कुंभ लग्न का स्वामी शनि है। सूर्य के साथ शनि और चंद्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, खयातनाम एवं धार्मिक रहते हैं।
मकर एवं कुंभ लग्न में कालसर्प योग बनता हो तो ऐसे जातक को विदेश में रहने का अवसर प्राप्त होता है, परदेश में कामयाबी हासिल होती है परंतु पत्नी एवं बच्चों की ओर से अशांत तथा अतृप्त रहते हैं। तथा पैतृक संपत्ति का उचित लाभ नहीं मिलता। कालसर्प योग में विशिष्ट ग्रह स्थिति के मिश्रित फल : कालसर्प योग की सभी कुंडलियों में सदैव बुरे ही फल नहीं मिलते। अपवाद स्वरूप कुछ ग्रहयोगों के कारण अच्छे तथा मिश्रित फल भी जातक को प्राप्त होते हैं।
इन ग्रह योगों को दृष्टिगत नहीं रखने से भी फलित गलत हो सकता है।
1. कालसर्प योग की कुंडली में एक कारक ग्रह उच्च का बलवान हो और दूसरा कोई भी ग्रह उच्च का हो तो ऐसे जातक हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा लेते हैं। असंभव लगने वाले कार्य भी सफलतापूर्वक संपन्न करा लेते हैं। ऐसे जातक धुन के पक्के और रंगीन मिजाज के धनी होते हैं।
कालसर्प योग के साथ किसी भाव में सूर्य-चंद्र की युति हो तो जातक उन्नति के लिये अथक परिश्रम करते हैं, मुसीबतों का सामना करते हैं और अंततोगत्वा सफल जीवन बिताते हैं। किंतु उनका अधिकांश धन दुष्टों के कब्जे में जाकर अपव्यय होता है। सूर्य के साथ शनि और चंद्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, खयातनाम एवं धार्मिक रहते हैं।
2. कालसर्प की कुंडली में केमद्रुम योग' तथा 'शकट योग' बनता हो तो ऐसे जातक बिना पूंजी के या कम पूंजीवाले काम करके अपनी जरूरतों को पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। परंतु धनवान बनने की कामना से किये हुए कामों में उन्हें सफलता नहीं मिलती। अक्सर कर्ज लेकर ही अपना काम चलाते हैं और लिये ऋण को बार-बार चुकता करते रहते हैं।
यदि भाग्यवश इन्हें स्वतंत्र कारोबार में रूपया मिल भी गया तो वह इनके जीवनकाल ही में समाप्त हो जाता है। व्यापार, उद्योग में भारी रकम लगाई हो तो इसे इनकी तबाही का प्रारंभ समझना चाहिये।
3. कालसर्प योग की कुंडली में चंद्रमा से केंद्रस्थ गुरु और बुध से केंद्रस्थ शनि हो तो ऐसे जातक पर्याप्त मात्रा में ऐश्वर्य भोगते हैं। कामातुर और विलासी होते हैं। कम परिश्रम से अधिक रुपया ये कमा जरूर लेते हैं और बड़ी से बड़ी कामनापूर्ति भी कर लेते हैं। वृत्ति से धार्मिक भी होते हैं, फिर भी सदैव अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट रहते हैं।
परिवार के व्यवहार से दुखी होने से सुख चैन की नींद भी नहीं सो पाते। अपने शत्रुओं को भी शरण देते हैं। ऐसे जातक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में तंत्र-मंत्र की साधना कर सकें तो इस दिशा में बड़ी सफलता उनके हाथ लगती है। इनकी आंखों में एक खास चमक होती है जिसकी वजह से वे किसी को भी सहज ही में आकर्षित कर लेते हैं।
4. कालसर्प योग की कुंडली में शनि-सूर्य युति, शनि-मंगल युति या राहु केतु के साथ शनि-मंगल सूर्य से एकाधिक योग बनता हो तो ऐसे जातक का जन्म ही संघर्ष में होता है, यानी पैदा होते ही संघर्षों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। विद्यार्जन, नौकरी, व्यवसाय, पत्नी, संतान आदि के लिये एक विशिष्ट सीमा तक परेशानियां रहती हैं। अपनी उपलब्धियों से असंतुष्ट होकर दूसरों के अहसानों तले दबे ाबुरहते हैं। कर्ज के सागर में डूबे रहते हैं।
पुराना कर्ज चुकाने के लिये नया कर्ज लेने का सिलसिला बना ही रहता है। परिवार, मित्र एवं रिश्तेदारों से हमेशा छले जाते हैं। कर्ज लेकर भी किसी मित्र की मदद की तो वह मित्र भी धोखा दे जाता है। उसको दी रकम टुकड़े-टुकड़े में बटकर भी पूरी वसूल नहीं होती है। मन मुटाव होकर दोस्त दुश्मन में बदल जाता है। इनकी हर वस्तु पर दुष्टों की नजर होती है। जान-माल की क्षति के लिये कभी-कभी लोग तंत्र-मंत्र, टोना-टोका भी इनके ऊपर करते हैं। इन सबके बावजूद ये जातक शान से जीते हैं और शान से ही मरते है।
काल सर्प योग से कोई बच नहीं सकता। प्रस्तुत जन्मपत्री में वासुकि नामक कालसर्प योग बना है। उसके अनुसार जातक का एक-एक क्षण संकटों और अभावों के बीच व्यतीत हुआ है। जिस-जिस को चाहा, उसने ही धोखा दिया। जिन-जिन लोगों से दूर रहने की कोशिश की, उन्हीं लोगों को बार-बार सामने देखना पड़ा। अभाव, कर्ज, अहसान, अशांति जैसे विकारों से बच नहीं सका।