हस्तरेखा विष्ेाषज्ञ का कार्य एक डाॅक्टर जैसा होता है। डाॅक्टर दवाई देकर शरीर का रोग दूर करता है हस्त रेखा विष्ेाषज्ञ को मन की चिकित्सा करनी होती है। हस्त रेखा विशेषज्ञ हाथ की रेखायंे देख कर भीतर छिपी संभावनाओं को समझ सकता है। इन छिपी संभावनाओं को पढ़ना ही भूत,भविष्य और वर्तमान को पढ़ना है। स्त्री और पुरूष के दोनांे हाथ देखने चाहिए। दोनों हाथ की रेखायें एक जैसी हों तो व्यक्ति के जीवन में अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होते। यदि दोनों की रेखाओं में अंतर हो तो सक्रिय हाथ को अर्थात जिससे अधिक काम होता है उसे देखना चाहिये। सर्वप्रथम हाथ के भीतर विराजमान नौ ग्रहांे के स्थान और उनके गुण दोषांे का विवेचन करें। रेखाओं के बाद ग्रह ही हैं जो भविष्यवाणी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सूर्य: यह सब ग्रहों का स्वामी है। इसका स्थान अनामिका के नीचे होता है। पिता, का पराक्रम, ज्ञान, हड्डी, युद्ध कला, रोगों को रोकने की शक्ति, सरकारी नौकरी, अधिकार, सत्ता और दीर्घायु आदि बातों का कारक यह ग्रह माना जाता है। सूर्य ग्रह के उपाय पिता का सम्मान करंे। गेहूं, गुड़, तांबे का दान करें। सूर्य को शक्तिशाली बनाने के लिये सूर्य यंत्र का प्रयोग करें।
सूर्य मंत्र ऊँ घृणिः सूर्याय नमः का जाप 21 बार रोज करंे। बेल की जड़ को ताबीज में डाल कर पहनने से सूर्य का अनिष्ट दूर होता है। चन्द्रमा: हाथ में इसका स्थान सौम्य एवं शीतल प्रकृति का ग्रह है। यह मन का कारक, माता, स्त्री का रज, कफ, मोती, जल तत्व, तपस्वी, यष, मुख कांति, मानसिक भाव, होटल का कारक है। यदि यह ग्रह कमजोर हो तो उपरोक्त कार्यों में कमी आ जायेगी।
चंद्रमा के उपाय
- चांदी का उपयोग करें।
- माता का सम्मान करें और षिव की आराधना करें।
- ऊँ सोमाय नमः का जाप 11 बार रोज करें।
- चन्द्र यंत्र का प्रयोग करें।
- ष्मषान के कुएं का पानी सदा घर में रखें।
- छोटे बच्चों को नियमित दूध पिलायें। मंगल: सूर्य के बाद मंगल सबसे शक्तिषाली ग्रह है। शक्ति ही इसका जीवन है। इससे प्रभावित व्यक्ति दृढ़ निष्चयी कठोर और पराक्रमी होता है। इसका स्थान हाथ में दो स्थानांे में अंगूठे के नीचे निम्न मंगल और चंद्रमा के नीचे उच्च का मंगल है। यदि मंगल ग्रह शक्तिषाली न हो तो व्यक्ति के जीवन में निराषा बनी रहती है, असफलता का सामना करना पड़ता है। उपाय करने से जीवन सफल बनाया जा सकता है।
मंगल के उपाय:
- मसूर की दाल बहते जल में बहायें।
- भाई का सम्मान करें।
- अनंत मूल की जड़ को लाल कपडे़ में बांध कर कलाई में बांधें।
- बजरंग बाण का पाठ हर मंगल जरूर करें।
- ऊँ भौमायः नमः का जाप 21 बार रोज करें।
- षक्कर डाला हुआ दूध, बरगद की जड़, जमीन की मिट्टी को मिलाकर प्रतिदिन माथे पर तिलक लगायें।
बुघ: ग्रह परिषद में बुध को युवराज का स्थान मिला है। यह छोटा ग्रह है और सूर्य से 30 अंष से अधिक दूर कभी नहीं रहता। यह पृथ्वी तत्व, नपुंसक षुभ ग्रह, उत्तर दिषा का स्वामी तथा हरे रंग का है। इसका स्थान हाथ में कनिष्ठका उंगली के नीचे होता है। यह व्यापार, संपत्ति, बुद्धि का स्वामी है। यह वाणी का भी कारक है। यदि यह ग्रह निर्बल होगा तो इसे बली करने के लिये निम्न उपाय करने पडे़ंगे। बुध के उपाय - बहन-बुआ-मौसी से आषीर्वाद लें। छेद वाला तांबे का सिक्का बहते जल में प्रवाह करें।
- बुध ग्रह की अनिष्टता दूर करने के लिये दुर्गा सप्तषती का पाठ करें।
- विधारा की जड़ को हरे कपडे़ में सिल कर बाजू में बांधंे।
-ऊं बुं बुधाय नमः का जाप 21 बार रोज करें। गुरु: सौरमंडल में गुरु का विषेष स्थान है। यह देवों का गुरु है। इसका रंग पीला है तथा यह शुभ ग्रह है, ईषान दिषा का स्वामी है। इसका स्थान तर्जनी के नीचे होता है। यह ग्रह धार्मिक प्रवृत्ति का कारक है। अघ्यापक वर्ग, अधिकारी आदि के हाथांे में इसका प्रभाव होता है। अर्थषास्त्र, दर्षन-षास्त्र का भी कारक है। जिनके हाथों मंे इसका प्रभाव होता है वे अच्छे वकील व प्रवक्ता होते हैं। यदि यह ग्रह निर्बल होता है तो निम्न उपाय करके गुरु बलवान करें।
गुरु के उपाय
- गुरुजनों का सम्मान करें।
- धार्मिक पुस्तकों का दान करें।
- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः का जाप 21 बार रोज करें।
- बृहस्पति यंत्र का प्रयोग करें।
- बृहस्पतिवार को मस्तक और नाभि पर हल्दी या केसर का तिलक लगायें।
शुक्र: बुध की तरह यह भी सूर्य के निकट है। ग्रह परिषद में इसे भी मंत्री पद मिला है। यह जल तत्व, वात, कफ, आग्नेय दिषा, वीर्य, सौंदर्य का कारक है। निर्बल होने पर यह वात रोग, मूत्रावरोध, कफ रोग देता है। हाथ में अंगूठे के नीचे है। यह स्थान विषाल होता है। यह भाग्यकारक ग्रह है। इसका भाग्य रेखा से संबंध लाभदायक होता है।
शुक्र के उपाय - लक्ष्मी की उपासना करें।
- षुक्र गायत्री मंत्र का जाप 11 बार रोज करें। ऊँ शुक्राय विद्महे-शुक्लाम्बरधरः धीमहि तन्नौ शुक्रः प्रचोदयात ।। या ऊँ शुं शुक्राय नमः का जाप 21 बार रोज करें।
- षुक्रवार को सफेद कपड़े पहनें।
- चीनी- चावल का दान करें। शनि: यह बहुत मंद गति का ग्रह है। ग्रह मंडल में इसे दण्डाधिकारी का स्थान दिया गया है। यह वृद्धावस्था, नपुंसकता, नसें, दुख, रोग, श्रमिक, शल्य विद्या का कारक माना गया है।कलाई के पास होता है। चन्द्रमा इसका स्थान हाथ में मध्यमा उंगली के नीचे है। तांत्रिकों के हाथांे में यह ग्रह प्रभावी होता है। गूढ़ शास्त्र-अतीन्द्रिय ज्ञान आदि का भी कारक है। इसकी अनिष्टता से बचने के लिये निम्न उपाय करें।
शनि के उपाय
- श्रमिकों को प्रसन्न रखंे।
- वृद्धांे की सेवा करें।
- काले तिल और सरसों के तेल का दान करें।
- ऊँ शं शनैष्चराय नमः का जाप 108 बार शनिवार के दिन करें।
- शनिवार के दिन उड़द की दाल शनि देव को चढ़ायें।
- षनिवार के दिन शनि चालीसा के साथ बजरंग बाण का पाठ पढ़ने के बाद चींटियों को आटा डालें। राहु: यह स्वतंत्र ग्रह नहीं है, इसे छाया ग्रह कहते हैं। यह केतु से परस्पर 180 अंष की दूरी पर विपरीत दिषा में भ्रमण करता है। इसका स्थान हथेली में शनि पर्वत के ठीक नीचे मस्तिष्क रेखा के इर्द-गिर्द है। इसका रंग नीला, प्रकृति-वात, जाति चांडाल, दिषा नैर्ऋत्य तथा यह पाप ग्रह है। इसका संबंध पेट के रोग, दुर्घटनायंे, अवसाद, चिंता, रूकावटंे, समस्यायें, झूठ बोलना, अयोग्य स्त्री से संबंध, कैद, प्रेतबाधा, यम, गांठ के रोग, जुआ, चोरबाजारी और राजनीति का कारक है। इसकी अनिष्टता से बचने के लिये निम्न उपाय करंे। राहु के उपाय - घर में कबाड़, बिजली का सामान न रखें। - राहु मंत्र: ऊँ रां राहवे नमः का जाप 108 बार रोज करें।
- राहु यंत्र का प्रयोग करें।
- थोड़ा सा कच्चा लकड़ी का कोयला बहते जल में प्रवाहित करें।
- जौ के दाने रात को तकिये के नीचे रखें और सुबह पक्षियों को खिलाएं। केतु: यह भी छाया ग्रह है और राहु की तरह विपरीत दिषा में भ्रमण करता है। इसका रंग धुएं जैसा, पित्त प्रकृति, स्नायु रोग, चर्म रोग, गुप्त, षड्यंत्रकारी, लडाई-झगडा, दूसरांे से विरोध, चुगली, कारावास,कीर्ति, मठ में निवास आदि का कारक है। यह हाथ में मणिबंध रेखा पर स्थित है। इसकी अनिष्टता से बचने के लिये निम्न उपाय करें। केतु के उपाय - गणेष जी की पूजा करें। - ऊँ केतवे नमः का जाप 108 बार रोज करें। - केतु यंत्र का प्रयोग करें। - कुत्तों को रोटी खिलायें। - षुद्ध रेषम का धागा बाएं हाथ में बांधें।