कुछ समय पहले तक सात समुद्र पार करके जाने को म्लेच्छों के देशों में जाना, या सज़ा के तौर पर विदेश जाना कहा जाता था। लेकिन अब विदेश गमन को समृद्धिकारक माना जाता है और भारतवर्ष का हर तीसरा वासी विदेश जाना अपनी शान समझता है। विदेष में भारतवासी केवल भौतिक संपदा की वृद्धि के लिए ही नहीं जाते, वरन् अपनी शैक्षिक उन्नति, अपनी बीमारी के इलाज के लिए, राजदूत आदि बन कर, डेपुटेषन पर और योग और अध्यात्म के प्रचार-प्रसार के लिए भी जाते हैं। कुछ बच्चे अपने मां-बाप के साथ विदेश जाते हैं, तो कुछ जातक विदेष में बस ही जाते हैं। कुछ पुरुष, या स्त्रियां, जो विमान चालक, या एयर होस्टेस आदि हैं, वे तो प्रायः विदेष यात्रा करते हैं।
साॅफ्टवेयर इंजीनियरों की विदेष गमन में बहुतायत है। जब अष्टम भाव से विदेश जाने का विचार किया जाता है, तो उसका अर्थ होता है समुद्री जहाज से किसी रोग के इलाज के लिए जाना। पर आजकल हम इसे समुद्र पार जाना कह सकते हैं, चाहे जाना पड़े हवाई जहाज से ही। नवें भाव से लंबी यात्रा देखी जाती है। जब नवमेश नवम भाव में राहु के साथ हो, तो जातक का पिता विदेश में प्रतिष्ठा पाता है। इससे भी जातक का विदेश से संबंध हुआ। द्वादश भाव का मुख्य ध्येय विदेश गमन और विदेश में रहने के लिए होता है।
यह नवम भाव से चतुर्थ भाव है और चतुर्थ भाव रहने, या बसने का होता है। विदेश यात्रा का विचार करते समय निम्न तथ्यों को ध्यान में रखें-
-अष्टम भाव: जल अथवा समुद्री यात्रा का कारक।
-द्वादश भाव: विदेश यात्रा तथा समुद्री यात्रा का कारक ।
-सप्तम भाव: व्यावसायिक यात्रा का कारक।
-नवम भाव: लंबी यात्राओं का कारक।
-तृतीय भाव: छोटी यात्राओं का कारक। विदेश यात्रा के कारक ग्रह:
-चंद्रमा: समुद्री, अथवा जल यात्रा (विदेश यात्रा)
-गुरु: वायुयान से यात्रा (यात्रा)
-शनि: वायुयान से यात्रा (विदेश यात्रा)
-राहु: वायुयान से यात्रा (विदेश यात्रा) उपर्युक्त ग्रहों तथा भावों का जब परस्पर संबंध होता है, तो विदेश यात्रा की प्रबल संभावना होती है।
विदेष यात्रा योग: -ऋषि सत्याचार्य के अनुसार यदि लग्नेष सप्तम भाव में हो और किसी शुभ ग्रह से युक्त हो, तो जातक विदेश में ही रहेगा और वापस नहीं आएगा।
-यदि तृतीय भाव में स्थित ग्रह नवम भाव को देखेगा, तो जातक विदेश जाएगा और तीर्थ यात्रा करेगा, जैसे हिंदुस्तान से लोग हज के लिये मक्का-मदीना जाते हैं। अर्थ यह हुआ कि जातक विदेश यात्रा थोड़े समय के लिए करेगा।
-चतुर्थ भाव रिहाइश (घर) का भाव है। जब यह भाव पापाक्रांत हो, या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो, तो जातक घर से दूर रहेगा। वह विदेश में जा कर बस जाता है।
-यदि भाग्येश सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में हो, तो जातक विदेश में कारोबार करता है।
-ऋषि सत्याचार्य के अनुसार यदि सप्तमेश लग्न में हो, तो जातक विदेश जा सकता है और लग्न में सप्तमेश की युति किसी शुभ ग्रह से हो, तो जातक का अक्सर विदेश आना-जाना लगा रहता है, जैसे जहाजचालक, या विमानचालक।
-यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो, तो जातक विदेश के कई देशों की यात्रा करता है।
-यदि द्वादशेश लग्न में हो, जो षष्ठेश से युक्त हो और अष्टम भाव पाप प्रभाव में हो, तो जातक विदेश जाता है, किंतु वहां उसे कारावास मिलता है।
-यदि द्वादशेश लग्न में हो, तो जातक विदेश जाता है।
-यदि द्वादशेश नवम भाव में हो, तो जातक की भूमि, और उसका भवन विदेश में होंगे।
-यदि नवमेश और लग्नेश चतुर्थ भाव में युति करें, तो जातक विदेश में शानदार तरीके से रहेगा।
-यदि नवमेश चतुर्थ भाव में हो और लग्नेश साथ नहीं भी हो, तो विदेश यात्रा होती है।
-यदि लग्नेश नवमेश के साथ, या दशमेश के साथ केंद्र में हो, तो जातक को विदेश में प्रतिष्ठा मिलती है।
-यदि नवमेश द्वादश भाव में हो, तो जातक विदेश में किसी गुरु के आश्रम में रहेगा।
-यदि नवमेश द्वादश भाव में उच्च का हो, तो पहले अपने देश में धन प्राप्त करेगा, बाद में विदेश जाएगा।
-यदि नवमेश द्वादश भाव में नीच का हो, तो जातक विदेश में ही प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा।
-यदि द्वादश भाव की चर, या द्विस्वभाव राशि हो, तो जातक के विदेश में रहने के ज्यादा अवसर हैं। यदि स्थिर राशि हो, तो जातक विदेश में बसता नहीं है; केवल यात्रा कर के वापस आ जाता है।
-यदि द्वितीयेश द्वादश भाव में हो, तो जातक विदेश में अमीर बनता है।
-यदि तृतीयेश द्वादश भाव में हो, तो जातक अपने रिश्तेदारों से अलग रहता है।
-यदि चतुर्थेश द्वादश भाव में हो, तो जातक विदेश में रहता है।
-यदि पंचमेश द्वादश भाव में हो, तो जातक पढ़ने के लिए विदेश जाता है।
-यदि षष्ठेश द्वादश भाव में हो और द्वादश भाव की राशि चर, या द्विस्वभाव हो, तो जातक को कई बार यात्रा करनी पड़ती है।
-यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो, या द्वादशेश सप्तम भाव में हो, तो जातक व्यापार, या व्यवसाय के संदर्भ में विदेश जाता है और कुछ जातक वहीं बस जाते हैं।
-यदि दशमेश का संबंध द्वादश भाव से हो, तो जातक कार्य-व्यवसाय के लिए विदेश जाता है।
-यदि द्वादश भाव, या द्वादशेश पाप प्रभाव में हो, तो जातक विदेश यात्रा करता है।
-जातक तत्व के अनुसार यदि चंद्रमा केंद्र में हो, तो जातक अपने देश तथा विदेश में यात्रा करता है। ऐसा योग नेताओं की कुंडलियों में देखा जाता है।
-यदि चंद्रमा कर्क, या मीन राशि में हो, तो जातक विदेश यात्रा करता है।
-यदि चंद्रमा उच्च का हो और अष्टम, नवम, या द्वादश भाव में हो, तो जातक विदेश यात्रा भी करता है और धनी भी बनता है।
-वृहद् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि शुक्र ग्रह चंद्रमा से छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो, तो जातक विदेश यात्रा करता है।
-ऋषि भृगु के अनुसार चंद्रमा यदि एकादश भाव में हो, तो जातक प्रेम विवाह करता है और विदेश में रहता है।
-फलदीपिका के अनुसार नवम भाव स्थित चंद्रमा जातक के विदेश जाने का कारण माना गया है।
-चमत्कार चिंतामणि के अनुसार द्वादश भावस्थ चंद्रमा विदेश यात्रा दर्शाता है।
-सारावली के अनुसार यदि सूर्य अष्टम भाव में हो, तो जातक विदेश यात्रा करता है।
-भृगु ऋषि के अनुसार लग्न स्थित सूर्य जातक को विदेश ले जाता है। -जातक पारिजात के अनुसार यदि सूर्य पंचम भाव में हो, तो जातक विदेश जाता है। यह योग कूटनीतिज्ञों की कुंडलियों में मिलता है।
-वृहद् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि केतु सूर्य से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो, तो सूर्य की दशा और केतु की भुक्ति में जातक विदेश जाता है।
-चमत्कार चिंतामणि के अनुसार जातक विदेश में कार्य-व्यवसाय करता है, यदि सूर्य चतुर्थ भाव में हो।
-सारावली के अनुसार यदि राहु, या केतु की युति सप्तमेश, अष्टमेश, नवमेश, या द्वादशेश से हो जाए, तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
-चमत्कार चिंतामणि के अनुसार यदि राहु लग्न, दशम भाव, या द्वादश भाव में हो, तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
-वृहद् पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि उच्च का गुरु हो, या स्वगृही गुरु हो, जो लग्न से केंद्र, या त्रिकोण में हो, तो राहु की दशा और गुरु की भुक्ति में जातक विदेश जाता है और पश्चिम दिशा के देशों की यात्रा करता है।
-यदि राहु की दशा में केतु, या सूर्य की भुक्ति हो, तो भी जातक विदेश यात्रा करता है।
-यदि राहु लग्न, या सप्तम में हो, तो भी विदेश यात्रा देता है। -यदि चंद्रमा और राहु दशम भाव में युति करते हों, तो जातक विदेश जाता है।
-मानसागरी के अनुसार शुक्र यदि मेष राशि में हो, तो जातक विदेश यात्रा करता है।
-भृगु ऋषि के अनुसार शुक्र यदि छठे भाव में हो, तो जातक विदेश जाता है और उसके यहां चोरी हो जाती है।
-भृगु ऋषि के अनुसार यदि शुक्र सप्तम भाव में हो, तो उसका विवाह सुंदर स्त्री से होता है और वह विदेश में बसता है।
-शुक्र यदि द्वादश भाव में हो, तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
-यदि नवम् भाव में मंगल ओर शुक्र की युति हो, तो जातक की दो पत्नियां होती हैं और जातक विदेश यात्रा भी करता है।
-यदि मंगल दशम भाव में, लग्न से, या चंद्र से हो, तो जातक विदेश जाता है।
-जातक पारिजात के अनुसार यदि चंद्र ओर मंगल की युति दशम भाव में हो, तो जातक विदेश जाता है।
-शनि यदि द्वादश भाव में हो, तो भी विदेश योग बना देता है।
-यदि गुरु ओर शनि नवम भाव में युति करते हों, तो जातक विदेश में प्राध्यापक, या उपदेशक हो सकता है।
-यदि बुध दशम में हो और चंद्रमा द्वादश में हो, तो विदेश यात्रा देते हैं।
किस देश, या दिशा में जाना होगा और कितने समय और किस काम के लिए: सर्वविदित है कि प्रत्येक देश की दिशा निश्चित है। आकाश में प्रत्येक ग्रह की स्थिति भी निश्चित है और पृथ्वी से उन ग्रहों की दिशाएं निश्चित हैं। अब देखना चाहिए कि यात्रा कारक ग्रह कौन-कौन से हैं ? राहु विदेश यात्राकारक ग्रह है। राहु एक छाया ग्रह है, जिसका अस्तित्व नहीं है।
पृथ्वी अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करती है। चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है। जहां ये कक्षाएं एक-दूसरे को काटती हैं, उसे राहु-केतु की संज्ञा दी गयी है। अतः यह मान सकते हैं कि राहु और केतु के गुण पृथ्वी और चंद्रमा के गुणों के समान हैं, अर्थात् राहु और केतु का अस्तित्व पृथ्वी के ही पास है। अतः राहु के प्रभाव में जातक छोटी विदेश यात्रा करता है, परंतु क्योंकि राहु एक कूटनीतिज्ञ ग्रह माना गया है, इसलिए राहु के प्रभाव में जो यात्रा की जाती है, वह गुप्त रखी जाती है। अतः बिना बताये घर से जाने वाले अज्ञात वास, गुप्त वास, भूमिगत (चोर, डकैत, उग्रवादी) हो जाना आदि ऐसी यात्राएं हैं, जो राहु के प्रभाव में आती हैं।
बृहस्पति आकाश का स्वामी है, जिसके दो अर्थ हैं:
1. धरती से ऊपर कोई कार्य।
2. आकाश में विचरण। बृहस्पति एक बड़ा ग्रह है, जिसके कारण उसे ’गुरु’ कहा गया है। गुरु धार्मिक ग्रह है, अतः धर्म-कर्म (तीर्थ यात्रा) विद्या, पर्वत आदि शुभ कार्यों के लिए की गयी यात्राएं इसी ग्रह के अंतर्गत आती हैं। अतः इस ग्रह के प्रभाव में जातक उस देश की यात्रा करेगा, जहां पर्वत होंगे, या जो देश समतल से बहुत ऊंचाई पर होंगे, या जहां कोई तीर्थ स्थान आदि (ननकाना, मक्का-मदीना) होंगे। इसी प्रकार बुध सूर्य के बहुत पास है और बुध ज्ञान, विज्ञान, विद्या का कारक है।
अतः पढ़ाई और नौकरी दोनों के लिए विदेश यात्रा बुध के अंतर्गत आती है। संसार के मानचित्र में खगोल शास्त्रियों द्वारा देश की राशियां निश्चित की गयी हैं। उदाहरण के लिए ब्रिटेन, जर्मनी आदि मेष राशि के अंतर्गत आते हैं। अमेरिका, कनाडा आदि मिथुन राशि के अंतर्गत आते हैं। इसी प्रकार भारत, पाकिस्तान आदि मकर राशि में आते हैं। दूसरे शब्दों में प्रत्येक देश की राशि निश्चित कर दी गयी है। अब देखना चाहिए कि यात्राकारक ग्रह कौन-कौन से हैं? इन ग्रहों में से जो ग्रह बलवान हो और उस ग्रह की जो दिशा हो, उस दिशा में जो देश हैं, उनकी यात्रा होगी। यह भी देखना होता है कि ये ग्रह जन्मकुंडली में किन भावों में स्थित हैं।
केंद्र में होने पर इनकी दिशा कुछ और होती है और केंद्र से बाहर होने पर इनकी दिशा कुछ और होती है। प्रायः देखा गया है कि एक जातक किसी देश में जाता है और वहीं से किसी दूसरे देश की यात्रा करता है। ऐसा तभी संभव होता है, जबकि यात्राकारक ग्रह चर राशियों में बैठे होते हैं। यदि यात्राकारक ग्रह द्विस्वभाव राशियों में बैठे हों, तो जातक विदेश जाता-आता रहता है। प्रायः देखा गया है कि अमेरिका की राशि मिथुन मानी गयी है। मिथुन का स्वामी बुध है।
बुध औषधि, कंप्यूटर, विद्या और रोग को बताता है। अतः कुंडली में यात्राकारक ग्रह बुध बलवान होने से जातक औषधि, कंप्यूटर, बीमारी, या उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका की यात्रा करेगा। यदि बुध का संबंध छठंे भाव से है, तो बीमारी के लिए, यदि इसका संबंध दशम भाव से है, तो आजीविका के लिए, यदि बुध का विशेष संबंध नवम से है, तो उच्च शिक्षा के लिए वह वहां जाएगा। भारत से गणना करने पर यदि यात्राकारक ग्रह का संबंध सूर्य से है, तो जातक पूर्व के देश, अर्थात् जापान, बंगलादेश, फिलिपीन, बर्मा आदि देशों में जाएगा।
यदि यात्राकारक ग्रह का संबंध चंद्रमा से है, तो वह उत्तर-पश्चिम, अर्थात् यूगोस्लाविया, रूस का दक्षिणी भाग, यूरोप, यूरोपीय देश आदि जाएगा। इसी प्रकार मंगल से संबंध होने पर जातक दक्षिण, अर्थात् श्री लंका, आॅस्टेªलिया, न्यूजीलैंड, बुध से संबंध होने पर उत्तर, अर्थात् एशियाई देश, रूस, अमेरिका आदि (अमेरिका की राशि मिथुन होने के कारण अमेरिका को बुध की गणना में रखा गया है ) जाएगा।
यदि यात्राकारक ग्रह का संबंध बृहस्पति से हो, तो उत्तर-पूर्व, अर्थात् चीन, हांगकांग आदि, यदि शुक्र से हो, तो मलयेसिया, सिंगापुर, वीएतनाम आदि, यदि शनि से संबंध हो, तो पश्चिम, अर्थात् पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, अरब देश आदि और यदि यात्राकारक ग्रह राहु हो, तो दक्षिण-पश्चिम, अर्थात् अफ्रीका, माॅरिशस आदि देशों की यात्रा होगी।