आत्मघात के बारे में प्रायः नित्य ही समाचार मिल जाता है। फांसी लगाकर, जल कर, विष खाकर, ऊंचे स्थान से गिरकर, रेल से कट कर, नस काटकर आदि। शास्त्रों में आत्मघात करना पाप माना गया है, क्योंकि शरीर परमात्मा का दिया हुआ है, उसका वास स्थान है, अतः इसे नष्ट करना उचित नहीं है। आत्महत्या या आत्मघात का अर्थ है स्वयं इस शरीर को नष्ट करना या समाप्त कर देना। जिस वातावरण में मनुष्य निराशा की चरम सीमा पर होता है, स्वयं को समाप्त कर उस वातावरण से छुटकारा पाना चाहता है। यदि थोड़ी सी भी समझदारी, बुद्धिमानी उस समय आ जाये तो वह स्वयं को उस वातावरण से दूर ले जा सकता है और उन परिस्थितियों से तथा जन-बंधुओं से पूर्णतया अलग हो सकता है। अब यह प्रश्न उठता है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा कठिन कदम क्यों उठाता है। नैराश्य के घोर अंधकार में जब कहीं से भी कोई आस की किरण नहीं आती तब व्यक्ति स्वयं को गहन अवसाद से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं को ही समाप्त कर देता है। मानव का जीवन के प्रति उत्साह समाप्त हो गया हो, निराशा में मन डूब गया हो, कहीं से कोई सहानुभूति न मिल रहे हो तब जीवन के प्रति अनासक्ति होने लगती है। ऐसी स्थिति का कारण कुछ भी हो सकता है। शरीर रोग अथवा पीड़ा से ग्रस्त हो, मन को स्वजनों तथा अन्य व्यक्तियों से अत्यधिक मानसिक पीड़ा मिल रही हो, व्यवसाय में इतनी हानि हो गई हो कि भरपाई करना कठिन हो गया हो, समाज में अथवा अपने कार्य स्थान में असम्मान, निरादर, अपराधारोपण, मानहानि आदि हो, प्रेम में असफलता हो, परीक्षा में असफलता मिली हो, मन की इच्छाएं-आकांक्षाएं पूरी न हो पा रही हों आदि। इन सब परिस्थितियों में मन में निराशा भर जाती है और मन में निराशा भर जाने से जीवन व्यर्थ सा लगने लगता है। तब धैर्य साथ छोड़ देता है और मन इतना दुर्बल हो उठता है कि जीवन समाप्त करना ही एकमात्र उपाय लगता है। ऐसे में अच्छे-बुरे की परख नहीं रह जाती और सोचने-विचारने की क्षमता समाप्त हो जाती है। मन का कारक चंद्र है। मन की दुर्बलता को चंद्र की दुर्बलता से आंकंे। जब चंद्र पर पाप प्रभाव हो या चंद्र क्षीण हो या उस पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो, षष्ठेश, सप्तमेश और अष्टमेश का चंद्र से संबंध हो तब मन की निराशा गंभीर हो उठती है। लग्न से संबंध हो, द्वितीयेश, तृतीयेश अथवा द्वादशेश के प्रभाव में चंद्र हो तो मानसिक दुर्बलता बढ़ जाती है। बुध तथा गुरु दुष्प्रभाव में हों तो बुद्धि के भ्रष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है। सूर्य आत्माकारक ग्रह है। यदि यह मारक स्थान में हो अथवा मारकेश के प्रभाव में हो तो व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है। विशेष रूप से यदि यह स्थिति गोचर में बन रही हो तो आत्महत्या की संभावना बनती है। आत्महत्या के प्रयास में व्यक्ति बचेगा या उसे शारीरिक कष्ट होगा या शरीर और जीवन दोनों ही सलामत रहेंगे, यह सब ग्रहों व उनके प्रभाव पर निर्भर करेगा। यहां कुछ कुंडलियों का विश्लेषण प्रस्तुत है। क्योंकि आत्महत्या का प्रयास एक क्षणिक उन्माद में किया गया तात्कालिक कर्म है, अतः उस समय के गोचर का अध्ययन महत्वपूर्ण है। कुंडली 1: जातक का जन्म कन्या लग्न में मंगल/बुध की दशा में हुआ था। लग्न में शनि स्थित है। लग्नेश बुध पंचम भाव में शनि की मकर राशि में स्थित है। लग्न तथा पंचम भाव में शनि तथा बुध में राशि परितर्वन है। द्वितीय भाव तथा चतुर्थ भाव में बृहस्पति तथा शुक्र में राशि परिवर्तन योग है। शनि की लग्न से दशम दृष्टि, दशम भाव चंद्र पर है जो चतुर्थ भाव तथा शुक्र पर दृष्टि डाल रहा है। यह माता की बुद्धि को प्रभावित कर रहा है। द्वितीय तथा चतुर्थ भावों का संबंध माता व धन से है। सप्तम भाव, जो मारक है, सूर्य व मंगल के पापकर्तरी योग में है जो मृत्यु का कारण अग्नि बता रहे हैं। जातक ने 16 मार्च 89 को माता के धन विषय पर क्लेश करने पर उन्हें डराने के लिए अपने वस्त्र के एक कोने को जलाया। परंतु दुर्भाग्यवश अग्नि फैल गई और वह जल गया और तीसरे दिन उनकी मृत्यु हो गई। उस घटना के समय उनकी बुध/राहु/शनि की दशा चल रही थी। बुध लग्नेश है, शनि की राशि में है और शनि से उसका राशि परिवर्तन है। अतः बुध शनि से ओतप्रोत है। राहु भी शनिवत है। अतः दशा के समय शनि का प्रबल प्रभाव रहा, शनि षष्ठेश भी है। आत्म का परिचायक सूर्य षष्ठ भाव में है, लग्नेश बुध भी स्वयं का परिचायक है। 16.3.89 को गोचर में साथ में दिया है। चंद्र (मन) पर शनि का प्रभाव है, गुरु (बुद्धि) की मंगल (क्रोध) से युति है। लग्नेश बुध षष्ट भाव में राहु के साथ शनि की राशि में चतुर्थ भाव स्थित शनि से दृष्ट है। नैसर्गिक सूर्य पर बुध व राहु का गोचर है और आत्म का परिचायक सूर्य मारक स्थान सप्तम भाव में है। अतः जलकर मरने का योग है। कुंडली 2: जातक का जन्म कुंभ लग्न में केतु/केतु दशा में हुआ। लग्न पर उच्च शनि से युत केतु, चंद्र तथा षष्ठ भाव से सूर्य युत मंगल की दृष्टि है। चंद्र, बुध तथा मंगल अस्त हैं। षष्ठ भाव में मंगल नीच है तथा द्वादश भाव में बृहस्पति नीच है। सप्तमेश सूर्य तथा षष्ठेश चंद्र में राशि परिवर्तन है। लग्नेश शनि नवम भाव में केतु के साथ स्थित है जो जातक की परश्रिम से उन्नति का सूचक है। कुंभ लग्न के लिए योग कारक शुक्र, जो चतुर्थेश तथा नवमेश है, पंचम भाव में स्थित है। यह योग उच्च शिक्षा की महत्वाकांक्षा का संकेत देता है। लग्नेश शनि पर सूर्य से युत नीच मंगल की दृष्टि है। पराक्रमेश मंगल नीच राशि के षष्ठ भाव में अस्त होने पर जातक को प्रयासों में असफलता प्राप्त हुईं मंगल व शनि की एक दूसरे पर परस्पर दृष्टि है। रोगेश चंद्र की मारक स्थान सप्तम भाव में स्थिति मन की अस्वस्थता तथा अनियंत्रण दर्शाती है। नीच गुरु तथा नीच मंगल परस्पर समसप्तक हैं, अतः गुरु की अशुभता को दर्शाते हैं। गुरु द्वितीयेश-मारकेश बनकर द्वादश भाव में शनि की राशि में और शुक्र (योग कारक) के साथ षडाष्टक स्थिति में है। जातक ने प्लस टू परीक्षा में सफलता पाई परंतु इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षा में असफल रहा। इस असफलता ने उसके अंतर्मन को तोड़कर रख दिया। माता-पिता भी बात-बात पर उसे ताना देते थे। एक दिन इन सबसे छुटकारा पाने के लिए उसने पंखे से लटककर आत्म हत्या कर ली। उस दिन शनिवार 12.10.2002 था और शुक्र, गुरु व बुध की दशा थी। इस दिन का गोचर साथ दिया है। शुक्र का गोचर तुला राशि में केतु तथा शनि पर है। तुला राशि तथा शनि वायु तत्व प्रधान है और केतु ऊंचाई का प्रतीक है। यह योग अधर लटक कर आत्महत्या बताता है। गुरु मंगल राशि स्थित केतु से प्रभावित है और षष्ठ भाव पर सूर्य, मंगल तथा बुध पर गोचर कर रहा है। सप्तमेश मारकेश सूर्य, तृतीयेश मारकेश मंगल और अष्टमेश मारकेश बुध तीनों का गोचर अष्टम भाव पर है। यह तीनों जन्म कुंडली के षष्ठ भाव में स्थित हैं। कहते हैं कि चंद्र अपने से पीछे के षष्ठ भाव का नाश करता है। चंद्र का गोचर एकादश भाव पर है जो अपने से छह भाव पीछे के षष्ट भाव का नाश कर रहा है। इस भाव में गुरु है। चंद्र पर गोचर में शनि तथा सूर्य (मारकेश) से युत मंगल का प्रभाव है। गोचर में शनि का प्रभाव सप्तम तथा द्वितीय दोनों मारक भावों पर है। द्वादशेश शनि का गोचर शुक्र पर और शुक्र का गोचर शनि पर है। गोचर में चंद्र और गुरु का राशि परिवर्तन षष्ठ तथा एकादश भावों (उपचय भाव) में है। यह मानसिक दुर्बलता दर्शाता है और माता तथा पिता के दुव्र्यवहार की ओर इशारा करता है। कुंडली 3: जातक का जन्म कर्क लग्न में राहु/राहु की दशा में हुआ। लग्न, जो गुरु की उच्च राशि है, पर गुरु का केंद्रीय प्रभाव है। केंद्र में अकेला गुरु कई अशुभ फलों को टाल सकता है। लग्नेश चंद्र द्वादश भाव में बुध की राशि में मंगल, शनि तथा राहु के साथ स्थित है। बुध तृतीयेश भी है। शनि सप्तमेश तथा अष्टमेश है, अतः मारक प्रभाव रखता हैं। आत्म का कारक सूर्य अष्टम भाव में शत्रु शनि की राशि में है। बुध नीच है और नवम भाव में उच्च शुक्र के साथ है। भाग्य ने पत्नी अच्छी दी है। केंद्र स्थित गुरु की दृष्टि अष्टम तथा द्वादश भावों पर है जो उसके मारकत्व को कम करता है। द्वादश भाव की स्थिति आत्महत्या की प्रवृत्ति बता रही है, विशेषरूप से बुध की दशा में। अष्टम भाव का सूर्य मारकेश शनि की राशि में और द्वादश भाव का लग्नेश दोनों जातक की जीवन के प्रति अरुचि दर्शाते हंै। भाग्य भाव में उचच का शुक्र पतिपरायणा पत्नी का द्योतक है। नीच का बुध बुद्धि की अपरिपक्वता बता रहा है। इस जातक ने कई बार आत्मघात का प्रयास किया किंतु हर बार उसकी पत्नी ने उसे ऐसा करने से बचाया। जातक ऋण लेता था और उसके न चुकाए जाने की स्थिति में आत्मघात का प्रयास करता था। पत्नी नौकरी कर ऋण चुकाती थी। 1.11.1996 को जातक ने फिनायल पीकर आत्मघात करने का प्रयत्न किया। गोचर साथ में दिया है। धनेश सूर्य नीच है और बुध के साथ चतुर्थ भाव पर गोचर कर रहा है जहां धन कारक गुरु है। यह धन हानि बता रहा है। गोचर का गुरु षष्ठ भाव पर है जो ऋण का सूचक है। वक्री शनि तथा केतु का केंद्रीय प्रभाव द्वादश भाव में लग्नेश चंद्र पर है जो विष तुल्य है। स्वगृही गुरु की दृष्टि चंद्र पर है जो जीवन बचाने में सफल है। मंगल की दृष्टि गोचर में नवम भाव पर है, जो सौभाग्य सूचक है। जातक ने 19.1.2006 गला घोंट कर आत्महत्या करने का दूसरा प्रयास किया। 19.1.2006 का गोचर साथ में दिया है। राहु से प्रभावित शनि लग्न पर गोचर कर रहा है, इस पर सप्तम भाव से सूर्य तथा दशम भाव से मंगल का भी प्रभाव है। लग्नेश चंद्र द्वितीय भाव पर गोचर कर रहा है और शनि केतु के पाप मध्यत्व में है। आत्म को बताने वाला सूर्य मारक सप्तम भाव में है और नैसर्गिक सूर्य से द्वादश स्थान में है। जातक की कुंडली में उच्च शुक्र का गुरु से राशि परिवर्तन योग नवम तथा चतुर्थ भाव में है। गुरु का गोचर गुरु पर है और यह उच्च के शुक्र का प्रभाव लिये हुए है। अतः पत्नी पुनः पति के जीवन की रक्षा का कारण बनी। गुरु व शुक्र का राशि परिवर्तन योग गोचर में भी है। इस दिन जातक पर बुध, मंगल और शनि की दशा प्रभावी थी। शनि वायु का कारक है, सूर्य व राहु पृथकता के कारक हैं। इस योग ने श्वास अवरुद्ध करने का प्रयास किया। जातक का तीसरा प्रयास 2.2.2006 को हुआ, आकाशीय परिस्थितियां लगभग वैसी ही थीं। जातक ने आत्मघात का एक प्रयास 26.7.06 को किया गया। फिर 13.4.09 को जातक ने पुनः ऐसा प्रयास किया। गोचरीय ग्रह स्थिति साथ में दी है। नीच चंद्र का गोचर पंचम भाव पर है। मारक स्थान सप्तम भाव पर गोचर में गुरु व राहु का गुरु चांडाल योग बन रहा है। मारकेश सप्तमेश शनि वक्री होकर द्वितीय भाव (मारक स्थान) पर गोचर कर रहा है। अष्टम भाव में सूर्य पर मंगल का गोचर है। लग्न पर केतु का गोचर है जो पंचम भाव में नीच चंद्र को प्रभावित कर रहा है। शायद गोचर के गुरु की लग्न पर दृष्टि आत्महत्या के इस प्रयास को असफल करने वाली रही। दूसरी ओर उच्च का शुक्र नवम भाव में शुक्र तथा बुध पर गोचर कर इस असफलता में पत्नी के प्रयास का योगदान बता रहा है। पत्नी ने 24 घंटे जातक पर पहरा रख कर उसे आत्महत्या के प्रयास से रोका। कुंडली 4: जातक का जन्म मीन लग्न में केतु और शनि की दशा में हुआ। लग्न राहु और केतु के अक्ष पर है और इस पर सप्तम भाव से षष्ठेश सूर्य तथा अष्टमेश शुक्र की दृष्टि है। सप्तमेश बुध (मारकेश) अष्टम भाव में है। शुक्र और बुध सप्तम तथा अष्टम भाव में राशि परिवर्तन योग में हैं जो पति-पत्नी के परस्पर सहयोग में कमी बताता है। सप्तम भाव में नीच का शुक्र सूर्य तथा केतु से युत है। राहु शनि का प्रभाव भी सप्तम भाव पर है , जो उपयुक्त परिणाम की पुष्टि करता है। लग्नेश गुरु षष्ठ भाव में मंगल तथा चंद्र के साथ है। पंचमेश चंद्र षष्ठ भाव में, षष्ठेश सूर्य सप्तम भाव में और सप्तमेश बुध अष्टम भाव में है। बुध मारकेश भी है तथा इस पर द्वितीय मारक स्थान से वक्री शनि की भी दृष्टि है। षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव इन ग्रहों से जुड़े हैं। जातक ने 16.10.2008 को पत्नी से कलह होने पर ऊपर की मंजिल से नीचे गिरकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। जीवन बच गया परंतु पैर तथा कमर की चोट अभी पूर्णतया ठीक नहीं हो पाई है। 16.10.2008 का गोचर साथ दिया गया है। इस दिन मंगल, गुरु और चंद्र की दशा चल रही थी। ध्यान देने वाली बात है कि मंगल, गुरु तथा चंद्र जातक की जन्म कुडली में षष्ठ भाव में युत हैं और इन पर शनि का गोचर है। शनि द्वादशेश है। मारकेश बुध पर अष्टम भाव में मंगल का गोचर है। ये सारे योग चोट तथा हास्पिटल के सूचक हैं। षष्ठ भाव बहुत पीड़ित है। यह कमर की चोट बता रहा है। शनि पैर में चोट तथा लंगड़ा कर चलना दिखा रहा है। आत्म के द्योतक सूर्य का गोचर मारक स्थान सप्तम भाव में सूर्य पर है। मारकेश बुध का गोचर भी सप्तम भाव पर है। चंद्र, गुरु तथा बुध की स्थिति अच्छी नहीं है, अतः मति भ्रष्ट हुई और यह प्रयास किया। षष्ठ भाव का एक कारकत्व स्त्री द्वारा लाया गया कष्ट भी है। गुरु का गोचर दशम भाव पर अपनी धनु राशि पर है जिसके शुभ प्रभाव से जीवन की रक्षा हुई। ध्यान दें, षष्ठ, सप्तम तथा अष्टम भाव गोचर में पीड़ित हैं। कुंडली 5: जातक का जन्म वृष लग्न में चंद्र राहु की दशा में हुआ। लग्न में उच्च का चंद्र है जिस पर शनि युत मंगल की दृष्टि है। लग्नेश शुक्र गुरु के साथ द्वादश भाव में स्थित है। लग्नेश पर शनि तथा अष्टम भाव से केतु की दृष्टि है। बुध सूर्य के प्रभाव में है तथा गुरु पर केतु तथा मंगल से युत शनि की दृष्टि है। चंद्र तथा गुरु वर्गोत्तम हैं। कुंडली में कालसर्प योग है। गुरु तथा शुक्र की युति के कारण अन्य स्त्री द्वारा जीवन में कष्ट का आना कहा गया है। गुरु, बुध तथा मंगल मारकेश हैं। गुरु अष्टमेश तथा एकादशेश हेाकर द्वादश भाव में स्थित है। लग्नेश शुक्र षष्ठेश होकर द्वादश भाव में गुरु के साथ हैं। कुंडली में षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भावों में संबंध है। जातक का अपने दफ्तर की एक सहयोगी से अफेयर हुआ जिसके कारण घर में क्लेश हुआ और 22.3.04 को उसकी मार-पिटाई हुई। जातक उच्च ब्राह्मण परिवार से है और वह यह असम्मान सह नहीं पाया। उसने 27.3.04 को नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या का प्रयास किया परंतु शीघ्र ही उचित चिकित्सा मिल जाने से जीवन बच गया। जातक पर उस समय गुरु, केतु और बुध की दशा चल रही थी। 27.3.04 का गोचर साथ दिया है। लग्न पर मंगल से प्रभावित उच्च चंद्र का गोचर है। सूर्य का गोचर सूर्य पर है पर गोचर का सूर्य शनि से प्रभावित है। मारकेश बुध का गोचर द्वादश भाव, लग्नेश शुक्र तथा मारकेश गुरु पर है। गोचर में लग्नेश शुक्र राहु और केतु के अक्ष पर है। अष्टमेश गुरु मारकेश है और अष्टम भावस्थ केतु उसके मारकत्व में वृद्धि कर रहा है। बुध भी मारकेश है। अतः इस समय की दशा में तीन मारकेश स्थित हैं, जो इस आत्म हत्या के प्रयास के कारण बन गये। उच्च का चंद्र लग्न में जीवन को बचा रहा है। द्वादश स्थान निद्रा का स्थान है इसीलिए जातक ने नींद की गोली खाकर आत्महत्या का प्रयास किया। इन उदाहरणों में आत्महत्या के प्रयासों में तीन जातकों ने जीवन से हाथ धोया और तीन जातक प्रयासों के उपरांत जीवित रहे। दो उदाहरण जल कर मरने के, एक फांसी लगाकर मरने का है। जीवित बचने वाले जातकों में एक ने ऋण न चुका सकने के कारण बार-बार आत्महत्या का प्रयास किया, दूसरे ने पत्नी के झगड़ा करने पर प्रयास किया और चोट पाई, तथा तीसरे ने दूसरी औरत के कारण अपमानित होने पर प्रयास किया। सारे जातक मध्य वर्ग से, शिक्षित तथा संस्कारी हैं और थे। कुछ बातें, जो अध्ययन के परिणामस्वरूप पाई गईं, वे निम्न हैं - Û सभी जन्म कुंडलियों में चंद्र, बुध तथा गुरु दुर्बल थे तथा गोचर में यह योग विशेष रूप से पाया गया। Û मारकेश, अष्टमेश, षष्ठेश तथा द्वादशेश और इनके भावों का चंद्र से संबंध है। वास्तव में तो षष्ठ, अष्टम, द्वादश तथा द्वितीय मारक स्थानों का तथा इन ग्रहों के स्वामियों का चंद्र से संबंध महत्वपूर्ण है। Û मरने वाले जातकों के गोचर में चंद्र शनि से प्रभावित था। Û आत्म को व्यक्त करने वाला ग्रह सूर्य गोचर में मारक स्थान सप्तम, अष्टम तथा द्वितीय भाव पर था, अथवा नीच था, अथवा मारकेश ग्रह की राशि में था। Û मंगल गोचर में अष्टम भाव में था या उसकी दृष्टि अष्टम भाव पर थी। Û जातक की कुंडली में अथवा गोचर में गुरु स्वयं मारकेश है, अथवा षष्ठ भाव में है।