लेखन कला में प्रवीण होने के लिए अच्छी एकाग्रता, तीव्र स्मरण शक्ति, अतुलनीय प्रतिभा एवं उत्कृष्ट मेधा-शक्ति का होना अति आवश्यक है। लेखन एवं काव्य के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम परमावश्यक तत्व है- मां सरस्वती की आराधना एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करना। तब कहीं जाकर लेखन-कार्य करने की प्रेरणा एवं उसमें सफलता प्राप्त होती है।
एक सफल एवं प्रतिष्ठित लेखक या कवि बनने के लिए जन्म पत्रिका में निम्नांकित कुछ ग्रह-योगों का होना अति आवश्यक है- ज्योतिष में मुखयतः बुध ग्रह तथा तृतीय भाव को लेखन, पत्रकारिता, पुस्तक संपादन इत्यादि का कारक माना गया है।
इसके अतिरिक्त पंचम भाव (उत्कृष्ट ज्ञान, सफलता एवं विद्या भाव) का संबंध भी लेखन कार्य से होता है। बुध ग्रह यदि शुभ होकर 1, 3, 4, 5, 7, 8, 9 भावों में स्थित हो, तो जातक सफल लेखक अथवा कवि बन सकता है क्योंकि ये सभी भाव किसी न किसी रूप से शिक्षा, बुद्धि, ज्ञान, सफलता, व्यवसाय एवं भाग्य से संबंधित हैं।
इसके अतिरिक्त यदि बुध का संबंध लाभ भाव से स्थापित हो जाय तो जातक लेखक बनकर आर्थिक लाभ भी प्राप्त करता है। लेखन कला से संबंधित अन्य ग्रह- चंद्र, गुरु, शुक्र तथा शनि हैं। शुभ चंद्रमा जातक को अंतःप्रज्ञा तथा कल्पना शक्ति प्रदान करता है।
गुरु उच्चस्तरीय ज्ञान, लेखन कौशल, मानसिक क्षमता एवं स्वस्थ मेधा शक्ति का कारक ग्रह है। शुक्र लेखन - कला में उत्कृष्ट शैली, रचनात्मकता एवं सौम्यता का समावेश करता है तथा शनि सोचने की शक्ति एवं उसे कार्यरूप में परिणत करने की शक्ति देकर व्यक्ति को स्वतंत्र चिंतन एवं विचारक बनाकर अंततः उसे विलक्षण एवं अद्भुत लेखन-प्रतिभा का धनी बनाता है।
यदि जन्म पत्रिका में इन ग्रहों का संबंध बुध ग्रह या लेखन से संबंधित भावों से स्थापित हो जाय तो जातक में अपनी सोच, कल्पना शक्ति एवं विचारों को लेखन के माध्यम से समाज तक पहुंचाने की अद्भुत क्षमता स्वतः ही विकसित हो जाती है क्योंकि बुध ग्रह स्वयं ही उत्कृष्ट बौद्धिक क्षमता, तर्क शक्ति एवं लेखन कला का प्रतिनिधि ग्रह है।
जब लग्नेश, तृतीयेश या तृतीय भाव की युति या दृष्टि संबंध बुध, गुरु, चंद्र या दशम भाव से बने तो जातक लेखन-कार्य को व्यवसाय के रूप में अपनाता है। 'होराशास्त्र' के अनुसार पंचमेश यदि नवम् भाव में हो तो एक सफल लेखक बनने के लिए यह एक उत्तम ग्रहयोग है। जन्मकुंडली में यदि सरस्वती योग का निर्माण भी हो रहा हो तो जातक लेखन के क्षेत्र में गगनचुम्बी ऊंचाईयों को छूता है।
प्रस्तुत कुंडली अंतर्राष्ट्रीय खयाति प्राप्त लेखिका, कवयित्री एवं पंजाबी उपन्यासकार अमृता प्रीतम की है। कुंडली में लग्नेश नवम् भाव में बुध के साथ स्थित है। त्रिकोण (नवम् भाव) में बुध एवं गुरु की युति से सरस्वती कृपा दिलाने वाला 'सरस्वती योग' भी पूर्णतः परिलक्षित हो रहा है। पंचमेश गुरु नवम् भाव में उच्चस्थ होकर लेखन एवं बुद्धि के कारक बुध के साथ स्थित है।
तृतीय (लेखन भाव) पर गुरु, बुध एवं मंगल की सप्तम दृष्टि भी है। इन सब ग्रहयोगों के फलस्वरूप ही अमृता-प्रीतम को लेखन के क्षेत्र में अद्वितीय सफलता मिली। यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम या दशम् भाव में सूर्य-बुध (बुधादित्य योग), बुध-शुक्र अथवा गुरु-बुध की युति हो तो जातक सफल लेखक बन सकता है।
जब सूर्य-शुक्र का योग द्वितीय भाव में तथा चंद्र, गुरु की राशि में केंद्रस्थ हो अथवा चंद्र-गुरु की युति (गजकेसरी योग) पंचम या दशम-भाव में हो तो ऐसे ग्रहयोग जातक को लेखक बनाने के साथ-साथ एक अच्छा कवि भी बनाते हैं। यह कुंडली सुप्रसिद्ध कवि एवं उपन्यासकार 'रविन्द्रनाथ टैगोर' की है, जिनके काव्य संग्रह 'गीतांजलि' को 1913 में अंतर्राष्ट्रीय 'नोबेल' पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।
कुंडली में ालग्नेश गुरु उच्चस्थ होकर पंचम भाव में स्थित है। लग्नेश गुरु का उच्चस्थ होकर विद्या, बुद्धि एवं सफलता के भाव में स्थित होना लेखन कार्य एवं उच्चस्तरीय ज्ञान के लिए अति उत्तम योग है। लग्न भाव में चंद्र, गुरु की राशि में स्थित है। द्वितीय भाव में लेखन के कारक ग्रह बुध, तृतीयेश शुक्र तथा उच्चराशिगत सूर्य की युति ने उनकी लेखन शैली में ओज, कलात्मकता तथा कल्पनाशक्ति को मूर्तरूप देने की कला विकसित की।
फलस्वरूप उन्हें कवि, लेखक एंव उपन्यासकार के रूप में अंतर्राष्ट्रीय खयाति प्राप्त हुई। यह कुंडली सुप्रसिद्ध कवि एवं लेखक हरिवंश राय बच्चन जी की है जिनकी 'मधुशाला' नामक काव्य कृति ने साहित्य जगत में उन्हें प्रतिष्ठा दिलाई। कुंडली में नवमेश बुध लग्नस्थ है तथा द्वितीय भाव में शुक्र, सूर्य की युति है। दशम् भाव में उच्च गुरु की स्थिति 'हंस योग' का निर्माण कर रही है।
अष्टम में उच्चराशि में स्थित चंद्रमा इस योग को और भी प्रबल बना रहा है। इन ग्रहयोगों के कारण ही बच्चन जी अत्यंत खयाति प्राप्त एवं लब्ध प्रतिष्ठ कवि व लेखक बन सके। जब जन्मकुंडली में तृतीयेश, पंचम भावस्थ हो या लग्नेश तथा पंचमेश का युति या दृष्टि संबंध हो अथवा दशमेश ग्रह बुध के नवांश (मिथुन या कन्या) राशिगत हो, तो जातक साहित्य के क्षेत्र की ओर अग्रसर होकर एक सफल लेखक बनता है।
कुंडली-4 वृश्चिक लग्न की है। वृश्चिक लग्न वाले जातक जलीय तत्व होने के कारण उत्कृष्ट बौद्धिक क्षमता एवं प्रबल, कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत होते हैं और ये गुण ही इन्हें लेखन एवं कविता की ओर आकृष्ट करते हैं। लग्न कुंडली में लग्नेश मंगल लाभ भाव में बुध की राशि में केतु के साथ युति बना रहा है। द्वितीय भाव में शुक्र-चंद्र के साथ युति करके जातक को लोकप्रिय कवि बना रहा है।
तृतीयेश शनि पंचम भाव में गुरु की राशि में स्थित है नवांश कुंडली में भी शुक्र-चंद्र की युति द्वितीय भाव में है तथा दशमेश सूर्य भी बुध के नवांश (कन्या) राशि में तृतीय भाव में स्थित है। नवांश कुंडली में बुध का द्वादश भाव में स्वराशिगत होना तथा गुरु का नवम् भाव में स्वराशिगत होकर तृतीय भाव पर दृष्टि डालना भी लेखन कला में सफल होने के लिए अत्यंत शुभ योग है। जातक एक सफल कवि एवं सशक्त कहानी लेखक है।
उपरोक्त सभी कुंडलियों की गहन एवं सूक्ष्म विवेचना करने के उपरांत एक तथ्य जो अत्यंत प्रामाणिक रूप से सामने आता है वह है साहित्य के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए बुध एवं गुरु ग्रह का स्वोच्च, स्वराशि या अपनी मूल-त्रिकोण राशि में स्थित होना, केंद्र या त्रिकोण भाव में होना, तृतीयेश या तृतीय भाव का बलवान होना तथा कुंडली में 'सरस्वती योग' 'गजकेसरी योग' अथवा बुधादित्य योग आदि का होना।
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