पुनर्जन्म – हकीकत या फसाना
पुनर्जन्म – हकीकत या फसाना

पुनर्जन्म – हकीकत या फसाना  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 13454 | सितम्बर 2011

गीता, विज्ञान और परामनोविज्ञान के लिए पुनर्जन्म की अवधारणा एक संगम स्थल है क्योंकि गीता आत्मा को अमर मानती है जो हर जन्म के साथ नया शरीर धारण करती है तथापि पिछले संस्कारों को लेकर के चलती है। वर्तमान के परामनोवैज्ञानिकों ने भी शोध द्वारा इस तथ्य को सिद्ध किया है। चिकित्सा विज्ञान भी कईं आदतों और परेशानियों को पिछले जन्मों और अवचेतन मन की यात्रा से जोड़कर देखता है। पूर्ण विस्तार के लिए पढ़िए लेख...

हिन्दी गीतों में अक्सर सुना जाता है - ''सौ बार जन्म लेंगें...'' या ''जन्म जन्म का साथ है.. .''। क्या ये संभव है ? क्या बार बार जन्म मिलता है ? किसी भी प्राणी की मृत्यु के पश्चात भी क्या कुछ ऐसा है जो शेष रह जाता है ? क्या नश्वर शरीर में भी कोई रहता है जो नश्वर नहीं है ? इन्हीं सहज जिज्ञासाओं से जुडा हुआ है - पुनर्जन्म का रहस्य।

प्राचीन काल से ही हमारे ग्रंथों में पुनर्जन्म के सूत्र मिलते हैं। 'न्याय दर्शन' में कहा गया है कि जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थायें हैं। पिछले कर्मों के अनुसार वह उसे भोगती है और नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिये वह फिर जन्म लेती है। 'उपनिषदकाल' में पुनर्जन्म की घटना का व्यापक उल्लेख मिलता है।

'योगदर्शन' में भी कर्मों के परिणाम, जन्म, जीवन और भोग के बारे में कहा गया है। 'सांखय दर्शन' के अनुसार - ''अथ त्रिविध दुखात्यन्त निवृत्ति खयन्त पुरुषार्थः'' पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा के शरीर, इन्द्रियों व विषयों से संबंध जुडे रहते हैं। वेदों में पुनर्जन्म को मान्यता दी गई है। विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों व समाजों में पुनर्जन्म को किसी न किसी रूप में मान्यता प्राप्त है।

पाश्चात्य दार्शनिक सुकरात, प्लेटो व पाईथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। आध्यात्मिक कानून -श्री 'मद्भगवत गीता' में कहा गया है कि आध्यात्मिक कानून के आधार पर पुनर्जन्म का तात्पर्य है - आत्माओं की पुर्नस्थापना। पिछले जन्मों के अशुभ कर्म मानव को अपने नये जन्म में भोगने पडते हैं। कर्म और पुनर्जन्म एक दूसरे से जुडे हुये हैं।

कर्मों के फल के भोग के लिये ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नये कर्म संग्रहीत होते हैं। गीता में आगे कहा गया है कि जिस तरह से एक मनुष्य पुरातन वस्त्र उतार कर नये वस्त्र धारण करता है ठीक उसी प्रकार हमारी आत्मा भी पुराने शरीर को छोड कर नया शरीर धारण करती है अर्थात् पुनर्जन्म लेती है।

गीता में आत्मा के नश्वर या अमर होने पर अधिक जोर डाला गया है। इससे प्रश्न उठता है कि यदि आत्मा नश्वर है तो क्या यह फिर से नये नये रूपों में जन्म लेती है ? हां - यही तो पुनर्जन्म है। सतयुग त्रेता में, त्रेता द्वापरयुग में बदल गया, राम ने कृष्ण के रूप में पुनर्जन्म लिया। कौशल्या ने यशोदा, कैकेयी ने देवकी, सीता ने राधा के रूप में पुनर्जन्म लिया तो फिर अविश्वास क्यों ?

जीवित अवस्था में मनुष्य अपने संस्कारों, विचारों, भावों व कर्मों द्वारा सूक्ष्म शक्ति अर्जित करता हैं। मृत्यु के पश्चात यह शक्ति ही मृतक के सूक्ष्म संस्कारों, भावों, विचारों और कर्मों की शक्ति से युक्त होकर अपने अनुकूल वातावरण में किसी गर्भ में पुनःजन्म लेती है।

अतः पुनर्जन्म आत्मा का नहीं, बल्कि इस शक्ति का होता है, वही नया शरीर धारण करती है। वेद के जानकार विद्वानों का मानना है कि पुनर्जन्म की पहली सीढी ही कर्म है। वैदिक दृष्टि के अनुसार मृत्यु के पश्चात भी न मरने वाला सूक्ष्म शरीर पांच ज्ञानेन्द्रियों, पांच कर्मेंद्रियों, पांच प्राण, एक मन व एक बुद्धि के योग से बना है।

यही वह सूक्ष्म शरीर है जो प्रारब्ध और संचित कर्मों के कारण मृत्यु पश्चात बार बार जन्म लेता है। ऐसा नहीं कि सूक्ष्म शरीर की ये अवधारणायें केवल भारतीय हैं बल्कि ''इजिप्शियन बुक ऑफ डैड'' में भी सूक्ष्म शरीर और उसके दूसरे शरीर को धारण करने के बारे में विचार प्रकट किये गये हैं।

विज्ञान की दृष्टि से -भारतीय दार्शनिकों को तो पुनर्जन्म स्वीकार करने में हिचक नहीं हुई परंतु विज्ञान जगत का स्वीकार करना ही भारतीय दर्शन की विजय होगी। पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है बल्कि इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक तथ्य के रूप में स्वीकारा जा चुका है।

पुनर्जन्म को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण व उदाहरण आज विद्यमान हैं। इसमें से सबसे बडा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है - जिस प्रकार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं हो सकता, उसी प्रकार से आत्मा जो नश्वर शरीर में विद्यमान है, का नाश नहीं हो सकता। आत्मा का एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर में प्रवेश संभव है।

पुनर्जन्म को प्रमाणित करने के लिये अनेकों उदाहरण हैं जिनमें मानव दूसरे जन्म में पैदा होने के पश्चात पूर्वजन्म की घटनाओं को कई प्रकार से सत्यापित करता है जैसे दैहिक चिन्हों के द्वारा, पूर्व के संस्कार, स्मृति, आदतों, गुणों या अवगुणों आदि के द्वारा ।

चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि हमारी कई आदतें और परेशानियां पिछले जन्मों से जुडी होती हैं। कई बार हमारे सामने ऐसी घटनायें पहली बार घटती हुई महसूस होती हैं परन्तु हमें लगता है कि इस तरह की परिस्थिति से हम पहले भी गुजर चुके हैं। चिकित्सा विज्ञान में इसे अवचेतन मन की यात्रा माना जाता है। ज्योतिष की दृष्टि से -हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पुनर्जन्म होता है ।

मृत्यु के पश्चात् आत्मा वायुमंडल में चलायमान रहती है, स्वर्ग-नर्क जैसे स्थानों पर घूमती है, लेकिन उसे एक न एक दिन सूिल शरीर लेना ही पडता है। ज्योतिष शास्त्र में प्रारब्ध यानि पूर्व जन्मों के फल की व्याखया की गई है। ज्योतिष की सारी विधायें पुनर्जन्म को स्वीकार करती हैं। इस विद्या का मानना है कि मानव अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं उसमें कुछ का फल तो जीवन के दौरान ही मिल जाता है और कुछ प्रारब्ध से जुड जाता है।

इन्हीं कर्मों के फल के अनुसार ही पुनर्जन्म लेने पर जातक की कुंडली में ग्रह दशायें व योग बनते हैं। पुनर्जन्म से संबंधित कुछ योगों के आधार पर कहा जा सकता है कि यदि जातक की जन्म कुंडली में लग्न का संबंध उच्च या स्वराशि के बुध या चंद्रमा से हो तो वह जातक पुर्वजन्म में व्यापारी रहा हो सकता है।

यदि लग्न का संबंध उच्च या स्वराशि के सूर्य या मंगल से हो तो पुनर्जन्म लेने से पहले वह क्षत्रिय योद्धा रहा हो सकता है। यदि लग्न में उच्च या स्वराशि का गुरु हो तो वह ब्राहमण था और यदि शनि, राहू या केतु से लग्न का संबंध बने तो वह पूर्वजन्म में शूद्र रहा हो सकता है। पुनर्जन्म के विपक्ष में -जिस तरह पुनर्जन्म की अवधारणा को स्वीकार करने वाले लोग हैं, उसी तरह ऐसे अनेक लोग भी है जो पुनर्जन्म की अवधारणा को नहीं मानते।

इसके लिए उनके पास भी अपने कई तर्क व प्रमाण हैं जो पुनर्जन्म की अवधारणा को सत्यापित नहीं करते। आज इस विषय पर चर्चा करने वाला अंधविश्वासी या कभी कभी तो पागल तक करार दे दिया जाता है। उनका कहना है कि विश्व की केवल 10 प्रतिशत आबादी ही इस पर विश्वास करती है।

कुछ का कहना है कि पुनर्जन्म की सभी बातें लेखकों की सोच पर आधारित मात्र किताबी होती हैं। निष्कर्ष -पुनर्जन्म का रहस्य एक ऐसी पहेली है जो शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती। कोई दिल से कहता है तो कोई दिमाग से। कोई सकारात्मक सोच रखता है तो कोई नकारात्मक। कोई इसे अंधविश्वास कहता है तो कोई वैज्ञानिक।

पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली है जो यह मुश्किल पैदा करती है कि कोई व्यक्ति मरने के बाद फिर से जन्म ले सकता है या नहीं ? जीवन के प्रति समग्र सजगता व अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। यह प्रकृति की अब तक न नहीं समझी गई कार्यनिधि का हिस्सा है।

इसलिये आज के वैज्ञानिकों के लिये ये एक पहेली बनी हुई है कि आखिर दोबारा से जन्म लेने का रहस्य क्या है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिससे मिलते जुलते कई प्रश्न हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी उल्लेखित हैं जैसे कि - वृहदारण्यक उपनिषद में पूछा गया है कि जीव जब निंद्रावस्था में होता है तो बुद्धि कहां चली जाती है ? केनोपनिषद में वर्णित है कि मनुष्य किसकी इच्छा से बोलता है ? इन प्रश्नों का भी पुनर्जन्म के सिद्धांत की तरह से तार्किक उतर नहीं दिया गया है।

लेकिन अगर वेदादि ग्रंथों का आश्रय लिया जाये तो शायद इस पहेली को सही रुप में आसानी से सुलझाया जा सकता है। पुनर्जन्म एक अबूझ पहेली है जो यह मुश्किल पैदा करती है कि कोई व्यक्ति मरने के बाद फिर से जन्म ले सकता है या नहीं ? जीवन के प्रति समग्र सजगता व अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं।

ज्योतिष विद्या का मानना है कि मानव अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं उसमें कुछ का फल तो जीवन के दौरान ही मिल जाता है और कुछ प्रारब्ध से जुड जाता है। इन्हीं कर्मों के फल के अनुसार ही पुनर्जन्म लेने पर जातक की कुंडली में ग्रह दशायें व योग बनते हैं।

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