अन्य धर्म भी मानते हैं, पुनर्जन्म का सत्य
अन्य धर्म भी मानते हैं, पुनर्जन्म का सत्य

अन्य धर्म भी मानते हैं, पुनर्जन्म का सत्य  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8702 | सितम्बर 2011

पुनर्जन्म की मान्यता के संबंध में विश्व के विभिन्न धर्मों में अलग-अलग विचार धाराएं प्रचलित हैं लेकिन चेतना प्रवाह की अविच्छिज्जता और काया की नश्वरता को सभी धर्मों (मजहबों/मतों/संप्रदायों) ने समान रूप से स्वीकार किया है। भारतीय धर्म दर्शन में आत्मा की अमरता एवं पुनर्जन्म की सुनिश्चितता को आरंभ से ही मान्यता प्राप्त है।

श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है- ''जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार यह जीवात्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है।

(अध्याय-2/22वां श्लोक) चौथे अध्याय के 5वें श्लोक में कहा गया है- ''हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गये हैं। ईश्वर होकर मैं उन सबको जानता हूं, परंतु हे परंतप! तू उसे नहीं जानता।'' सामान्यतया यह कहा जाता है कि विश्व के दो प्रमुख मजहबों ईसाई और इस्लाम में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है, पर उनके धर्म ग्रंथों एवं मान्यताओं पर बारीकी से दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि प्रकारांतर से वे भी मरणोत्तर जीवन की वास्तविकता को मान्यता देते हैं और परोक्ष रूप से उसे स्वीकार करते हैं।

प्रखयात विद्वान प्रो. मैक्समूलर ने अपने गं्रथ-''सिक्ससिस्टम ऑफ इंडियन फिलासफी'' में कहा है कि ईसाई धर्म पुनर्जन्म की आस्था से सर्वथा मुक्त नहीं है। प्लेटो एवं पाइथागोरस के दार्शनिक ग्रंथों में इस मान्यता को स्वीकारा गया है।

दूसरी शताब्दी के सुप्रसिद्ध अंग्रेज विद्वान ऐरोगन ने स्पष्ट लिखा है- ''बार-बार जन्म लेने पर फरिश्ते आदमी बन सकते हैं और आदमी फरिश्ते और बुरे-बुरे लोग भी उन्नति करते-करते अच्छे आदमी या फरिश्ते बन जाते हैं।'' ईसाई धर्म के प्रखयात विद्वान जो जेफस ने अपनी पुस्तक में उन यहूदी सेनापतियों का हवाला दिया है जो अपने सैनिकों के मरने के बाद भी फिर से पृथ्वी पर जन्म मिलने का आश्वासन देकर उत्साहपूर्वक लड़ने के लिए प्रेरित करते थे।

उन्होंने लिखा है- ''रुहें सब शुद्ध होती हैं, अच्छे मनुष्यों की आत्मा फिर से अच्छे शरीर में जाती हैं जबकि दुष्कर्मियों की रूहें सजा भुगतती हैं। थोड़े दिनों पश्चात् वह फिर से नया जन्म लेने के लिए भेजी जाती हैं। अच्छी रुहें अच्छे शरीर में और बुरी रुहें बुरे जिस्मों में, परंतु जो लोग आत्महत्या करते हैं, उन्हें पाताल की अंधेरी दुनिया में भेजा जाता है जिसे 'हेडस' नाम से जाना जाता है।

जोजेफस का यह कथन इशोपनिषद की उस आखयायिका से अक्षरशः मिलता है जिसमें कहा गया है- ''अधं तमः प्रविशंति ये के चात्महनो जनाः।'' अर्थात् जो लोग आत्महत्या करते हैं वे घोर अंधकार में जाते हैं। यहूदी धर्म में पुनर्जन्म को 'गिलगूलिम' कहा जाता है। यहूदी परंपरा 'कब्बालह' में भी इस मान्यता की प्रधानता है।

उनके धर्म ग्रंथ 'जुहर' में स्पष्ट रूप से उद्धृत है कि ''सब रुहों को बार-बार जन्म लेना पड़ता है।'' ईसाई धर्म का सबसे प्राचीन संप्रदाय-'ग्नास्टिक संप्रदाय, है जिसके संबंध में प्रसिद्ध है कि वे सभी विद्वान, समझदार और नेक आदमी थे और सभी की मरणोत्तर जीवन में पूर्ण आस्था थी। ईसा से चौथी- पांचवी सदी के 'मनीशियन' संप्रदाय के लोग भी पुनर्जन्म को मानते थे।

इतिहासकार गिबन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ''डिक्लाइन एन्ड फॉल ऑफ द रोमन एम्पायर'' में लिखा है कि ईसा के शिष्य पुनर्जन्म को मानते थे। उनके अनुसार प्रखयात ईसाई आचार्यों में क्लीमैंस, एलेगजैण्डिनस, सिनेसयस, चैलसीडियास जैसे विद्वान इसे मानते थे। बाद के यूरोपीय विद्वानों और दार्शनिकों में गिआरडानों, बान हेमाण्ट, स्वीडिन बर्ग, गेटे, लैसिंग, चार्ल्स बोनेट, हरडर, ह्यूम, शौपनहावर जैसे खयातिलब्ध विचारक भी मरने के पश्चात् फिर से नया जन्म मिलने की बात पर विश्वास रखने लगे थे।

'विजडम ऑफ सोलेमन' ग्रंथ में महाप्रभु ईसा के वे कथन उद्धृत हैं जिसमें उन्होंने अपने शिष्यों से एक दिन कहा था- ''पिछले जन्म का एलिज (इल्यास) ही अब- जान दी बैपटिस्ट' के रूप में जन्मा है'' बाइबिल के चैप्टर 3, पैरा 3-7 में ईसा कहते हैं- ''मेरे इस कथन पर आश्चर्य मत करो कि तुम्हें निश्चित रूप से पुनर्जन्म लेना पड़ेगा।''

सेण्टपाल को तो ईसा की प्रतिमूर्ति माना जाता है। ईसाई धर्म के प्राचीन आचार्य ओरिगन कहते थे- ''प्रत्येक मनुष्य को अपने पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार अगला जन्म धारण करना पड़ता है'' पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो, प्लोटिनस, काण्ट एवं टैनीशन, जान मैक्सफील्ड जैसे विचारकों की पुनर्जन्म में आस्था थी।

सुविखयात यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस का अभिमत था कि मरणोपरांत आत्मा पुनः प्रकृति के किसी भी प्राणी में जा पहुंचती है। यह निर्धारण कर्म फल व्यवस्था के अनुसार ही होता है। प्लेटो ने यह भी स्वीकारा है- ''जो आत्माएं शुद्ध हो चुकी हैं और शरीर पर जिनका तनिक भी मोह नहीं है, वे फिर से शरीर धारण नहीं करेंगी।

पूर्ण रूप से अनासक्त होने पर वे आवागमन के चक्र से मुक्त हो जायेंगी।' उनका कहना है कि- ''अनिश्चित सीमा' नामक अपनी पुस्तक में श्री जी.एल. फ्लेअर ने इसकी पुष्टि करते हुए लिखा है कि ''यह बात नहीं कि हम यहां से कहीं जाते हैं, हम तो यहां पहले से ही थे।''

वस्तुतः पुनर्जन्म की मान्यता जीवन को अनवरत रूप से गतिशील रहने एवं उत्तरोत्तर विकास करते जाने का विश्वास दिलाती है। अरबी में इसे 'तनासुख' कहते हैं- इस्लाम के पवित्र धर्म ग्रंथों- इंजील और कुरान में इस संबंध में कोई स्पष्ट बात नहीं लिखी है, पर इससे इंकार भी नहीं किया गया है।

कुरान में कहा गया है- ''इंसान! तुझे फिर अपने रब (खुदा) की तरफ जाना है। वही तेरा अल्लाह है। तुझे मेहनत और तकलीफ के पास दरजे-बदरजे अर्थात् सीढ़ी चढ़कर उस तक पहुंचना है।'' कुरान में कुछ आयतें स्पष्ट रूप से कहती हैं- ''हमने तुम्हें जमीन में से पैदा किया है और हम तुम्हें फिर उसी जमीन में भेज देंगे और फिर उसी में पैदा करेंगे, बार-बार आखिर तक।'' एक दूसरी आयत में कहा गया है- कैफातक फुन्द्वना बिल्लाहे......

अर्थात् तुम अपने अल्लाह से कैसे इंकार कर सकते हो। तुम मर चुके थे। उसने तुम्हें पुनः जीवित किया। वह तुम्हें फिर मारेगा और फिर जिलायेगा। यहां तक कि आखिर में फिर तुम उसके पास लौट जाओगे।'' इस तरह कितनी ही आयतें हैं जो मृत्यु के पश्चात् जीवन की निरंतरता पर प्रकाश डालती हैं।

प्रसिद्ध सूफी संत मौलाना रूमी ने लिखा है- '' मैं पेड़, पौधे, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी योनियों में होकर मनुष्य वर्ग में प्रवेश हुआ हूं और अब देव वर्ग में स्थान प्राप्त करने की तैयारी कर रहा हूं।'' कुरान की आयतों के आधार पर पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाले सूफी-संतों में अहमद-किन-साबित, अहमद, बिना अबूस, अबुमुस्लिम खुरासानी, शेख-उलइश्राक, उमर खय्याम, अल-गिजाली आदि प्रमुख हैं।

इन्होंने कुरान की सूरतुलमबरक आयत 61 और 92 तथा सूर-तुलमायादा आयत 55 को प्रमुख रूप से अपनी मान्यता का आधार बनाया है। 'दी एनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम' में तनासुख अर्थात् पुनर्जन्म पर विशद् रूप से प्रकाश डाला गया है। उसके अनुसार इस्लाम के बहुत से फिरके हैं जो पुनर्जन्म को मानते हैं विशेषकर शिया संप्रदाय के लोग। ''दी एनसासाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन्स एण्ड एथिक्स'' में कहा गया है कि भारतीयों के अतिरिक्त ईरानियों, जरथुस्रियों, मिस्रियों, यहूदियों, यूनानियों, रोमवासियों, कैलटिक एवं टियोटोनिक आदि सभी ने पुनर्जन्म को माना है।

इसी महागं्रथ के बारहवें खण्ड में अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के आदिवासियों के संबंध में यह अभिलेख है कि वे सभी समान रूप से मरणोत्तर जीवन को मानते हैं। अब इस मान्यता को वैज्ञानिक, अनुसंधान का विषय स्वीकार कर लिया गया है। इस संदर्भ में वैज्ञानिकों एवं परामनोविज्ञानियों ने जो प्रत्यक्ष प्रमाण जुटाये हैं, उनसे लोगों को अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ना या शिथिल करना पड़ रहा है।

पुनर्जन्म वस्तुतः जीवन यात्रा का अगला चरण है, सतत् गतिशीलता का अगला आयाम है। इसकी मान्यता जीवन क्रम में आस्तिकता की भावना, नीतिमत्ता एवं भविष्य की आशा बनाये रखने की दृष्टि से नितांत आवश्यक है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.