क्या है इस जन्म का कारण
क्या है इस जन्म का कारण

क्या है इस जन्म का कारण  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 22594 | सितम्बर 2011

कार्य-कारण संबंध दर्शन और विज्ञान का अकाट्य नियम है जो जीवात्मा की संपूर्ण यात्रा के संबंध में भी समान रूप से लागू होता है। और ज्योतिष के इस संबंध को और इस यात्रा के उद्‌ेश्य को अत्यंत सटीक रूप से स्पष्ट करती है। आईये, जाने क्या और किस रूप में।

इस संसार में प्रत्येक जातक अपने पूर्व जन्मों में किए गये कर्मों के आधार पर ही जीवन पाता है अर्थात जन्म लेता है। पूर्व में किए गये कर्मों (संचित कर्मों) में से कुछ कर्मों को लेकर ही जातक इस धरती पर प्रकट होता है। जैसे कर्म उसने उस जन्म में किये होते हैं उसी आधार पर ईश्वर उसे कुटुंब, परिवार व सगे संबंधी प्रदान करता है।

जातक इस जन्म में किये जाने वाले कर्मों (क्रियमाण कर्मों) से अपने भविष्य को सुधार सकता है तथा अपना आगामी जीवन भी अच्छा कर सकता है। इस जन्म में हमारे आने का प्रयोजन हमारी जन्म पत्रिका में स्थित ग्रहों के द्वारा जाना जा सकता है। हम इस जन्म में किस उद्देश्य से आये हैं? क्या लिखवाकर लाये हैं? इसकी जानकारी निम्न ग्रह स्थिति बताती है।

पत्रिका में गुरु ग्रह की स्थिति : गुरु ग्रह पत्रिका में जिस भाव में हो उसके अनुसार जातक की पूर्वजन्म की करनी का पता चलता है तथा वर्तमान में उसके होने का कारण ज्ञात होता है।

लग्न भाव : गुरु लग्न में हो तो ऐसा जातक आशीर्वाद या शापानुसार जन्म लेता है। इस जीवन में उसके सुख-दुख उसे इसी अनुसार प्राप्त होते हैं। प्रायः एकांतवास में चिंतन- मनन करते समय जातक को इसका भान होता रहता है।

द्वितीय भाव/अष्टम भाव : इन दोनों भावों में गुरु होने से ऐसे जातक के पूर्व जन्म में संत महात्मा होने का पता चलता है जो इच्छापूर्ति हेतु इस जन्म में आए होते हैं। इनका जन्म अच्छे परिवार में होता है सामान्यतः यह धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। जातक आशीर्वाद या शापानुसार जन्म लेता है। इस जीवन में उसके सुख-दुख उसे इसी अनुसार प्राप्त होते हैं। प्रायः एकांतवास में चिंतन- मनन करते समय जातक को इसका भान होता रहता है।

द्वितीय भाव/अष्टम भाव : इन दोनों भावों में गुरु होने से ऐसे जातक के पूर्व जन्म में संत महात्मा होने का पता चलता है जो इच्छापूर्ति हेतु इस जन्म में आए होते हैं। इनका जन्म अच्छे परिवार में होता है सामान्यतः यह धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।

तृतीय भाव : यदि इस भाव में गुरु हो तो जातक का जन्म किसी महिला के आशीर्वाद या शाप वश होता है यह महिला उसी परिवार की होती है जिसमें जातक का वर्तमान जन्म हुआ होता है। इसका जीवन आशीर्वाद के फल स्वरूप सुखमय तथा शाप के फल स्वरूप कष्टमय व दुखी होता है।

चतुर्थ भाव : इस भाव में गुरु जातक को पूर्व में इसी परिवार का होना बताता है जो किसी खास प्रयोजन हेतु वापस उसी परिवार में जन्म लेते हैं तथा अपना बाधित कार्य कर वापस चले जाते हैं।

नवम भाव : इस भाव में गुरु अपने पितरों की कृपा दृष्टि को दर्शाता है। ऐसा व्यक्ति पूर्व में किये गये कार्यों के द्वारा इस जीवन में त्याग व ब्रह्म ज्ञान की प्रवृत्ति रखता है तथा भाग्यशाली होता है।

दशम भाव : जिस जातक के इस भाव में गुरु होता है, वह कर्मों द्वारा गुरुत्व की प्राप्ति करता है तथा पूर्व में धार्मिक विचारों वाला रहा है। इस जन्म में उपदेशक होता है परंतु पूजा पाठ का दिखावा नहीं करता है तथा समाज सुधारने का कार्य करता है।

पंचम/एकादश भाव : इन भावों में गुरु जातक को पूर्व जन्म में तंत्र-मंत्र एवं गुप्त विद्या का जानकार बताता है जिससे वह इस जन्म में दुष्ट आत्माओं द्वारा कष्ट व परेशानी पाता रहता है। उसे इस जन्म में पुत्र सुख कम प्राप्त होता है तथा मानसिक अशांति बनी रहती है।

दशम भाव : यदि इस भाव में गुरु हो तो जातक गुरु का ऋण चुकाने हेतु जन्म लेता है उसे समय-समय पर मार्गदर्शन मिलता रहता है तथा वह धार्मिकता से जीवन जीता है। उसके घर के आस-पास देवालय अथवा मंदिर अवश्य होता है।

जन्म पत्रिका में शनि व राहु की स्थिति : गुरु द्वारा पूर्व जन्मों के कृत्य जाने जाते हैं वहीं शनि की स्थिति द्व ारा भाग्य-कुभाग्य अथवा प्रारब्ध देखा जाता है।

प्रथम भाव : इस भाव में शनि या राहु पूर्व जन्म में जातक के जड़ी-बूटीयों का जानकार होना बताता है। इनका बचपन आर्थिक कष्टों में गुजरता है, इन्हें अदृश्य शक्तियों से सहायता प्राप्त होती है तथा ये इस जन्म में एकांतप्रिय व शांत रहते हैं।

द्वितीय भाव : इस भाव में शनि या राहु जातक के पूर्वजन्म में व्यक्तियों को सताने व परेशान करने के विषय में बताता है। जातक को घोर आर्थिक कष्ट प्राप्त होता है। यदि इसमें राहु की युति या दृष्टि भी पड़ती हो तो जातक निद्रा, रोग व डरावने सपनों से परेशान होता है। यह व्यक्ति शारीरिक बाधा में रहता है।

तृतीय भाव : इस भाव में शनि अथवा राहु हो तो जातक बिना किसी कार्य के धरती पर जबरदस्ती आया हुआ होता है। बहुधा ऐसा जातक घर की अंतिम संतान होता है। जातक को पराविद्या का ज्ञान अथवा भविष्य का ज्ञान अदृश्य शक्तियों द्वारा होता रहता है। यह जातक भूगर्म वस्तुओं के जानकार होते हैं। कभी-कभी भयभीत होते हैं ऐसा ही शनि राहु के षष्ठ भाव में होने पर भी होता है।

चतुर्थ भाव : इस भाव में शनि या राहु की स्थिति जातक के पिछले जन्म में सर्प योनी का होना बताती है। यह जातक मानसिक रूप से परेशान रहते हैं तथा उदर रोग से पीड़ित होते हैं, इन्हें सर्प भय लगा रहता है बहुधा यह सर्पों के विषय में जानकारी रखना पंसद करते हैं।

पंचम भाव : इस भाव में शनि अथवा राहु पूर्वजन्म में हत्यारा होना बताता है। इस जन्म में ये लोग भ्रमित व संतान संबंधी कष्टों से घिरे रहते हैं शिक्षा में रुकावटें आती रहती हैं।

सप्तम भाव : इस भाव में शनि या राहु पूर्वजन्म में विपरीत लिंग से संबंधित दुर्व्यवहार को दर्शाते हैं जिससे इन्हें इस जन्म में सामान्यतः जीवन-साथी ना प्राप्त होकर गैर परंपरा से संबंधित साथी की प्राप्ति काफी देर से होती है तथा दाम्पत्य जीवन कष्टमय ही रहता है।

अष्टम भाव : इस भाव में शनि/राहु होने से जातक पूर्वजन्म में तंत्र-मंत्र करने वाला रहा होता है जिससे उसे इस जन्म में अनावश्यक भय लगा रहता है, बहुधा ये मानसिक रूप से ग्रसित पाये जाते हैं।

दशम भाव : इस भाव में शनि व्यक्ति का कर्मठ व मेहनती होना बताता है। पूर्वजन्म में इसने घोर यातनाएं पाई होती हैं जिस कारण इस जीवन में यह व्यक्ति बहुत सफल जीवन जीता है परंतु इसकी तरक्की धीरे-धीरे ही हो पाती है।

द्वादश शनि : ऐसे जातक का जन्म सर्पों के आशीर्वाद से होता है तथा यह अपने ग्रह स्थान से दूर कामयाब होते हैं। पूर्वजन्म में इन्हें निम्न योनि की प्राप्ति हो रही होती है। इस जीवन में यह समस्त सुख प्राप्त करते हैं।

यदि किसी की पत्रिका में शनि राहु इकट्ठे किसी भी भाव में हों तो जातक प्रेत-दोष का शिकार होता है। जिस कारण जातक का शरीर हमेशा भारीपन लिए तथा स्वास्थ्य संबंधी कष्टों में ही रहता है। ये आलसी एवं क्रोधी स्वभाव के होते हैं तथा पूजा-अर्चना के समय इन्हें नींद व उबासी आती रहती है।

इस प्रकार कुंडली द्वारा जातक के पूर्वजन्म के अलावा उससे होने वाले कार्यों व प्रारब्ध को भी जाना जा सकता है। यदि किसी की पत्रिका में शनि राहु इकट्ठे किसी भी भाव में हों तो जातक प्रेत-दोष का शिकार होता है। जिस कारण जातक का शरीर हमेशा भारीपन लिए तथा स्वास्थ्य संबंधी कष्टों में ही रहता है।

ये आलसी एवं क्रोधी स्वभाव के होते हैं तथा पूजा-अर्चना के समय इन्हें नींद व उबासी आती रहती है। सप्तम भाव में शनि या राहु पूर्वजन्म में विपरीत लिंग से संबंधित दुर्व्यवहार को दर्शाते हैं जिससे इन्हें इस जन्म में सामान्यतः जीवन-साथी ना प्राप्त होकर गैर परंपरा से संबंधित साथी की प्राप्ति काफी देर से होती है तथा दाम्पत्य जीवन कष्टमय ही रहता है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.